राजीवलोचन मंदिर परिसर |
तेरे जैसा यार कहाँ, कहाँ ऐसा याराना ......... चलभाष गाने लगा, कोई बात करना चाहता है, चलभाष पर नया नम्बर दिखाई दिया। चलो बात कर लेते हैं, नम्बर नया हो या पुराना और कौन से हम किसी के कर्जदार हैं जो फोन पर नया नम्बर देख कर न उठाएं, हेलू.........सर! मैं राजीव रंजन बोल रहा हूँ, 14 अक्टुबर को रायपुर पहुँच रहा हूँ, आपके साथ राजिम और सिरपुर चलना है, साथ चलेगें तो अच्छा लगेगा।...... क्यों नहीं, जरुर चलेगें। फिर घरेलू बातचीत होते रही, कुछ चर्चा "आमचो बस्तर" भी हुई। हमने १६ तारीख का सुबह जल्दी चलकर जाने का कार्यक्रम बना लिया। इधर 15 तारीख को पितृमोक्ष अमावस्या थी और भाई अशोक बजाज की माता जी का बारहवां और पगड़ी रस्म भी। 14 को राजीव रायपुर पहुँच गए और हमारा कार्यक्रम पहले ही बन गया। १५ तारीख को राजीव रंजन "आमचो बस्तर" के साथ दोपहर मे अभनपुर पहुँच गए। इनके पहुँचने से पहले विवेक विश्वकर्मा डीजीएम बीएसएनएल पहुँचे हुए थे। हम सभी चाय पीकर अशोक भाई के यहाँ कार्यक्रम में पंहुचे। वहाँ प्रसादी का कार्यक्रम चल रहा था। अशोक भाई से मिलकर हम राजिम चल पड़े।
राजेश्वर-दानेश्वर मंदिर |
राजिम नगर सोंढूर-पैरी-महानदी के त्रिवेणी संगम पर रायपुर से 45 कि मी एवं अभनपुर से 18 कि मी पर देवभोग जाने वाले मार्ग पर स्थित है। रास्ते में हसदा के मोड़ पर साहू चाट वाला अपनी दुकान लगाए तैयार था, मन तो ललचाया, पर समय की कमी होने से आगे बढ़ गए। नयापारा पहुँच कर पहला काम खाने का किया। महानदी पार करके राजीव लोचन मंदिर पहुँचे। पहले राजीव लोचन मंदिर के ईर्द गिर्द लोगों ने कब्जा कर रखा था। दुकानों के बीच से होकर मंदिर में प्रवेश करना पड़ता था। यह मंदिर केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है। एतिहासिक मंदिर परिसर से अवैध कब्जा हटाने का एतिहासिक कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल के तत्कालीन अधीक्षण डॉ प्रवीणकुमार मिश्रा ने किया। आज राजीव लोचन मंदिर अपने पुराने रूप के करीब पहुँच चुका है। राजीव लोचन मंदिर महानदी (चित्रोत्पला गंगा) के पूर्वी तट पर स्थित है। लोक मान्यता है कि महानदी के त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से मनुष्य के सारे कष्ट मिट जाते हैं और वह मृत्युपरांत विष्णु लोक को प्राप्त करता है। यहाँ का कुम्भ मेला जग प्रसिद्ध हो चुका है, यह मेला माघ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि तक चलता है। मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक राजिम की यात्रा न कर ली जाए।
महामंडप, मुख्य द्वार एवं मूर्ति शिल्प |
महाशिव तीवरदेव के ताम्रपत्र एवं राजीव लोचन मंदिर से प्राप्त शिलालेख से ज्ञात होता है कि राजिम के विष्णु मंदिर (राजीव लोचन) का निर्माण 8 वीं सदी में नलवंशी राजा विलासतुंग ने कराया था। शिलालेख में रतनपुर के कलचुरी नरेश जाजल्यदेव प्रथम और रत्नदेव द्वितीय की कुछ विजयों का उल्लेख है। उनके सामंत (सेनापति) जगतपालदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हम मंदिर के पश्चिमी द्वार पर पहुच गए। द्वार पर ही नारियल एवं पूजा सामग्री वालों ने अपनी दुकाने सजा रखी हैं। कार के रुकते ही पूजा सामग्री वाले झपट पड़े, मुझे देखते ही पहचान गए कि यह पण्डा कुछ नहीं देने-लेने वाला। मंदिर प्रांगण में निर्माण कार्य चल रहा है। आगामी नवम्बर की 19 तारीख से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल रायपुर, विश्व दाय सप्ताह का आयोजन कर रहा है। पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सबसे