मंगलवार, 1 मई 2012

"क्षितिजा" छाई काव्य क्षितिज पर - नागपुर से लौटकर ललित शर्मा

नागपुर, भारतीय रेल्वे का हृदय माना जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हावड़ा से मुंबई अहमदाबाद लाईन और दिल्ली से दक्षिण भारत की लाईन नागपुर से होकर ही गुजरती है। कहा जाए तो विजयवाड़ा से पहले नागपुर दक्षिण की यात्रियों का स्वागत करता सिंह द्वार है। एक खास बात और है नागपुर की, यहाँ दो रेल मार्ग 90 अंश के कोण में एक दूसरे को क्रास करते हैं। नागपुर हजारों बार जाना हो चुका है लेकिन 14 अप्रेल 2012 को नागपुर विशेष प्रयोजन से जाना पड़ा। करनाळ की कवियत्रि अंजु चौधरी जी को महात्मा फ़ूले टैलेंट रिसर्च अकादमी द्वारा उनके प्रथम काव्य संग्रह "क्षितिजा" पर सम्मान मिलना था। इस आशय का समाचार मुझे मिल चुका था। अंजु चौधरी जी का विशेष आग्रह था समारोह में उपस्थित होने का। जिसे मैं टाल न सका, क्योंकि नागपुर रायपुर से अधिक दूर भी नहीं है और मेरे पास समय भी था उनका निमंत्रण स्वीकार करने का। दिल्ली में हुए "क्षितिजा" के विमोचन समारोह में शामिल न हो पाने की भरपाई नागपुर में करना चाहता था। 13 अप्रेल की रात को नागपुर पहुंच चुका था सत्येन्द्र-संध्या शर्मा जी के दौलत खाने पर। सत्येन्द्र जी मुझे स्टेशन लेने आए।

सुबह की सैर पर हम एयरपोर्ट तक गए, वहाँ बाबा साहेब के पुतले समक्ष लोग एकत्रित हो रहे थे, अगरबत्ती की खुश्बू से वातावरण गमक रहा था। फ़ूल मालाएं बंदनवार भी सज रही थी। आज बाबा साहब की जयंती मनाई जा रही है। हमने भी पुतले की प्रदक्षिणा और वापस घर के रास्ते पर आ गए। बाबा साहब की जयंती पर नागपुर में विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई कार्यक्रम रखे गए थे। रास्ते में सुबह की सैर करने वाले बहुत सारे लोग थे, लगा कि नि:संदेह रामदेव बाबा ने लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने में महती भूमिका निभाई है। कुछ लोग सड़क किनारे की दूब पर अनुलोम विलोम करते दिखाई दिए और एक स्थान पर लौकी, करेले, टमाटर, गाजर आदि का रस बोतलों में भरा दिखाई दिया। सैर करने वाले लोग वहीं आकर स्वास्थ्यवर्धक रसानंद लेते हैं। हम घर की ओर बढ रहे थे, सूर्य की किरणे शैशवावस्था से यौवन पर आ रही थी। धूप चमकीली हो चुकी थी। हमने सोचा कि जल्दी घर पहुंचने में ही भलाई है, अगर अधिक देर तक सैर हुई तो रसानंद, क्रंदन में भी बदल सकता है।

