रविवार, 28 फ़रवरी 2010

ब्लॉग़र होली मिलन भिलाई में

ल होली की पूर्व संध्या पर कुछ ब्लागर बिना किसी निश्चित कार्यक्रम के मिल लिए......... ..राजकुमार सोनी जी छुट्टी थी उन्हें अपनी माता जी से मिलने दुर्ग जाना था.....उनका फोन मेरे पास आया और पूछा कि दुर्ग चलेंगे क्या? 

मैंने हां कर दी बहुत दिन हो गये थे अपने भिलाई वाले साथियों से मिले. राजकुमार सोनी अपने साथ अवधिया जी को भी लेकर आये . फिर हम अभनपुर से पाटन होते हुए पहुँच गये दुर्ग.... 

राजकुमार जी की माता से मिले उनके दर्शन किये.... ..और फिर जम गई मित्रों की टोली और मनी धमाके दार होली...... मैं इस पर अभी ज्यादा कुछ नहीं लिख रहा हूँ.....क्योंकि.........होली मनाते हैं और फिर बाद में हमारी इस होली की जानकारी भी सुनाते हैं चित्र में बैठे है. संजीव तिवारी, बी.एस. पावला, जी.के.अवधिया, ललित शर्मा, राजकुमार सोनी, शरद कोकास, गुप्ता जी,...........
अब देखिये आनंद कैसे बढ़ता है  और किसे कहते हैं महफ़िल में चार चाँद लगना.......

हम भिलाई से निकलने की तैयारी कर रहे थे तभी हरियाणा के सुप्रसिद्ध कवि योगेन्द्र मौदगिल जी का फोन आया और उन्होंने मुझसे पूछा की आप कहाँ है? 

यही सवाल मैंने उनसे किया तो पता चला की होली की पूर्व संध्या पर भिलाई ओपन थियेटर में कवि  सम्मलेन पर आये हैं...वाह! क्या था फिर हम सब पहुच गए कवि सम्मलेन में, वहां सभी मित्र गण गर्मजोशी से मिले और कुछ फोटू मोबाईल कैमरे से ली गई. फिर योगेन्द्र जी मेरे साथ अभनपुर आ गये..........
  

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

परम गुमशुदा की तलाश

-------खुला पत्र------ 

प्रति,
पंकज मिश्रा
चिटठा चर्चाकार 
"चर्चा हिंदी चिट्ठों की"
ब्लाग वुड-भारत

विषय--चर्चा हेतु उपस्थित होने बाबत..............

प्रिय अनुज--तुम्हारी अनुपस्थिति बहुत दिन से ब्लाग जगत में है. तुम कहाँ हो? कोई खोज-खबर भी नहीं है. बिना बताये ही कहाँ चले गए? किस्से नाराजी है तुम्हे........मैंने अंतिम १ फरवरी को तुम्हारी चर्चा --भाई! गाँधी की हत्या कितनी बार करोगे? पढ़ी थी उसके बाद कोई चर्चा नहीं आई है. इसके बाद हम भी छुट्टी पर चले गए थे. आने के बाद दो-चार चर्चा हमने भी की लेकिन हमारे एक भाई के कथनानुसार हमारी चर्चा को भी किसी की नजर लग गई.  इसलिए हम फिर चर्चा नहीं लिख पाए......
अब हमारा भी स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं है. इसलिए चर्चा नहीं लिख पाए. तुम्हारे चाहने वाले हमे पूछते हैं कि  पंकज मिश्रा जी कहाँ है? वैसे भी होली का समय आ गया और तुम्हारी उपस्थिती आवश्यक है.....कुछ फाग राग जमाओ....और सबके साथ होली जम के मनाओ......त्यौहार का मजा लो. कहीं चूक गये तो फिर साल भर इंतजार करना पड़ेगा..
शास्त्री जी ने भी मिठाइयों का भंडार अभी से खोल दिया है. देर होने पर वंचित होना पड़ेगा. हम तो फोटो देख के ही खुश हैं. क्या करें फोटो देख कर ही शुगर बढ़ गई है.इसलिए आज दिन भर सोये रहे .अब सो के उठे तो लगा तुम्हे ही याद कर लें...इसलिए हम खुला पत्र लिख रहे हैं जहाँ कहीं भी हो हाजिर हो जाओ.......

नोट-------पंकज मिश्रा को ढूंढ़ कर लाने वाले या पता बताने वाले का 
           लिंग परिवर्तन डॉ. राजीव तनेजा द्वारा मुफ्त में किया जायेगा ..... .
दिनांक--२५/०२/२०१०                                                                                                           
स्थान--ब्लागवुड                                                                                              
होली प्रभाग                                                                                                             जारी कर्ता 
ललित शर्मा के निवेदन पर 
खोया पाया विभाग--ब्लाग वुड

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

राजीव तनेजा को नोटिस

---------नोटिस----------

प्रति,
डॉ. राजीव तनेजा
हँसते रहो-- ब्लाग वुड
 

विषय--------लिंग परिवर्तन की सुचना निदेशालय में देने बाबत


डॉ.राजीव तनेजा........आपको सूचना दी जाती है कि आप लिंग परिवर्तन निदेशालय को सूचित किये बिना लिंग परिवर्तन एवं चेहरा बदलने की प्लास्टिक शल्य क्रिया कर रहे हैं. यह एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है- सरकार को इससे अर्थ की हानि होती है. लिंग परिवर्तन एवं चेहरा परिवर्तन के पश्चात् सरकार को अपेक्षित कार्यवाही करनी पड़ती है. मसलन राशन कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, बैंक कार्ड-पास बुक, सर्विस बुक में नाम, फोटो एवं लिंग परिवर्तन के साथ पति या पिता का नाम भी दर्ज करना पड़ता है,
हमारे निदेशालय ने विचार करके यह निर्णय लिया है क्यों ना इस आपराधिक कृत्य करने हेतु आपको दंड दिया जाए? आपकी सजा यह है कि हमारे निदेशालय के जो अन्य अधिकारी कर्मचारी हैं उनका भी लिंग परिवर्तन नि:शुल्क करके अतिशीघ्र प्रभारी अधिकारी के समक्ष अपनी टिप्पणी जमा कर सूचित करे,
 
नोट-आदेश की अवहेलना होने पर अवमानना की त्वरित कार्यवाही की जाएगी.
 
दिनाक-२४/०२/२०१०
 

आदेशा नुसार
आयुक्त
लिंग परिवर्तन निदेशालय
ब्लाग वुड

 
लिंग परिवर्तन निदेशालय---------ब्लाग वुड
होली विभाग  

डॉ.राजीव तनेजा के कृत्य अवलोकन हेतु  यहाँ से जाएँ.

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

ब्लागर मिलन बिलासपुर में

जाना था जापान पहुँच गये चीन वाली तर्ज पर हमें जाना था बिल्हा और पहुच गये बिलासपुर. हुआ यूँ कि जब हम बिल्हा के लिए निकल रहे थे तो रविवार था और ७ तारीख  थी. दोपहर को अरविन्द झा जी को फोन लगाया तो वो बोले आप सीधा बिलासपुर ही आ जाईये. 

इधर संजीव तिवारी जी भी बिलासपुर पहुच रहे थे सपरिवार एक विवाह समारोह में, हमें भी तिलक समारोह में बिल्हा पहुंचना था. भैया को बोल दिये थे कि शाम की ट्रेन से आ रहा हूँ. अब बड़ा संकट में फँस गया था. 

