जैसा नाम था वो वैसा ही अलबेला था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि वो अलबेला कवि हमारे बीच नहीं रहा। दो तीन पहले ही उसके अस्वस्थ होने की सूचना मिली थी और मैने ईश्वर से प्रार्थना की थी। मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं हुई और अलबेला कवि हमें छोड़ कर अनंत यात्रा पर चल पड़ा। सृष्टि का नियम है जिसे आना है उसे जाना ही पड़ेगा। परन्तु इतनी कम उम्र में जाना होगा ये सोचा भी नहीं था। मेरा और अलबेला कवि का परिचय अधिक दिनों का नहीं, बस कुछ वर्षों का ही था। परन्तु जब भी हम मिले तो ये नहीं लगा कि किसी औपरे आदमी से मिल रहा हूँ। वही आत्मीयता और वही अपनापन।
रायपुर प्रेस क्लब में - गिरीश पंकज, अनिल पुसदकर, बी एस पाबला, अलबेला खत्री, ललित शर्मा, राजकुमार ग्वालानी, शरद कोकास |
राज भाटिया जी ने जब तिलियार (रोहतक हरियाणा) में ब्लॉगर मीट का आयोजन किया तो मैं पानीपत से भाई यौगेन्द्र मौद्गिल के साथ रोहतक पहुंचा। अगले दिन ब्लॉगर मीट में सम्मिलित होने अलबेला खत्री विशेष रुप से रोहतक पहुंचे। ब्लॉगर मीट के पश्चात राज भाटिया जी के घर में हमारी महफ़िल जमी। जिसमें नीरज जाट, केवल राम, अंतर सोहिल थे। यौगेन्द्र मौदगिल जी तो रात को पानीपत लौट गए थे। मुझे सर्द गर्म हो गई थी तो इन्होने मुझे अपने बैग से अजवाईन निकाल कर दी और गर्म पानी के साथ लेने कहा। सुबह उठने पर सर्दी गायब हो गई थी। रात भर कविताओं का दौर चलता रहा और मैने अपने ब्लॉग से छांट-छांट कर कविताएँ पढी। 4 बजे तक कवि गोष्ठी चलती रही। इधर नीरज जाट और केवल राम खर्राटे भरते रहे।
रोहतक में - अलबेला खत्री, संगीता पुरी, ललित शर्मा, राजीव तनेजा योगेन्द्र मौद्गिल |
एक ब्लॉग़र के रुप में अलबेला खत्री की अलग ही पहचान थी। शब्दों के खिलाड़ी थे वह। जब भी मंच पर पहुंचते रौनक जमा देते। मेरा जब भी मौज लेने का मन होता तो रात 12 बजे भी फ़ोन लगा लेता था और फ़िर ठहाके गुंजते थे बियाबान में भी। एक दिन मुझे फ़ोन लगा कर कहा कि पिथौरा के कवि सम्मेलन में आ रहा हूँ और वापसी में मुलाकात होगी। उस दिन मैं विशेष तौर पर सिर्फ़ उनसे मिलने के लिए रायपुर पहुंचा। पिथौरा से बस आयी और अम्बेडकर चौक से मैने अलबेला को अपने साथ लिया। एक सूटकेस था उसके हाथों में और सांस फ़ूली हुई थी। मतलब दो कदम भी चलना मुस्किल था। सूटकेस मैने उठा लिया और हम पैदल-पैदल चल कर संस्कृति विभाग में राहुल भैया के दफ़्तर में पहुंचे। उस दिन मुझे लगा कि इन्हें अस्थमा है। वहाँ से हम अनिल पुसदकर जी के आफ़िस पहुंचे और कुछ देर रुक कर अनिल भाई के साथ हम उन्हे स्टेशन छोड़ने गए। उन्हें हावड़ा अहमदाबाद की ट्रेन से सूरत जाना था।
रायगढ़ मे- अलबेला खत्री, ललित शर्मा, प्रताप फ़ौजदार, वी पी सिंह, यौगेन्द्र मौद्गिल |
