यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें
बिस्तर पर लेटते ही निद्रादेवी ने कब आगोश में लिया पता ही नहीं चला, कब बिजली आई और गई इसका भी भान नहीं था, बकौल राजीव खर्राटे सुनाई देने लगे।
सुबह लगभग 7 बजे नींद खुलने के साथ चाय आ गयी, दैनिक कार्यों से निवृत होते ही भाभी जी ने फ़टाफ़ट नाश्ता तैयार कर दि्या। मनचाहा नाश्ता, पूरी सब्जी दही के साथ मैने और राजीव जी ने नाश्ता किया, जी भर के दही खाया क्योंकि "विशाल देश हरियाणा, जड़े दूध दही का खाणा" बरसों पहले सुना था ये गाना।
वैसे बिना दही और छाछ के मेरा नाश्ता नहीं होता। स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। फ़िर कुछ चित्र और लिए माणिक ने।
बिस्तर पर लेटते ही निद्रादेवी ने कब आगोश में लिया पता ही नहीं चला, कब बिजली आई और गई इसका भी भान नहीं था, बकौल राजीव खर्राटे सुनाई देने लगे।
सुबह लगभग 7 बजे नींद खुलने के साथ चाय आ गयी, दैनिक कार्यों से निवृत होते ही भाभी जी ने फ़टाफ़ट नाश्ता तैयार कर दि्या। मनचाहा नाश्ता, पूरी सब्जी दही के साथ मैने और राजीव जी ने नाश्ता किया, जी भर के दही खाया क्योंकि "विशाल देश हरियाणा, जड़े दूध दही का खाणा" बरसों पहले सुना था ये गाना।
माणिक एवं ललित शर्मा दिल्ली |
हमने भी अब चलने की तैयारी की, अविनाश जी ने फ़ोन करके सेंट्रल सेक्रेटिएट के मैट्रो स्टेशन के गेट नम्बर 4 पर मिलने की बात कही। सबसे भाव पूर्ण विदाई ली। भाभी जी ने अबकी बार पूरे परिवार के साथ आने का निमंत्रण दिया। राजीव जी के मम्मी पापा के भी दर्शन किए और सभी अभिवान कर स्नेह झोली भरते हुए हम चल पड़े ।
मुझे जल्दबाजी में ख्याल नहीं आया कि मैने कंघी नहीं की है, भाभी जी ने इस पर मेरा ध्यान आकृष्ट कराते हे कहा कि कंघी कर लीजिए, लेकिन दिल्ली आने पर पता चला कि बालों में कंघी ना करना भी एक फ़ैशन है। जेल लगा कर सर के बाल खड़े किए जाते हैं। हमारे बाल तो बिना जेल के ही खड़े थे। लेकिन इतने खड़े थे इसका पता राजीव जी की भेजी फ़ोटुओं से पता चला। हम बिना ही बालों में कंघी फ़ेरे निकल पड़े आजादपुर स्टेशन की ओर जहां से सेंट्रल सेक्रेटिएट के लिए मैट्रो पकड़नी थी।
संजू तनेजा, राजीव तनेजा, ललित शर्मा |
ट्रेन की टिकिट लेकर जैसे ही स्टेशन के अंदर प्रवेश करने के लिए इलेक्ट्रानिक बैरियर पार करने लगे उसने हमें रोक लिया। टोकन चिपकाने से खुल गया और फ़िर जैसे ही अंदर जाने लगे बंद हो गया। तभी वहां खड़ी एक अटेंडेंट बहन जी ने बताया कि यह टोकन आपके अंदर जाने के लिए है, आपके बैग के लिए नहीं। हमने बैग पहले अंदर किया था इसलिए सिस्टम ने रोक लिया। अब हमने बैग उपर उठाया और खुद पार हो गये। बढिया सिस्टम लगा। हमारी तो टिकिट लगी और बैग़ मुफ़्त में पार हो गया।
अब सेंट्रल सेक्रेटिएट के लिए ट्रेन में चढे। यह स्टेशन राजीव चौक के दो स्टेशन आगे पड़ता है तथा इस मार्ग का अंतिम स्टेशन है। रेल भवन के नीचे से चारों तरफ़ निकलने के दरवाजे हैं। हम गेट नम्बर 5 पर निकल आए। पैदल चलते हुए गेट नम्बर 4 पर पहुंचे। वहां अविनाश जी कार से तैयार मिले।
राजीव तनेजा एवं ललित शर्मा |
उन्होने ने पूछा की कहां चलना है? हमने कहा कि आप जहां चलें। तो तय हुआ कि हम उपदेश सक्सेना जी के यहां चलते हैं। बैठकी वाले दिन मैट्रो से उतरते हुए उनके पैर में गंभीर मोच आ गयी थी। उनसे मिल लेते हैं। हम चल पड़े जमना पार की ओर।
अविनाश जी ने उपदेश जी को फ़ोन कर दिया था कि हम आ रहे हैं। वे घर पर ही मिले। दिल्ली एक बहुत बड़ी समस्या से जुझ रही है वह है कार पार्किंग। कारें मिल जाएंगी लेकिन पार्किंग की जगह नहीं मिलने वाली। जैसे-तैसे एक गली में कार पार्क करके हम उपदेश जी के घर पहुंचे।
जब हम पहुंचे, तब वे समाचार बना रहे थे। तभी अविनाश जी ने कनिष्क जी को फ़ोन लगाया। सुबह हमने भी लगाया था। लेकिन उस वक्त वे सोये हुए थे। इस समय जाग गए थे। वे भी पहुंच गए। उपदेश जी के रुप में एक जिंदादिल मित्र मुझे और मिला। अगर उनसे मुलाकात ना होती तो हमारी यात्रा अधूरी रह जाती्। ऐसा उनसे मिलने के बाद प्रतीत हुआ।