मेरा काम ८ तारीख को था. सोचा चलो आज मित्रों से ही मिल लिया जाये बहुत दिन हो गये थे बिलासपुर में रुके. तो मित्रता पारिवारिक रिश्तों के बंधन तोड़ कर आगे निकल गई और हमने शताब्दी की टिकिट कटा ली, 

उस  समय ५:३० बज रहे थे और बैठ गए बिलासपुर के लिए. ट्रेन लगभग ८:३० पे बिलासपुर पहुंची. स्टेशन पर श्याम कोरी जी और अरविन्द झा अपने दोस्त संजय मेश्राम जी के साथ बड़ी गरम जोशी से मिले. 

वहां से चलकर हम अरविन्द जी के घर पहुंचे. कुछ देर चर्चा हुयी, इधर अरविन्द जी ने भोज की तैयारी करवा रखी थी. भोजन से पहले हमने संजीव तिवारी जी को फोन लगाया तो वो बोले "मै तो अभी शादी में फँस गया हूँ बारात द्वार-चार के लिए अभी तक नहीं पहुंची है और मेरे को तुरंत रात को ही भिलाई निकालना है इस लिए मै आप लोगों की महफ़िल में शरीक नहीं हो पाउँगा." 

अब हम लोग आपस में चर्चा करने लगे. अरविन्द झा एक सुलझे हुए इन्सान और इन्होने कुछ साल नेवी में भी काम किया था. उसे छोड़ कर इन्होने रेलवे की सर्विस ज्वाइन कर ली. आज पॉँच साल से बिलासपुर में हैं और क्रांति दूत नामक ब्लाग पर ब्लागिंग कर रहे हैं. 

श्याम कोरी जी का ब्लाग कडुवा सच है. जिस पर वो लिखते है. खाना खाते खाते अरविन्द जी ने एक बहुत बढ़िया स्मरण सुनाया.

वह यूँ था कि एक लड़का अपने जीवन के संघर्ष काल में था. अकेले रहता था. किराये के मकान में दिन भर का थका हरा जब आफिस से वापस घर आता था तो सोफे पे बैठ कर सबसे पहले जूता निकलता था.फिर सीधा दीवार पर दे मारता था. 

पहला जूता और फिर दूसरा जूता. जिस दीवाल पर वह जूता मरता था उसके बगल में मकान मालिक का कमरा था. रात को लेट आने के बाद जब मकान मालिक सोने के समय जूतों की आवाज सुनता था तो उसकी नींद उचट जाती थी. जिससे उसे गुस्सा आ जाता था. 

एक दिन मकान मालिक ने उसे जूते दीवाल पर मारने से माना किया. तो उसने भी आज से ना मारने का आश्वासन दिया. पर जैसे ही रात को आया उसने जूते खोले और सीधा आदत के अनुसार दीवाल पर दे मारा. जब पहला जूता फेंका तो उसे याद आया कि आज तो मैंने मकान मालिक को आश्वासन दिया है कि दीवाल पर जूता नहीं मारूंगा. यह ख्याल आते ही उसने दूसरा जूता नहीं मारा. थोड़ी देर के बाद उसके कमरे की घंटी किसी ने बजायी. जब दरवाजा खोल कर देखा थो मकान मालिक था. उसने कहा "यार जल्दी से दूसरा जूता मारो मुझे सोना है..............."
इसके बाद श्याम भाई ने ब्लागिंग के विषय में तकनीकि जानकारियों पर चर्चा की. ब्लाग कैसा होना चाहिए?  उस पर क्या लिखना चाहिए? 

अरविन्द जी ने कहा कि जब दुनिया का हर पांचवा ब्लाग लिखने लगेगा तो क्या होगा? 

जब दुनिया का हर पांचवा आदमी ब्लाग लिखने लगेगा तो बाप-बेटा भी लिखेंगे. बाप ने अगर बेटे को रात को कोई काम बताया और दुसरे दिन शाम को पूछा कि मैंने जो काम बताया था वो किया कि नहीं? 

तो बेटा बोलेगा कि "मैंने तो सुबह ही आपको पोस्ट लिख कर बता दिया था कि वह काम मुझसे नहीं हो सकता. अब आपने मेरा ब्लाग नहीं पढ़ा तो उसमे मेरी क्या गलती है". हां हा हा 

इसके बाद खाना खाकर श्याम कोरी जी ने फिर मिलने के वादे  के साथ बिदा ली.उनसे मिल कर बड़ा अच्छा लगा. अरविन्द झा जी ने उन्हें स्टेशन तक छोड़ा. फिर हमने सोने का प्रयत्न किया. तभी रात को अरविन्द जी वाले ब्लाक की लाईट चली गयी. मच्छरों ने रात को सोने नहीं दिया.रात ऐसे ही जागते हुए कट गई,  

सुबह ७ बजे लाईट आई. जब तक हम वापसी के लिए तैयार हो चुके थे. अरविन्द जी, संजय मेश्राम और श्याम कोरी जी  के साथ स्नेह मिलन यादगार रहा. फिर मिलने के वादे के साथ हम चल पड़े ट्रेन पकड़ कर अपने गंतव्य की ओर चल पड़े.

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

जब की रेलगाड़ी की सवारी-कविवर की दूर हुई बीमारी

हमारा भ्रमण होता रहता है तो किसम-किसम लोग मिलते ही रहते हैं. कभी बस में, कभी रेल गाड़ी, में कभी उड़न खटोले पर, जैसे जो सुविधा मिल जाये, हम पहुँच जाते हैं तय समय पर निर्धारित कार्यक्रम में. 

ऐसे सफ़र में साहित्कार, कवि लेखक भी मिल जाते हैं. जो साहित्य सेवा में लगे हैं. और उनका कार्य अनुकरणीय भी होता है. एक बार के सफ़र की कथा हम सुनाते हैं. जो हमने देखा उसका सीधा प्रसारण कर रहे हैं.

एक बार हम बिलासपुर से आ रहे थे रेल में. बड़ी भीड़ थी और हमारे पत्नी बच्चे भी थे साथ में. ट्रेन आते ही हमने पहले तो चढ़ने की व्यवस्था की, सामान रखा, उसके बाद बाल बच्चों को बैठने के लिए जगह की तलाश करने लगे, कुछ देर बाद जैसे-तैसे सबको एडजेस्ट किया, 

तभी चार छ: सीट के बाद हमें कुछ हल्ला सुना, लोग वाह-वाह कर रहे थे और ताली भी बजा रहे थे, मैंने सोचा कि क्या हो रहा है? 

ये देखने के लिए वहां पर चला गया, जाकर देखा कि एक खादीधारी श्रीमान हाथ में एक मोटी सी डायरी लेकर उसमे लिखी कविता पढ़ रहे थे. हमने भी उनकी कविता सुनी और वाह-वाह कहा. तो वहां बैठे लोगों हमारे को खड़े देखकर थोड़ी सी जगह हमारे बैठने के लिए भी बनाई. और बैठने का निमंत्रण दिया. हम बैठ गए. 

