होली आई और गुजर गई …… होली कब हो ली पता ही न चला। सोचते रहे कि होली पर एक पोस्ट बनती है। विगत 5 वर्षों से होली पर ब्लॉग जगत के मित्रों की मौज लेने पोस्ट लिखते रहे। परन्तु इस वर्ष वह उत्साह मन में नहीं आया कि कोई पोस्ट का अवतरण हो जाए। ब्लॉग जगत भी गत वर्षों की अपेक्षा ठंडा ही रहा। कुछ ब्लॉग अपडेट ही मिलते रहे, जिसमें देशनामा की चमक कुछ अधिक दिखाई दी। ब्लॉग अडडा पे ठिया गाड़ने के बाद खुशदीप भाई के अपडेट निरंतर आ रहे हैं। बाकी के दैनिक यात्री साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक पोस्ट अपडेट पर उतर आए हैं। वर्तमान दशा को देख कर लगता है कि ब्लॉग की यही गति जारी रहेगी। कोई बहुत बड़ा उफ़ान या तूफ़ान अब आने से रहा। लगता है कि जैसे कोई बालक यूवावस्था को उलांघ कर सीधे ही वृद्धावस्था में पहुंच गया हो।
पार्श्वालोकन किया जाए तो लगता है कि हमने भी कुछ अधिक खास नहीं किया। सिर्फ़ दो पुस्तकें ही इस अवधि की उपलब्धि रही। पढना कम हो गया पर लेखन निरंतर जारी है। ब्लॉग पोस्टों की दिन दहाड़े डकैती भी एक बड़ी समस्या बन कर सामने आ रही है। कई अखबारों में मेरी पोस्टें अन्य किसी नाम से प्रकाशित दिखाई दीं तो कहीं किसी अन्य की पोस्ट पर मेरे द्वारा खींचे गए चित्र चिपके दिखाई दिए। बौद्धिक सम्पदा पर डकैती एक गंभीर मामला है। इसलिए कुछ महीनों से मैने ब्लॉग पर पोस्ट डालना कम कर दिया। आज ही सुनीता शर्मा (शानू) के दोहों की डकैती की खबर फ़ेसबुक पर मिली। सुनीता शर्मा ने बोफ़ार्स तोप का मुहाना खोल रखा था और कह रही थी कि "जब तक लेखनी की सम्पादिका माफ़ी नहीं मांगेगी तब तक यह मुद्दा जारी रहेगा।" चोरी के बाद सीनाजोरी किसी को पसंद नहीं और पसंद भी नहीं होनी चाहिए।
मुझसे भी एक गलती हुई, मैने भी कई मोर्चे खोल दिए। तीन किताबों पर एक साथ काम शुरु कर दिया। इससे समस्या यह पैदा हो गई कि समय अधिक लग रहा है। एक किताब का काम 80% होने के बाद भी कई महीनों से लटका पड़ा है और अभी उसकी तरफ़ देखने की इच्छा नहीं हो रही। मुझे ग्राऊंड रिपोर्ट करने में अधिक मजा आता है। पहले किसी स्थान का निरीक्षण-परीक्षण करो तथा उसके बाद लिखो। इससे मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है और सूरज का ताप मेरी उर्जा में वृद्धि करता है। सौर उर्जा से जैविक बैटरी चार्ज हो जाती है। एक स्थान पर अधिक दिन नहीं टिकने की प्रवृत्ति चलने को मजबूर करती है। एक सप्ताह कहीं टिक गए तो लगता है कहीं और चला जाए। चलते चलते कहाँ तक चले जाएगें इसका पता नहीं।
पिछले साल 2 अक्टूबर से बाईक द्वारा गंगासागर से द्वारका तक जाने का कार्यक्रम लगभग पूर्णता की ओर था। इस यात्रा पर जाने के लिए सैकड़ों मित्र एक झटके में ही तैयार हो गए थे। अधिक लोगों को ले जा कर मैं अपने गले की फ़ांसी तो बनाना नहीं चाहता था। इसलिए सिर्फ़ 5 लोगों को सलेक्ट किया गया। जैसे ही तारीख समीप आई बाईक से ही रपटने के कारण हाथ फ़ैक्चर हो गया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। उसके बाद इस यात्रा सुयोग बन ही नहीं पा रहा है। अब गर्मियों में आम चुनाव ताल ठोकने लग गया। सब चुनावों में व्यस्त हैं और हमारी बाईक यात्रा धरी की धरी रह गई। उम्मीद तो है कि किसी दिन धरी हुई बाईक चल पड़ेगी। हम फ़िर एक नई यात्रा पर चल पड़ेगें।
