लाया हूँ मैं
सहज ही तुम्हारे लिए
टेसू के फ़ूल
जो अभिव्यक्ति है
मेरी प्रीत की
गुलाब तो
अभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
गुलाबी प्रेम में
झलकती है
बेवफ़ाई/कटुताई
टेसू के फ़ूल
निर्मल निर्दोष
सहज और सरल हैं
अभिव्यक्त करते हैं
निश्चछल प्रीत को
उनमें भरी ज्वाला
भस्म कर देती है
अंतस के कलुष को
भर जाता है प्रकाश
अंतरमन में
होती है प्रीत मुखरित
जनम जनम की
सहज ही तुम्हारे लिए
टेसू के फ़ूल
जो अभिव्यक्ति है
मेरी प्रीत की
गुलाब तो
अभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
गुलाबी प्रेम में
झलकती है
बेवफ़ाई/कटुताई
टेसू के फ़ूल
निर्मल निर्दोष
सहज और सरल हैं
अभिव्यक्त करते हैं
निश्चछल प्रीत को
उनमें भरी ज्वाला
भस्म कर देती है
अंतस के कलुष को
भर जाता है प्रकाश
अंतरमन में
होती है प्रीत मुखरित
जनम जनम की
बहुत बढिया ..
जवाब देंहटाएंटेसू के फूल जैसी ही सहज और सरल अभिव्यक्ति !!
गुलाब तो
जवाब देंहटाएंअभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
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टेसू के फ़ूल
निर्मल निर्दोष
सहज और सरल हैं
गुलाब और टेसू के माध्यम से आपने दो वर्गों की मानसिकता और उनके प्रेम की वास्तविकता को गहनता से अभिव्यक्त किया है .....! जहाँ तक सच्चे प्रेम का सम्बन्ध है वह इनका मोहताज नहीं होता ...!
गुलाब तो
जवाब देंहटाएंअभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
गुलाबी प्रेम में
झलकती है
बेवफ़ाई/कटुताई
टेसू के फ़ूल
निर्मल निर्दोष
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // फूल की ही तरह खुबशुरत रचना //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
टेसू के फूल सी
जवाब देंहटाएंसहज निर्मल
निश्छल अभिव्यक्ति
जन्मों की प्रीत की
उनमें भरी ज्वाला
जवाब देंहटाएंभस्म कर देती है
अंतस के कलुष को
भर जाता है प्रकाश
अंतरमन में
होती है प्रीत मुखरित
जनम जनम की
अंतःकरण की अभिव्यक्ति को शब्दों ने मुखर किया .
अद्भुत निराला भाव ,अनोखा संयोजन .....
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंकितना सुंदर बिम्ब .... प्रभावित करती है कविता
जवाब देंहटाएंबेमौसम दहक गए...
जवाब देंहटाएंटेसू के फूल बहुत खूबसूरत हैं , भीषण गर्मी से झुलसते मौसम के बीच खुशगवार- सा !
जवाब देंहटाएंमगर गुलाबी प्रेम में झलकती है कटुताई ...वो कैसे !!
हर फूल और रंग का अपना रंग है !!
सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंफ़िज़ां में चारों तरफ़ टेसू के फ़ूल ही गमक रहे हैं जी । बहुत बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंtesu ke phoolon see sundar post.aabhr.mere blog par svagat hae
जवाब देंहटाएंटेसू और पलाश के फूलों में ही देश की माटी की सुगंध आती है .
जवाब देंहटाएंगुलाब तो अब वैसे भी गंधरहित हो गए हैं .
बढ़िया भाव व रचना .
बेचारे गुलाब - आपने उन्हें बैठे बिठाए नकली कह दया | माना के टेसू बड़े प्यारे हैं - परन्तु बेचारे गुलाबों ने क्या गुनाह किया है ? :)
जवाब देंहटाएंऐसे ही - माना कि गरीब सच्चा प्रेम कर सकते हैं | परन्तु अमीरों का प्रेम झूठा ही है - यह कैसे मान लिया जाए ? उनका कुसूर सिर्फ यह है की वे अमीर घर में जन्मे ?
discrimination तो discrimination ही है - चाहे वह गुलाब के विरुद्ध हो या टेसू के :)
गुलाब तो
जवाब देंहटाएंअभिजात्य वर्ग के
नकली प्रेम की
निशानी है
गुलाबी प्रेम में
झलकती है
बेवफ़ाई/कटुताई
टेसू के फ़ूल
निर्मल निर्दोष
सहज और सरल हैं
गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए हार्दिक बधाई।
अरे वाह .... आज तो मिजाज बदले हुये हैं .... बहुत सुंदर भाव लिए प्रेम को अभिव्यक्त करती रचना
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...............
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.................
और तो और टेसू के फूल रंग भी तो जाते हैं प्रेम के रंग से......
सादर
अनु
जो भी मन की सहजता और सरलता को व्यक्त कर दे, वही रंगीला है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंएक सहज सरल निर्मल निर्दोष निश्छल हाजिरी मेरी भी
रचना में दर्शन तत्व पूरी तरह मुखरित हुआ है। सुन्दर कृति के लिये आभार!
जवाब देंहटाएंपलाश जब खिलते थे अकलतरा के समीप के दलहा पहाड़ पर तो लगता था पहाड़ पर जैसे आग लगी हुई है आज पहाड़ नंगा हो गया है पत्थर ही दिखाई पड़ते है ,आपकी कविता ने मौन मधुर स्मृतियों की सुधि जगा दी धन्यवाद .और हाँ यह भी याद दिलाया की पलाश के फूल सिर्फ पहाड़ो और जंगलो में आग नहीं लगाते .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंललितजी बहुत सुन्दर हैं आपकी ये सुन्दर और रौबदार मूछें, जब भी इन्हें देखती हूँ गौरवान्वित जाती हूँ , पता नहीं क्या हो जाता है मुझे. और हाँ आप बहुत अच्छा लिखते हैं, मेरे ब्लॉग पर जरुर आइये
जवाब देंहटाएंजेठ की दुपहरी में
जवाब देंहटाएंबूँद बूँद पिघला सूरज
आग की नदी
क्षितिज से उतर कर
बहने लगी धरती पर
दहकने लगे पलाश
अमलताश से आम तक
जा पहुची पीली ज्वालायें
और तब खिले टेसू के फूल्
टेसू के फ़ूल
जवाब देंहटाएंनिर्मल निर्दोष
सहज और सरल हैं
अभिव्यक्त करते हैं
निश्चछल प्रीत को
उनमें भरी ज्वाला
भस्म कर देती है
अंतस के कलुष को
भर जाता है प्रकाश
अंतरमन में
होती है प्रीत मुखरित
जनम जनम की
वाह बहुत सुन्दरता से उकेरा है भावो को