रविवार, 29 सितंबर 2013

वाहे गुरुजी की फ़तेह: काठमाण्डू की ओर - नेपाल यात्रा 1

वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फ़तह का मैसेज मेरे मोबाईल पर 11 सितम्बर की सुबह 3/46 बजे पर आया। मैं समझ गया था कि हमारी नेपाल यात्रा का पहला चरण प्रारंभ हो चुका है। श्री बी एस पाबला जी भिलाई से अभनपुर आने के लिए कूच कर चूके हैं। 1 घंटे में उन्हें मुझ तक पहुंचना था और अब एक लम्बी रोमांचक यात्रा के लिए मुझे भी तैयार होना था। इस एक घंटे में मैं तैयार हो गया। तभी गिरीश पंकज जी का फ़ोन आया कि हम लोग अभनपुर से रायपुर के लिए कब चल रहे हैं। मैने कहा कि पाबला जी आते ही होगें और हम दोनो शीघ्र ही आपके पास पहुंच रहे हैं आप तैयार रहें। लगभग 5 बजे पाबला जी अभनपुर पहुंच चुके थे। गाड़ी में सामान रखा और हमने माता जी से आशीर्वाद लेकर अपनी यात्रा प्रारंभ की।

साढे 5 बजे गिरीश पंकज जी के घर के सामने अत्याधुनिक इलेक्ट्रानिक उपकरणों से लैस हमारी कार खड़ी हुई। हार्न बजाते ही गिरीश भैया सामान लेकर बाहर आए और हम नेपाल की राजधानी काठमांडू के लिए अपने सफ़र पर चल पड़े। कार में ब्लेक बाक्स के साथ जी पी एस लगा हुआ था। जो हमें रास्ते की जानकारी दे रहा था। सभी चौक चौराहों पर रास्ता बताते हुए गंतव्य की ओर ले जा रहा था। हमारा पहला पड़ाव राबर्टसगंज था। जिसकी जानकारी जी पी एस को दे रखी थी। वह हिन्दी में मार्ग बता रहा था। हमें बिलासपुर से अम्बिकापुर होते हुए राबर्टसगंज पहुंचना था। सुबह जब घर से चले थे तो नाश्ता नहीं किया था। मालकिन ने आलू के पराठे बनाए थे जिसे दही के साथ खाने का ईरादा था। नाश्ता हमें बिलासपुर के बाद करना था। 

अरपा नदी का पुल पार करने के बाद अम्बिकापुर रोड़ लग जाता है, इस रोड़ पर छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर के साथ पाली का प्रसिद्ध शिव मंदिर भी दिखाई देता है। रास्ते में हमने कई ढाबों में रुक कर दही पूछा। लेकिन कहीं नहीं मिला। आखिर तय किया कि नाश्ता अब मेरी बहन के घर पर कटघोरा में किया जाएगा। कटघोरा से पहले ही कलचुरियों की प्रथम राजधानी तुम्मान आती है। मैने उसे फ़ोन करके 1 किलो दही मंगवाने के लिए कह दिया। लगभग साढे नौ बजे हम कटघोरा पहुंच चुके थे। वहाँ से नाश्ता करके हम आगे के सफ़र पर चल पड़े। कटघोरा से अम्बिकापुर के बीच लगभग 35 किलोमीटर की सड़क आंशिक रुप से खराब है। इस सड़क पर पिछली दुखदाई यात्रा की सोच कर दिमाग डोल रहा था। क्योंकि गड्ढे इतने अधिक थे कि तीन चक्के तो गडढों में पड़ ही जाते थे। कुछ गडढों में मिट्टी डाली जा रही थी। इस सड़क पर विश्रामपुर से कोयला लाने वाली गाड़ियाँ चलती है जिसके कारण यह सड़क खराब हो जाती है। परन्तु सड़क की हालत में कुछ सुधार दिखाई दिया। गाड़ी आराम से चल रही थी। हमें चोटिया के बाद अच्छी सड़क मिल गयी तो कुछ राहत की सांस ली। 

