यही केवल कृष्ण है-मासूम |
मेरा फ़ेस बुक पर जाना कम ही होता है ब्लॉग से ही अवकाश नहीं मिलता। कभी जब मन करता है तो फ़ेस बुक पर भी चला जाता हूँ अपडेट करने के लिए। नयी फ़्रेंड रिक्वेस्ट या मित्रों के मैसेज देखने के लिए। आज जब फ़ेस बुक पर गया तो चैट पर एक नौजवान आया डॉन जैसी सूरत लेकर। नमस्कार, आपने पहचाना क्या?”-उसने कहा। उसे देखते ही मैने पहचान लिया। 20 वर्षों के बाद भी डॉन जैसी सूरत में मुझे बचपन की मासुमियत दिखाई दी। मैने कहा कि-तुम्हारे चेहरे की वही मासुमियत कायम है जो बचपन में होती थी। सुनकर वह हँसा। फ़िर मैं पुरानी यादों में खो गया।इस शख्स का नाम है केवल कृष्ण शर्मा। वर्तमान में रायपुर से प्रकाशित नेशनल लुक में पत्रकार है। इससे मिलना मुझे बहुत अच्छा लगा। जब केवल छोटा था तो बहुत बातूनी था। बहुत बोलता था। अभी की क्या स्थिति है मुझे पता नहीं। इनके पिताजी पं. शिवकुमार शर्मा जी मुझे हिन्दी पढाते थे। वे भी मूंछ वाले मास्टर थे। शायद उनकी मूंछों की विरासत मुझे प्राप्त हुई है। उनपर चर्चा फ़िर कभी करेंगे। आज तो केवल की बात है केवल। जब मैं मैट्रिक पढकर निकला तो सर का ट्रांसफ़र बचेली हो चुका था और ये सब बचेली जा चुके थे। उसके बाद मेरी मुलाकात इनसे 7 सात साल बाद जगदलपुर में हुई।
वह मुलाकात भी अनायास ही हुई, हम जगदलपुर में एक प्रेस कान्फ़्रेस ले रहे थे। उसे कव्हर करने दण्डकारण्य समाचार की तरफ़ से केवल भी आया था। प्रेस कांफ़्रेस के बाद मैं केवल के साथ घर गया, चाची से भी मिला, सर भी स्कूल जाने की तैयारी में थे। सर से मेरी वही अंतिम मुलाकात थी। मेरे पास भी समय कम था, इनके साथ किये गए गरमा गरम समोसे के नाश्ते की गर्माहट आज भी है संबंधों में।
उसके बाद दिन और साल बीतते गए। मैने किसी से सुना था कि केवल जगदलपुर से रायपुर आ गया है। किसी अखबार में है लेकिन मेरी व्यस्तताओं की वजह से उससे ढूंढ नहीं सका। कुछ दिनों पहले मैने कौशल तिवारी भाई से केवल के विषय में पूछा था। उन्होने केवल का मोबाईल नम्बर ढूंढा, नही मिला। लेकिन आज केवल मिल गया,20 साल बाद। बहुत अच्छा लगा। पुरानी यादें ताजा हो गयी। केवल मेरे से छोटा है और बहुत नटखट था।शायद अभी भी होगा। जब मिलुंगा तब पता चलेगा। लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि एक गाँव से बिछड़ा हुआ केवल फ़िर मिल रहा है। केवल तुम्हे ढेर सारी आशीष और शुभकामनाएं। खूब तरक्की करो................,
वह मुलाकात भी अनायास ही हुई, हम जगदलपुर में एक प्रेस कान्फ़्रेस ले रहे थे। उसे कव्हर करने दण्डकारण्य समाचार की तरफ़ से केवल भी आया था। प्रेस कांफ़्रेस के बाद मैं केवल के साथ घर गया, चाची से भी मिला, सर भी स्कूल जाने की तैयारी में थे। सर से मेरी वही अंतिम मुलाकात थी। मेरे पास भी समय कम था, इनके साथ किये गए गरमा गरम समोसे के नाश्ते की गर्माहट आज भी है संबंधों में।
उसके बाद दिन और साल बीतते गए। मैने किसी से सुना था कि केवल जगदलपुर से रायपुर आ गया है। किसी अखबार में है लेकिन मेरी व्यस्तताओं की वजह से उससे ढूंढ नहीं सका। कुछ दिनों पहले मैने कौशल तिवारी भाई से केवल के विषय में पूछा था। उन्होने केवल का मोबाईल नम्बर ढूंढा, नही मिला। लेकिन आज केवल मिल गया,20 साल बाद। बहुत अच्छा लगा। पुरानी यादें ताजा हो गयी। केवल मेरे से छोटा है और बहुत नटखट था।शायद अभी भी होगा। जब मिलुंगा तब पता चलेगा। लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि एक गाँव से बिछड़ा हुआ केवल फ़िर मिल रहा है। केवल तुम्हे ढेर सारी आशीष और शुभकामनाएं। खूब तरक्की करो................,
अपने अपनो से मिलना .. बहुत सुखद होता है
जवाब देंहटाएंआज भी जो मेरे स्कूल के समय मेरे साथ पढते थे मिलते है एक दूसरे को पहचान लेते है .लेकिन कालेज के साथ पढने वाले वही लोग याद है जिनसे दोसती थी .
जवाब देंहटाएंJai ho Internet kee...jisne aap dono ko mila deeya !!!!
जवाब देंहटाएंदेखा सोसिअल साईट का कमाल !
जवाब देंहटाएं... kumbh ke mele men gum hone jaisaa hai ... puraanee yaaden ... laajawaab !!!
जवाब देंहटाएंवाह! 16 वर्षों के बाद मुझे भी इंटरनेट के माध्यम से मेरा मित्र मिला। वीकीमैपिया पर मेरे कमेंट को देख उसने अपना मोबाइल नम्बर और शहर दे रखा था। बस ऐसे ही एक दिन सोचा कि देखें वीकीमैपिया पर क्या है और मुझे संजय मिल गया।
जवाब देंहटाएंचमत्कार से कम नहीं है यह।
चमत्कार से कम नहीं है यह।
जवाब देंहटाएंचमत्कार
जवाब देंहटाएंचमत्कार
चमत्कार
चमत्कार
चमत्कार
वाह इंटरनेट की दुनियां को धन्यवाद है ललित जी। फ़ेस बुक पर मुझे भी अपने बचपन की कई सहेलियां मिल गई हैं...:)
जवाब देंहटाएंपुराने दोस्तों से मिलना बड़ा सुखद होता है । हमें भी कुछ दिन पहले एक सहपाठी का फोन आया --३७ साल बाद ।
जवाब देंहटाएंआश्चर्यजनक रहा ।
फेस बुक है ही इसलिए कि आप अपने पुराने साथियों से मिल सको। आपने अपनी बात सब के साथ शेयर की इसके लिए आभार।
जवाब देंहटाएंचलिए सुखद अनुभव रहा आपका !
जवाब देंहटाएंसोशियल साईट का मकसद ही यह है अपनों को अपनों से मिलाना | इसी प्रकार की कोशिश मैंने भी अपने ब्लॉग खोया पाया (http://khoyapaya.blogspot.com) के द्वारा शुरू की है |
जवाब देंहटाएंपुराने लोंग मिलते हैं तो ऐसी ही अनुभूति होती है ..शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता है आजकल के इस संचार युग में. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अरे ये तो केवल कृष्ण है । कोई इस डॉन को तो समझाओ कि ये कम खाया करे पुड़िया ।
जवाब देंहटाएंशानदार अनुभव........धन्य हो फेसबुक का जिसने आपको आपके अपने से मिला दिया.....बधाई !!
जवाब देंहटाएंइन्टर नेट का यही तो फायदा है। सही मे किसी चमत्कार से कम नही। बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंये फेसबुक जैसी साईट वाकई कभी कभी बिछड़े मिला देतीं हैं..बधाई आपको अपने मिलने की.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी, मेरे भी कई मित्र है जो शायद कभी मिल जाये, जब मिले तो उन क्षणो के बारे जरुर लिखे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनमस्कार ललित जी। केवल हमारा "सांझा" मित्र है। केवल से मेरी मित्रता बचेली में हुई थी और उसके बाद से हमारा खोया-पाया वाला रिशता है। अब थोडी सुविधा यह हो गयी है कि जब जब ये महोदय खो जाते हैं मैं अनिल पुसदकर जी को या भाई संजीत त्रिपाठी को फोन करता हूँ और महोदय का बदलते रहने वाला चलभाष नं मुझ तक पहुँचा दिया जाता है। मॉरल ऑफ द स्टोरी इज- इंटरनेट लोगों को मिलवाता ही नहीं है भगोडों की तलाश में भी मदद करता है।
जवाब देंहटाएंडॉन तो ठीक है लेकिन मैं तस्वीर को कई "एंगिलों" से देख चुका। मासूमियत???????? खैर हो सकता है मुझे अपनी आँख दिखा लेने चाहिये।
ललित जी एक और बात जोडना चाहूंगा कि ये महोदय एसे केरेक्टर हैं कि इन पर संस्मरण नहीं पूरा उपन्यास अटेम्प्ट किया जा सकता है। ......फिर भी एक बात मैं अवश्य लिखूंगा कि केवल जैसा मित्र मिलना भी दुर्लभ है।
इनसे मिलकर हमें भी सुकून मिला!
जवाब देंहटाएं@राजीव रंजन प्रसाद
जवाब देंहटाएंकिसी उपन्यास का पात्र बनना भी बहुत बड़ी बात है।
जब आपने अपने मित्र की तारीफ़ की है,तो समय मिलते ही इस उम्दा कैरेक्टर पर उपन्यास लिखना भी चाहुंगा।
इन सोसल साईट पर हम ना केवल अपने पुराने दोस्तों से मिलते है बल्कि ये हमसे दूर रह रहे अपनों से बराबर जुड़े रहने में भी सहयोग करता है हर दुसरे तीसर दिन उन सब से चैट और विडिओ चैट से तो एक दुसरे को देख भी लेते है |
जवाब देंहटाएंबडा ही सुखद लगता है जब ऐसा कोई अपना मिले ......बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंश्री केवलकृष्ण शर्मा का नया ठिकाना गौरवशाली है ,आप दोनों को शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंपुराने मित्रों का इस तरह मिल जाना कितना सुखद होता है.
जवाब देंहटाएंSUNDAR...ROCHAK...ANANDDAYAK...BADHAI MITRA-MALAN KI
जवाब देंहटाएंआप दोनो मित्रों को शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंइन्टरनेट के चमत्कार को नमस्कार
जवाब देंहटाएंइन्टरनेट के चमत्कार को नमस्कार
जवाब देंहटाएंयह इंटरनेट पर अक्सर होता है... आजकल जो हो रहा है वोह यह की.. दोस्तों जैसे लोग मिल रहें हैं .. उनसे दोस्ती हो रही है, मिलने जाया जा रहा है, फोन पर लंबी बातें हो रही हैं और नए आत्मीय रिश्ते बन रहें हैं. मेरी भी दोस्ती ऐसे कई ब्लॉग लेखकों / फेसबुक कनेक्शनस से हुई है.
जवाब देंहटाएंi am feeling lucky today
यह सचमुच फेसबुक का कमाल है ...
जवाब देंहटाएंsukhad anubhav man ko khush kar gaya....
जवाब देंहटाएंजब केवल छोटा था तो बहुत बातूनी था। बहुत बोलता था...यानी हर बच्चे खूब बोलते और शरारत करते हैं...बढ़िया है ना.
जवाब देंहटाएं_________________________
'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
Hats off to you for your awesome articles..
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