गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

नए साल का धमाल-जूतम पैजार बवाल ………… ललित शर्मा

चौपाल में डीजे लगाकर नया साल मनाने के लिए मोहल्ले के नवयूवक मनहरण, लीलू, चंदू, डॉक्टर, तहसीलदार, थानेदार, कोरकु, फ़ागु इत्यादि तैयारियों में जुटे हैं। (डॉक्टर, तहसीलदार, थानेदार नाम है इनके। कहीं पेशे से न समझ लेना। गाँव में जो नाम अच्छा लगता है वह रख लिया जाता है।) आपस में मिलकर चंदा किया और खाने पीने के साथ नाच-गान का पिरोगराम भी बनाया। शाम होते ही डीजे बजा कर नाच गान का रेसल शुरु हो गया। कोलावरी कोलावरी डी, मार धमा धम धमाचौकड़ी शुरु हूई। लखन काका, रमलु लोहार, चमरु यादव समेत के गाँव के मनमौजी बुजुर्ग भी मौज ले रहे थे। चमरु कका ने महुआ ढकेल रखा था। कोलाबारी ने उन्हे भी खींच लिया, धोती को उपर टांग कर वे भी शुरु हो गए छोकरों के साथ। आहो बेंदरा के मारे नइ बांचय कोलाबारी रे। उधर मद्रासी गाना और इधर चमरु कका का ठेठ देशी गाना चल रहा था। दोनों गानों का फ़्युजन हो गया और फ़्युज उड़ गया। छोकरों ने चमरु कका मना किया। अंग्रेजी में देशी मत मिलाओ रिएक्शन हो जाएगा। पर चमरु कका तो चमरु कका ठहरे।

तहसीलदार ने तमक कर चमरु कका को डीजे मंच से उतार दिया। छोकरे की धृष्टता बुढउवों को नागवार गुजरी। परबतिया भौजी भी तमाशा देख रही थी, यह किसी को हंसते-खिलखिलाते मौज करते नहीं देख सकती। उसने लखन कका का कान फ़ूंक दिया और घर की तरफ़ खिसक ली। अब लखना कका और रमलु लोहार भी चढ गए डीजे पर। डीजे वाले को निर्देश देने लगे - गाना लगा तो रे, रोंगोबोती रोंगोबोती कोनो कोरोता। डीजे बजा रहे फ़ागु ने मना कर दिया बोला - ये पुराना गाना नही है उसके पास। दुबारा फ़रमाईश हुई - त लगा पान वाला बाबू रे। अब पान वाला बाबू गीत बजने लगा। चमरु कका फ़िर डीजे पर कूद फ़ांद करने लगे। दो चार डोकरे जो टुन्न होकर बैठे थे वे भी आ लिए डांस-डांस पिरोगराम में। कहते हैं बंदर कितना भी बूढा हो जाए गुंलाटी मारना नही छोड़ता, साथ ही किसी जवान स्त्री का कान फ़ूंका डोकरा और भी खतरनाक हो जाता है। पुरानी रगों में दौड़ता महुआ कुछ अधिक ही काम कर गया। इन बुढउवों से छोकरे हलकान हो गए। चंदा देने के तो 5 रुपए इनसे निकलते नहीं। डीजे का मजा मुफ़्त में ले रहे हैं।

डॉक्टर का मुड खराब हो गया, वह बहुत देर से बुढउवों का तमाशा देख रहा था उसे सहन नहीं हुआ। बंद करो डीजे, बंद करो। इसमें डोकरों का पैसा नही लगा है। खर्चा हम करें और मुफ़्त में मजा लेने के लिए आ गए। चमरु कका ने डीजे बंद होते ही उन्हे गरियाना शुरु कर दिया। …… साले क्या समझते अपने को, तुम्हारा डीजे बंद करवा दुंगा। भिखारी समझते हो क्या मुझे, ऐसे हजार डीजे खरीद कर बजवा सकता हूँ। डीजे वाले की तरफ़ मुखातिब होकर कहा - बोल कितने का है तेरा डीजे, अभी खरीदता हूँ। रंग में भंग होते देख कर छोकरों के क्रोध की सीमा नहीं रही। उन्होने चमरु कका के अन्य बुढउ संगवारियों को डीजे से नीचे ढकेल दिया। इस धक्का मुक्की में लखन काका की धोती खुल गई और वह गिर पड़ा। किवाड़ की ओट से बस इसी समय का इंतजार परबतिया भौजी कर रही थी। जिस तरह ब्लॉग जगत में कुछ घटने के बाद फ़टाफ़ट मेल चल जाती है कमेंट प्रहार का निमंत्रण देने के लिए ठीक उसी तरह फ़ीमेल भी चल पड़ी गाँव में फ़साद करवाने के लिए।