पहले राजेश्वर एवं दानेश्वर मंदिर दिखाई देते हैं। इन मंदिरों के सामने राजीवलोचन का भव्य प्रवेश द्वार महामंडप है। इसकी चौखट के शीर्ष भाग में शेषशैया पर विष्णु भगवान विराजमान हैं लतावल्लरियों के मध्य विहाररत यक्षों की विभिन्न भाव भंगिमाओं एवं मुद्राओं में प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गयी हैं। बायीं दीवाल के स्तम्भ पर एक पुरुष की खड़ी प्रतिमा है, जिसका एक हाथ ऊपर है तथा दूसरा हाथ ह्रदय को स्पर्श कर रहा है। कमर पर कटार एवं यज्ञोपवित धारण किए हुए है।
रतिसुखअभिलाषिणी अभिसारिका नायिका |
पुरुष मूर्ति के दोनों तरफ नारियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। एक मूर्ति स्त्री और पुरुष की युगल है। इसमें पुरुष स्त्री से छोटा दिखाया गया है, वह हाथ में सर्प धारण किये हुए है। लोग इसे सीता की प्रतिमा मानते हैं पर सर्प के साथ पुरुष काम का प्रतीक है, इसलिए इसे रतिसुखअभिलाषिणी अभिसारिका नायिका की प्रतिमा माना जा सकता है। इसके साथ ही यहाँ पर आकर्षक मिथुन मूर्तियाँ भी दिखाई देती है। इनके वस्त्र अलंकरण भी नयनाभिराम हैं। अंतराल में ललाट बिम्ब पर गरुडासीन विष्णु की प्रतिमा है। यहाँ पर राजीव अपनी नायिका की तलाश में आये हैं, उसका वस्त्र अलंकरण देख रहे हैं। हमने यहाँ के चित्र लिए और मुख्य मंदिर की तरफ चल पड़े। मंडप एवं मुख्य मंदिर के बीच अन्तराल है। पिछली बार गए थे तो यहाँ भागवत महापुराण का पाठ हो रहा था और भगवताचार्य अपने प्रवचन में से क्विज पूछ रहे थे श्रोताओं से, सही उत्तर देने वाले को इनाम भी दिया जा रहा था। यह तरीका मुझे पसंद आया, इनाम के लालच में श्रोता भागवत का श्रवण ध्यान लगा कर करते हैं और अंत में प्रश्नों का उत्तर देकर इनाम भी पाते है।
राजा जगतपालदेव के रूप में बुद्ध |
मुख्य मंदिर आयताकार प्रकोष्ट के बीच में निर्मित है। भू विन्यास योजना में राजिम का मंदिर महामंडप, अंतराल, गर्भगृह एवं प्रदक्षिणा मार्ग में बंटा हुआ है। गर्भ गृह में प्रवेश करने के लिए पैड़ियों पर चढ़ना पड़ता है। सामने ही एक स्तम्भ पर पूर्वाभिमुख गरुड़ विराजमान है। सामने काले पत्थर की बनी चतुर्भुजी विष्णु की मूर्ति है। जिसके हाथो में शंख, गदा, चक्र एवं पद्म दिखाई देते है। इसे ही भगवान राजीवलोचन के नाम से जाना जाता है और पूजा अर्चना की जाती है। बायीं भीत पर दो शिलालेख लगे है, इनसे ही इस मंदिर के निर्माताओं एवं जीर्णोद्धारकर्ताओं की जानकारी मिलती है। राजीव लोचन की नित्य पूजा क्षत्रिय करते है, विशेष अवसरों पर ब्राह्मणों को आमंत्रित किया जाता है। इस मंदिर के उत्तर में जगन्नाथ मंदिर है। इसके प्रवेश द्वार पर विष्णु के वामन अवतार की प्रतिमा लगी है। जिसमें तीसरा पग राजा बलि पर के शीश पर रखते हुए विष्णु को दिखाया है। मैंने पुजारी से पूछा कि लोगों से सुना है कि यहाँ पर राजा जगतपाल की प्रतिमा भी है। तो उसने महामंडप में बायीं तरफ लगी एक प्रतिमा की तरफ संकेत किया। यह प्रतिमा भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध की दिखाई पड़ी। राजीव ने कहा कि कोंडागांव में जिस तरह बुद्ध आदिवासी देवता भोंगापाल बन गए उसी तरह यहाँ भी बुद्ध जगतपाल हो गए। परन्तु राजीवलोचन मंदिर में अकेली बुद्ध की प्रतिमा का मिलना समझ से परे है।
राम मंदिर की मिथुन मूर्तियाँ |