गाड़ी आगे बढती गई, पाबला जी मुस्तैदी से हांक रहे थे और विचारों की श्रृंखला शुरु हो गई। नेपाल जाने का मेरा कार्यक्रम सिर्फ़ 2 दिन में ही तैयार हुआ था। लगभग 15 दिन पहले गिरीश जी ने फ़ोन करके मुझसे पूछा था इस बारे में तो मैने मना कर दिया और मेरी टिकिट भोपाल के "मीडिया चौपाल" में उपस्थित रहने के लिए बन चुकी थी। दोनों कार्यक्रमों की तारीखें समान थी। इसलिए मैने भोपाल जाना ही ठीक समझा था। अंतिम दो पहले तक अनिल सौमित्र जी को मेल से उनके द्वारा मांगी गई जानकारियाँ भेजी थी। रविन्द्र प्रभात जी से बात होने और पाबला जी चर्चा होने पर पाबला जी ने कहा कि अगर कोई साथ नहीं होगा तो भी वे अकेले की कार से काठमाण्डू जाएगें। तब मैने अगले ही दिन टिकिट कैंसिल करवाई और पाबला जी को उनके साथ काठमांडू जाने का संदेश दिया। बात कुछ इस तरह से बनी।

अचानक कार्यक्रम बदलने पर मालकिन ने भी ताना मारा। जाने की तैयारी कहीं और के लिए करते हो और पहुंच कहीं और जाते हो। बस यही हो रहा था इस घुमक्कड़ के साथ। सड़क मार्ग से विदेश यात्रा करने लोभ छोड़ नहीं पा रहा था। वैसे तो सड़क मार्ग के स्वयं के साधन पर भारत में लम्बी यात्राएं की हैं मगर नेपाल को करीब से जानने और परखने का मौका पहली बार लग रहा था। साथ ही गिरीश पंकज जी जैसे वरिष्ठ के सानिध्य में यात्रा के सुखद होने की ही उम्मीद थी। माता जी पूछा था कि कौन-कौन जा रहे हैं। मैने जब पाबला जी का नाम बताया तो वे संतुष्ट हो गई। बोली - जाओ, घूम आओ। पाबला जी समझदार आदमी हैं। उन्हें भरोसा हो गया कि हम यह यात्रा निर्विघ्न पूरी कर सकते हैं।

14 टिप्‍पणियां:

  1. हंयं ! पोस्‍ट तो शुरू होेने से पहले ही ख़त्‍म हो गई !

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  2. इतने दिनों बाद कुछ शूं-शां हुई पर दीदी के घर तक भी नहीं पहुंचे। समय निकालो भई

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  3. मुझे मालुम होता आप सब साथ काठमांडू जा रहे है तो मै भी साथ हो लेता,

    RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

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  4. आनंद ही आनंद बेहतरीन लोगो के साथ रोचक यात्रा अगली कड़ी का इंतजार

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  5. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
    चर्चामंच 1399 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  6. रोचक विवरण ...अगली कड़ी का intzaar रहेगा

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  7. रोचक यात्राओं को वर्णन भी मन मोह लेता है।

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  8. समझदार साथियों का साथ हो तो हम जैसों को समझदारी आ ही जाती है

    चलिए अब चलते हैं अगली राह पर, आखिर आपको भी तो ड्राइव करना है मेरे साथ साथ :-)

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  9. वाह, शानदार यात्रा वृतांत , मज़ा आ गया। पाबला जी की ही तरह रोचक। प्रवास पर था इसलिए देख नहीं पाया था, अभी नज़र पडी

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  10. "जाने की तैयारी कहीं और के लिए करते हो और पहुंच कहीं और जाते हो। " बात एकदम सटीक कही मालकिन ने ... हमें भी बू तक न आई नेपाल की वरना बेशर्मो की तरह हम भी चले जाते बिन बुलाये ...हा हा हा हा जबकि थोड़ी बहुत झडप रोज़ ही हो ही जाती है ..:

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  11. धारावाहिक मे मेरी उपस्थिति स्वीकार करें गुरूदेव

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