भारतीय अन्तरिक्ष अनुसधान संगठन ने आखिर क्रायोजेनिक इंजिन बना ही लिया. इसके लिए वे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इसका निर्माण किया.
मुहे याद है कि पिछले दशक में भारत सरकार ने रूस से क्रायोजेनिक इंजिन खरीदने के लिए एक समझौता किया था लेकिन वक्त पर रूस ने समझौते को तोड़ते हुए इंजिन देने से मना कर दिया था. उस वक्त प्रो.यशपाल ने कहा था कि इंजिन हम भी बना सकते हैं,
लेकिन इतना है कि हमारी योजनाओं में कुछ सालों का विलंब हो जायेगा. आखिर हमारे वैज्ञानिकों ने क्रायोजेनिक इंजिन की तकनीकी विकसित करते हुए इसका निर्माण कर लिया और यह अब उपयोग के लिए तैयार है.
अब हमारा देश भी दिसम्बर माह में उन देशों की कतार में शामिल हो जायेगा जिन्होंने क्रायोजेनिक इंजिन विकसित किये हैं, ये एक मील का पत्थर है,
हमने दुनिया को ये काम भी करके दिखा दिया. इसरो को उम्मीद है कि स्वदेशी तकनीक से विकसित "भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी.एस.एल.वी.) के जरिये प्रयोग के तौर पर जी.एस.ऍ.टी.-४ नाम के उपग्रह को दिसम्बर के मध्य में रवाना किया जायेगा.
जी.एस.एल.वी में पूरी तरह भारत में विकसित क्रायोजेनिक इंजिन लगाया जायेगा.इसे पहली बार रॉकेट के उपरी हिस्से में लगाया जायेगा.
इससे पहले पांचों जी.एस.एल.वी अभियानों में रूस में निर्मित क्रायोजेनिक इंजिन का उपयोग किया गया था.
हमारे देश के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं. हमारे देश के लिए एक यह बहुत ही बड़ी उपलब्धि है, हमने बता ही दिया "हम किसी से कम नहीं हैं"
मुहे याद है कि पिछले दशक में भारत सरकार ने रूस से क्रायोजेनिक इंजिन खरीदने के लिए एक समझौता किया था लेकिन वक्त पर रूस ने समझौते को तोड़ते हुए इंजिन देने से मना कर दिया था. उस वक्त प्रो.यशपाल ने कहा था कि इंजिन हम भी बना सकते हैं,
लेकिन इतना है कि हमारी योजनाओं में कुछ सालों का विलंब हो जायेगा. आखिर हमारे वैज्ञानिकों ने क्रायोजेनिक इंजिन की तकनीकी विकसित करते हुए इसका निर्माण कर लिया और यह अब उपयोग के लिए तैयार है.
अब हमारा देश भी दिसम्बर माह में उन देशों की कतार में शामिल हो जायेगा जिन्होंने क्रायोजेनिक इंजिन विकसित किये हैं, ये एक मील का पत्थर है,
हमने दुनिया को ये काम भी करके दिखा दिया. इसरो को उम्मीद है कि स्वदेशी तकनीक से विकसित "भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी.एस.एल.वी.) के जरिये प्रयोग के तौर पर जी.एस.ऍ.टी.-४ नाम के उपग्रह को दिसम्बर के मध्य में रवाना किया जायेगा.
जी.एस.एल.वी में पूरी तरह भारत में विकसित क्रायोजेनिक इंजिन लगाया जायेगा.इसे पहली बार रॉकेट के उपरी हिस्से में लगाया जायेगा.
इससे पहले पांचों जी.एस.एल.वी अभियानों में रूस में निर्मित क्रायोजेनिक इंजिन का उपयोग किया गया था.
हमारे देश के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं. हमारे देश के लिए एक यह बहुत ही बड़ी उपलब्धि है, हमने बता ही दिया "हम किसी से कम नहीं हैं"
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