कवि महोदय अपनी कविता धारा प्रवाह सुना रहे थे और लोग वाह-वाह करके ताली बजा रहे थे. उसमे हम भी शामिल हो गए और आनंद लेने लगे. अगला स्टेशन आया तो दो सवारी उतर गई उनकी जगह नई सवारी आ गई.
कवि महोदय का कविता पाठ शुरू ही रहा, नयी सवारी भी वाह-वाह करने लग गई.  मैंने कवि महोदय से पूछा " क्या बाबा ट्रेन में भी कविता पाठ चल रहा है? 
तो वो बोले " क्या करोगे भाई बड़ा ख़राब जमाना आ गया है. अब वो जमाना नहीं रहा जो हमको कोई कवि सम्मलेन में आमंत्रित करके हमारी तरह-तरह की कविता सुनेगा! जब किसी कवि सम्मलेन में चले भी जाते हैं तो लड़के लोग हुटिंग करते हैं, चिल्लाने लगते हैं "डोकरा को बैठाओ-डोकरा को बैठाओ" बड़ी समस्या हो गई है. 

अब हम तो पैदायशी कवि हैं. कविता लिखते हैं तो घर से बाहर निकल कर देखना पड़ता है कि कोई अपना आदमी आये तो उसको सुनाये, कोई सुनने को ही तैयार नहीं होता. जब तक  लिखी हुई कविता को हम किसी को सुना नहीं लें तो पेट में गुडगुडी होती रहते है, अफारा आ जाता है, खाने की इच्छा चली जाती है. बहुत परेशान जो जाती है. कई डाक्टरों को दिखाया बोल कोई बीमारी नहीं है. 


एक दिन हम ट्रेन में रायगढ़ जा रहे थे. साथ में कविता की डायरी भी थी, जैसे ही हमने डायरी बाहर निकाली वैसे ही अगल बगल की सवारी बोली" कविता है क्या बाबा? जरा सुनाओ ना. 

हमने उनको कविता सुनाई, उस दिन हमारी तबियत ठीक रही. अब  हमको इलाज मिल गया था. उस दिन से हम सप्ताह भर कविता लिखते हैं और एक दिन पंद्रह रूपये का लोकल ट्रेन का टिकिट ले कर ट्रेन में सवार हो जाते हैं. 

सप्ताह भर की लिखी हुयी कविता यहीं ट्रेन में सवारियों को सुना देते हैं, तो मुझे यहाँ श्रोता भी मिल जाते हैं और मेरी तबियत भी ठीक रहती है.अगर किसी को कविता पसंद नहीं आती वो अपनी सीट बदल लेता है.या अगले स्टेशन पर उतर जाता है. 

तो भाई मुझे तो यही मंच अच्छा लगता है. मैं सुनकर खुश हो गया कि चलो बिना दवाई के कवि महोदय की तबियत ठीक हो गई और इन्होने कविता पाठ के लिए इतना बड़ा मंच भी तलाश कर लिया. 

मैंने कहा "बाबा आपने तो बहुत बढ़िया काम किया है. आप धन्य हैं इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी साहित्य की सेवा कर रहे है. आपको बारम्बार प्रणाम है. 

इसके बाद हमने उनकी एक कविता सुनी तब तक रायपुर आ चूका था और हमारी यात्रा यहीं तक थी.

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

पुन्नी मेला राजिम मेले में ब्लॉगर

भारत की माटी में आस्था एवं श्रद्धा की खुशबु है, यहाँ की नदियों में पवित्र रुन-झुन, रुन-झुन, कल-कल करने वाले संगीत की धारा अविरल प्रवाहित होती रहती है. यहाँ कि हवा में अध्यात्म, भक्ति एवं संस्कृति का अद्भुत संगम है. इसका उदाहरण मिलता है चित्रोत्पला गंगा (महानदी) के किनारे बसे हुए तीर्थ स्थल में. 

राजिम कुंभ
राजिम मेले में बच्चों का झूला
जहाँ सदियों से माघ मास की पूर्णिमा को मेला भरता है और शिव रात्रि तक चलता है. अब इसका सरकारी करण हो गया है. इस "पुन्नी मेले" को "राजिम कुम्भ" का नाम दे दिया गया है. इस कुम्भ में प्रतिवर्ष करोड़ों का बजट बनता है अस्थायी निर्माण के नाम पर और स्वाहा हो जाता है. श्रद्धालुओं को लाभ हो या ना हो पर आयोजकों का माया घट लबा-लब भर जाता है.  

राजिम कुम्भ मेले मैं हम तीन लोग (मैं, अवधिया जी और हमारा पुत्र उदय) गए थे. मेले में भीड़ होने के कारण मोटर सायकिल से घूमना ही अतिउत्तम होता है.  

उदयन दो दिन से जिद कर रहा था कि मेले में जाना है. इसलिए उसके लिए समय निकाला गया. (अवधिया जी और उदय) वृद्ध एवं बच्चे की मति एक समान मानी जाती है. 

इन दो बच्चों के साथ पुन्नी मेले में घुमने का आनंद लिया. उदय ने झुला -झूलने की इच्छा प्रकट की तो उसे झुला-झुलाया गया. बिना झूले के मेले का आनंद कैसा? हम भी बचपने में मेले  में पहले झुला ही झूलते थे. हमने मोबाइल से कुछ तश्वीरें ली. अवधिया जी ने वाल्मीकि रामायण खरीदी. फिर एक जगह बैठ कर गोल-गप्पे का मजा लिया.  
राजिम कुंभ
महानदी राजिम
रायपुर से ४५ किलो मीटर तथा हमारे अभनपुर से १६ किलोमीटर पर छत्तीसगढ़ का तीर्थ राजिम नगरी है. तीन नदियों के संगम पर स्थित इस नगरी का पौराणिक महत्त्व है. पैरी, सोंढुर तथा महानदी के संगम पर प्राचीन कुलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है. 

नदी के एक छोर संत पवन दीवान जी का ब्रम्हचर्य आश्रम स्थित है. राजीव लोचन भगवान का मंदिर हैं. जहाँ श्रद्धालु सदियों से उपासना करते आये हैं.

छत्तीसगढ़ को प्राचीन ग्रंथों में दक्षिण कोसल कहा गया है. इसमें कोसल के तीन तीर्थ बताये गए हैं. १. ऋषभ तीर्थ २. काल तीर्थ ३. बद्री तीर्थ. इसमें तीसरा बद्री तीर्थ राजिम को कहा गया है. 

महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार राजिम ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थान है जहाँ बद्री नारायण का मंदिर है. इसका वही महत्त्व है जो जगन्नाथ पूरी का है. इसलिए यहाँ के महाप्रसाद का भी खास महत्त्व है. यहाँ चावल से निर्मित "पीडिया" प्रसाद के रूप में दिया जाता है. यह यहाँ के पुजारियों द्वारा तैयार किया जाता है. 
राजिम कुंभ
कुलेश्वर मंदिर राजिम


राजीवलोचन मंदिर की पिछली दीवार पर कलचुरी संवत ८९६ का एक शिलालेख है जिसे रतनपुर के कलचुरी शासकों के अधीनस्थ सामंत जगत पल ने उत्कीर्ण कराया था. इस हिसाब से यह मंदिर ८ वीं शताब्दी का है. 

लेकिन कुछ इतिहासकार इसे ५-६ वीं शताब्दी का मानते हैं. यह पहला मंदिर है जिसका गर्भ गृह पहले बना फिर महामंड़प व मंदिर का विमान एवं परकोटे बने. इस मंदिर का शिल्प-सौन्दर्य अद्भुत है. 

इसका मुख्य द्वार अत्यंत सुन्दर है इसमे नागबन्ध उत्कीर्ण हैं. राजीव लोचन भगवान के बांये हाथ में चक्र है जो नीचे की ओर झुका हुआ है. कमल नाल को गज पकडे हुए है. बाकी दो हाथों में गाडा एवं शंख शोभित हैं. माथे पर कीरीट, कानो में कुंडल, गले में कौस्तुभ मणि शोभित है.
राजिम कुंभ
राजीव लोचन मंदिर राजिम


राजिम के विषय में एक जनश्रुति प्रचलित है कि त्रेता से भी एक युग पहले सतयुग में प्रजापालक रत्नाकर नामक सोमवंशी राजा हुआ, उस समय यह क्षेत्र पद्मावती क्षेत्र कहलाता था. इसके आस-पास का इलाका वनाच्छादित दंडकारण्य था। 

राजा रत्नाकर जनकल्याण के लिए यज्ञ कर रहे थे. यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों से संतप्त राजा ईश्वर की आराधना में लीन हो गये. संयोगवश उस समय गजेन्द्र और ग्राह में भी भरी द्वन्द चल रहा था. गजेन्द्र को ग्राह पूरी शक्ति से पानी में खींचे लिए जा रहा था और असहाय गजेन्द्र ईश्वर को सहायता के लिए पुकार रहा था. उसकी पुकार सुनकर भक्त वत्सल नारायण आये और गज को ग्राह से मुक्ति दिलाते समय राजा रत्नाकर की पुकार सुनी और प्रकट हुए. उन्होंने राजा को वरदान दिया और विष्णु उनके राज में सदा के लिए बस गए. तभी से राजीव लोचन भगवान की मूर्ति इस मंदिर में विराजमान है.
राजिम कुंभ
कोसा खोल

त्रिवेणी संगम पर नदी के बीच में  कुलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है. इसके विषय में जनश्रुति है कि वनवास के समय सीता ने बालू से शिव का लिंग रूप बनया था. अर्घ्य देने पर लिंग रूप में से पॉँच स्थान पर जल धाराएँ फुट निकली. आज भी इस पॉँच मुखी महादेव की ख्याति जगत में है.

कुलेश्वर मंदिर से १०० गज की दुरी पर लोमष ऋषि का आश्रम है. वृक्षों से आच्छादित यह आश्रम बहुत ही शांति प्रदान करता है. लोमष, श्रृंगी ऋषि के पुत्र थे. 

किवदंती है कि लोमष ऋषि कल्पकालांतर तक देख सकते थे. उनके शरीर पर रीछ जैसे बाल थे. उन्होंने शिव को प्रतिदिन एक कमल अर्पित कर १०० वर्षों तक तपस्या की थी. शिव को कमल अर्पित करने का अनूठा उदहारण यहीं मिलता है. इसलिए प्राचीन समय में राजिम को पद्मावत क्षेत्र कहा जाता था.

इस तरह कुछ जानकारी राजीव लोचन तीर्थ के विषय में आप तक पहुँचाने का प्रयास था. अवधिया जी आ गये तो उनके साथ हमारा भी इस तीर्थ क्षेत्र में घूमना संभव हो गया नहीं तो.१६ किलोमीटर भी १६०० किलो मीटर के बराबर हो जाता है.

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आ गए छुट्टी से-लेकिन एक समस्या है!!

सभी को नमस्कार, अब हम छुट्टी से लौट आये हैं. कुछ दिन दिनों बाद. इन दिनों में ब्लाग गंगा में बहुत कुछ बह गया. उसे प्राप्त करने के लिए समय चक्र पर फिर मुझे वापस लौटना पड़ेगा कुछ दिनों के लिए और जो छुट गया है उसे पढ़ना चाहता हूँ. क्योंकि पिछला पढ़ना भी बहुत जरुरी है.  

तभी आगे की ओर बढा जा सकता है. कुछ पोस्ट मैंने लगा कर शेड्यूल कर दी थी. जो ब्लाग जगत में मेरी उपस्थिति दर्ज करती रही.
आ तो गए ब्लाग जगत में पर आते ही एक समस्या ने घेर लिया. जिसका हल मेरे पास नहीं है. इस लिए उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ. आज इस विषय पर एक पोस्ट भी मैंने देखी लेकिन उसमे समस्या मिली लेकिन उसका समाधान नहीं मिला. 

मेरे ब्लागर डेशबोर्ड पर एक सन्देश दिख रहा है. जिसे आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ मैं उसका स्क्रीन शाट लगा रहा हूँ.अगर किसी भाई-बहन के पास इसका समाधान हो तो अवश्य हमारे साथ बांटने की महती कृपा करें.

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

प्रेम पत्र वेलेन्टाईन डे पेसल

प्रिय
दमयंती
आशा है तुम ठीक ही होगी.
क अरसे के बाद तुम्हे पत्र लिख रहा हूँ. आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है, क्या तुम्हे पता है? आज लोग वेलेन्टाईन डे मना रहे हैं। यह एक नया अंग्रेजी जुगाड़ आया है हमारे देश मे, प्रेम का इजहार करने के लिए। बस सीधी बात होती है। इसमे लड़के-लड़की दोनो ही प्रेम का इजहार कर सकते है।पहले सफ़ेद गुलाब पेश किया जाता है, फ़िर पीला गुलाब, जब दोनो कबु्ल हो गए तो झट से लाल गुलाब थमा दिया जाता है, फ़िर तैयार है झमा-झम करती बाईक लांग ड्राईव के लिए। दो बार की लांग ड्राईव से बाईक का दम निकल जाता है और सवार का भी. फुल भी मुरझा जाता है. फिर से यही फ़ूल बनाने प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है. तुम्हारे-हमारे प्रेम की तरह अब कुछ भी टिकाऊ नहीं है. सब कुछ नकली है.
याद करो जब तुम और हम पहली बार जब हम स्कूल में आमने-सामने हुए थे. एक प्रेम की चिंगारी हमारे दिल में फूटी थी. जिसकी लपट को हमारे हिंदी के गुरूजी ने अपने अंतर चक्षुओं से देख लिया था, कामायनी पढ़ाते हुए कहा था कि "घटायें उमड़-घुमड़ कर आ रही हैं. बिजली चमक रही है, आग दोनों तरफ बराबर लगी हुयी है. बस बरसात होनी बाकी है". उस समय तक हमें पता ही नहीं था कि यही प्रेम होता है. इसका खुलासा तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध से हुआ था. क्या जमाना था वह. बिना प्रेम प्रकटन के ही प्रकट हो जाता था. मित्रों को भी पता चल जाता था. कहीं तो कुछ है. जब हम दिन में कई बार जुल्फें संवारते थे.
प्रेम-पत्र लिखना भी एक कला होती थी. रात-रात भर जाग कर पत्र का मसौदा तैयार करते थे. फिर उसे कई बार पढ़ते थे. किसी बोर्ड परीक्षा से भी बढ़कर यह परीक्षा होती थी. सबसे जोखिम भरा काम होता था उन्हें तुम्हारे तक पहुँचाना. जिसमे जान जाने का खतरा भी था. शायद हमारे ज़माने में इसीलिए प्रेमियों को जांबाज कहा जाता था. बड़ी तिकड़म लगानी पड़ती थी एक पत्र को पहुँचाने में. याद है तुम्हे एक बार चुन्नू के हाथों भेजा गया पत्र तुम्हारी भाभी के हाथ लग गया था और बात तुम्हारे पिताजी तक पहुँच गई थी. वह समय शायद हमारी जिन्दगी का सबसे मुस्किल समय था.
हमें भी फौजी पिता से पिटने का डर और तुम्हारे भी पिता को भी हमारे पिता की बन्दुक का डर, मामला बड़ा फँस गया था. बस तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे ब्याह करने की ठान ली.तुम्हारा ब्याह हो गया और तुम्हारे पिताजी ने चैन की साँस ली. वे एक दिन मुझे मिले थे और मेरा हाल-चाल और कमाई-धमाई पूछी थी. तो मैंने कहा था कि अब क्या करोगे पूछ कर? मर्द की कमाई, औरत की उमर और जावा मोटर सायकिल की एवरेज पूछने वाला मुरख ही होता है.
पुराने तरीके सब समाप्त हो गये.आज कल मोबाईल ईंटरनेट का चलन हो गया है, कब प्रेम का इजहार होता है और कब प्रेम टूटता है पता ही नहीं चलता. बस एक एस.एम.एस और फिर वह हो जाता है बेस्ट फ्रेंड. रक्षा बन्धन की तरह फ्रेंड बैंड भी आ गए है. जो एक दोस्त दूसरे दोस्त को पहनाता है, मतलब जिसके हाथ में मित्र-सूत्र दिखे समझ लो वह बुक हो गया है. मुंह पर रुमाल बांध कर कहीं भी हो आते हैं घर वालों को पता ही नहीं चलता. बस सब दोस्ती-दोस्ती की आड़ में ही चल जाता है. 
कहने का तात्पर्य यह है कि अब इस तरह के हाई टेक प्रेम में वो मजा नहीं रहा. जो अपने समय में होता था. प्रेमलाप भी नजाकत और नफासत से होता था. तारे गिनने की कहानियां होती थी, प्रेम ग्रन्थ रचे जाते थे. नायिका और नायक की कहानी ही गायब हो गयी. तोता-मैना की कहानी की तो क्या बात करें? वो साँप से बल खाते कुंतल और कानों में झूमते झुमके बरेली के बाजार में खोने के बाद मिले ही नहीं हैं.विछोह में अब वो तडफ कहाँ, जो एक अग्नि दिल में सुलगाये रहती थी.  जिसने तुलसी को कवि तुलसी दास बनाया.        
तुम्हारे विछोह ने हमें पागल कर दिया (आधे तो पहले ही थी,अन्यथा इस पचड़े में क्यों पड़ते?) कवि  दुष्यंत   कुमार ने कहा है " गमे जानां गमे दौरां गमे हस्ती गमे ईश्क, जब गम-गम ही दिल मे भरा होतो गजल होती है।" बस फ़िर क्या था, तुम्हारे विवाहोपरांत एक नए कवि का जन्म हुआ.हम कवि वियोगी हो गए तथा कागजों का मुंह काला करना शुरू कर दिया. संयोग के सपने और वियोग का यथार्थ दिन-रात कागजों में उतारा. बस यही एक काम रह गया था, जीवन में हमारे। 
अब तो मैं देखता हुँ कि हमारे जैसे समर्पित प्रेमियों का टोटा पड़ गया है। हमारी चाहे असफ़ल प्रेम कहानी ही क्यों ना हो जीवन भर सीने से लगाए घुमते हैं। जैसे बंदरिया मरे हुए बच्चे को सीने से लगाये फिरती है. अब नये कवि भी पैदा होने बंद हो गए शायद फैक्ट्री ही बंद हो गई. वही पुराने खूसट कवि, जिनके मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं  मंचो से प्रेम गीत गाते मिल जायेंगे. यह वेलेंटाईन डे तो नए कवियों के लिए नसबंदी जैसा शासकीय प्रोग्राम हो गया. ना प्रेम की आग जल रही है ना कवियों का जन्म हो रहा है. इससे कविता के अस्तित्व को बहुत बड़ा खतरा हो गया है. पहले की प्रेमिकाएं भी कविता एवं शेर-ओ-शायरी की समझ रखती थी. लेकिन आज कल तो सिर्फ पैसा-पैसा. एक दिल जले ने इस सत्यता को उजागर करते हुए एक गाना ही लिख दिया " तू पैसा-पैसा करती है तू पैसे पे क्यों मरती है, एक बात मुझे बतला दे तू उस रब से क्यों नहीं डरती है". आज भी तुम्हारी यादें इस दिल में संजोये हुए जीवन के सफ़र में चल रहे हैं. ये तुम्हारी याद है गोया  लक्ष्मण सिल्वेनिया का बल्ब जो बुझता ही नहीं है. लगता है  जीवन भर की गारंटी है.
और तुम्हारे पति देव कैसे हैं? उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखना तथा अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना, बहुत मोटी हो गयी हो. शुगर भी तुम्हारी बढ़ी रहती है. जरा पैदल चले करो, हफ्ते में एक बार शुगर बी.पी. नपवा लिए करो, तुम्हारे नाती-पोतों को प्यार और तुम्हे वेलेंन्टाईन डे और मदनोत्सव पर ढेर सारा प्यार,  
एक मुक्तक अर्ज किया है.
आरजू लिए फिरते रहे उनको पाने की
हम हवा का रुख देखते रहे ज़माने की
सारी तमन्नाएं धरी की धरी रह गयी 
अब घडी आ ही गयी जनाजा उठाने की

तुम्हारा 
राजा नल 

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

हमने ली ब्लागिंग से छुट्टी

अभी अभी विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि हमारी ब्लागिंग के खिलाफ एक षड़यंत्र रचा गया, कल रात को एक बैठक हुयी जिसमे हमारी ब्लागिंग के प्रति लगन और समर्पण को देख कर विरोधी पक्ष ने बहुत गरियाया है. वहां सभी के सुर हमारे प्रति बहुत ही तल्ख थे और हमें ब्लागिंग ना करने की धमकी  भी दी गई.  अगर हम ब्लागिंग को अभी जारी रहेंगे तो हमारे अभिकलित्र यंत्र पर हमला भी हो सकता है. अब सूत्र हमारा बहुत ही विश्वसनीय है जिस पर हम अविश्वास ही नहीं कर सकते क्योकि पूर्व में भी उसने मुझे समय  से पहले सूचना देकर आने वाले संकट से बचा लिया था.

वैसे भी हकीकत की दुनिया  और आभासी दुनिया के बीच युद्ध तो जारी है. जगत को मिथ्या कहने वाले लोग भी इसमें सम्मिलित हैं. युद्ध आभासी से आभासी के बीच भी जारी है. नित टांकीरोहण का कार्य क्रम भी चल रहा है. हम इसे देखते रहते हैं तो इस पर बहुत समय निकल जाता है. जब से हमने आभासी दुनिया में कदम रखा तब से बाकी दुनिया छुट सी गई है. पूरा समय चक्र गड़बड़ा गया है. क्योंकि जिसे हम खाली समय कहते हैं वह पूरा इसमें लग जाता है और हमारे काम का समय भी घुस जाता है.
हमारे विरुद्ध यह षडयंत्र काफी दिनों से चल रहा है हमें इसकी भनक ही नहीं थी कि कोई एक वर्ग हमारे इस कार्य से रुष्ट है क्योंकि हमारे सामने इस तरह की बातें नहीं आती हैं. परदे के पीछे सब चलता रहता है. अब संगीने खिंच चुकी हैं, कहीं ऐसा ना हो कि रण क्षेत्र ही सज जाये. युद्ध हुआ तो उसमे सभी का नुकसान है. इसलिए हमने सुचना के आधार पर ही रक्षा का उपाय कर लिया है और अपनी ब्लागिंग को बचाए रखने के लिए कुछ दिन का विश्राम लेने कि घोषणा करने का मन बना लिया है. लेकिन कहते हैं ना चोर-चोरी से जाये पर हेरा-फेरी से ना जाये. इस लिए कुछ रास्ता भी निकालेंगे के इस विश्राम की अवधि में ब्लागिंग ज्यादा नहीं तो थोड़ी बहुत ही हो जाये. 
ब्लागिंग का नशा भी शराब, भंग या अन्य नशों से बढ़कर ही. अगर किसी को डाक्टर ने शराब पीने से मना कर रखा है और बताया है कि अगर पियोगे तो तुम्हारा लीवर ख़राब हो जायेगा और मर जाओगे. इसके बाद भी वह दुनिया और घर वालों के दिखावे के लिए बंद तो कर देता है. लेकिन मौका मिलते ही एकाध दो पैग मार ही लेता है कि जो होगा सो देखा जायेगा. वैसा ही नशा ब्लागिंग का है  
कोई लाख भी कोशिश कर ले और घोषणा कर ले लेकिन नहीं छोड़ सकता, अगर लेखन छोड़ देगा तो पढना नहीं छोड़ेगा और जब पढ़ना नहीं छोड़ेगा तो कहीं कहीं टिपियायेगा ही क्योंकि पढ़ कर मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को व्यक्त करना भी जरुरी है. नहीं तो अजीर्ण हो जायेगा, बदहजमी हो जाएगी. जब टिपियायेगा तो कहीं एकाध टिप्पणी उलटी  हो गई और प्रति टिप्पणी करने  के लिए एक पोस्ट लगाएगा. बस यह देखो फिर शुरू हो गयी धुवांधार ब्लागिंग. इस तरह आना जाना चलता ही रहेगा. हम भी आने के लिए ही जा रहे हैं. विश्राम करना तो एक मज़बूरी है. बस आठ दस दिनों में वापसी है.
चलिए हम षड़यंत्र का रहस्योद्घाटन कर ही देते हैं. कल रात हमारे परिवार के सभी माननीय सदस्य लोगों ने बैठक का आयोजन किया, इस बैठक में हमारी माताजी, श्रीमती जी, भाईयों-बहुओं, बेटे बेटियों ने हिस्सा लिया तथा चर्चा की, कि अभी सामने हमारी भतीजी शादी आ रही है. और पापा अभी तक कंप्यूटर में ही लगे रहते हैं. कोई काम कहो तो फोन पर आदेश कर देते हैं. ये क्या बला  हो गयी है कि कंप्यूटर छुटता ही नहीं है. इस लिए माताजी को ये काम दिया गया कि वे हमें पहले समझाएं अगर समझ जाएँ तो ठीक है. नहीं समझे तो १० दिन इनका इंटरनेट छुपा दिया जाये जिससे ये बला कुछ दिनों के लिए शांत हो जाएगी. जब शादी निपट जाये तो फिर वापस कर देंगे. अभी हमारे तक माता जी का आदेश नहीं पहुंचा है, पुत्र ने आकर कान में सूचना दी है. इस लिए हम स्वयं ही जाकर कहे देते हैं सबको कि १० दिन ब्लागिंग से विश्राम ले लिया है. अब शादी के ही काम में लगेंगे. इस लिए प्रियवर हम १० दिन आपसे दूर रहेंगे. उसके बाद फिर ब्लागिंग होगी, आप होंगे और हम होंगे. 
कभी-कभी ब्लागिंग मे ऐसा भी होता है मित्रों:-)

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

प्राचीन भारत में विमान विज्ञान

विमान अध्याय पर आगे बढते हैं, इस विषय पर मै 17 सितम्बर की एक पोस्ट मे पहले भी लिख चुका हुँ, मेरा उद्देश्य प्राचीन ज्ञान विज्ञान की जानकारी देना ही है.हमारे ग्रथों मे  विमानों के विषय मे जानकारी दी गयी है। हम पंचतंत्र की एक कथा की ओर चलते हैं इसमें लिखा है कि एक धुर्त मनुष्य विष्णु का रुप धर के आया करता था और गरुड़ की ही आकृति का वाहन ही लाता था. इसी तरह गयाचिंतामणि नामक ग्रंथ मे मयुर की आकृति के विमान का वर्णन है वाल्मीकि रामायण के सर्ग 9 मे पुष्पक विमान का वर्णन है।-
ब्रह्मणोर्थं कृतं दिव्यं दिवि यद्विश्वकर्मणा।
विमानं पु्ष्पकं नाम सर्वरत्नविभुषितम्॥ (वाल्मीकि रामायन सर्ग9)
 भागवत मे राजा शाल्व के विमान का वर्णन आया है-
स लब्धवा कामगं यानं तमोधाम दुरासदम्।
ययौ द्वारवर्ती शाल्वौ वैरं वृष्णिकृतं स्मरन्।
क्वचिदू भूमौ क्वचिदू व्योम्नि गिरिश्रृंगे जले क्वचिदू। (भागवत)
शाल्व का यह विमान भूमि, आकाश, जल और पहाड़ पर आसानी से चलता था। सबसे विशाल और भव्य विमान कर्दम ॠषि का था। भागवत मे इसका वर्णन मिलता है। 
कुछ ग्रंथो के अध्ययन से पता चलता है कि विमानों को बनाने वाले कारीगर बौद्धकाल तक उपस्थित थे। धम्मपाद मे बोधिराज कुमार वत्थु पृष्ट क्रमांक 410 मे एक कारीगर का वर्णन है कि बोधिराजकुमार ने एक महल बनवाया. बनाने वाले कारीगर ने उसे बड़ा ही विचित्र बनाया. बोधिराज ने सोचा की कारीगर कहीं दुसरे का महल ऐसा ना बना दे, इसलिए उसके हाथ कटवा देना चाहिए. बोधिराज ने यह बात अपने एक सलाहकार से भी कह दी.सलाहकार के माध्यम से यह बात कारीगर तक भी पहुँच गई. कारीगर ने अपनी पत्नी को समाचार कहला भेजा कि वह घर द्वार मालमत्ता बेचकर एक दिन इस महल को देखने का निवेदन राजा से करे. स्त्री ने यही किया और वह राजा के आदेश से महल देखने को गई, कारीगर उसे एक कोठरी में ले गया और स्त्री तथा अपने बच्चों समेत गरुड़ यंत्र पर सवार होकर भाग गया तथा नेपाल के काठ मांडू में रहने लगा.विमान पक्षी (गरुड़) की आकृति के बनते थे. इसलिए भगवान विष्णु का वहां गरुड़ कहा गया है. 
वैदिक काल में हमारा विज्ञान समृद्ध था. लेकिन आज प्रश्न उठते हैं कि इस ज्ञान को हम सहेज कर क्यों नहीं रख सके जबकि हमने तकनीकि दृष्टि से इतना विकास किया था. मेरी तो समझ में कुछ बाते आती हैं.
  1. हमारे देश में कारीगरी परंपरागत रूप से चलती थी. जो पिता के द्वारा पुत्र को हस्तांतरित होती थी. यह उनका व्यापारिक रहस्य था जिसे दुसरे कुल के लोगों को बताना नहीं चाहते थे. यदि उस कुल में कोई पुत्र या व्यक्ति इसे जानने के योग्य नहीं रहा तो उसकी मृत्यु के साथ सारी विद्या समाप्त हो गई.
  2. परम्परागत कारीगर इसे बताकर अपना व्यवसायिक प्रतिद्वंदी नहीं खड़ा करना चाहते होंगे.
  3. युद्ध में भीषण विनाश होने के कारण राज्य द्वारा परम्परागत कारीगरों को संरक्षण नही मिलना.
  4. कारीगर का जीवन राज सहयोग से ही चलता था. राज्य संरक्षण में ही वे अपना जीवन यापन कर उत्तम कृतियों का निर्माण करते थे. उदासीन राजा के कारण राज्य संरक्षण प्राप्त नहीं होने के कारण वे इस कार्य को सतत नहीं रख सके होंगे
  5. इस निर्माण कार्य में अतुल धन राशि का व्यय होता था.राजा ही निर्माण का खर्च उठा सकते थे. इसलिए काम नहीं मिलने की दशा में व्यवसाय परिवर्तन किया होगा.
  6. आज भी हमारे देश में उत्कृष्ट कारीगर हैं जो बड़े-बड़े इंजीनियरों को धुल चटा देते हैं लेकिन औद्योगिक करण के कारण उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ है. आज परंपरागत कुशल कारीगर जीविको पार्जन के लिए मिटटी खोदने को मजबूर हैं.
  7. विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा निरंतर लिखित सामग्री एवं ग्रंथालयों का नष्ट किया जाना.
अन्य भी कारण हो सकते हैं इसकी तह में जाने के लिए एक वृहद् शोध की आवश्यकता है.