अविनाश जी ने उपदेश जी को फ़ोन कर दिया था कि हम आ रहे हैं। वे घर पर ही मिले। दिल्ली एक बहुत बड़ी समस्या से जुझ रही है वह है कार पार्किंग। कारें मिल जाएंगी लेकिन पार्किंग की जगह नहीं मिलने वाली। जैसे-तैसे एक गली में कार पार्क करके हम उपदेश जी के घर पहुंचे।
ललित शर्मा, अविनाश वाचस्पति एवं कनिष्क कश्यप |
कनिष्क जी भी पहुंच चुके थे। उनके हाव भाव से लगा कि सीधा बिस्तर ही छोड़ कर आ रहें हैं। उन्होने बताया कि कल ही उनके एक्जाम खत्म हुए हैं इसलिए आज वे जी भर सो रहे थे। वेबसाईट के तकनीकि क्षेत्र में उन्हे महारत हासिल है। हम भी कुछ ज्ञान कम समय में उनसे लेना चाहते थे। तो समय का सदूपयोग किया गया।
हमारी वापसी की ट्रेन निजामुद्दीन से 3/25 पर थी। इसलिए समय का ध्यान भी रखा गया। उपदेश जी ने खाने के विषय में पूछा। हम तो जी भर के राजीव जी के यहां से खाने के जैसा नाश्ता करके आए थे। लेकिन फ़िर भी आग्रह पर साऊथ इंडियन इटली दोसा पर बात जम गई। कुछ ही देर में खाने का सामान आ चु्का था। उपर घर में हम सबने खाना खाया और उपदेश जी बातें होते रही। फ़िर कुछ चित्र लिए गए जब हम प्लेटें चट कर चुके थे। यह मुलाकात भी अविस्मरणीय रही।
हमारी वापसी की ट्रेन निजामुद्दीन से 3/25 पर थी। इसलिए समय का ध्यान भी रखा गया। उपदेश जी ने खाने के विषय में पूछा। हम तो जी भर के राजीव जी के यहां से खाने के जैसा नाश्ता करके आए थे। लेकिन फ़िर भी आग्रह पर साऊथ इंडियन इटली दोसा पर बात जम गई। कुछ ही देर में खाने का सामान आ चु्का था। उपर घर में हम सबने खाना खाया और उपदेश जी बातें होते रही। फ़िर कुछ चित्र लिए गए जब हम प्लेटें चट कर चुके थे। यह मुलाकात भी अविस्मरणीय रही।
उपदेश जी फ़िर मिलने का वादा करके हमने विदा ली, अविनाश जी और कनिष्क कश्यप जी के साथ चल पड़े निजामुद्दीन स्टेशन की ओर। निजामुद्दीन पहुंचने पर पता चला कि हमारी ट्रेन दो घंटे दस मिनट विलंब से जाएगी। अब ये तीन घंटे कैसे गु्जारे जाएं?
अविनाश जी ने सुझाया कि चौखट वाले पवन चंदन जी की ड्यूटी यहीं पर है, उनके केबिन में चल कर विश्राम करते हैं, ट्रेन आने पर वापस आ जाएंगे। फ़िर पता चला कि उनकी तो नाईट ड्यूटी थी। अविनाश जी ने लिम्टी खरे जी के यहां चलने के लिए उन्हे फ़ोन लगाया तो उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया। फ़िर पवन चंदन जी फ़ोन लगाया गया। उस वक्त वे सो रहे थे।
उन्हे बताया गया कि हम निजामुद्दीन में आपका इंतजार कर रहे हैं तो उन्होने अपने आफ़िस में बैठने को कहा। हम उनके आफ़िस में चल कर बै्ठे ही थे इतनी देर में कोल्ड ड्रिंक आ गया फ़िर थोड़ी देर बाद पवन चंदन जी पहुंच गए। अब हम उनके कविता के खजाने में से कुछ मोती नि्कालना चाहते थे काव्य के सागर में डुबकी लगा कर। जारी है .... आगे पढ़ें
पवन चंदन जी को ब्लॉगर मीट का खर्च गिनाते हुए अविनाश वाचस्पति |
अविनाश जी ने सुझाया कि चौखट वाले पवन चंदन जी की ड्यूटी यहीं पर है, उनके केबिन में चल कर विश्राम करते हैं, ट्रेन आने पर वापस आ जाएंगे। फ़िर पता चला कि उनकी तो नाईट ड्यूटी थी। अविनाश जी ने लिम्टी खरे जी के यहां चलने के लिए उन्हे फ़ोन लगाया तो उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया। फ़िर पवन चंदन जी फ़ोन लगाया गया। उस वक्त वे सो रहे थे।
उन्हे बताया गया कि हम निजामुद्दीन में आपका इंतजार कर रहे हैं तो उन्होने अपने आफ़िस में बैठने को कहा। हम उनके आफ़िस में चल कर बै्ठे ही थे इतनी देर में कोल्ड ड्रिंक आ गया फ़िर थोड़ी देर बाद पवन चंदन जी पहुंच गए। अब हम उनके कविता के खजाने में से कुछ मोती नि्कालना चाहते थे काव्य के सागर में डुबकी लगा कर। जारी है .... आगे पढ़ें
बहुत आनन्द आया वृतांत पढ़कर. बढ़िया रहा सबसे आपके माध्यम से मिलना.