अरे बरातु, ओ बरातु, फ़िरतु कहाँ हो रे तुम लोग। वहाँ तुम्हारे बाप को छोकरे लोगों ने मार डाला, पटक-पटक कर गरुवा जैसे धुन रहे हैं। जल्दी चल रे रोगहा, उसकी जान चली जाएगी। बस फ़िर क्या था चमरु कका टोला के सभी लोग, जिन्हे जो भी लाठी, डंडा, बेलन, चिमटा, टंगिया फ़रसा जो भी मिला, लेकर कार्यक्रम स्थल की ओर दौड़ पड़े। हो हल्ला सुनकर लड़के भी सतर्क हो गए। उन्होने भी अपने हथियार संभाल लिए और परबतिया भौजी की किरपा से नव वर्ष का कार्यक्रम स्थल कुरुक्षेत्र बन गया। जो जिसे पा रहा था, उसे ही पीट रहा था। भीषण युद्ध प्रारंभ हो गया, किसी का सिर फ़ूटा तो किसी की टांग टूटी, मार-पीट गाली गलौज सुनकर गाँव के अन्य लोग भी उठ गए। उन्होने बीच बचाव कर लड़ाई खत्म कराई। परबतिया भौजी कोने में खड़े होकर मन ही मन मुदित थी। वह जो चाहती थी वह हो गया।

सुबह होने पर ग्राम प्रंचायत की बैठक हुई, पंचपरमेश्वर रात की घटना पर सलाह मशविरा करना चाहते थे, गाँव में पहले कभी इस तरह की घटना नहीं हुई थी जिससे आपसी सद्भाव समाप्त हो जाए। सरपंच ने लड़कों से पूरा ब्यौरा लिया। उन्होने बताया कि हमारा कोई इरादा नहीं था। मार पीट करने का, चमरु कका लोग पीने के बाद जान बूझ कर मस्ती कर रहे थे। हमने उन्हे डीजे से नीचे उतारा बस था। कहीं हमने मार पीट धक्का मुक्की नहीं की इनके साथ। चमरु ने भी इस बात की हामी भर ली और दारु पीकर नाचने की अपनी गलती स्वीकार ली। सरपंच ने पूछा - फ़िर मारपीट का कारण क्या था? सभी ने कहा कि हमें नहीं मालूम। बरातू ने बताया कि परबतिया भौजी ही आकर हल्ला मचा कर गयी थी कि तुम्हारे बाप को गरुवा जैसे पटक-पटक मार रहे हैं। अब कैसे सहन होगा? कोई हमारे बाप को मारे और हम खड़े-खड़े देखते रहें।  जोश में आकर हम भी लड़कों पर पिल पड़े।

परबतिया भौजी कहाँ है? सरपंच ने पूछा। परबतिया तो ढूंढने लगे तो वह गायब मिली ठीक उसी तरह जैसे मंथरा गायब हो गई थी। राम को वनवास दिलाने के लिए कैकयी का कान भर कर। ह्म्म! यह आग उस परबतिया की लगाई हुई है। हम अपने कान को न टटोल कर कौंवी के पीछे भागते रहे। उसक दुष्परिणाम भी देख लिया। मनहरण बोला  - परबतिया भौजी का काम यही है। जब देखो तब किसी न किसी की चुगली करके लड़वाते रहती है और अपना उल्लू सीधा करती है। आगे से सभी उसका ध्यान रखना और उसकी बातों के झांसे में न आना वरना किसी की जान भी हरण करवा सकती। नए साल पर सब सकंल्प लो कि कभी आपस में नहीं लड़ेगें और सद्भाव से त्यौहार मनाएगें। डीजे का किराया सरपंच ने देने की घोषणा की और नव वर्ष धूम धाम से मनाया जाएगा। गिले शिकवे दूर कर महफ़िल खूब सजी। परबतिया भौजी की कलई खुल चुकी थी। वह किवाड़ के पीछे छिपकर रंग रंगीला कार्यक्रम देख कर किसी नयी खुराफ़ात की उधेड़ बुन में लगी थी।

10 टिप्‍पणियां:

  1. लगभग हर गांव शहर में ये परबतिया भौजी जैसी या जैसा एक आध जरुर होता है !!

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  2. परवतिया भौजी से मिलना है ललित भाई...उसका फोटू खिंच कर ब्लॉग पर लगा दो, सावधान रहे पूरा ब्लॉग जगत !

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  3. नए वर्ष का यह तोहफा तो खूब रहा ...".किसी जवान स्त्री का कान फ़ूंका डोकरा और भी खतरनाक होता है " हा हा हा हा मजेदार ! जितनी तारीफ़ की जाये कम है .....

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  4. बाप रे बाप नए साल की पार्टी में कुछ ही देर में इतना बड़ा बवाल मच गया, हम तो एक सांस में ही पूरा पढ़ गए... बड़ी शानदार पार्टी थी :)... नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनायें

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  5. ललित जी बहुत आनन्‍द आया। परबतिया भौजी का तो कहना ही क्‍या।

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  6. लगता है परबतिया भौजी का खाना इसी तरह हज्म होता है।
    दिलचस्प कथा।

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  7. दिलचस्प सुंदर प्रस्तुति,,,,नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनायें,,,
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    recent post : नववर्ष की बधाई

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  8. नई बांचे बेंदरा के मरे कोलाबारी रे गज़ब का फ्यूज़न रिमिक्स और जाने क्या-क्या

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  9. बड़े रोचक ढंग से मनने वाला है नया वर्ष।

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