अक्टुबर माह में रायगढ़ स्थित नलवा प्लांट में आफ़िसर्स क्लब द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। अलबेला भाई एवं प्रकाश यादव जी के विशेष आग्रह पर मुझे भी 19 अक्टुबर के इस कार्यक्रम में सम्मिलित होना था। सुबह एयरपोर्ट से प्रताप फ़ौजदार एवं यौगेन्द्र मौद्गिल जी को साथ लेकर बिलासपुर पहुंचे और वहाँ से प्रदीप चौबे जी को लेकर शाम होते तक रायगढ़ पहुंचे। इसी में सारा दिन चला गया। रायगढ़ पहुंचने पर कर्नल वीपी सिंग और अलबेला खत्री जी से भेंट हुई। मंच पर पहुंचने की तैयारी करते हुए अलबेला भाई ने हुक्का जैसा इन्हेलर निकाला और दवाई डाल कर दो-तीन सुट्टे मारे। अस्थमा का जोर दिखाई दे रहा था और उनकी सांस फ़ूल रही थी। थोड़ी देर में सांस स्थिर हुई तो हम मंच पर पहुचे। एतिहासिक कवि सम्मेलन था। उसके बाद हम साथ ही रायपुर लौटे।
रोहतक में सुबह की चाय - अलबेला खत्री और राजभाटिया जी |
अलबेला खत्री का पूरा नाम टिकमचंद खत्री था। पर काव्य मंचों पर अलबेला खत्री के नाम से ही प्रसिद्धि मिली। रायगढ़ कवि सम्मेलन के बाद हमारी मुलाकात नहीं हुई। परन्तु फ़ोन पर चर्चा होते रहती थी। विगत एक माह से कोई फ़ोन पर कोई चर्चा नहीं हुई थी सिर्फ़ फ़ेसबुक की राम राम चल रही थी। अपडेट से पता चला था कि 8 अप्रेल को सोनीपत में कवि सम्मेलन है जिसमें सुनीता शानु भी उपस्थित रहेगी। इससे पहले ही उनकी अस्वस्थता का समाचार आ गया और 8 अप्रेल को कवि सम्मेलन में उपस्थित होने से पूर्व ही अलबेला भाई हमें छोड़ कर चले गए। कहा जाए तो उनके जाने से साहित्य जगत, ब्लॉग मंच एवं कवि सम्मेलन के मंच के साथ मेरी भी व्यक्तिगत क्षति हुई है। अब वो ठहाके सिर्फ़ यादों में ही रह गए। रह रह कर अभी गूंजते हैं मन की गहराईयों में। चलो संयोग हुआ तो फ़िर कभी मुलाकात होगी………
दुखद ....विनम्र नमन
जवाब देंहटाएं25 मई को धनबाद के एक कवि सम्मेलन में भी आने का उन्होने वादा किया था ...
जवाब देंहटाएंविश्वास नहीं हो रहा कि अब वे कभी कहीं नहीं दिखेंगे ..
हार्दिक श्रद्धांजलि !!
ललित भाई...
जवाब देंहटाएंअलबेला जी बहुत याद आयेंगें..
हमारा कवि सम्मलेन एतिहासिक था तो सिर्फ अलबेला भाई की संयोजन और उनके द्वारा नामित कवियों की वजह से.
मैंने सोचा भी ना था की यह पहली मुलाकात ही आखिरी होगी....
श्रधांजलि...
आपकी स्मृतियों से ज्ञात होता है कि अलबेला जी बहुत हसमुख और जिंदादिल इंसान थे।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।।
नियति के आगे किसी की नहीं चलती। एक कलाकार और ज़िंदा दिल इंसान का असमय चले जाना साहित्य और ब्लॉग जगत के साथ-साथ उनके परिचितों के लिए अपूरणीय क्षति है... विनम्र श्रद्धांजलि …
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंअलविदा अलबेला भाईजी !
काश आप ऐसे नहीं जाते...
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !
हार्दिक श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंईश्वर अलबेला जी के परिवार को संकट की घड़ी में शक्ति दे।
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद समाचार ! नमन !
जवाब देंहटाएंबेहद दुखद समाचार..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को ब्लॉग बुलेटिन की कल कि बुलेटिन राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंदुखद...विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंदुखद समाचार ---- क्या अस्थमा जान लेवा होता है ------
जवाब देंहटाएंअलबेलाजी को श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुद ही दुखद घटना
जवाब देंहटाएंअलबेला जी को विनम्र श्रद्धांजली