लगभग एक बज गया था और भूख जोरों की लगी थी, ऑटो वाले को उसकी दक्षिणा देकर विदा किया, भला आदमी था, उसका व्यवहार अच्छा लगा वरना कल सुबह वाले ने लूटने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी थी। होटल पहुंच कर सात्विक भोजन दालमा भात खाया और रुम पर आराम करने पहुंच गए। संझा का कार्यक्रम भुवनेश्वर का बाजार देखने और शहर घूमने का था। हर शहर की अपनी अलहदा तासीर होती है, उससे भी रुबरु होना जरुरी रहता है।
शाम ऑटो पकड़ कर बाजार की तरफ़ निकले। आज रामनवमी थी, रास्ते में राममंदिर के समीप उतर गए। मंदिर के समक्ष बहुत भीड़ थी। अगर भीतर जाते तो फ़िर वही, जूते चप्पल की रखवाली, मोबाईल जमा करना इत्यादि प्रक्रिया से गुजरना पड़ता। हमने सड़क पर खड़े खड़े ही मर्यादा पुरुषोत्तम को जन्मदिन की शुभकामनाएं दे दी और उन्होने स्वीकार भी कर ली। सोचा होगा कि घुमक्कड़ हैं ये लोग, क्या भरोसा दूबारा आएगे कि नहीं। इसलिए स्वीकार कर लेने में ही भलाई है, इस घटना के साक्ष्य के रुप में हमने एक सेल्फ़ी भी खींच ली।
बिकाश ने कहा कि यहाँ के मॉल देखे जाएं, मैं भी तैयार हो गया। सड़क पार करके ग्यारह नम्बर की गाड़ी पर सवार होकर मॉल पहुंच गए। घूम फ़िर कर एक कपड़े की दुकान में घुस गए। ऑफ़र चल रहा था, एक के साथ एक फ़्री का। बिकाश कहने लगा कि पतलून ले लो। अब हम पतलून पसंद करने लगे। खूब मगज मारी करने के बाद एक नाप की दो पतलून नहीं मिली। जो पसंद आती थी उसकी जोड़ी नहीं मिलती थी। थक हार कर बाहर आ गए, अब फ़्री के ऑफ़र में तो यही होना है।
एक जगह निकोन कम्पनी का काऊंटर लगा था। कई दिनों से सोच रहा था कि एक एस एल आर कैमरा लेना है। परन्तु लेंस आदि के भाव देख कर हिम्मत ही नहीं होती थी। सोचा कि आज मोल भाव जम जाए तो ले लिया जाए। उसकी दुकान में पहुंच कर कई कैमरे देखे, पर जमे नहीं। क्योंकि वहाँ डिजिटल कैमरों की रेंज अधिक थी और वह मैं 30X जूम का वह कैमरा तो हाथ में लेकर घूम रहा था। खैर यहाँ से भी बैरंग लौट आए।
अब मार्केट में घूमते फ़िरते उड़ीसा हैंडलूम की कई दुकाने दिखाई दी। मन आया कि कोई साड़ी खरीद ली जाए उड़िया पैटर्न की मालकिन के लिए। वैसे हमने जीवन में कभी कोई साड़ी नहीं खरीदी थी। यह सब खरीदने का काम मालकिन का ही है, हमारे बस का नही। दुकान वाले ने सूती की बहुत सारी साड़ियां दिखाई, पर समझ नहीं आया क्या लें और क्या न लें। बिकाश बाबू कुछ कुछ मामलों में हमारे जैसे ही हैं। आखिर वाट्सअप काम आया। हमने साड़ियों की फ़ोटो खींच कर वाट्सअप पर भेज दी, उसकी दुकान में नेट कुछ धीमा चल रहा था। फ़ोटो आदान प्रदान एवं स्वीकृति में ही आधा घंटा लग गया। आखिर एक साड़ी पैक करवा कर नोट दिए और बाहर आ गए। चलो कुछ तो खरीदा, वरना यहां से भी हाथ हिलाते निकलते।
इस इलाके के आस-पास स्ट्रीट फ़ूड की बहुत सारे ठेले हैं, सब जगहों के स्ट्रीट फ़ुड की अपनी विशेषता होती है। हमने गोलगप्पे का आनंद लिया, बाकी पकोड़े वकोड़े मकोड़े तो हमको जमते नहीं है। वैसे भी सफ़र में सबसे अच्छा और बिना मिलावट का खाना दो ही मानता हूँ, पहला केला, दूसरा अंडा और तीसरा नारियल पानी। तीनों ही हाईजेनिक हैं, कोई मिलावट नहीं और दुनिया में सब जगह मिलते हैं अगर वहाँ भाषा भी नहीं आती तो लोग इशारे से समझ जाते हैं और काम बन जाता है। अब यहाँ से ऑटो पकड़ कर फ़िर अपने मोहल्ले सांतरापुर पहुंच गए।
हम जिस होटल में भोजन करते थे वह पहले तल्ले पर था और नीचे मिठाईयों की दुकान। जिसमें तरह-तरह की मिठाईयाँ सजी हुई थी। बिकाश बाबू मिठाईयों के दास है और हम उदास। मिठाईयाँ देख कर इनके गाल फ़ड़कने लगते हैं। भोजन करके मिठाईयों की दुकान में घुस गए और लगे छेने की मिठाईयां झाड़ने। आखिर जोर कर हमको छेने की बिना शक्कर की मिठाई खिला ही दी। वैसे भी उड़ीसा की छेने की मिठाईयों का कोई जवाब नहीं, छेना गाजा, छेना पोड़ा और भी न जाने क्या क्या। बिकाश बाबू ने बहुत सारी मिठाईयों का स्वाद चखा, हम देखते रहे। मिठाईयाँ खाकर रुम में पहुंच गए क्यों कि कल सुबह जगन्नाथ पुरी जाने की तैयारी करनी थी। दो दिन पुरी के नाम हैं…… जारी है, आगे पढें…।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कहीं ई-बुक आपकी नींद तो नहीं चुरा रहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं