रेलवे स्टेशन पर ८ से १२ साल के बच्चों का एक समूह घूम रहा था. सभी ने गंदे कपडे पहन रखे थे और उनके हाथ में रुमाल के साइज का एक कपडा था. जिसे वे थोड़ी-थोड़ी देर में सूंघ रहे थे. उनकी आँखे लाल थी, जैसे कोई नशा कर रखा हो. उनके मुंह से सुना - "सिलोशन कम हो गया." ह्म्म्म तब मेरी समझ में आया कि इनके हाथ के रुमाल में एड्हेसिव है, जिससे ट्यूब में पंचर लगाया जाता है. तभी पुलिस वाला आया उसने एक बच्चे की जेब से बोनफिक्स की ट्यूब निकली. पता चला कि ये सब बोनफिक्स के सिलोशन को सूंघते हैं. अगर सिलोशन नहीं मिला तो स्टेशन के बाहर खड़ी गाड़ियों का पैट्रोल निकाल कर सूंघते हैं. उससे भी नशा होता है. इस खतरनाक नशे से ये धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे है. नशे में यही लोग स्टेशन में अपराध करते हैं. इन्हें सिर्फ नशे के लिए पैसा चाहिए.
एक दिन दौरे में जा रहा था. दो मित्र भी साथ में थे. रास्ते में एक शहर में एक मित्र ने गाड़ी रुकवाई और मेडिकल स्टोर से खांसी की दवाई ली. कोंडागांव में जाकर होटल में डेरा डाला. सुबह जब सोकर उठा तो देखा कोरेक्स की वह शीशी खाली पड़ी थी. मैंने उससे पूछा कि शीशी पूरी कैसे खाली हो गई? दवाई गिर गई क्या? तो उसने कोई जवाब नहीं दिया. साथ वाले ने बताया कि उसने रात को पूरी शीशी की दवाई पी ली. मैंने कारण पूछा तो उसने बताया की खांसी की १०० ग्राम दवाई में दारू की आधी बोतल का नशा होता है और दारू की खुशबु भी नहीं आती. नशे की मौज ही रहती है. तब मैंने पहली बार जाना कि खांसी की दवाई का भी नशे के लिए प्रयोग हो रहा है. जानकारी लेने पर ज्ञात हुआ कि मेडिकल स्टोर्स में सबसे अधिक खांसी की दवाई ही बिकती है. पहले आयुर्वैदिक दवाई के रूप में मृतसंजीवनी सूरा का चलन था, शायद अब वह बंद हो गई है. आयोडेक्स का प्रचलन तो बहुत दिनों से नशे के रूप में हो रहा है.
बरसों पहले दिल्ली में हम कुछ मित्रों के साथ पुरानी दिल्ली में रुकने का ठिकान ढूंढ़ रहे थे. सीनियर तिवारी जी बोले किसी धर्मशाला में रुकते हैं. फतेहपुरी के पास की एक दह्र्म्शाला में पहुचे तो उसने हमें आश्रय देना मंजूर कर लिया. जब भीतर जाने लगे तो हमारे साथ युसूफ भाई को देखकर उसने जगह होने से मना कर दिया. अब हम वही पर बगल के होटल में रुके. जब मैं फोन करने पंहुचा तो काउंटर पर मौजूद व्यक्ति के पास एक आदमी आया और उसने २५० रूपये दिये. जिसके बदले में काउंटर वाले ने एक छोटी सी पुडिया दी. कुछ खटका लगा कि गड़बड़ है. मैंने मित्रों को बताया और वह होटल रात को छोड़ दिया. पूछने पर पता चला कि वह ब्राउन शुगर बेच रहा था. आप आज भी देख सकते हैं चांदनी चौक से दरियागंज वाले चौक तक सड़क के फुटपाथ पर माचिस की तीलियाँ और एल्युमिनियम की पन्नियों के ढेर मिल जायेंगे. यही स्थिति कनाट प्लेस से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक है. खुले आम मौत का सौदा हो रहा है.
कुछ दिनों पहले सुमित दास ने एक लडके को बोनफिक्स के साथ पकड़ा. वह बोनफिक्स छोड़ ही नहीं रहा था. कई लोगों ने मिलकर उससे बोनफिक्स छिनी. वह नशे की गिरफ्त में इतना फँस चूका है कि नशे के अलावा कुछ भी नहीं सोच सकता. सिर्फ सिलोशन ही सिलोशन की रात लगाये हुआ था. सुमित कहने लगा कि इलाके के अधिकतर नौजवान लड़के नशे का शिकार होकर पागल हो चुके हैं. गांजे की चिलम पीने के कारण पायरिया आदि से दांत जल्दी गिर जाते हैं. कम उम्र के लोग नशे के शिकार होकर काल के गाल में समा रहे हैं. फिर भी इनका हश्र देखकर लोग चेत नहीं रहे हैं. नशीले रासायनिक पदार्थों की सहज उपलब्धता से नशेड़ियों की संख्या में वृद्धि हो रही है. नींद की गोलियों एवं दर्द निवारक दवाओं का धडल्ले से प्रयोग हो रहा है. जबकि गांजा या नशीले पदार्थ बेचने वाले के नारकोटिक्स एक्ट में जमानत ही नहीं है. नशीले पदार्थों का धडल्ले से बिकना बिना पुलिस संरक्षण के संभव नहीं है.
वनस्पतियों से प्राप्त होने वाले मादक पदार्थों का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है। गाँजा, अफ़ीम, भांग-धतुरा मद्य इत्यादि प्रचलन में था, आज भी है। आदिम काल में मानव इसका उपयोग चोट लगने पर दर्द से राहत पाने के लिए करता था। नशे से आनंदाभूति होने के कारण इसका दास बन गया। तथाकथित साधु संतों में इसका प्रचलन रहा है। मंदिरों में भांग-धतुरा, मद्य चढता है। लोगों ने नशीले पदार्थों को सामाजिक मान्यता देने के लिए धर्म से जोड़ कर रास्ते निकाल लिए। युद्धकाल में अफ़ीम(अमल) एवं मद्य का सेवन सैनिक करते रहे हैं। वर्तमान में सैनिको शराब देने का प्रचलन सेना में है। शराब देने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। लेकिन नशाखोरी एवं नशाखोरों का अपना एक अलग इतिहास है। एक समय था कि समाज में नशा करने वाले को स्थान प्राप्त नहीं था।
छान्दोग्य उपनिषद कहता है कि राजा विश्वपति ने गर्व से घोषणा की थी--" न मे स्तेनो जनपदे, न कर्दयो, न मद्यपो। नानाहिताग्निर्नाविद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुत:॥ (अर्थात -"मेरे राज्य में न चोर है, न कायर है, न मद्यपान करने वाले लोग हैं, न अग्निहोत्र न करने वाले लोग हैं, न मुर्ख हैं, न व्यभिचारी हैं, न व्याभिचारिणी हैं।") यही यथार्थ शासन का आदर्श होता था। नशे की बुराईयों को देखते हुए समाज ने इसे सहजता से ग्राह्य नहीं किया। कुछ पंथों ने स्वार्थवश इसे धर्म के साथ जोड़ कर मोक्ष दायी बना दिया। वैदिकों ने पुरुषार्थ चतुष्टय एवं अष्टांग योग के माध्यम से अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिविग्रहा यमा:, शौचसंतोषतप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा: बता कर मोक्ष का मार्ग दिखाया। तो वाममर्गियों ने कहा -- मद्यं मांसम मीनं मुद्राम मैथुनम एव च.. एते पञ्च मकारा: स्योरमोक्षदे युगे-युगे.......... शराब पीने वालों को भी मोक्ष का मार्ग दिया..... पीत्वा पीत्वा पुन: पीत्वा यावत पतति भूतले, पुनारुत्थाय पुन: पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते. नशा करके मरना मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग बताया है. पुरुषार्थ चतुष्टय एवं अष्टांग योग से पूरा जीवन लगा जाता है मोक्ष प्राप्त करने में.
छान्दोग्य उपनिषद कहता है कि राजा विश्वपति ने गर्व से घोषणा की थी--" न मे स्तेनो जनपदे, न कर्दयो, न मद्यपो। नानाहिताग्निर्नाविद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुत:॥ (अर्थात -"मेरे राज्य में न चोर है, न कायर है, न मद्यपान करने वाले लोग हैं, न अग्निहोत्र न करने वाले लोग हैं, न मुर्ख हैं, न व्यभिचारी हैं, न व्याभिचारिणी हैं।") यही यथार्थ शासन का आदर्श होता था। नशे की बुराईयों को देखते हुए समाज ने इसे सहजता से ग्राह्य नहीं किया। कुछ पंथों ने स्वार्थवश इसे धर्म के साथ जोड़ कर मोक्ष दायी बना दिया। वैदिकों ने पुरुषार्थ चतुष्टय एवं अष्टांग योग के माध्यम से अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिविग्रहा यमा:, शौचसंतोषतप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा: बता कर मोक्ष का मार्ग दिखाया। तो वाममर्गियों ने कहा -- मद्यं मांसम मीनं मुद्राम मैथुनम एव च.. एते पञ्च मकारा: स्योरमोक्षदे युगे-युगे.......... शराब पीने वालों को भी मोक्ष का मार्ग दिया..... पीत्वा पीत्वा पुन: पीत्वा यावत पतति भूतले, पुनारुत्थाय पुन: पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते. नशा करके मरना मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग बताया है. पुरुषार्थ चतुष्टय एवं अष्टांग योग से पूरा जीवन लगा जाता है मोक्ष प्राप्त करने में.