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

प्राचीन कालीन विमान तकनीकि-ज्ञान वर्धक !!

आज वैदिक काल में विमानों के निर्माण और संचालन की बात करते हैं. विमान नामक यंत्र वैदिक काल से ही प्रचलित था.वेद में विमान के बनांने की विधि बताते हुए कहा गया है कि जो आकाश में पक्षियों के उड़ने की स्थिति को जानता है, वह समुद्र- आकाश की नाव-विमान-को भी जानता है. संस्कृत में वी पक्षी को कहा गया है. मान का अर्थ अनुरूप अथवा सदृश है. इस लिए विमान का अर्थ पक्षी के सदृश होता है. विमान की रचना पक्षियों के सिद्धांत पर ही हुयी है. आज हम प्रत्यक्ष एरो प्लेन को पक्षी की शकल में उड़ते हुए देखते है.
हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने जो नवोन्मेष किये थे. आज के वैज्ञानिक अभी उसके करीब भी नहीं पहुंचे है. विमानों से संबंध रखे वाली भारद्वाज ऋषि कृत एक पुस्तक अंशु बोधिनी है. इस पुस्तक में कई विद्याओं का वर्णन है जिन्हें अधिकरण का रूप दिया गया है. इसमे एक विमान अधिकरण है. इस अधिकरण में आये हुए भारद्वाज ऋषि के शक्त्युद्ग्मोद्योष्टौ सुक्त पर बोद्धायन ॠषि की वृत्ति इस इस प्रकार है,
शक्त्युद्गमौ भूतवाहो धुमयानश्शिखोद्गम:।
अंशुवाहस्तरामुखौ मणिवाहो मरुतसख:॥
इत्यष्टकाधिकरणे वर्गाण्युक्तानि शास्त्रत:॥
इन श्लोकों में विमान की रचना एवं उनकी आकाश संचारी गति के आठ विभाग बताये गए है.
  1. शक्त्युद्गम=बिजली से चलने वाला
  2. भूतवाह=अग्नि-जल-वायु से चलने वाला
  3. धूमयान=वाष्प से चलने वाला
  4. शिखौद्गम=पंचशिखी के तेल से चलने वाला
  5. अंशुवाह=सूर्य किरणो से चलने वाला
  6. तारामुख=उल्कारस(चुम्बक)से चलने वाला
  7. मणिवाह=सूर्यकांत चंद्रकांत आदि मणियों से चलने वाला
  8. मरुत्सखा=केवल वायुदाब से चलने वाला
शास्त्रों में विमानों के ये प्रमाण मिलते है. हमारे पूर्वजो ने विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय उन्नति की थी. आज संसार के वैज्ञानिक सिर्फ दो तरह के वायुयान इंजन बना सके हैं. पहला तरल ईंधन से चलने वाला तथा दूसरा ठोस इंधन से. लेकिन हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने आठ प्रकार के इंधन से चलने वाले विमान बनाने में महारत हासिल कर ली थी. लेकिन वर्तमान युग में भारतीय वैज्ञानिक इसे सिद्ध नहीं कर पाए है कि ये विमान किस तरह बनते थे? इसलिए प्रथम विमान बनाने का श्रेय रायटर्स बंधू को दे दिया गया. मैंने वर्षों पूर्व कहीं पढ़ा था कि रायटर्स बंधुओं से पूर्व में एक भारतीय वैज्ञानिक ने मुंबई की जुहू चौपाटी में महाराज सयाजी राव गायकवाड तथा गो.वी.रानाडे कि उपस्थिति में विमान उड़ा कर दिखाया था. लेकिन अभी मेरे पास वह पुस्तक नहीं है जिसमे विमान बनाने वाले वैज्ञानिक का नाम और पता दिया गया था. कहीं खो गयी है. लेकिन मिलते ही इस रहस्य जो उजागर करूँगा. आधी अधूरी जानकारी देना सही नहीं है... 
(चित्र गुगल से साभार)

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

संगीता जी की भविष्यवाणी सच हुई.

अधिकतर लोग इस ज़माने में फलित ज्योतिष को संदेह की नजर से देखते हैं, उनमे मै भी शरीक हूँ. मै वैदिक ज्योतिष गणित को मानता हूं जो काल की गणना करता है. इसके बिना हम दिन, वार, माह, साल, संवत्सर, अयन, इत्यादि के विषय में नहीं जान सकते. लेकिन कुछ दिनों से मैं संगीता पूरी जी के लिख पढ़ रहा हूँ. तो मुझे भी फलित ज्योतिष की भविष्यवाणियों की प्रमाणिकता के विषय में चिंतन करना पड़ रहा है. 
दरअसल ज्‍योतिष में मौसम से संबंधित भविष्‍यवाणियों के लिए शुभ ग्रह और अशुभ ग्रहों की स्थिति को देखा जाता है। शुभ ग्रहों का संयोग मौसम को नम और ठंडा तथा अशुभ ग्रहों का संयोग वातावरण को गर्म और शुष्‍क बनाता है। 3 और 4 फरवरी को शुभ ग्रहों की खास स्थिति को देखते हुए ही मैने कहा था कि इस ग्रहयोग के व्‍यतीत हो जाने के बाद ही मौसम में सुधार आ सकता है। पर मेरा ध्‍यान इस बात पर थोडा भी नहीं गया कि 29 और 30 जनवरी को मंगल और चंद्र की स्थिति वातावरण को शुष्‍क बनाए रख सकती है। पर मेरी इस गल्‍ती से 3 और 4 फरवरी के शुभ ग्रहों का प्रभाव तो समाप्‍त नहीं हो सकता। आनेवाले 3 और 4 फरवरी को भारतवर्ष के अधिकांश भाग का , खासकर उत्‍तर भारत का मौसम बहुत गडबड रहेगा , इस बात पर मैं अभी भी डटी हुई हूं ।


