सुबह की सैर पर आज हल्की फ़ुल्की चर्चा ने गंभीर मोड़ ले लिया। बंसी काका कहने लगे - "अब बीमार होने से भी डर लगने लगा है, आम आदमी चाहता है कि बीमार ही न हो। सोचने से क्या होता है? पता नहीं कब धरती के यमराजों (डॉक्टर, दवा विक्रेता और दवा निर्माता) के हत्थे चढ जाए, बच गया तो घर द्वार बेच कर सड़क पर आ जाएगा अन्यथा राम नाम सत्य तो मान ही लो।" बंसी काका की बात पर मुझे भी सोचना पड़ा। अगर राम नाम सत्य हो गया तो परिजनों को दोहरी मार झेलनी पड़ेगी, परिजन की मृत्यू एवं कर्जे के दलदल में फ़ँसने की। धरती के यमराजों का गिरोह उन्हे कहीं का नहीं छोड़ेगा। हर डॉक्टर का अपना बंधा-बंधाया पैथालाजिस्ट है। अगर उसके सजेस्ट किए पैथालाजिस्ट के पास न जा कर किसी दूसरे के पास चले गए तो दोहरा खर्च होगा और डॉक्टर के बताए पैथालाजिस्ट से ही टेस्ट करवाने पड़ेगें । कई डॉक्टरों और पैथालाजिस्टों में इतनी सेटिंग होती है कि डॉक्टर स्वस्थ मरीज को भी बहुत सारी जाँच लिख देता है और पैथालाजिस्ट सैम्पल लेकर बिना जाँच किए ही रिपोर्ट दे देता है कि सारे टेस्ट नार्मल हैं। टेस्ट करने की ज़हमत कौन उठाए, बिना किए ही रिपोर्ट देकर लूट का माल आधा-आधा ईमानदारी से बांट लिया जाता है।
हद तो तब हो गई जब एक नामी गिरामी अस्पताल में मैने 80 साल की महिला रिश्तेदार को भर्ती किया। उम्र का असर उन पर हो रहा था और स्मृति कमजोर होती जा रही थी। उन्हे न्युरोफ़ीजिशियन को दिखाया गया। न्यूरोफ़ीजिशियन ने दूनिया भर के टेस्ट लिख दिए और पर्ची मुझे थमा दी। सभी टेस्ट लगभग 5000 रुपए के थे। मरीज को भर्ती कर लिया गया और मैने एडवांस पेमेंट कर दिया पैथालाजी टेस्ट का भी। दूसरे दिन जब मुझे पैथालाजी टेस्ट का बिल दिया गया तो उसमें 900 रुपए HIV टेस्ट के भी थे। मुझे बड़ी कोफ़्त हुई कि 80 साल की उम्र में भी मरीज का HIV टेस्ट किया जा रहा है। अगर इन्हे HIV होता भी तो इतने साल तक जीना मुश्किल था। इतनी तो कामन सेंस आम आदमी के पास भी है। डॉक्टर को जब इस बारे में पूछा तो उसने कहा कि " बड़ा अस्पताल है, कोई बीमारी छूट न जाए इसलिए सारे टेस्ट कराने पड़ते हैं।" इसे कहते हैं मरीज की जेब पर सरासर डाका, लूट लो इंडिया मिल के। अस्पताल संचालकों से लेकर डॉक्टरों तक की सीधी पहुंच राजनेताओं तक होती है। उनको भी इनसे ईलाज करवाना होता है, इसलिए शिकायत होने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती। एक नर्सिंग होम संचालक एक फ़ोन पर शिकायत करने से छत्तीसगढ के तत्कालीन डीजी स्वयं पहुच गए थे फ़ोर्स लेकर।
गाहे-बगाहे समाचार मिलते ही रहते हैं इन नर्सिंग होम्स की कारगुजारियों के। डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, उसे प्राण दाता मान लिया गया। मरीज अपने प्राण उसके हाथों में सौप देता है। शल्य चिकित्सा से पश्चात पेट में तौलिया, गाज बैंडेज, कैंची या अन्य औजार छोड़ना तो आम बात हो गयी। कुछ डॉक्टर को इतने एक्सपर्ट हैं कि मरीज की नब्ज के साथ उसकी जेब की नब्ज भी भांप लेते है फ़िर वैसा ही ईलाज करते हैं। व्यवसायिकता का रोग इन्हे भी लग गया और सेवा भाव तिरोहित हो गया। जहाँ धर्मार्थ चिकित्सालय है वहाँ पर भी ये नजर नहीं आते। कम्पाउंडर ही दवा-पानी देकर ईलाज कर देता है। किडनी रैकेट के खुलासे के बात डॉक्टरों की हैवानियत की पराकाष्ठा सामने आई है। महाराष्ट्र के बीड़ जिले की परली तहसील के डॉक्टर दम्पत्ति सुदाम मुंडे एवं सरस्वती मुंडे गर्भपात के पश्चात अपने पालतु कुत्तों को कन्या भ्रुण खिला देते थे। जिससे गर्भपात के सबूत का पता ही न चले। डॉक्टरों की अमानवीयता का एक सबसे बड़ा उदाहरण है। अब इन्हे देवता माने या दानव। रायपुर के अस्पतालों में तो कई वाकये हो चुके है कि मरीज की मृत्यू के पश्चात उसका मृत शरीर परिजनों को तब तक नहीं सौंपा गया जब तक उन्होने उनके बिल की रकम जमा नहीं करवा दी।
बड़ी-बड़ी दवा कम्पनियाँ कभी भी अपने प्रोडक्ट का विज्ञापन किसी अखबार या टीवी चैनल पर नहीं करती। उनके प्रतिनिधि सीधे डॉक्टर से मिलते है और कम्पनी के प्रोडक्ट की जानकारी देते हैं साथ ही उनकी कम्पनी की दवा लिखने पर गिफ़्ट क्या होगा ये तय हो जाता है। एक वाकया मेरे साथ ही घटा, हिमाचल पहुचने पर ऊंचाई के कारण मुझे कुछ हरारत सी महसूस हुई। डॉक्टर को फ़ोन लगा कर दवाई की सलाह माँगी। उसने सर्दी जुकाम की जो दवाई बताई उसकी 10 टेबलेट की स्ट्रिप लगभग 600 रुपए की आई। बाद में घर आने पर अपने पारिवारिक डॉक्टर से पूछ तो उन्होने बताया कि जो इलाज 10 रुपए की दवाई से हो सकता था उसके लिए 600 रुपए खर्च करने पड़े। आंध्र प्रदेश का ही एक मामला सामने आया है। जिसमें डॉक्टर ने एक गाँव की लगभग 600 महिलाओं की बच्चे दानी निकाल डाली। यह एक लोमहर्षक एवं निंदनीय घटना है। इतना सब होने के बाद भी कभी नहीं सुना गया, किसी डॉक्टर को सजा हुई या उसकी पैक्टिस करने का लायसेंस खारिज किया गया हो। सब कुछ गोल माल है और मैनेज कर लिया जाता है।
सरकारी अस्पतालों में ईलाज के खोखले दावे होते हैं। अधिकतर डॉक्टर सरकारी नौकरी करते है पर अस्पतालों में नहीं जाते, अपनी सेवा निजि चिकित्सालयों एवं नर्सिंग होम्स में देते हैं। वेतन सरकार से लेते है और उपरी कमाई निजि नर्सिंग होम्स से करते हैं। गाँव महिला स्वास्थ्य रक्षण के नाम से नियुक्त मितानिनों का सम्पर्क निजि नर्सिंग होम्स से है। उन्हे मर्ज की गंभीरता एंव ईलाज के हिसाब से कमीशन दिया जाता है। एक मितानिन से चर्चा होने पर उसने बताया कि बच्चा दानी के आपरेशन का मरीज लाने पर 1000 रुपए मिलते हैं। निजि नर्सिंग होम्स की नजर हर जगह बच्चेदानी पर ही टिकी है, इसे निकालना भी आसान है और एक आपरेशन के 20-30 हजार मिल जाते हैं। सारे यमराज मिलकर फ़सल काटने में लगे हुए हैं। एक डॉक्टर मित्र का कहना था कि आप शहर के किसी भी नर्सिंग होम में चले जाईए पेट दर्द की शिकायत लेकर आपका 5-10 हजार तो सिर्फ़ टेस्ट में ही चला जाएगा। भले ही मरीज को कोई गंभीर समस्या न हो, अगर नर्सिंग होम् का बेड खाली है और रुम नहीं लगा है तो मानकर चलिए कि दूसरे मरीज के आते तक आपको ही उसका खर्च और किराया वहन करना है। हाथ आया मुर्गा इतनी आसानी से नहीं छोड़ा जाता। अधिक होगा तो आपरेशन थियेटर में ले जाकर बिना मतलब के ही एक लम्बा चीरा लगा कर सिलाई कर दी जाएगी और मरीज के परिजन समझेगें कि डॉक्टर ने बड़ा आपरेशन किया है, मरीज को बड़ी जद्दोजहद से बचाया है।
एक जमाना था जब डॉक्टर मरीज की नब्ज देख कर ही बीमारी पहचान लेता था और और कड़ुवी पुड़िया और लाल मिक्सचर देकर ईलाज कर दिया करता था। वर्तमान चिकित्सा को व्यावसाय बनाकर मरीजों के साथ खिलवाड़ के सिवा कुछ नहीं हो रहा। मंहगी से मंहगी दवाई लिखना आम बात हो गयी है। बड़ी दवाई कम्पनियों के पैकेज बने हुए हैं और डॉक्टर द्वारा दवाई लिखने एवं बिकने के हिसाब से उसका हिस्सा पहुंचा दिया जाता है। सरकार ने झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ़ अभियान छेड़ रखा है। जबकि गाँव में यही ग्रामीण चिकित्सक ही काम आते हैं। ब्लॉक मुख्यालय के समीप वाले गाँवों के मरीज तो सरकारी अस्पताल एवं निजि चिकित्सालयों तक पहुँच जाते है पर 10-15 किलोमीटर दूर के गाँवों में यही झोला छाप डॉक्टर ईलाज करके मरीजों को राहत दिलाते हैं। अगर झोला छाप डॉक्टर न हों तो ग्रामीण क्षेत्र में मरीजों का ईलाज ही नहीं हो सकता। झोला छाप डॉक्टरों को सरकार द्वारा प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण देकर प्रमाणित करना चाहिए जिससे वे ग्रामीण क्षेत्रों में ईलाज मुहैया करवा सकें। सभी डॉक्टरों को एक ही तुला में नही तोला जा सकता। कुछ डॉक्टर है जो अपना काम ईमानदारी एवं लगन से कर रहे हैं जिनके भरोसे ही डॉक्टरों पर विश्वास कायम है। लेकिन अधिंकाशत: डॉक्टरों ने चिकित्सा को व्यवसाय बना लिया है और धरती पर यमराज के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं। बंसी काका का कहना सही है कि अब बीमार होने से भी डर लगने लगा है।
ek aam aadmi ka pratinidhitwa karte banshi kaka ki bat bilkul sahi hai , bimari se shayad koi bach bhi jaye pr kaliyug ke is shaitan doctor ki mar se sach me aam insan ki kamar tut jati hai .. asptal aur marij ka hal ka uchit bakhan katri is warta ke liye aapko badhai..sajag blogar sharma ji ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया प्रस्तुति .. आज चिकित्सा ही क्या , शिक्षा और धर्म भी व्यवसाय ही है .. मालिक अपने अपने संस्थान के प्रचार प्रसार के लिए एम बी ए रखते हैं .. इस व्यावसायिक युग में आम जन को भगवान भी नहीं बचा सकते आज !!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच्ची बात कही है आपने, मजबूरी ऐसी होती है कि निरीह, लाचार मरीज को इनके पास जाना ही होता और ये उसे ऐसे देखते से प्रतीत होते हैं जैसे कह रहे हों "मुर्गा आया मुर्गा आया" अंत में हलाल करके ही छोड़ते हैं. सेवा भाव तो रहा नहीं मानवता भी बेचकर खा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंRaj Bhatia - फ़ेसबुक पे
जवाब देंहटाएं"बंसी काका सच बोल रहे हे जी.... आज कल भारत मे डा० लोग जल्लाद का रुप बन गये हे, जिन्हे पहले लोग भगवान का रुप मानते थे, बहुत कम डा० हे जो सच्चे मन से लोगो की सेवा करते हे, बाकी तो बडे बडे कलिनिक, ऎ सी बंगलो ओर कारो मे ऎश करते हे, कल तक जो फ़ुटपाथिये थे....."
आज डॉक्टर भगवान नहीं व्यापारी बन गया है .... बंसी काका ने सही कहा कि अब तो बीमार पड़ते भी डर लगता है ...