गुजरात को छोड़ कर सभी राज्य सरकारें शराब बेच कर राजस्व कमा रही हैं। राजस्थान सरकार तो बाकायदा "हैरिटेज वाईन" बेच रही है। वर्त्तमान में नए तरह के नशे सामने आ रहे हैं जो बहुत ही हानिकारक हैं. छोटी उम्र के बच्चों में इनका प्रसार हो रहा है, जो उनके जीवन के लिए घातक है. इसके निवारण के क़ानूनी कार्यवाही के साथ सामाजिक जागरण की आवश्यकता है. जिससे नशे के शिकार लोगों का सामाजिक पुनर्वास हो सके. पालक अपने बच्चों पर सतत निगाह रखें. जिससे वे नशे जैसे दुर्व्याषा के चक्कर में ना पड़ें. तभी राजा विश्वपति जैसे गर्व से घोषणा करने के भागी बन सकते हैं. ऐसा न हो कि एक तरफ खुले आम नशे के सामान बेचकर राजस्व कमाया जाये, दूसरी तरफ उसी पैसे से नशा मुक्ति के शिविर लगाये जाएँ एवं नशामुक्ति का प्रचार-प्रचार प्रसार किया जाये.
जागरूकता बहुत आवश्यक है ..... खासकर बच्चों को इनसे बचाना पूरे समाज का दायित्व है
जवाब देंहटाएंसुन कर रोंगटे खड़े कर देने वाली भयावह तस्वीर.
जवाब देंहटाएंक्या विषय लाये हैं...कोरेक्स का गुलाम मेरा एक दोस्त...दिन में तीन बोतल खाँसी के नाम पर पीता था..उसे सिधारते देख नशे के चरम को समझा....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक पोस्ट...मित्र....साधुवाद...
इससे तो हमारी स्कॉच और व्हिस्की ही लिमिटेड मात्रा मे ठीक....बाकी जाना तो है सबको बारी बारी...कोई पहले..कोई बाद में...
किस -किस चीज की लत लगा लेते हैं लोंग ...
जवाब देंहटाएंइन मासूमों को कौन समझाए !
आपकी पोस्ट बहुत जानकारी से पूर्ण है. हाइड्रोकार्बन फ्यूम्स के नशे की लत के कारण कम उम्रे के लोगों का जीवन चौपट हो रहा है और यह सब प्रशासन और पुलिस की नाकामी के कारण घट रहा है.
जवाब देंहटाएंचिपकाने वाले सोल्यूशंस मष्तिष्क और फेफड़ों को स्थाई हानि पहुंचाते हैं. इनका सस्ता और पहुँच में होना भी बड़ी मुसीबत है.
एक और बात पर भी विचार करिए, नन्हें बच्चों को ये नशा बेचनेवाले, जीवन रक्षक औसह्धियों में मिलावट करने वाले, और लोगों की जान से खेलकर मुनाफा कमानेवालों से हमारा व्यापार जगत भरा हुआ है. हम किस बूते पर अन्य देशों के व्यक्तियों से अधिक बेहतर विचार और कर्म वाले होने का दावा करते हैं?
