पक्षियों से मनुष्य का जन्म जन्मानंतर का लगाव रहा है। पक्षियों का सानिध्य मनुष्य को मन की शांति प्रदान करता है तो बहुत कुछ सीखने को उद्यत करता है। कुछ पक्षी तो ऐसे हैं जो मनुष्य से उसकी बोली में बात करते हैं और इन्होंने सामान्य नागरिक के गृह से लेकर राजा महाराजाओं के महलों के अंत:पुर एवं ॠषियों की कुटियों में भी स्थान पाया है। शुक एवं काग ऐसे पक्षी हैं, जो ॠषियों के सानिध्य में ज्ञानार्जन कर शुकदेव एवं कागभुसुण्डि के नाम से लोक में प्रतिष्ठित हुए। शुक के सम्बंध में एक धारणा यह भी है कि वह बहुत बुद्धिमान होता है। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार शुक ने शिवजी का समस्त ज्ञान श्रवण द्वारा आत्मसात कर लिया था। वही अध्यात्म-पारंगत शुकदेव रूप में अवतरित हुआ। इतिहास आलेख शुक सारिका
शुक सारिका खजुराहो |
विरहणी के एकांत के संगी के रुप में तोता-मैना लोक प्रसिद्ध हैं। अंत:पुर की विरह व्याकुल रमणी के द्वारा इन पक्षियों के संवाद से संस्कृत साहित्य भरा पड़ा है। तोता-मैना का लोक प्रसिद्ध कहानी एवं संवाद एक समय में यह युवा एवं युवती के मुंह से सुना जा सकता था। शुक-सारिका को लेकर बहुत ही कथाएं प्रचलित हैं, इन्हीं का लोक कथाओं में रूपान्तर ‘किस्सा तोता-मैना’ के नाम से हुआ जिसके विविध संस्करण बाजार में उपलब्ध हैं। ये दोनो पक्षी मनुष्य की बोली में बोलने की क्षमता के कारण प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान तक मनुष्य के साथी बने हुए हैं।
ऐसे में ये पक्षी शिल्पकार की दृष्टि से कैसे ओझल हो सकते थे। तोता-मैना को शिल्पकारों में अपने शिल्प में शुकसारिका के रुप में स्थान दिया। प्राचीन मंदिर स्थापत्य में शुकसारिका का शिल्पांकन प्रमुखता से दिखाई देता है। शिल्पकारों ने शुकसारिका को अपने शिल्प का विषय बनाया, जिससे युगों युगों तक पक्षी एवं मनुष्य के सानिध्य, प्रेम एवं सहवास को आने वाली पीढियाँ जान सकें। मुझे भारत में आठवीं नवमी शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक के स्थापत्य में शुक सारिका का शिल्पांकन दिखाई देता है। ऐसे में शुक सारिका के शिल्पांकन से खजुराहो के मंदिर कैसे अछूते रह सकते हैं। जहाँ कामसूत्र का शिल्पांकन हो वहाँ शुक सारिका का शिल्पांकन अवश्य मिलता है क्योंकि कामसूत्र में शुक सारिकाओं के साथ आलाप करने कराना की क्रिया को चौसठ कलाओं में गिना गया है।
लोक में तोता ही एक ऐसा पक्षी एवं जीव है जो मनुष्य की वाणी का अनुकरण कर सकता है। इसे बोलना सिखाना पड़ता है या यह किसी भी बोलते हुए मनुष्य का अनुकरण कर रटता है, परन्तु मैना स्वत: बोलती है। बस्तर की पहाड़ी मैना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनकी आवाज में बात करके अचंभित कर दिया था। शुक सारिका लोक प्रसिद्ध हैं, शुक ख्याति तो ऐसी है कि इसे पालने वाले सबसे पहले राम राम, सीता राम बोलना सिखाना है। किसी के घर के शुक की वाणी सुनकर उस परिवार के आचार विहार का आंकलन किया जा सकता है कि परिवार कितना सुसंस्कृत एवं सभ्य है।
मुक्तेश्वर मंदिर समूह भुबनेश्वर की शुक सारिका |
साहित्य में शुक ने प्रमुख स्थान पाया है, इसकी उपस्थित संस्कृत साहित्य से लेकर वर्तमान तक प्राप्त होती है। जायसी के ‘पद्मावत’ में तोते को गुरु और मार्गदर्शक का पद प्राप्त है। ‘हीरामन’ नाम से वह रत्नसेन और पद्मावती को परामर्श भी देता है और उनके मिलन में सहायक भी होता है। रचना के अन्त में उसके बारे में स्पष्ट लिखा है—सूआ सोई जे पंथ दिखावा। बिनु गुरु जगत को निर्गण पावा।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी आत्माराम में वेदीग्राम का सुनार महादेव तोते के साथ अपने एकाकीपन को बांट लेता है। तो प्राचीनकाल के अंत:पुर की रमणियाँ भी शुक के साथ संवाद कर अपने एकाकीपन को दूर करती थी। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में सुआ प्रमुख स्थान रखता है। यहाँ यह विरहणी का संवदिया बनता है और सुआ गीत एवं सुआ नृत्य के रुप में लोक में स्थापित एवं प्रतिष्ठित हो जाता है।
तोते की चोंच (शुक चंचू) जैसी किंचित टेढ़ी नासिका सौंदर्य का प्रतीक बनती है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की शुकनासिका और बिम्ब अधरों का बहुत ही आकर्षक चित्र खींचा है। एक तोते को उर्मिला के नाक के मोती पर होंठों की कान्ति पडऩे के कारण अनार के दाने की भ्रान्ति हुई। फिर नाक को देखकर सोचता है यह दूसरा तोता कहां से आ गयाकवियों ने तोते का अनेक रूपों में चित्रण किया है। बड़े शौक से पाला हुआ तोता भी कभी उपेक्षा का शिकार हो जाता है और काले कौवों को सम्मान मिलता है। बिहारी ने अन्योक्ति के रूप में इसका चित्रण किया है।
मरत प्यास पिंजरा पर्यो सुआ समै के फेर।
आदर दै दै बोलियत वाईसु बलि के बेर॥
शुक-सारिका तो अनादिकाल से ही घरों एवं आश्रमों की शोभा बढ़ाते रहे हैं। जगज्जनी जानकी की विदा के समय उनके द्वारा पाले हुए ये पक्षी इतने दुःखी हुए कि इन्होंने परिजनों को भी अधीर कर दिया—
सुक सारिका जानकी ज्याये। कनक पिंजरन्ह राखि पढ़ाये॥
व्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुवि धीरजु परिहरह न केही॥
शुक सारिकाएँ राज महलों या किसी विलासी नागरिक के बहिर्द्वार तक ही नहीं मिलती थी इनकी उपस्थिति तपोवन में ॠषि निवासों में भी होती थी। सुप्रसिद्ध वाणभट्ट ने अपने पूर्व पुरुष कुबेर भट्ट का परिचय देते हुए गर्व से लिखा है कि उनके गृह के शुकों एवं सारिकाओं ने समस्त वांग्मय का अभ्यास कर लिया था और यजुर्वेद एवं सामवेद का पाठ करते समय पद पद पर ये पक्षी विद्यार्थियों की गलतियां पकड़ा करते थे। कालांतर में तो शुक इतने प्रबुद्ध हो गए कि शास्त्रार्थ तक करने लगे। शास्त्रार्थ-दिग्विजय के लिए निकले आचार्य शंकर ने पनिहारिनों से मंडन मिश्र का घर पूछा तो उन्होंने यही तो कहा था—
स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं कीरांगना यत्र गिरो गिरन्ति।
द्वारस्थ नीडान्तर सन्निरुद्धः जानाहितं मण्डन मिश्र धामम्॥
मुक्तेश्वर मंदिर समूह भुबनेश्वर में लेखक |
राष्टकवि दिनकर ने कहा था कि पक्षी और बादल। ये भगवान के डाकिये हैं। जो एक महादेश से। दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं। मगर उनकी लाई चिट्ठियां/पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बांचते हैं। प्राचीन काल से लेकर अद्यतन पक्षियों एवं मनुष्य का साथ बना रहा और पक्षियों के माध्यम से मनुष्य ने अपनी वाणी को विस्तार दिया। इन पक्षियों ने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के कारण साहित्य एवं शिल्प में महत्वपूर्ण स्थान भी पाया। प्रकृति के साथ जुड़े मनुष्यों का भविष्य में भी इनसे साथ बना रहेगा। इति शुक सारिका प्रकरणम्।
बहुत ही बढ़िया और रोचक जानकारी। तोता इंसान की आवाज़ में बात करता है और कबूतर डाकिया का काम
जवाब देंहटाएंतोता मैना की कहानी तो ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह जानकारीपरक...शानदार
जवाब देंहटाएंवाह ! शुकसारिका की कथा पढ़कर हृदय आनंदित हो गया ।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार जानकारी दी आपने.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०२१
आभार आपका ... अन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें .....
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक व सारगर्भित जानकारी व सुन्दर चित्र हेतु आभार आपका... #हिंदी_ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक व सारगर्भित जानकारी व सुन्दर चित्र हेतु आभार आपका... #हिंदी_ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंशुकसारिका के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन.....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग
ज्ञानवर्द्धक प्रविष्टि! आभार।
जवाब देंहटाएंअनूठापन लिए हैं आपकी अधिकतर रचनाएं !
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रहे हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानते हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
जवाब देंहटाएंशुक सारिका परिचय रोचक लगा ... साहित्य में शुक के महत्त्व की अच्छी जानकारी मिली .
जवाब देंहटाएंइतनी विस्तृत जानकारी ,अलग अलग जगहों पर शुक/तोता,का उल्लेख होना और उसको उल्लिखित करना पर्याप्त अध्ययन माँगता है, जो स्पष्ट दिखता है आपके आलेख में , रोचक जानकारी मिली, दिनकर जी की कही बात बहुत आनंदित कर गई , आभार ....
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित जानकारी लोकगीतों में सुआ के माध्यम से
जवाब देंहटाएंनायिकाएं अपने भाव,अभिलाषा आरक्त करती है।
हमारे निमाड़ी लोकगीत में भी के घर विवाह में जाने केलिए
पत्तिप्रतीकात्मक गीत है
माची बसन्ता पिया न हो कोयल बोल्या हो
चलो सुआ चलो सुआ
अम्बावन आमली
की वरस नी रहैसा पिया नहो
मास नई रहैसा हो
काचा ते पाका वन फल गदराया
*व्यक्त
जवाब देंहटाएंरोचक और शानदार जानकारी
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है जैसे रेगिस्तान में सात-आठ साल बाद बरसात आई है, सभी घर से निकल-निकल कर मजा लेने लगे हैं। इन्हीं में कुछ किताबी-चेहरे वाले पांच-छह साल के अचंभित बच्चे भी हैं जो सोच रहे हैं.....ई के हो रयो ए, पाणि उप्पर से कुण फेंकण लाग रयो से, ....baapuuuuuuuu
जवाब देंहटाएंवाह ! अद्भुत जानकारी ...
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से ऐसी पोस्ट की तलाश थी ,अच्छी जानकारी ललित जी | आभार
जवाब देंहटाएंशुक सारिकाएँ राज महलों या किसी विलासी नागरिक के बहिर्द्वार तक ही नहीं मिलती थी इनकी उपस्थिति तपोवन में ॠषि निवासों में भी होती थी। सुप्रसिद्ध वाणभट्ट ने अपने पूर्व पुरुष कुबेर भट्ट का परिचय देते हुए गर्व से लिखा है कि उनके गृह के शुकों एवं सारिकाओं ने समस्त वांग्मय का अभ्यास कर लिया था और यजुर्वेद एवं सामवेद का पाठ करते समय पद पद पर ये पक्षी विद्यार्थियों की गलतियां पकड़ा करते थे। कालांतर में तो शुक इतने प्रबुद्ध हो गए कि शास्त्रार्थ तक करने लगे। गहन और सम्पूर्ण लेख ! यहां जो फोटो लगाए हैं आपने वो बहुत सार्थक और बात को समर्थन दे रहे हैं ! इंदिरा गाँधी का किस्सा बिल्कुल नया है मेरे लिए !!
जवाब देंहटाएंDo you need a personal or business Credit without stress and quick approval, If yes, contact us today as we are currently offering Credit at superb interest rate. Our loan is secured and safe,For more information and Application.
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