जवाब देंहटाएंआज चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, का जमकर व्यवसायी कर हो रहा है,इसके लिये जम कर पचार प्रसार किया जाता है,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
सर्वाधिक संवेदन शील क्षेत्र की मरती समवेदनाएं मरती मानवता का संकेत हैं.... पहले जब मरीज डाक्टर के पास जाता था तो डाक्टर का पहला वाक्य “डोंट वरी मैं हूँ ना” हुआ करता था और मरीज की आधी बीमारी यूं ही ठीक हो जाती थी... आज स्थितियाँ उलट चुकी हैं डाक्टर के पास जाते ही मरीज की बीमारी डबल हो जाती है.... कारण.... चार डाक्टर मिल कर अरबों का लोन लेकर बड़ा सा नर्सिंग होम खोल लेते है... लोन तो पटाना है ना... मरीज ही तो पटाएगा ना... इसीलिए जो बंदा उनके हत्थे चढ़ गया एक इंस्टालमेंट तो निकाल ही लिया जाएगा... फिर चाहे सर्दी खांसी के मरीज को वेंटीलेटर में ही क्यूँ ना रखना पड़ जाय.... हम ईश्वर से इन्हें सद्बुद्धि देने की प्रार्थना के अलावा कर भी क्या सकते हैं....
जवाब देंहटाएंललित भाई...
जवाब देंहटाएंआज भी ऐसे डॉक्टर हैं...
ज्यादा दूर नहीं, मैं रायगढ़ की बात कर रहा हूँ...
डॉक्टर चटर्जी, स्ततिओं से सत्तिगुदी चौक के बीच दरगाह के पास है..
शायद ही ओव्ह जरूरत से ज्यादा दवाई लिखते हों... अगर आप किसी और डॉक्टर से इलाज करा चुके हों और अगर उस डॉक्टर की दी हुई दवाई आपके बॉस बची है और काम के लायक है तो उसी को लेने बोलते हैं. और अगर जरूरी हुआ तो उस दवाई को रखकर बदले में नयी दवाई दे देता हैं बिना पैसे के... खासकर गरीब तबके के लोगों के लिए.. हाँ एक जरूरी सलाह वोह जरूर देते हैं की डॉक्टर जो खुराक देता है उसे जरूर पूरा करें.. अन्यथा दवाई फिर से लेनी पद सकती है... मैं स्वयं गया हूँ. दुबार जाने की जरूरत नहीं पड़ती, कोई बिमारी उन्हें गंभीर लगती है तो वोह मरीज को बिना बताये अपने खर्चे पैर संपले लेकर बहार अनुशंधन के लिए भेज देते हैं...
आज भी वोह नाडी छूकर ही इलाज करते हैं..
@प्रकाश भाई, डॉ चटर्जी से मै भी मिला हूँ। नि:संदेह वे काबिल डॉक्टर हैं।
जवाब देंहटाएंऐसे उदाहरण अब कम ही बचे हैं जिनमे सेवा भाव कायम है।
और भी डॉक्टर हैं जिन्हे मै जानता हूँ और वे मेरी पोस्ट के दायरे में आते हैं।
वैसे कुछ तो प्रैक्टिस के अलाव बड़े निजि अस्पतालों की दलाली पर ही चल रहे हैं।
"...कई डॉक्टरों और पैथालाजिस्टों में इतनी सेटिंग होती है कि डॉक्टर स्वस्थ मरीज को भी बहुत सारी जाँच लिख देता है और पैथालाजिस्ट सैम्पल लेकर बिना जाँच किए ही रिपोर्ट दे देता है कि सारे टेस्ट नार्मल हैं। टेस्ट करने की ज़हमत कौन उठाए, बिना किए ही रिपोर्ट देकर लूट का माल आधा-आधा ईमानदारी से बांट लिया जाता है।..."
जवाब देंहटाएंएक बार मेरे साथ भी ऐसा ही अजीब हादसा हुआ था.
एक डॉक्टर की पर्ची के आधार पर पैथालाजिस्ट ने मेरे खून की जांच पर वीडी पॉजीटिव रिपोर्ट दे दी! मेरा माथा गर्म हुआ तो मैंने उस पैथालाजिस्ट का टेंटुआ पकड़ लिया और बोला कि सच सच बता माजरा क्या है. दोबारा दूसरे पैथालाजिस्ट से रिपोर्ट लेता हूँ और गलत निकला तो तुम्हारा लाइसेंस कैंसल करवा दूंगा. वो पैरों पर गिर पड़ा - बहाना लगाया - रीएजेंट खत्म हो गया था तो पॉजीटिव रिपोर्ट दे दी सोचा, थोड़ी सी ही तो दवा खानी होगी मरीज को. यदि नेगेटिव रिपोर्ट देता तो मर्ज बढ़ने का अंदेशा था. उसको ये क्या पता था कि मरीज भी पढ़ा लिखा था और वीडी का मतलब वो भी बखूबी समझता था!
पता नहीं उस पैथलाजिस्ट ने कितनों को फजूल रपटें दी होंगी!
और, अस्सी साल की घरेलू माताराम का एचआईवी टेस्ट! इस पर तो पेट पकड़ कर हँसा ही जा सकता है.
बच के रहना बहुत आवश्यक है, थोड़ा सा पैसा अधिक खर्च हो जाये।
जवाब देंहटाएंSachhaie ko ujagar karti ek sundar prastuti,
जवाब देंहटाएंPAR SAMASYA YEH HAE KI AAM ADAMI JAYE TO JAYE KAHAN,BACHE TO BACHE KAISE,JALLAD BAN GAYE HAEN SAB
सत्यमेव जयते की तरज पर यहाँ भी डॉक्टरी पेशे की खिंचाई हो रही हैं ...बढिया हैं ...जागरूकता जरुरी हैं
जवाब देंहटाएंखुदा खैर करे...
जवाब देंहटाएंहम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
जवाब देंहटाएंसेवा भावना से जुड़ा हर पेशा व्यवसाय की भेंट चढ़ चुका है ...
जवाब देंहटाएंगलती मरीजों की भी है , पारम्परिक घरेलू उपाय तो कब के बिसराए जा चुके हैं ...
भाई ललितजी एक बात और जोड़ना चाहूँगा दवाई कंपनी के agent का सूत्र है confuse,convince,corrupt
जवाब देंहटाएंऔर इसी वेद वाक्य का उपयोग वे दवा बेचने में करते है और डाक्टर अंतिम शब्द को भय कर देते है बांसुरी बजती रहती है
भाई ललितजी एक बात और जोड़ना चाहूँगा दवाई कंपनी के agent का सूत्र है confuse,convince,corrupt
जवाब देंहटाएंऔर इसी वेद वाक्य का उपयोग वे दवा बेचने में करते है और डाक्टर अंतिम शब्द को भय कर देते है बांसुरी बजती रहती है
बहुत ही सही बात को आपने रखा और सभी लोग ये जान भी रहे है लेकिन अफसोस इस बात का है कि कोई भी आन्दोलन इसके लिए नहीं हुआ | जो डॉक्टर दोषी सावित होते है वे भी किसी न किसी तरह बच जाते है --------
जवाब देंहटाएंबच के रहना बहुत आवश्यक है बंसी काका सच बोल रहे हे ,
जवाब देंहटाएंबंसी काका की बात में बहुत दम है
90% डाक्टर तो कसाई का ही रूप लिए बैठे है!!
जवाब देंहटाएंbhagwaan bachae ...
जवाब देंहटाएंसच में यमराज के एजेंट ही कहा जाये इन्हें तो
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार और पैसे की ताकत ने डॉक्टरों को भी भ्रष्ट बनने पर मजबूर कर दिया है . हालाँकि यह कोई एक्सक्यूज नहीं हो सकता . अब डॉक्टर भगवान नहीं, इन्सान भी कोई कोई ही दिखता है . सच है , यह नोबल प्रोफेशन भी अब गन्दा धंधा बन गया है .
जवाब देंहटाएंलालच जो करवाए सो कम है।
जवाब देंहटाएंमामला बहुत गंभीर है,
जवाब देंहटाएंजहां शिक्षित वहीं अशिक्षा।
अनपढ़ बिरादरी डाक्टरों की इस करतूत से शर्मिन्दगी महसूस कर रहें हैं। और........
चिकित्सा आज सेवा नहीं व्यवसाय बन गया है , कुछ प्रतिशत को छोड़ दें अब देवदूत (डॉक्टर्स ) व्यापारी व कारोबारी बन गए हैं ,अब किसी पर विश्वास नहीं कर सकते पर अन्य कहीं जा भी नहीं सकते अंततः आप को अपनी गर्दन काटने के लिए इनके सामने रखनी ही पड़ेगी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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