गुरुवार, 13 मार्च 2014

खाटू नगरी वाले श्याम बाबा

"हारे का सहारा है, बाबा खाटू श्याम हमारा है" का नारा लगाते हुए भक्त मुझे रेवाड़ी खैरथल मार्ग पर ग्राम सुबा सेहड़ी के समीप मिले। जीप पर डीजे लगा कर नर-नारियाँ हाथों में निशान (झंडा) लेकर नाचते-कूदते खाटू श्याम जी होली उत्सव मनाने जा रहे थे। खाटू श्याम जी के भक्तों की पूरी दुनिया में कोई कमी नहीं है। श्रद्धालू भक्त इन्हें सेठो का सेठ मानते हैं और भजनों द्वारा खाटू श्याम बाबा की सेवा करते हैं। राजस्थान हरियाणा में निवास करने वाले अधिकतम लोगों के कुल देवता के रुप में इनकी मान्यता है। जात-जड़ूले के साथ विशेष अवसरों पर श्याम बाबा के दर्शन करके आशीर्वाद लिया जाता है। कहा जाता है कि यहाँ से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। व्यक्ति की मनवांछित इच्छाएँ पूर्ण हो जाती है।
श्री खाटू श्याम बाबा
राजस्थान के सीकर की दांताराम गढ़ तहसील के अंतर्गत खाटू ग्राम पंचायत में खाटू वाले श्याम विराजते हैं। ग्लोब पर खाटू श्याम मंदिर 27021'48.31" N, 75024'07.17" E पर स्थित है। परिवारिक मान्यताओं का व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है इसलिए सपरिवार खाटू श्याम दर्शन करने मैं कई बार इस स्थान पर आ चुका हूँ। वर्तमान में खाटू में श्याम जी का लख्खी मेला चल रहा है। दूरस्थ प्रदेशों से लाखों यात्री बाबा के दर्शन करने आ रहे हैं। जिनमें पैदल यात्रियों की संख्या अधिक है। यह तीर्थ राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है। वैसे तो प्रतिदिन श्रद्धालू बाबा के दर्शन करने आते हैं परन्तु माह की एकादशी को इनके दर्शन का महत्व माना गया है। प्रतिवर्ष यहाँ पर फ़ाल्गुन मास की एकादशी को विशाल मेले का आयोजन होता है। इसमें भक्त बाबा के साथ होली खेलते हैं।
श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या मौरवी के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे। उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे। महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुये तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जाग्रत हुयी। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब माँ को हारे हुये पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने लीले घोडे, जिसका रंग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभुमि की और अग्रसर हुये।
सर्वव्यापी कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिये उसे रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उडाई कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में ही आयेगा। यिद तीनो बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। इस पर कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस पीपल के पेड के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खडे थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड के पत्तो की ओर चलाया। 
हरसोली के समीप पदयात्री
तीर ने क्षण भर में पेड के सभी पत्तों को भेद दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होनें अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराये कि वह युद्ध में जिस और से भाग लेगा जो कि निर्बल हो और हार की और अग्रसर हो। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है, और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
ब्राह्मण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा. कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की द्डता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और कृष्ण के बारे में सुन कर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, कृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।
उन्होनें बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिये एक वीर्यवीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यक्ता होती है, उन्होनें बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होनें अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभुमि के समीप ही एक पहाडी पर सुशोभित किया गया, जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
खाटू श्याम मुख्य मंडप
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी खींचाव-तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभुमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। उनका शीश खाटू में दफ़नाया गया। एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी, बाद में खुदायी के बाद वह शीश प्रगट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिय गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। 
मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई० में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिष्ठापित किया गया था. मूर्ति विग्रह दूर्लभ पाषाण से निर्मित है। वर्तमान में मंदिर का संचालन श्याम मदिर कमेटी ट्रस्ट करता है जिसके अध्यक्ष रुप सिंह चौहान के वंशज. मोहन सिंह (दास) चौहान, मंत्री प्रताप सिंह चौहान एवं खजांची श्याम सिंह चौहान हैं। 
इस वर्ष मंदिर कमेंटी एवं प्रशासन की तरफ़ से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। जिसमें प्रसाद वितरण, मेला मार्गदर्शिका का प्रकाशन, आवा गमन, सफ़ाई, रोशनी, संचार, अग्नि शमन, चिकित्सा, क्लोज सर्किट कैमरे, जल, भोजन, अस्थाई शौचालय, डेकोरेशन, पार्किंग, रथ यात्रा की व्यवस्था की गई है। रींगस से 16 किलोमीटर तक सभी भक्तों को दर्शन करने के लिए पैदल चलना पड़ता है। इनके लिए 6 पंक्तियों में चलने की व्यवस्था की गई है। खाटू श्याम मंदिर में पाँच दिनों के लिए पाँच लाख लीटर दूध एवं ग्यारह हजार किलो संतरों की व्यवस्था की गई है। जिन्हे भक्तों को प्रसाद के रुप में वितरित किया जाएगा।
निशानधारी श्रद्धालु पदयात्रा मार्ग में
एकादशी को निकलने वाली रथयात्रा के लिए रथ बनाने का कार्य 93 वर्षीय खुदाबख्श करते हैं। ये 63 वर्षों से बाबा का रथ सजा रहे हैं। हिन्दू भक्तों के साथ मुसलमान भक्त भी भजन गा कर बाबा की सेवा कर रहे हैं। प्रसिद्ध गीतकार लियाकत अली खान 1990 से बाबा के भजन गा रहे हैं। एकादशी पर बाबा के श्रृंगार के लिए 61 तरह के 167 किलो फ़ूलों का इंतजाम किया गया है। कलकता से आए हुए 50 कारीगर बाबा जो सजाने के लिए 24 घंटे मुस्तैद हैं। ये 24 घंटों में 17 घंटे सजावट के कार्य में संलग्न रहते हैं। फ़ूलों के साथ सजावट में ड्राय फ़्रुट के साथ अन्य फ़लों का भी प्रयोग होता है।
बाबा का दर्शन करने के लिए भक्तों को 33 किलोमीटर का सफ़र तय करना होता है, जिसमें रींगस से खाटू के 16 किलोमीटर एवं खाटू ग्राम में बनाए गए जिक जैक 17 किलोमीटर तय करके ही भक्तों को बाबा के दर्शन होते हैं । मंदिर कमेंटी द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है कि एक मिनट में 250 भक्त बाबा के दर्शन करते हैं। इस तरह दर्शन में 7-8 घंटे का समय लग जाता है। दर्शनार्थियों के लिए इन घटों में पेयजल एक बड़ी समस्या होती है। इसके लिए पानी के 20 लाख पाऊचों एवं 7 ट्रक पानी की बोतलों के साथ 8 स्थानों पर 3-3 हजार लीटर की टंकियों के साथ 20 पेयजल के टैंकरों की व्यवस्था की गई है। इन बीस लाख भक्तों को 4 हजार पुलिस कर्मी, 2 हजार स्काऊट एवं 5 हजार स्वयं सेवक संभालते हैं।
बुधवार को ग्यारस के दिन लगभग 10 लाख भक्तों द्वारा बाबा के दर्शन किए गए। छप्प्न भोग के साथ विशेष आरती का आयोजन किया गया। लाखों के भीड़ होने के बाद भी भक्तों के उत्साह में कोई भी कमी नहीं आती। पैरों में छाले पड़ने का दर्द बिसरा कर बाबा का जयकारा लगाते हुए भक्त दर्शनों के पश्चाता सारी पीड़ाएं भूल जाते हैं तथा दर्शनोपरांत खुशी-खुशी घर लौटते हैं। यह खाटू श्याम बाबा का चमत्कार ही है जो लाखों भक्तों को व्यवस्थित करते हैं और सभी की दुख पीड़ाएं हरते हैं। लाखों भक्तों की उमड़ती हुई भीड़ को देख कर लगता है कि इस दुनिया में ईश्वर का अस्तित्व भी है। विशाल जन समुद्र की आस्था आज भी ईश्वर के अस्तित्व पर टिकी हुई है। वरना लोग ईश्वर के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं। यह देखो और जानो वाली बात है…… सुनी सुनाई पर क्या विश्वास करना।

9 टिप्‍पणियां:

  1. नई जानकारियां मिलीं। ईश्वर को लोग माने या न माने बाबाओं की लोकप्रियता बरकरार रहेगी

    जवाब देंहटाएं
  2. अगर बर्बरीक श्रीकृष्ण की बात न मानता तो महाभारत युद्ध का उद्देश्य पूरा नहीं होता .उसे उन्होंने वर दिया था कि तुम कलयुग में मेरे ही समान पूजा के अधिकारी होगे -वही फलित हुआ है .

    जवाब देंहटाएं
  3. अद्भुत कहानियाँ, कृष्ण की कूटनीति का एक और अध्याय।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रभु कि लीला अपरम्पार बेहतरीन जानकारी संग आपके सही यायावरी का नायाब इनाम बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. भक्तों की श्रद्धा में हम भी शामिल हुए। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह... सुन्दर पोस्ट.....आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हास्यकविता/जोरू का गुलाम

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रभु की माया अपरंपार है बोलो खाटू श्याम जी की जय हो

    जवाब देंहटाएं
  8. भक्तों की श्रद्धा में हम भी शामिल हुए। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं