छत्तीसगढ़ अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का कोई सानी नहीं है। नदी, पर्वत, झरने, गुफ़ाएं-कंदराएं, वन्य प्राणी आदि के हम स्वयं को प्रकृति के समीप पाते हैं। अंचल के सरगुजा क्षेत्र पर प्रकृति की विशेष अनुकम्पा है, चारों तरफ़ हरितिमा के बीच प्राचीन स्थलों के साथ रमणीय वातावरण मनुष्य को मोहित कर लेता है।
ऐसा ही एक स्थान अम्बिकापुर-बनारस मार्ग पर 40 किलोमीटर भैंसामुड़ा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे सारासोर कहा जाता है। इस स्थान का पौराणिक महत्व सदियों से है। यहाँ महान नदी की निर्मल जलधारा दो पहाड़ियों को चीरते हुए बहती है तथा इस स्थान पर हिन्दुओं का धामिक स्थल भी है। सारासोर जलकुण्ड है, यहाँ महान नदी खरात एवं बड़का पर्वत को चीरती हुई पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है।
पौराणिक महत्व - किंवदन्ति है कि पूर्व काल में खरात एवं बड़का पर्वत दोनों आपस में जुड़े हुए थे। राम वन गमन के समय राम-लक्ष्मण एवं सीता जी यहाँ आये थे तब पर्वत के उस पार यहाँ ठहरे थे। पर्वत में एक गुफा है जिसे जोगी महाराज की गुफा कहा जाता है। सारासोर के पार सरा नामक राक्षस ने उत्पात मचाया था तब उनके संहार करने के लिये रामचंद्रजी के बाण के प्रहार से ये पर्वत अलग हो गए और उस पार जाकर उस सरा नामक राक्षस का संहार किया था। तब से इस स्थान का नाम सारासोर पड़ गया।
सारासोर में दो पर्वतों के मध्य से अलग होकर उनका हिस्सा स्वागत द्वार के रूप में विद्यमान है। नीचे के हिस्से में नदी कुण्डनुमा आकृति में काफी गहरी है इसे सीताकुण्ड कहा जाता है। सीताकुण्ड में सीताजी ने स्नान किया था और कुछ समय यहाँ व्यतीत कर नदी मार्ग से पहाड़ के उस पार गये थे। आगे महान नदी ग्राम ओडगी के पास रेण नदी से संगम करती है। दोनो पर्वतों की कटी हुई चट्टाने इस तरह से दिखाई देती हैं जैसे किसी ने नदी को इस दिशा में प्रवाहित करने के लिए श्रम पूर्वक पर्वत को काटा हो।
वर्तमान में नदी बीच की छोटी पहाड़ी पर मंदिर बना हुआ है। यहाँ कुछ साधू पर्णकुटी बना कर निवास करते हैं और वे भी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। इस स्थान पर श्रद्धालुओं का सतत प्रवास रहता है। इस सुरम्य स्थल पर पहुंचने के बाद यहाँ एक-दो दिन नदी के तीर पर ठहरने का मन करता है। यहाँ मंदिर समिति द्वारा निर्मित यात्री निवास भी हैं। जहाँ समिति की आज्ञा से रात्रि निवास किया जा सकता है।
कैसे पहुंचे? - अम्बिकापुर से बनारस मार्ग पर सतत वाहन सुविधा है तथा भैंसा मुड़ा पहुंच कर स्थानीय संसाधनों प्रयोग किया जा सकता है। स्वयं के साधन से जाना उत्तम रहेगा।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धा-सुमन गुदड़ी के लाल को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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