सुबह छ: बजे निवृत हो कर हम पैदल ही राम घाट की ओर चल दिए। कुंभ में ऑटो एवं रिक्शा बंद थे, इनकी जगह पर हाथ ठेले पर लोग जा रहे थे। हाथ ठेले वाले सत्तर से सौ रुपए तक सवारियों की संख्या के आधार पर ले रहे थे। हम पैदल-पैदल फ़ोटो खींचते हुए चल रहे थे। सड़क के दोनो तरफ़ साधूओं ने अपने पंडाल लगा रखे थे। किन्हीं ने चेले-भक्तों के लिए कूलर एवं एसी युक्त झोंपड़ियां बना रखी थी और आम चेलों के पंडाल था। नागा साधूओं ने अपने धूने बाल रखे थे। जहाँ से भभूत लगा कर एकदम चौकस भक्तों की बाट जोह रहे थे। कहीं पर नागाओं के धूने में सुबह-सुबह चिलम सेवा चल रही थी। जहाँ चिलमची भक्तों का डेरा लगा था।
कुंभ स्थल उज्जैन की सुबह |
हम रामघाट के समीप पहुंचे तो पंचायती दशनाम अखाड़े के सामने अचानक ट्रैफ़िक रोक दिया गया। सड़क के दोनो तरफ़ बैरिकेट लगा दिए। कुछ साधू एवं नागा साधू भाले एवं तलवार लेकर भांजने लगे और जनता तो डरा कर रोकने लगे। एक दो पुलिस के इंस्पेक्टर दांत निपोरते हुए खड़े। दोनो तरफ़ हजारों की संख्या में जनता जुट गई। हमको भी कुछ समझ नहीं आया क्या हो रहा है। थोड़ी देर बाद पता चला कि किसी ने अखाड़े के सामने सड़क पर कचरा फ़ेंक दिया। जिसे उठाने की मांग लेकर नागाओं ने चक्का जाम कर दिया। रास्ता न खुलते देख हमने स्थानीय लोगों से पूछताछ कर रास्ता बदल दिया। आधा किमी का चक्कर काटकर दूसरी तरफ़ से स्नान घाट पहुंचे।
नागाओं द्वारा चक्का जाम |
स्नान घाट पर स्नानार्थियों का रेला लगा हुआ था। नर-नारी, वृद्ध-बाल सभी घाटों पर स्नान कर रहे थे। हमने भी एक सुरक्षित स्थान देख कर स्नान करने के लिए कपड़े उतार कर घाट पर रखे। एक पुलिस वाला बार बार सबको चेता रहा था कि अपने कपड़ों का ध्यान रखें, पलक झपकते ही गायब हो जाते हैं, अब हम दोनो एक साथ स्नान नहीं कर सकते थे। एक स्नान करे और दूसरा कपड़ों की रखवाली करे। तभी दोनो का स्नान संभव है। पहले मैने डुबकी लगाई, कई डुबकियां लगानी पड़ी, जिन-जिन ने कहा था, उनके नाम की भी लगा ली। फ़िर अनुज साहू जी ने स्नान किया। इस तरह दोनों का स्नान हो गया।
कुंभ स्थल में नागा साधू |
यहाँ से हम महाकालेश्वर दर्शन करने पहुंचे तो देखा एक बड़ा रेला धक्का मुक्की करते हुए आगे बढ रहा था। पता चला कि ये लोग परकम्मा करके आए हैं। भीड़ इतनी थी कि धक्के से कोई अगर गिर जाए तो कईयों की लाश ही मिले। हमने एक स्थान पर चप्पल जमा किए, यहां नि:शुल्क का बोर्ड लगा था। भीड़ के बीच कुछ दूर तक गए तो धक्का मुक्की अधिक बढ गई थी। तभी छोटे भाई का मेसेज वाटसएप पर दिखा कि - धक्का मुक्की से दूर रहना। बस हम वहां से लौट गए, लौटने में भी पसीने छूट गए। चप्पल वापिस लिए तो नि:शुल्क सेवा वाले ने दस रुपए ले लिए। ऐसी फ़र्जी सेवा हो रही थी। धूप बढने लगी तो हम वापस अपने डेरे पर लौट आए। नाश्ता करके आराम करने लगे। अब शाम को ही कहीं जाएंगे।
कुंभ स्नान का लाभ |
दोपहर भोजन करके नींद भांजी और शाम को फ़िर कैमरा धर के निकल लिए। कुंभ में नित्यानंद का जोर दिखाई दे रहा था। स्टेशन से लेकर सारे कुंभ में इसके ही फ़्लेक्स बैनर दिखाई दे रहे थे। समीप ही मीना बाजार भी लगा हुआ था। हम पैदल पैदल नित्यानंद के पंडाल पहुंचे। यहां खूब भीड़ थी। इसकी भव्यता देखते ही बनती थी, दो हजार चेले चेली विदेशी इकट्ठे कर रखे। उन्हें ही देखने लोगों की भीड़ लगी हुई थी। मेले ठेलों एवं मंदिरों में सबसे बड़ी समस्या जूते चप्पलों की होती है। कहीं पर आपने छोड़े और गायब होने में मिनट भी नहीं लगता। फ़िर जब तक जूते चप्प्लों की दुकान न मिले तब तक नंगे पैर ही घूमना पड़ता है। यह सोच कर हमने भीतर प्रवेश करना त्याग दिया।
नित्यानंद का भव्य पंडाल |
छत्तीसगढ़ पेवेलियन में सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था। हम कार्यक्रम देखने बैठ गए। आज भी पंडवानी चल रही थी, पर कलाकार बदल गए थे। कुछ जान पहचान के लोग मिले। वे भी कुंभ स्नान के लिए आए थे। भोजन करने पहुंचे तो आज रसोईए ने चावल बिगाड़ दिए थे, मतलब गीले कर दिए थे, पूछने पर कहने लगा कि लोग कहते हैं चावल सूखे लगते हैं इसलिए आज गीले बनाए। मैने पूछा कौन लोग कहते हैं तो उसने नाम नहीं बताया। मतलब वह अपनी गलती लोगों के सिर पर मढ रहा था। छत्तीसगढ़ चावल खाने वालों का प्रदेश है और यहाँ कभी चावल गीले नहीं बनाये जाते। मैंने उसको खूब डांटा। अगले दिन से रसोईया बदल गया। भोजन करने बाद हम रुम में आ गए। दिन में सो लिए थे तो रात अनुज भाई के साथ चर्चा जारी थी…… जारी है आगे पढें…।
जीवंत वर्णन...
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