तो मैंने फिर इसे स्वभाव के अनुसार इस हल्के में ही लिया.लेकिन इनकी भविष्य वाणी अक्षरश: सच निकली. हमारे यहाँ मौसम ३ तारिख रात  से ही ख़राब है. आसमान में बादल छाये हुए हैं. तेज हवाएं चल रही है. अचानक ठण्ड बढ़ गई है. बारिश होने के हालत बने हुए हैं और आज ४फ़रवरी है. तो मुझे याद आया कि संगीता जी ने तो यह भविष्य वाणी सोमवार, १ फरवरी २०१० को कर दी थी.

हमारी प्राचीन विद्या की प्रमाणिकता के लिए इससे बड़ा उदहारण कोई हो ही नहीं सकता. भले हो लोग आज इसे मजाक में लेते हैं. लेकिन इसमें दम तो है. इससे पूर्व में भी इनकी कई भविष्यवाणियाँ सच हो चुकी हैं. इस लिए ज्योतिष विज्ञान को झूठ लाया नहीं जा सकता. संगीता जी आपको मेरा सैल्यूट है. 
पोस्ट लिखते-लिखते बरसात शुरू हो चुकी है.

संगीता जी का पूरा लेख यहाँ पर पढ़ें. 

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

प्राचीन विद्या और विज्ञान

प्राचीन काल में परम्परागत शिल्पकारों ने यंत्रों का निर्माण किया तथा उनके वैज्ञानिकता एवं अनुसंधानों ने सारे जगत को अभी भी चकित कर रखा है. उन्होंने जो यन्त्र बनाये उनकी तकनीकि उत्कृष्टता पर हम आज भी चकित हो जाते है. 

धम्मपाद की कथा वसुल्दात्ता वत्थु पृष्ठ ६८ पर लिखा है कि कौशाम्बी के राजा उदयन से उज्जियनी के राजा चंडप्रद्योत की शत्रुता थी. 

प्रद्योत ने राजा उदयन को धोखा देकर पकडवाने के लिए एक हस्ति यन्त्र तैयार करवाया, यह हाथी लकड़ी का था. इसका रंग सफ़ेद था. यह स्वचालित यन्त्र से चलता था. इसके अन्दर ६० योद्धा बैठ सकते थे. प्रद्योत ने इस हाथी को उदयन के जंगल में छुडवा दिया. 

हाथी जंगल में इधर उधर विचरण करने लगा. सफ़ेद हाथी की खबर पाकर उदयन इसे पकड़ने आया, परन्तु 
स्वयं ही पकड़ा गया. 

इसी ग्रन्थ में कथा विशाखा वत्थु  पृष्ठ १९५ में लिखा है कि विशाखा के लिए एक महालता नामक आभूषण बनवाया गया था. यह सर से परों तक था. इसे चार महीनो में ५०० सुतारों ने बनाया था. 

इसकी कीमत उस समय में किसी सिक्के के भाव से ९ करोड़ थी. इस आभूषण में एक मोर लगा था. जो विशाखा के मस्तक पर नाचा करता था. इस तरह महाभारत के आदि पर्व में उतंग घोड़े का वर्णन आया है. वह भी यन्त्र के सहारे ही चलता था. 

शाहवाज गढ़ी पेशावर में एक पत्थर पर रेल का प्रतीक भी बना हुआ है. इस तरह हमें अपनी प्राचीन विद्या और विज्ञान पर गर्व है. इन्होने जो अविष्कार किये हैं वह उस ज़माने और आज के समय में भी चमत्कार से कम नहीं है.

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

प्राचीन भारत के यंत्र एवं बैज्ञानिक अविष्कार

प्राचीन काल में हमारा विज्ञान उत्कर्ष पर था, वर्तमान से तुलना करें तो हम इतनी वैज्ञानिक प्रगति करने के पश्चात प्राचीन काल की वैज्ञानिक तरक्की के सामने बौने साबित हो रहे है। हम मंत्रों के विषय मे बचपन से सुनते आए हैं। जब हम लिखना पढना भी नही जानते थे। तब मंत्रों के उच्चारण दादा जी के मुंह से सुनते थे। वे नित नेम से संध्या इत्यादि मंत्र पाठ करते थे। इसके पश्चात पिताजी ने भी यह परम्परा बनाए रखी। वे मंत्र के साथ यंत्र का भी प्रयोग करते थे। अब हम हैं,हम मंत्र,यंत्र और तंत्र तीनो का प्रयोग करते है। अब हम चलते हैं भारद्वाज मुनि कृत यंत्रणार्व ग्रन्थ के वैमानिक प्रकरण में दी गई  मन्त्र, तंत्र और यंत्र की परिभाषा की ओर........
मंत्रज्ञा ब्राह्मणा: पूर्वे जलवाय्वादिस्तम्भने।
शक्तेरुत्पादनं चक्रुस्तन्त्रमिति गद्यते॥
दण्डैश्चचक्रैश्च दन्तैश्च सरणिभ्रमकादि भि:।
शक्तेस्तु वर्धकं यत्तच्चालकं यन्त्रमुच्यते॥
मानवी पाशवीशक्तिकार्य तन्त्रमिति स्मृतं---(यन्त्राणर्व)
  • मन्त्र-जल और वायु के स्तम्भन से जो शक्ति प्राप्त होती है उसे मन्त्र कहते है.
  • यन्त्र-दांतों की योजना, सरणी और भ्रामक आदि के द्वारा जिस शक्ति का वर्धन और संचालन किया जाता है, उसे यन्त्र कहते है.
  • तंत्र-मनुष्यों और पशुओं की शक्ति से कार्य किया जाता है, उसे तंत्र कहते हैं.
हमारे प्राचीन ग्रंथो मे इन मंत्र-यंत्र-तंत्र के अनेक प्रमाण मिलते है।
विविध यन्त्र
हम प्राचीन कला कौशल युक्त यंत्रों के वर्णन करते हैं. भोज प्रबंध में लिखा है .......
घट्यैकया क्रोशवदशैकमश्च: सुकृत्रिमो गच्छति चारुगत्या।
वायुं ददाति व्यजनं सुपुष्कलं विना मनुष्येण चलत्यजस्रम्॥ (भोज प्रबंध)
मन्त्रों की चर्चा कभी फिर करेंगे आज यंत्रों की चर्चा करते हैं. जो सवारी और मनोरंजन और युद्ध के काम आते थे. भोज प्रबंध में लिखा है. राजा भोज के पास एक काठ का घोडा था, एक घडी में ग्यारह कोस चलता था और एक पंखा था, जो बिना किसी मनुष्य की सहायता के  अपने आप ही खूब तेज चलता था और हवा देता था.