घर पहुंचने पर अंजु चौधरी जी का फ़ोन आया कि वे भी एयरपोर्ट से अभी होटल पहुंची है और हमें युनिवर्सिटी के पूर्णचंद बू्टी सभागृह में 9/30 पर पहुंचना है। मुझे उनका उत्साह समझ में आ रहा था। ऐसा कोई सेमीनार नहीं देखा जो सुबह 9/30 बजे प्रारंभ हो जाए। हम (मैं, संध्या जी और सत्येन्द्र जी) प्रात: रास लेकर घर से दस बजे यूनिवर्सिटी के लिए चले। हम जब यूनिर्वसिटी पहुंचे तो वहां कोई पुर्णचंद बूटी सभागृह नहीं मिला। पूछने पर गार्ड ने सिर हिला दिया और कहा कि महाराजबाग में देख लीजिए। महाराजबाग में कृषि विश्वविद्यालय है। सत्येन्द्र जी नागपुर के जानकार ठहरे इसलिए हम पूर्ण चंद बूटी सभागृह तक पहुंच गए। वहाँ पहुचते ही हमने अंजु चौधरी जी को ढूंढा, वे अपने चिंरजीव के साथ सिंहासनारुढ थी। मुलाकात होते ही सभी की बत्तिसियाँ खिल उठी, मेरी पूरी बत्तिसी नहीं है, अकल दाढ आज तक बाहर ही नहीं आई, इसलिए उसकी गिनती करना बेमानी है। हमने तीसी से काम चला लिया।

सभागृह के द्वार पर पंजीयन काउंटर लगा था, वहाँ आगंतुक पंजियन करवा कर अपना परिचय पत्र ले रहे थे। जिसे गले में लटकाना था, हमने भी दो लिए और गले में लटका लिया, जिससे पता चले कि छत्तिसगढ का प्रतिनिधित्व इस कार्यक्रम में हो रहा है। भले ही हम अंजु चौधरी जी द्वारा आमंत्रित थे पर अपनी उपस्थिति तो बताना जरुरी है। तभी अंजु चौधरी जी ने बताया कि केलीफ़ोर्निया से ब्लॉगर अनिता कपुर भी पधारी इस कार्यक्रम में, हम सब उनसे मिले जाकर। उन्होने पहचान लिया और कहा कि आप तो फ़ेसबुक पर मेरे मित्र हैं। हमने भी हामी भर ली और एक चित्र खिंचवा लिया साथ ही साथ। कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, अतिथि मंचासीन हुए और उद्घाटनोपरांत उद्बोधन का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया। सभागृह की कुर्सियां खचाखच भर चुकी थी, लगा कि काफ़ी जागरुक लोग हैं जो कार्यक्रम में सम्मिलित होने आए हैं। वरना वर्तमान किसके पास इतना समय है कि किसी की आनी-बानी की गोठ सुने?

संजीव तिवारी जी और अंजु चौधरी जी
बैठते ही अंजु चौधरी जी ने खुलासा किया कि हमारे परम सनेही ब्लॉगर संजीव तिवारी जी भी सहस्त्रचक्रवाहिनी लौहपथगामिनी से कार्यक्रम की शोभा बढाने पहुंच रहे हैं। वाह! सुनकर रोम रोम खिल गया। अब मजा आएगा कार्यक्रम का। संजीव जी को फ़ोन लगाया कि तो पता चला कि किसी ने रेल्वे प्रशासन को बता दिया कि इस ट्रेन में एक ब्लॉगर सफ़र कर रहा है इसलिए ट्रेन में विशेष सुरक्षा जांच नागपुर के प्रवेश द्वार इतवारी में की जा रही है। संजीव तिवारी जी के पासपोर्ट वीजा की गहन जाँच हो रही हैं। क्योंकि ब्लॉगर का क्या भरोसा कब, कहाँ किसका भंडाफ़ोड़ कर दे। वैसे न्यु मीडिया से डरना भी जायज है। संघवी ने इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रिंट मीडिया तक सीडी पहुंचने न दी पर किसी दिलजले ने यूट्यूब पर डाल कर उसके मंसुबों पर पानी फ़ेर दिया और अस्तीफ़ा देना ही पड़ा। संजीव तिवारी जी सभागृह में पधार चुके थे। हम उनका इस्तेकबाल करने के लिए ग्रंथालय के द्वार पर खड़े थे। मुलाकात भी ऐसे हुई जैसे कोई दो बिछुड़े प्रेमी बरसों के बाद औरंगजेब की कैद से छूट कर आए हों।