यात्रा ठंडी पड़ी तो व्यंग्य संग्रह के प्रकाशन में लग गए। काफ़ी मेहनत के बाद व्यंग्य संग्रह प्रकाश में आ गया। जबकि इससे पूर्व मैं रामगढ़ की गाथा लिखना शुरु कर चुका था। रामगढ़ की गाथा से पहले व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो गया। प्रकाशन के बाद मेरी इच्छा थी कि इसका विमोचन साहित्य से जुड़े साथियों के बीच हो और दो-चार घंटे इस पर चर्चा हो। परन्तु कुछ मित्रों ने चक्रव्यूह में ऐसा फ़ांसा कि अगर अभिमन्यू होता तो गति को प्राप्त हो जाता। तब कहीं जाकर मुझे ज्ञात हुआ कि पुस्तक प्रकाशन से महत्वपूर्ण कार्य उसके विमोचन का होता है। जिसके पास मधुरस का छत्ता है वह स्थापित लेखक बन सकता है। उसे विमोचनकर्ताओं, लेखकों एवं समीक्षकों की कोई कमी नहीं।
होली बीत गई, होलियारों के फ़ाग कम ही सुनाई दिए। पहले कई जगहों से नगाड़ों की धमक सुनाई देती थी। इस वर्ष सुबह से ही सड़कें सूनी हो गई थी। कुछ मतवाले जरुर मध्य मार्ग में चित्त पड़े थे। वाहन विश्राम पर होने के कारण कोई खतरा भी नहीं था। रामदेव एन्ड कम्पनी के गुलाल ने अच्छा मार्केट पकड़ा। पर गुलाल भी खुश्बूदार और उत्तम क्वालिटी का था। लगाते ही ठंडक का अहसास होता था। अब जिसका नेटवर्क बन गया है वह मिट्टी भी बेचेगा तो बिक जाएगी। वातावरण में उष्णता बढ रही है। दो दिनों से दोपहर के वक्त पंखा चलाने के बाद भी पसीने आने लगे हैं। ऐसे में मरुप्रदेश के दौरे का कार्यक्रम बन रहा है देखते हैं गर्मी कितनी सहन होती है। ………… सभी मित्रों को होली की शुभकामनाएँ।
तबियत ठीक हो तो फिर संभालिये फटफटीया.शुभकामनाये.
जवाब देंहटाएंहोली हो ली फिर भी होली की पुरानी तारीख पर सही होली की हार्दिक शुभकामनाऐं :)
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख ।
आपकी यात्राये खूब चलती है। पुस्तकों के प्रकाशन की बधाई। लेखन में चोरी-चपाटी तो चलती ही रहती है, इसके लिए मन के शब्दों को क्यों पिंजरे में डालना?
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंआप जैसे शेर से ही तो ब्लॉगिग कीै दहाड़ है...फेसबुक, ट्विटर समय की बहार हैं, ब्लॉगिंग का मंच ही सबसे जानदार और सदाबहार है...हिंदी ब्लॉगिग को बस इंडीब्लागर्स या ब्लॉगअड्डा जैसे प्रोफेशनिलज़्म दी दरकार है...हिंदी ब्लॉगिग में ब्लॉगर्स के अपनी किताबों के प्रकाशन में व्यस्त रहने की वजह से सुस्ती दिखाई दे रही है...आज सबसे बड़़ी आवश्यकता हिंदी ब्लॉगिंग को इन्सेन्टिव दिलाने की है...गूगल एडसेंस पर एकजुट होकर दबाव डाला जाए कि वो हिंदी को भी इस प्रोग्राम में अविलंब शामिल करे...
जय हिंद...
आपका लेखन जारी रहे और ब्लॉग जगत की रौनक बनी रहे …शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंतूफ़ान तो सब तहस नहस करता है , इसलिए ब्लॉगिंग में न आये तो अच्छा ही है . बाकी सार्थक ब्लॉगिंग लगातार हो रही है , धीमे चले , शांतिपूर्ण सुरक्षित चले बेहतर है न !
जवाब देंहटाएंअच्छी रही तेरी -मेरी !
आप भूलकर भी विश्राम करने मत बैठ जाइयेगा, आपको बहुत लिखना है अभी, सोलर पैनेल पूरे चार्ज रखिये।
जवाब देंहटाएंLage rahiye...Sharma ji.
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