शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

रमई पाट में गर्भवती सीता ........ ललित शर्मा


पुजारी प्रेम सिंह एवं यायावर 
त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84  किलो मीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में  20.57,06.28" उत्तर एवं 82.07,51.56" पूर्व में फ़िंगेश्वर से छूरा मार्ग पर सोरिद ग्राम के समीप रमई पाट है। सोरिद गॉंव पहुचने पर दाहिने हाथ की तरफ़ रमई पाट जाने का मार्ग  है। थोड़ी सी चढ़ाई पर पहाडियों के बीच रमई पाट देवी का मंदिर सुरम्य वन क्षेत्र में है। यहॉं कई मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख शिवालय एवं रमई पाट देवी का स्थान है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए पक्की डामर की सड़क बनी हुई है। सड़क का अंत मंदिर के द्वार पर ही पहुंच कर ही होता  है। यहॉं पहुचने पर मुझे कहीं ऊंचे स्थान से पानी गिरने की आवाज आती है। थोड़ी ही दूर पर आम के पेड़ की जड़ से रिस कर बहता हुआ जल एक कुंड में इकट्ठा हुआ दिखाई देता है। कुंड का यही निर्मल जल लगभग 100 फ़ुट जमीन के भीतर चल कर आगे एक चट्टान से नीचे गिरता है। जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है।

गूगल से रमई पाट 
यहॉं मेरी मुलाकात बखरी में घास नींद रहे पुजारी प्रेम सिंह ध्रुव से होती है। प्रेम सिंह का परिवार इस स्थान की देखभाल कई पीढियों से कर रहा है। दुलार सिंह, झरियार सिंह, सुमेर सिंह के बाद चौथी पीढी में  में प्रेम सिंह का स्थान आता है। कदम-कदम पर गाँवों में कहानियॉं, किंवदन्तियॉं बिखरी हैं। ग्रामीण जन-जीवन मे इनका अत्यधिक मह्त्व है। दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद इन कहानियों किस्सों का रोमांच ही उर्जा देता है तथा ग्रामीणों के मनोरंजन का साधन भी कहानियॉं होती हैं। ग्रामीण अंचल के किस्से कहानी कोरी गप्प नहीं होते। उनके पीछे कभी कोई ठोस आधार भी दिखाई देता  है। एक कहानी मुझे छत्तीसगढ़ के फ़िंगेश्वर क्षेत्र के सोरिद ग्राम के समीप वनांचल में स्थित रमई पाट देवी मंदिर  के पुजारी प्रेम सिंह ध्रुव ने सुनाई।

काल भैरव 
मंदिर  के प्रांगण में खुले आसमान के नीचे काल भैरव अपने स्वान के साथ विराजमान हैं। समीप ही महिलावेश में हनुमान जी अहिरावण को अपने पैर से दबाए हुए खड़े हैं। मंदिर के सामने ही एक पाषाण विग्रह पर बहुत सारी लोहे की सांकल बंधी हुई हैं, इसे प्रेम सिंह कचना धुरवा देव बताते हैं। मनौती पूर्ण होने पर इनको सांकल चढाई जाती है। गर्भ गृह के द्वार पर सिंह प्रतिमा स्थापित है। इसे नरसिंह माना जाता है। गर्भ गृह में प्रस्तर की रामचंद्र, सीता एवं विष्णु की तीन मूर्तियॉं एक ही स्थान पर स्थापित हैं। रामचंद्र एवं सीता की मूर्ति को चांदी के मुकूट पहनाए हुए हैं। समीप ही प्रस्तर रुप  में बैगा-बैगीन भी विराजमान हैं। गर्भ गृह से थोड़ा अलग हट कर शिवालय भी बना हुआ है, जहां काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है।

शिव लिंग 
सभी देवी-देवता एक ही स्थान पर विराजित होने से थोड़ा कौतुहल मेरे मन में जागृत होता है। प्रेम सिंह चटाई बिछाते हैं और हमारी चर्चा प्रारंभ होती है। प्रेम सिंह कह्ते हैं कि जब रामचंद्र जी ने सीता का त्याग किया, तब वे गर्भवती थी। त्यागने पर लक्ष्मण उन्हें इस सघन वन में लाकर छोड़ गए। यहॉं सीता जी अकेली रह गयी। मन में सीता के प्रति अनुराग होने पर भगवान राम ने लक्ष्मण से उनका हाल-चाल पूछा। कुशलता बताने पर उनका मन नहीं माना। इधर भगवान द्वारा सीता जी के परित्याग करने पर देवलोक में हलचल हो रही थी। सभी देवता सीता जी से मिलने के लिए चल पड़े। भगवान राम भी व्यथित मन से सीता जी से मिलने के लिए यहॉं आए।

रामचंद्र जी, सीता जी, विष्णु जी 
सबसे पहले भगवान राम पहुंचे, इनके पीछे-पीछे विष्णु जी, शिव जी, नरसिंह जी, गरुड़ जी, काल भैरव जी, हनुमान जी भी पहुंचे। विष्णु जी ने भगवान राम को यहॉं पहले पहुंचे देखकर पूछ लिया कि परित्याग करने के पश्चात भी आप यहॉं कैसे आए? भगवान राम ने सीता के प्रति अपने अनुराग को उनसे मिलने आने का कारण बताया। भगवान राम तो सीता जी से मिल कर चले गए, पर बाकी देवता लौटना  नहीं चाह्ते थे। इसलिए सीता जी ने उन्हें अपने समीप ही रहने का स्थान दिया। तभी से सारे देवता इसी स्थान पर विराजमान हैं। हनुमान जी स्त्री रुप में होने के कारण बताते हुए कहते हैं कि यह रुप हनुमान जी  ने राम एवं लक्ष्मण को अहिरावण से मुक्त कराने दौरान धरा था। वे इसी रुप में यहॉं पर स्थापित हैं। कुछ दिनों पश्चात वाल्मिकी ॠषि का इस स्थान पर आगमन हुआ, उन्होने सीता माता को पहचान लिया और उन्हे अपने तुरतुरिया आश्रम में ले गए। जहॉं लव-कुश का जन्म हुआ। 

पेट पर हाथ रखे सीता जी 
इस स्थान की विशेषता यह है कि यहॉं गर्भवती सीता की सतत पूजित प्रतिमा स्थापित है। पुराविज्ञानी श्री जी एल रायकवार से चर्चा करने पर उन्होने बताया कि प्रतिमा विज्ञान में गर्भवती स्त्री की मूर्ति नहीं बनाई जाती। अगर किसी कारणवश बना भी दी जाती है तो उसकी पूजा नहीं होती। ऐसी प्रतिमा अपूजनीय होती है। गर्भवती सीता की प्रतिमा के विषय में मेरी अन्य विद्वानों से भी चर्चा हुई, उन्होने इस तरह की अन्य कोई प्रतिमा अन्य किसी स्थान पर पाए जाने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की। इस मंदिर की लगभग सभी मूर्तियॉं खंडित हैं जिनकी बाद में सीमेंट से मरम्मत की गई है। इन देवताओं के अतिरिक्त यहॉ पर घाट में कुंवर बिछलवा, बूड़ती में शीतला माई (पश्चिम दिशा) उगती में ठाकुर ठकुराईन (पूर्व दिशा) बरमदेव, बरदे बाबा एवं घटुरिया देव आदि स्थानीय देवी देवता भी निवास करते हैँ।

नरसिंह 
सीता जी का रमई पाट नाम पड़ने के पीछे की मान्यता है कि उनका परित्याग होने के पश्चात इस स्थान में आने के कारण सभी देवता यहीं रम गए। इसलिए इस स्थान को रमई पाट कहा जाने लगा। इन मूर्तियों को प्रेम सिंह 9वीं, 10 वीं शताब्दी की बताते हैं, पर मूर्तियों का शिल्प देख कर लगता नहीं है कि यह मूर्तियां इतनी पुरानी होगीं। शायद फ़िंगेश्वर के फ़णीश्वर महादेव सी प्राचीनता दर्शाने के लिए इन्हें  9वीं, 10 वीं शताब्दी का बताया जा रहा है। बाल बंधने के समय (गर्भ पूजा तिहार) एवं हनुमान जयंती को यहॉं से वर्ष में दो बार जात्रा निकाली जाती है। तब पूजा के समय फ़िंगेश्वर राज के राजा-रानी आकर पूजा करते हैं तथा बकरे की बलि भी दी जाती है। पहले तो यहीं मंदिर के सामने बलि दी जाती थी। इसे राजा ने बंद करवा दिया। इसलिए यहॉं पर सिर्फ़ बकरे को चावल चबवाया जाता है। बलि थोड़ी दूर ले जाकर दी जाती है। लोग अपनी मनौती पूर्ण होने पर बकरे की बलि देते हैं। सदियों से यह परम्परा चल रही है और मान्यतानुसार आगे भी चलते रहेगी।
स्त्री वेश में हनुमान 

13 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम अद्भुत और अनोखी जानकारी....

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  2. मूर्तियों से निकलती अमूर्त रोचक कथाएं.

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  3. गर्भवती देवी की प्रतिमा पहले नहीं देखी..रोचक है।

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  4. ललित भाई छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक संपन्नता को रेखांकित करने के लिए आपके द्वारा की जा रही कोशिशें बेजोड़ हैं। बहुत बहुत बधाई।

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  5. सीता जी की ऐसी दुर्लभ प्रतिमा कहीं नहीं देखी... मूर्तियों और स्थान से जुडी कहानियां बहुत ही रोचक हैं. छत्तीसगढ़ के खजाने का एक और मोती... खोलते जाइये इस खजाने को... आभार

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  6. अद्भुत और अनोखी जानकारी देता लेख .

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  7. सीता जी की ऐसी दुर्लभ प्रतिमा अद्भुत और अनोखी...........

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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