सतिथि देवी भव:
सभागृह में हम जिस तरफ़ बैठे थे उधर की विद्युत व्यवस्था में कुछ अवरोध था। बार-बार पंखे बंद हो जाते थे। अरे यार क्या करें किस्मत ही ऐसी है, जब कुछ अच्छा करने की कोशिश करते हैं कोई न कोई बाधा खडी हो जाती है। शादी के लिए जब लड़की वाले देखने आते थे तो डर के मारे सिर के बाल खड़े हो जाते थे, जो उन्हे पसंद नहीं आते थे और बात बनते बनते रह जाती थी। तब हमने सेट-वेट लगाकर थोड़ा सेक्सी लुक बनाया और बात फ़िट हो गयी । हम भी परणाय गए, नहीं बाल खड़े के खड़े ही रहते और हम प्लेटफ़ार्म पर। आज भी यही हो रहा था, अंजु जी को सम्मान मिलना था और पंखे पसीना निकाल दे रहे थे। संध्या जी ने जुगत लगाई, रजिस्ट्रेशन के वक्त मिले फ़ोल्डर से हवा करनी शुरु की, थोड़ी सी हमारे तक भी पहुंची। हमें भी ध्यान आया ऐसा ही फ़ोल्डर तो हमारे पास भी है। पर क्या करें? अकल हो तो उपयोग करे न? अब हमने भी फ़ोल्डर घुमाया और अपने को कम् और अंजु जी को अधिक हवा दी, क्योंकि उन्हे इसकी दरकार भी थी।

 अनिता कपुर जी
मंच से भाषण शुरु थे, श्रोत अध्येता भाषण दे रहे थे और हमारे जैसे श्रोता सुन रहे थे। अनिता कपूर जी का भी नम्बर आया, उन्होने अपना वक्तव्य देना प्रारंभ किया, हमने सोचा कि वे अपने भाषण के प्रांरंभ में ब्लॉगर बिरादरी का भी जिक्र करेंगी। क्योंकि हम ब्लॉगर भी वहीं थे और ब्लॉगर्स का जिक्र उनके मुंह से सुनना चाहते थे। लेकिन वे अपनी इस बिरादरी को भुल गयी। भाषण की समाप्ति पर मैने उन्हे मंच पर जाकर कहा कि - आपसे नाराज हूँ। कारण पुछने पर मैने उन्हे कारण बता दिया। उन्होने से क्षमा मांग कर कहा कि आगे से ध्यान रखुंगी। अब गलती नहीं होगी, आप नाराजी दूर कर लो बाबा। अब बाबा भी खुश हुए, मैने अपनी बात उन तक पहुंचा दी। प्रथम सत्र समाप्त हो चुका था, माईक से भोजन करने की घोषणा हो रही थी और कहा जा रहा था कि अगला सत्र सम्मान सत्र होगा जो 3 बजे प्रारंभ होगा। इस कार्यक्रम में विदेशों से भी प्रतिभागी आए थे। एक गोरा भी था शायद जर्मनी से उसने भी अपना भाषण पढा। भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ मंधानी भी मंचासीन थे। बाकी लोगों को मै जानता नहीं, इसलिए जिक्र भी उचित नहीं समझता।

जय बाबा की - काला पर्स रखते ही  कृपा आनी शुरु हुई :)
निर्मल बाबा की कृपा आनी शुरु हो गयी थी, सुबह उनका एस्क्लुसिव इंटरव्यु देख कर चले थे। सभी लोग भोजन करने गए तो हमने भी भोजन के लिए उचित जगह की तलाश शुरु कर दी। आखिर तय  हुआ, होटल एल बी चला जाए, जो नागपुर के सदर में है और वहीं अंजु जी का डेरा भी। आटो वाले ने 100 रुपए किराया बताया, भुख जोरों की लगी थी इसलिए मोलभाव करने का समय नहीं था हम चारों ऑटो में सवार हो गए। जगह सिर्फ़ तीन की थी। संजीव तिवारी जी को मुझे गोद में बिठाना पड़ा, बात थी कि किसी भी तरह फ़टाफ़ट भोजन करने  लिए होटल पहुंचा जाए। होटल एल बी का रेस्टोरेंट अच्छा था पर सप्लाई ढीली थी, खाना आते तक एक-एक साफ़्ट ड्रिंक झेली। फ़िर तीन लोगों की सहमति से कुक्कड़ भी आ गया। संजीव तिवारी जी ने घास पात से ही काम चलाया। वैसे पता चला कि अंजु जी कड़कनाथ अच्छा बनाती हैं। कभी मुहूर्त हुआ तो उनके हाथ का भी खाएगें। कविताओं की तरह रस जरुर मिलेगा उसमें। भाव प्रधान कड़कनाथ के कहने ही क्या हैं थोड़ा चटपटा भी चलेगा। रुकिए रुकिए यह विचार उस समय के थे, अब के नहीं क्योंकि अब मनाही हो चुकी है, बैन लग चुका है और इनकी निगाह मुझ पर सतत लगी रहती है।

फ़ोटो ग्राफ़ी - (चित्र संजीव तिवारी) 
भोजनोपरांत वापस ग्रंथालय सभागार उसी भाड़े में आए, हमें थोड़ा विलंब हो चुका था। सभागार में हमारे बैठने के लिए कुर्सियाँ ही खाली नहीं थी, पहले आओ और पहले पाओ वाली स्थिति थी, न ही किसी ने उठकर कुर्सियाँ देने की जहमत उठाई, उपस्थित सभी नौगजे थे। हम चारों पीछे की तरफ़ खड़े हो गए जाकर। समय बीतता जा रहा है। थोक में सम्मान प्रक्रिया शुरु थी, वहाँ जितने बैठे थे सभी को किसी न किसी नाम से सम्मान मिलना था। तभी नागपुर के खासदार विलास राव मुत्तेमवार का आगमन होता है, वे मराठी में जोरदार धुवांधार भाषण देते हैं साथ ही विदर्भ की बात करते हैं। उसके पश्चात एक दलित लेखक जो शायद विदेश में रहते हैं उन्होने भी लच्छेदार मराठी भाषा में अगड़ों-पिछड़ों को गरियाया। राजा बलि की जय बोलाई, स्वर्णों की खाल खींची, हम सुनते रहे बैठकर। अरे भाई जब सवर्णों को गाली नहीं दोगे तब तक तुम्हारी दुकान नहीं चलेगी। क्योंकि दलित संगठनों का मुख्य कार्य ही सवर्णों को गाली देना हो गया और इस पर ही एकता कायम है। जबकि मेरा सोचना है कि समाज का निर्माण सभी जाति घटकों को मिला कर होता है। इसलिए अलग रह कर या किसी को गाली देकर कोई अपने जाति संगठन का विकास नहीं कर सकता है। समाज में सभी घटकों की आवश्यकता होती है। खैर छोड़ों इन बातों को सभी पढे लिखे और समझदार हैं यार।

सम्मान ग्रहण करते अंजु चौधरी
सम्मान देने की प्रक्रिया जारी थी, कुछ लोग सम्मान लेकर चले गए इसलिए उनकी कुर्सी खाली हुई और हमें बैठने के लिए स्थान प्राप्त हो गया। नामों की घोषणाएं हो रही थी, हमें अंजु जी के नाम की व्यग्रता से प्रतिक्षा  थी क्योंकि 5 बजने को थे। इतनी देर तो भाड़े के ताली बजाने वाले दर्शक भी नहीं रुकते, 5 बजे दफ़्तर से चपरासी भी चले जाता है चाहे साह्ब बैठे रहें कुर्सी पर रात भर। पर हम भी भीष्म प्रतिज्ञा करके आए थे कि अंजु जी को सम्मान दिला कर ही जाएगें। चाहे धैर्य की कितनी भी परीक्षा ले ली जाए। हम भी भीष्म जैसे अंजु जी की सम्मान प्राप्ति से बंधे थे। इन्हे सम्मान मिला और हम हो जाएं रफ़ुचक्कर। एक बार सम्मानदाताओं कह भी आया था कि अंजु जी सम्मान जल्दी करो, उनकी फ़्लाईट छूट जाएगी तो तुम्हें फ़ालतु 20 हजार का दंड भरना पड़ेगा। आखिर वह घड़ी आ ही गयी, जब अंजु जी का नाम आसंदी से उद्घोषक ने लिया, हमारे गर्मी में मुरझाए, सिकुड़े हुए चेहरे खिल उठे। मुस्कुराते ही होठों पर पड़ी पपड़ियाँ फ़टकर दर्द करने लगी। भाई ब्लॉगर मित्र के सम्मान के लिए इतना दर्द तो सहना पड़ेगा। जिस मित्र ने मित्र का साथ नहीं दिया वह कैसा मित्र? अंजु जी मंच पर पहुंची उन्हे शाल श्री फ़ल के साथ सम्मान दिया गया और हमने फ़टाफ़ट चित्र उतारे। एक सुखद अहसास, लो भई 10 बजे से शुरु हुई तपस्या 6 बजे समाप्त हुई।

ललित शर्मा, अंजु चौधरी, संध्या शर्मा, सत्येन्द्र शर्मा
विजयी भाव और गर्व से तनी हुई गर्दन लिए हम सभागृह से बाहर आए और जी भर के अंजु जी को सम्मान प्राप्त करने की बधाई दी। उनके साथ चित्र भी खिंचवाए, भई एक सेलीब्रेटी के साथ चित्र खिंचवाने का आनंद ही कुछ और है। हमारे चित्र संजीव तिवारी जी ने खींचे और संजीव तिवारी जी के हमने। सत्येन्द्र शर्मा जी भी अपने जरुरी काम निपटा कर पंहुच चुके थे। अब अंजु जी से विदाई ली, हमने अपनी काली घोड़ी को पुचकार खरहेरा किया। उसने भी सिर हिलाया कि वह सवारी कराने के लिए तैयार है।इस तरह "क्षितिजा" का सम्मान समारोह निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। हमने भी राहत की सांस ली, जैसे स्कूल की छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चे घर की ओर दौड़ लगा देते हैं, बस इसी तरह का कुछ मन हमारा भी था। इस कार्यक्रम में सूर्यकांत गुप्ता जी एवं गुप्तैईन भाभी को भी आना था पर गुप्ता जी की अस्वस्थता की वजह से वे पहुंच नहीं पाए। सभी से विदा लेते हुए आनंद के क्षणों को अपनी यादों एवं कैमरे में कैद करते हुए फ़िर मिलने का वादा करते हुए हम सब अपनी-अपनी मंजिल की ओर बढ गए। एक आत्मिक संतुष्टि मन को मिली। जब कोई व्यक्ति रचता है और उसे सम्मान मिलता है वह जीवन का अविष्मर्णीय समय होता है।घर पहुंचने पर रात भोजन के समय अंजु जी का मैसेज मिला कि फ़्लाईट दिल्ली के लिए टेक ऑफ़ हो गयी है और हम लग गए अपनी निर्गुणी धुन में……

23 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो वैसे ब्‍लॉगरों को अब कौन जानता है
    अब तो फेसबुक का रूतबा है बंधु ललित जी।

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  2. कार्यक्रम का रोचक वर्णन पढकर अच्‍छा लगा ..

    पढने के बाद ऐसा लग रहा है मानो हम आसपास ही थे..

    अंजु जी को बधाई !!

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  3. ललित जी,...पढकर आपके लेखन कला ने ऐसा समां बांधा कि लगा हम भी आपके साथ है,...."क्षितिजा" सम्मान के लिए अंजू जी को बहुत२ बधाई,,,,,,,शुभकामनाए ,.....

    बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

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  4. @अविनाश वाचस्‍पति - अभी से कहां भाग लिए अन्‍नाभाई ब्लाग छोड़ कर। अभी तो आपको ब्लॉगिंग की जवानी और रवानी देखनी है। फ़ेसबुक तो 4 दिन की चांदनी है और 4 दिन पुरे हो गए…… लौट आईए नुक्कड़ पर … खोलिए तेताला का ताला :)

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  5. बहुत साधी हुई रिपोर्ट .... अनीता कपूर जी ब्लॉगर तो हैं पर कम ही ब्लॉग संचालन करती हैं ....इसी लिए भूल गयी होंगी ब्लोगर्स को ... आपके धैर्य की दाद देनी चाहिए ....

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  6. बहुत विस्तृत आलेख हो गया :) सम्पूर्ण विवरण. अब माइक्रो ब्लॉगिंग के जमाने में लगता है रामायण लिख मारे हो. मगर यही सच्ची ब्लॉगिंग है जी.

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  7. जाने ये एक मई की पोस्ट सोलह को कैसे पहुंची डेशबोर्ड पर???
    फोटोस तो देख ली थीं पहले भी......
    आपका वर्णन निश्चित रूप से जायकेदार था..
    :-)

    शुभकामनाएँ आपको, "क्षितिजा" को एवम अंजु जी को......

    सादर
    अनु

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  8. @ expression - अजी, आज गुगल बाबा ने गड़बड़ कर दी है। सब उसी की करी धरी है। पोस्ट आज ही लिखी है पर बिजली के झटके से तारीख बदल गयी। मुझे तो संगीता पुरी जी ने बताया तब पता चला कि पोस्ट 1 मई दिखा रही है। फ़िर दो चार कमेंट आ गए थे तो पोस्ट मेरे हाथ से निकल चुकी थी अन्यथा सुधार संभव था।

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  9. इस सम्मान के लिये हार्दिक बधाईयाँ...

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  10. अनु जी को बधाई..... बढ़िया रिपोर्ट

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  11. अंजू जी को बधाई ..
    अच्छी तस्वीरों के साथ बहुत रोचक रिपोर्ट दी है ....
    :-)

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  12. रोचक आलेख... अंजु जी को पुनः बधाई...

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  13. रोचक विवरण .
    अंजू चौधरी जी को सम्मान के लिए बधाई .

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  14. बहुत ही रोचक वर्णन ललित जी....अंजू जी को बधाई ..!

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  15. Aapki aatmeeyta aur Anju ji ka samman, aapke lekh main dono mukhar ho uthe hain...ek baat to ab pakki hai ki kabhi hamen koi samman mila...to aapko to pakka bulayenge...are koi to rahe sabhagar main taali bajane ke liye...bade bhaiyon aur babhiyon ke peechhe humara number aate aate to sab foot hi lenge...tab har dil azeej humare agraj LALIT bhai kaam aayenge...:)...humara anurodh abhi se apni diary main likh len kaun 'pusushasy bhagyam' ke chalte seedhe gyanpeeth puruskaar ke liye hi manoneet ho jaayen hum...lag jaye koi tippas...kya pata....:D...

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  16. @Deepak Shukla - दीपक भाई, जरुर आऊंगा। आप एक बार पुकार बस लेना……:)

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  17. मुझे तो लगा था की अब तक आपकी 'अक्कल' आपके पास ही होगी ..? पर, अफ़सोस ! वो कब रफू चक्कर हो गई पता ही नहीं चला ....?हा हा हा हा हा...महान ब्लोगरों को सलाम !

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  18. ललित भाई जी ...और सभी ब्लोगर मित्रों को धन्यवाद ..

    नेट से दूरी ...और बच्चो की छुट्टियों की वजह से यहाँ देर से आना हुआ ...उसके लिए क्षमा ...और दिल से धन्यवाद इस पोस्ट के लिए

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