ओह एक नाशाग्रस्त पूरी पीढी
जवाब देंहटाएंपढ़ कर सिहर जाते हैं कि यह वही देश है जो अपनी नैतिकता और धार्मिकता के लिए जाना जाता है... मेरा गोरखपुर के एक संभ्रांत घर का हट्टा कट्टा मित्र प्रदीप कोरेक्स की गिरफ्त मे दो साल पहले अपनी एक बच्ची छोड़ कर ईश्वर को प्यारा हो गया... दिल्ली मे खुले आम फ्लाई ओवर के नीचे पचासों नशेड़ी स्मैक चरस और जाने क्या क्या नशे के साथ दिन दहाड़े मिल जाएँगे... और अब तो यह लत स्कूल और कालेजों तक भी पसर रही है
जवाब देंहटाएंनशा जब धरती पर सम्मान नहीं दिला सकता तो उससे मोक्ष की कल्पना करना कितनी नादानी है .....लेकिन लोग सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं ...और आजकल जैसे नशों का प्रचलन बढ़ रहा है युवा और बच्चे जैसे इसकी गर्त में चले जा रहे हैं वह नशे का दुखदायी पहलु है .....नशा किसी भी तरह का हो किसी भी हद पर हो स्वीकार्य नहीं है , आपने तो इसे प्रमाण सहित प्रस्तुत किया है आपका आभार
जवाब देंहटाएंनशा कुछ चीज ही ऐसी है जो हमें अपने गिरफ्त में जकड लेता है और प्राणों की आहुति मांगती है. बड़ी भयावह स्थिति है. सुन्दर सार्थक पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंनशे के कई रूपों का विश्लेषण किया है आपने ललितजी. सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला नशा दवा कि दुकान पर बिक रहा है, कोरेक्स तो उदहारण मात्र है. TIP OF THE ICEBERG
जवाब देंहटाएंजानकारी से भरी है यह पोस्ट। हम ने आजादी के बाद समाज के ध्वंस का काम अधिक किया है निर्माण का कम। हमारे पास संविधान तो है लेकिन समाज के लिए कुछ नहीं। समाज निर्माण की राह निकालनी होगी।
जवाब देंहटाएंशिक्षादायक आलेख अगर कोई लेना चाहे तो, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ललित भाई जी ....कुछ वक़्त पहले हमने भी सुना था कि खांसी की पीने वाली दवा और बोरोलीन.....विक्स ...आदि दवायों में नशे का एहसास होता है ...पर आज आपके इस लेख से उस बात की भी पुष्टि हो गई ....नशा करने वाले को दारू का कोई भी विकल्प मिलेगा वो उसका सेवन करेगा ....वो खुद की नशे की गुलामी से मजबूर है ....लेख पूरी पूर्णता लिए हुए ...आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख नशा मुक्ति खास कर युवाओं मे बहुत जरूरी है। चौतीस गढ़ के राजा चमन सिंग इसे चुनावी हथियार बनाने वाले हैं रही बात राजस्व की पार्टी को चिंता नही आबकारी विभाग के बदले पुलिस विभाग से मिल जायेगा
जवाब देंहटाएंAas-paas aise bachcho ko maine bhi aksar dekha hai... Bahut hi khatarnak stithi hai..
जवाब देंहटाएंगंभीर सामाजिक समस्या पर सार्थक आलेख . सुंदर प्रस्तुतिकरण.
जवाब देंहटाएंवास्तव में धीमे ज़हर वाले इन मादक द्रव्यों से देश की वर्तमान और भावी,दोनों पीढ़ियों को बचने और बचाने की ज़रूरत है.नशा अगर देशभक्ति का हो, नशा अगर समाज -सेवा का हो, नशा अगर परोपकार का हो, नशा अगर मानवता के कल्याण का हो, नशा अगर कुछ लिखने पढ़ने का हो, तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है ?
सबके अपने अपने नशे हैं
जवाब देंहटाएंशर्मा जी, पता नहीं क्यों आज की पोस्ट पढ़ कर कुछ सिहरन पैदा हो गयी......
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाली पोस्ट ..कितनी तरह के अलग अलग किस्म के नशे हैं ..
जवाब देंहटाएंनौनिहालों की ये हालत पूरे देश के लिए शर्म की बात है....
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बाप रे , ललित भाई ये टो मालुम ही नहीं था कि कुछ ऐसा भी होता है .. सामाजिक ठेकेदारों और पुलिस दोनों ने कुछ करना चाहिए .. मैं तो ये पहली बार सुन रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत अजीब सा लग रहा है ..
विजय
ओह! क्या हो रहा है ये सब। वैसे बिहार में शराब के चेलों ने राजस्व में भारी इजाफ़ा किया है और नाम हो रहा है साहब का। वाममार्ग वाले शराब के पक्ष का अलग अलग अर्थ भी लगाया गया है।
जवाब देंहटाएंअपना वोट आख़िरी पोस्टर पे :)
जवाब देंहटाएंनशे के शिकार हर वर्ग के बच्चे और बड़े हैं । लेकिन दवाइयों का इस्तेमाल और भी खतरनाक है क्योंकि ये आसानी से मिल जाती हैं । शराब , सिग्रेट , तम्बाकू , गुटखा आदि सरकार द्वारा नियंत्रित ज़हर साबित हो रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंआखिर कब तक राजस्व के चक्कर में हम देश के युवाओं को बर्बाद करते रहेंगे । सोचना चाहिए ।
नशे की यह समस्या बहुत भयावह है|
जवाब देंहटाएंनशे की यह समस्या...इससे निजात मिलनी ही चाहिए...