पुजारी जी से प्रसाद ग्रहण कर हम राम मंदिर के दर्शनों को चल पड़े। यहाँ से बस्ती के बीच 50 कदम की दूरी पर राम मंदिर है। यह मंदिर भी ईंटों का बना है, इसके स्तम्भ पत्थरों के हैं।अधिलेखों से प्राप्त जानकारी के आधार पर इस पूर्वाभिमुख मंदिर का निर्माण भी कलचुरी नरेशों के सामंत जगतपालदेव ने कराया था। मंदिर के महामंडप में प्रस्तर स्तंभों पर प्राचीन मूर्तिकला के श्रेष्ठतम उदहारण है। इन स्तंभों पर आलिंगनबद्ध मिथुन मूर्तियों के साथ शालभंजिका, बन्दर परिवार, माँ और बच्चा तथा संगीत समाज का भावमय अंकन है। मकरवाहिनी गंगा, राजपुरुष, अष्टभुजी गणेश, अष्टभुजी नृवाराह की मूर्ति है। मिथुन मूर्तियाँ का शिल्प उत्तम नहीं है। जैसे नौसिखिये मूर्तिकार ने इसे बनाया हो। हमने चित्र लिए, दो सज्जन वहां पर थे, राममंदिर के केयर टेकर के विषय में पूछने पर पता चला की वह कहीं गया है। वे दोनों भी यहीं के केयर टेकर थे। एक ने बताया की वह मलार से स्थानांतरित होकर यहाँ आया है।
प्राचीन यंत्र |
राम मंदिर के प्रदक्षिणापथ से सम्बंधित प्रवेश द्वार शाखाओं से युक्त है, इनके अधिभाग पर गंगा-यमुना नदी देवियों की मूर्तियाँ हैं, राजिम के किसी भी मंदिर के प्रवेश द्वार में नदी देवियों की मूर्तियाँ नहीं है। राजीव ने टिप्पणी दी कि राजिम के मंदिरों का शिल्प सर्वोत्तम भव्य एवं बहुत ही सुन्दर है। मंदिर से बाहर निकलते हुए मुझे एक प्राचीन यंत्र दिखाई दिया। जिसका प्रयोग निर्माण के दौरान होता था, पता नहीं किसने उस भारी भरकम यंत्र को भी तोड़ कर रख दिया। दुनिया में उत्पाती लोगों की कमी नहीं है। बेमतलब ही नुकसान करने में इन्हें मजा आता है। सीमेंट आने के कारण अब यह काम में नहीं आता। वर्ना इसके बिना निर्माण कार्य संभव नहीं था। कभी इस यन्त्र के विषय में विस्तार से लिखूंगा।
कुलेश्वर महादेवमंदिर में संध्या जी |
राजिम दर्शन कर अब हमें सिरपुर की और चलना था, लेकिन कुलेश्वर महादेव की चर्चा न हो तो राजिम यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। पुराविद डॉ विष्णु सिंह ठाकुर के अनुसार कुलेश्वर महादेव का प्राचीन नाम उत्पलेश्वर महादेव था जो कि अपभ्रंश के रूप में कुलेश्वर महादेव कहलाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर नदियों के संगम पर स्थित है। यह अष्टभुजाकार जगती पर निर्मित है। नदी के प्रवाह को ध्यान में रखते हुए वास्तुविदों ने इसे अष्टभुजाकार बनाया। इसकी जगती नदी के तल से 17 फुट की ऊंचाई पर है। कुल 31 सीढियों से चढ़ कर मंदिर तक पंहुचा जाता है। कहते हैं कि मंदिर के शिवलिंग को माता सीता ने बनाया था। मंदिर में कार्तिकेय एवं अन्य देवताओं की मूर्तियाँ लगी हैं। किंवदंती है की नदी के किनारे पर स्थित संस्कृत पाठशाला ब्रह्मचर्य आश्रम से कुलेश्वर मंदिर तक सुरंग जाती है। सुरंग का प्रवेश द्वार संस्कृत पाठशाला ब्रह्मचर्य आश्रम में है, जिसमे प्रवेश करके मैंने स्वयं देखा है। प्रवेश द्वार छोटा है। सीढियों से नीचे उतरने पर दो कमरे हैं जिसमे काली माई की प्रतिमा रखी है एवं आगे का रास्ता बंद कर दिया गया है।
राजीव रंजन "आमचो बस्तर" |
राजिम दर्शन करने के बाद हम चम्पारण से आरंग होते हुए सिरपुर चल पड़े। राजिम से आरंग लगभग 28 किलोमीटर है। रास्ते में हमने प्रभात सिंह को फोन लगाया तो उनके फोन से कोई उत्तर नहीं आया। क्योंकि हम तय कार्यक्रम से एक दिन पहले चल रहे थे। फिर आदित्य सिंह को फोन लगाने पर पता चला की वे महासमुंद में हैं। इस दिन पितृमोक्ष अमावश्या भी थी, इसलिए आदित्य सिंह महासमुंद पहुँच गए थे। उन्होंने कहा कि आप सिरपुर पहुचे मै तत्काल निकल रहा हूँ। नदी मोड़, तुमगांव निकल चुका था। अब भूख लगने लगी तो रास्ते में कोई ढाबा भी दिखाई नही दे रहा था। हम सिरपुर के मोड़ से आगे निकल गए ढाबे की खोज में 5 किलोमीटर आगे जाने पर नवागांव में जंगल-मंगल ढाबा मिला। वहां तो सिर्फ जंगल मंगल ही था। चावल ख़त्म हो चुके थे, सब्जी नहीं थी, हमने रोटी बनवाई और काले उड़द चने की दाल ली। प्रभात सिंह का फोन भी आ गया, उन्होंने रेस्ट हाउस बुक कर दिया था। प्रभात सिंह रायपुर में थे, उन्हें सुबह आना था।