जवाब देंहटाएंकुडि़यों से चिकने आपके गाल लाल हैं सर और भोली आपकी मूरत है http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html जूनियर ब्लोगर ऐसोसिएशन को बनने से पहले ही सेलीब्रेट करने की खुशी में नीशू तिवारी सर के दाहिने हाथ मिथिलेश दुबे सर को समर्पित कविता का आनंद लीजिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार...
क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
जवाब देंहटाएंआइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
बढ़िया वर्णन...दिल्ली यात्रा और हम सब का आपसी मेल मिलाप सब बहुत बढ़िया रहा.. बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलगा रहे
जवाब देंहटाएंजाना आना
मिलना मिलाना
यही जिन्दगी है।
सुन्दर यात्रा वृत्तांत
जवाब देंहटाएंअच्छा चल रहा भाई। आभार।
जवाब देंहटाएं...डम डम ...बम बम ...!!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया वर्णन...दिल्ली यात्रा और हम सब का आपसी मेल मिलाप सब बहुत बढ़िया रहा.. बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे ढ़ंग से लिखा यात्रा व्रित्तान्त्। प्रभू यदि तस्वीरों के नीचे थोड़ा (बाये से दाये या दाएँ से बाँए दर्शाते हुए)नाम लिखा जाता तो हम जैसे भुलक्कड के लिये ठीक रह्ता।
जवाब देंहटाएं...दिल्ली दर्शन साक्षात हो रहे हैं!!!!
जवाब देंहटाएं@सूर्यकान्त गुप्ता जी
जवाब देंहटाएंकैप्शन की सुविधा ड्राफ़्ट ब्लागर में है परन्तु यह फ़ोटो अपलोड करने बहुत समय लेता है,इसलिए मैं कैप्शन नहीं डाल पाया।
खेद है
उदय जी भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त हैं, उनकी हर टिप्पणी में बम-बम, .डम-डम ज़रूर होता है. धन्यवाद ललित जी, छतीसगढ़ पहुँच कर भी याद रखने के लिए. एक बात और ललित जी, ललित डॉट कॉम खुलने में परेशान कर रहा है, इसे आसान बना दें.
जवाब देंहटाएंअरे, आप गये नहीं क्या अभी तक? मैने तो सोचा था कि आप मीट से अगले दिन ही चले गये थे।
जवाब देंहटाएंखूब आनन्द आया आपके दिल्ली प्रवास का वृत्तान्त पढ़कर!
जवाब देंहटाएंबढ़िया...रोचक वृत्तांत
जवाब देंहटाएंआपकी दिल्ली यात्रा का पूरा वृतांत बहुत बढ़िया रहा...
जवाब देंहटाएंवाह,वाह ललित भाई ,क्या कहने आपके इस प्रस्तुती के .....
जवाब देंहटाएंआपकी ही बात दोहरा देता हूं जी
जवाब देंहटाएं"शिकवा रहे गिला रहे हमसे,
आरजु यही है एक सिलसिला रहे हमसे।
फ़ासलें हों,दुरियां हो,खता हो कोई,
दुआ है बस यही नजदीकियां रहें हमसे॥"
मैनें मिलने का वादा किया था मगर….……………
तीन दिन की छुट्टियां लेने के कारण 24-25 को आफिस जाना मजबूरी हो गई थी।
खैर फिर कभी सही
प्रणाम स्वीकार करें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिल्ली यात्रा का वृतांत बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंमजे दार ललित जी आप की यात्रा ओर सब से मिलना, चलिये दिसम्बर मै फ़िर से आप अपनी सीट बुक करवा ले.... फ़िर मिलेगे.
जवाब देंहटाएंvaah, sudar rapat..aisaa lagaa, ki mai poore ghatanakram ko apni aankhon se dekh rahaa hoo.
जवाब देंहटाएं@ राज भाटिय़ा जी
जवाब देंहटाएंपिछली बार तो चूक गए थे इस बार जरूर मुलाकात होगी
लेकिन तारीख नवम्बर में 22 से 25 तक रखिए। इस समय मैं आपको दिल्ली में जरुर मिलुंगा्।
पढ़कर लगा कि साथ साथ घूम रहा हूं
जवाब देंहटाएं