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख। समाज के प्रति आपकी संवेदनशीलता सराहनीय है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंइतने तरह के नशे लग चुके हैं, त्वरित उपाय आवश्यक हैं।
जवाब देंहटाएंइनके हिस्से का माल तो पी गए नेता कुछ अफसर
जवाब देंहटाएंअब इनको तो यही ही पीना है
कबाड़ी की दूकान पर दारु की खाली बोतलों मे बची बूंदों से दिन भर मे डेढ़ से दो बोतले शराब एकत्र कर के सब से महँगी बोटल मे भर कर पीने की भी खोज कर सकते हैं आप पूरे इंडिया मे प्रचलित है और किसी को पता ही नहीं
ओह ! कई दिनों के इंतजार के बाद पोस्ट आई । बहुत ही नई और जरुरी जानकारी मिली। आभार ।
जवाब देंहटाएंहे भगवान ...ये बेचारे बच्चे .सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
जवाब देंहटाएंसार्थक विषय उठाया है ललित जी .
सामाजिक जागरूकता की दिशा में सार्थक लेख .अनंत चतुर्दशी की हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंयह भी पढ़ें --- " नई पीढ़ी को नशाखोरी से बचाएं "
http://www.ashokbajaj.com/2010/06/blog-post_24.html
एक अत्यंत चिंतनीय आलेख भईया.... अंत में आपने बहुत ही सार्थक तथ्य उठाया है... हर संवेदनशील व्यक्ति के मन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से आता है कि बड़े बड़े होर्डिंग लगाकर नशामुक्ति का सन्देश देने की बजाय इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध क्यूँ नहीं लागू किया जाता... यद्यपि प्रतिबन्ध से पूर्ण नशामुक्ति संभवतः ना हो पर कालान्तर में इसके सुखद परिणाम ही आवेंगे...
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख के लिए सादर बधाई....
तीन साल पहले पंजाब में पोस्टिंग पर गया था और पहले ही दिन सुबह चाय पीने एक टी-स्टाल पर गया तो दो लड़के आये, जेब से कोरेक्स की शीशी निकाली और एक ने अपनी शीशी सीधे मुंह से लगाकर और दूसरे ने चाय के गिलास में डालकर पी। चायवाले ने बाद में बताया कि बहुत से जवान आजकल दारू का शौक ऐसे पूरा कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंदिल्ली में ही देखा है छोटे छोटे बच्चे व्हाईट फ़्ल्यूड के साथ मिलने वाला थिन्नर खरीदकर रुमाल पर डालकर ..।
बहुत भयावह स्थिति है।
नशा सचमुच आज हमारे समाज को खोखला कर रहा है |
जवाब देंहटाएंदुखद. सरकार के साथ साथ समाज को भी इस दिशा में पहल करनी होगी
जवाब देंहटाएंनशा क्यूं करते हैं ये बच्चे इस को जाने बिना इस लत को छुडवाना मुश्किल है । पर आपने कितनी नये नये पदार्थों की जानकारी दी कि किस किस चीज को नशेडी नशे के लिये प्रयोग करते हैं । बहुत ज्वलंत समस्या उठाई है आपने ।
जवाब देंहटाएंसामाजिक समस्या पर सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंइसके लिए आपका आभार
ऐसा न हो कि एक तरफ खुले आम नशे के सामान बेचकर राजस्व कमाया जाये, दूसरी तरफ उसी पैसे से नशा मुक्ति के शिविर लगाये जाएँ एवं नशामुक्ति का प्रचार-प्रचार प्रसार किया जाये.
जवाब देंहटाएंयही आज का सत्य है .. गुजरात के राह पर ही सभी राज्य सरकारों को चलने की आवश्यकता है !!
सुनकर बहुत अफ़सोस हुआ और आश्चर्य भी की हमारी बच्चा पार्टी यह केसी नशा में तब्दील हो रही हें --कुछ दिनों पहले मुझे 'बेनाडियल'खासी की सिरप नहीं मिल रही थी --उसका राज आज मालुम पड़ा !इस पोस्ट के लिए शुक्रिया !
जवाब देंहटाएं