"आमचो भारत" वाले यायावर |
नवागांव से चलने पर मैंने राजीव से कहा कि सिरपुर का रेस्ट हाउस बहुत बढ़िया है और महानदी के किनारे पर स्थित है, सुबह उठने पर पुण्य सलिला महानदी के दर्शन होंगे, पर रेस्ट हाउस पहुचने पर चौकीदार ने पुराना रेस्ट हाउस खोला, जिसके कमरे को महानदी नाम दिया गया था। नए रेस्ट हाउस के बारे में कहने पर उसने बताया की वह मंत्री के लिए बुक है। बस यही खाली है, मरते क्या न करते, केयर टेकर को बुलाने कहा तो उसने आकर कहा कि उसकी तबियत ख़राब है वह नहीं आ रहा। आस-पास खेत होने के कारण कमरे में लाइट जलाते ही कीड़े भर गए। वैसे मैंने देखा है कि जितने भी रेस्ट हाउस है वे अघोषित रूप से मंत्रियों और अधिकारियों के लिए पूर्णकालिक बुक रहते हैं, रेस्ट हाउस के केयर टेकर नहीं चाहते कि कोई वहां आकर रुके। मुझे बताया गया कि रेस्ट हाउस कि बुकिंग महासमुंद के अधिकारी करते हैं, हमने अपने आप को धन्य समझा, कम से कम पुराना रेस्ट हाउस तो खुल गया, रात गुजारने के लिए। अब मंत्री जी ही जाने इन हालातों में सिरपुर को किस तरह विश्व धरोहर का दर्जा दिलाएंगे, जबकि रेस्ट हाउस के ये हाल हैं। रात्रि कालीन भोजन में आदित्य सिंह ने कम्पनी दी, हमने सुबह के कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार की और सुबह के इंतजार में लोट-पोट हो गए। .......जारी है, आगे पढ़ें .........
बहुत बढ़िया, आगे भी ऐसे ही यात्रा वृत्तान्त मिलते रहेंगे पढ़ने के लिए.
जवाब देंहटाएंहमारी भी यात्रा हो गई.
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाई साहब एक साथ अनेक यात्रा उस पर देवताओं के दर्शन तब ही आप यायावर हैं सुन्दर अति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंमूर्तियों के बारे में आपकी वर्णन शैली अत्यधिक परिष्कृत है. सुन्दर. अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआनन्दमयी यात्रा के आनन्दमयी क्षण..
जवाब देंहटाएंआभार बढ़िया यात्रा कराने के लिए ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
नैरो गेज अभी भी चल रही है क्या????
जवाब देंहटाएं@नीरज कुमार ‘जाट
जवाब देंहटाएंबिलकुल चल रही है.
नदियों के संगम पर स्थित सुन्दर पौराणिक मंदिर की सुन्दरता देखते ही बनती है, उसपर आपसे मिलने वाली जानकारियां हो तो यात्रा और भी रोचक और मंगलमय हो जाती है... सचमुच प्राकृतिक सौंदर्य का खज़ाना है छत्तीसगढ़... बहुत-बहुत आभार आपका इन बहुमूल्य जानकारियों को हम सब तक पहुँचाने के लिए...
जवाब देंहटाएंरेस्ट हॉउस जहाँ रुकते हैं ये लोग , वहां के हाल ये हैं तो राज्य के पर्यटन विस्तार में इनका क्या योगदान हो सकता है ,सोचा जा सकता है !
जवाब देंहटाएंराजपूतों द्वारा मंदिरों में विग्रह की पूजा नई जानकारी है !
रोचक !
बहुत उम्दा यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंआपकी इस यात्रा से हमने भी एक नई जगह की सैर कर ली है ....आभार आपका
जवाब देंहटाएंहमारा पुश्तैनी घर नाँगझर (बारुका) गाँव राजिम के पास ही है किन्तु मेरा दुर्भाग्य देखिये कि मैं आज तक राजिम के मन्दिरों तक नहीं पहुँच सका हूँ। कोई बात नहीं। आपके इस पोस्ट के जरिये तो पहुँच ही गया। इसके लिये आपका आभार।
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