जूझती हैं कोहरे से
नित सूर्यकुमारियाँ
श्रमिक की तरह
रोटी के लिए
पृथ्वी का भार
कांधे पर लादे
बोझ से दबा एटलस
चलता है अनवरत
भूख मिटाने के लिए
कल पर्चे बंटे
बाजार मे
भूख मिटाने वाला
साल्युशन बनकर
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस
नित सूर्यकुमारियाँ
श्रमिक की तरह
रोटी के लिए
पृथ्वी का भार
कांधे पर लादे
बोझ से दबा एटलस
चलता है अनवरत
भूख मिटाने के लिए
कल पर्चे बंटे
बाजार मे
भूख मिटाने वाला
साल्युशन बनकर
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस
काश वह मिल जाये...
जवाब देंहटाएंyaani ab roti ke liye koi mehnat nahi...
जवाब देंहटाएंएटलस को बोझा उतारने से पहले साल्यूशन मिल तो जाएगा न ...क्योंकि अभी तो पर्चे ही बँटे हैं, खर्चे के बारे में कुछ ....
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह कविता .
जवाब देंहटाएंजरा प्रूफ रीडि़ग हो जाय-
जवाब देंहटाएं'जुझती'-'जूझती'
'सुर्यकुमारियाँ'-'सूर्यकुमारियाँ'
'भुख'-'भूख'
@Rahul Singh
जवाब देंहटाएंसुधार दिया
क्या विचार है? पसन्द आया।
जवाब देंहटाएंयह सेलुशन इधर भी ट्रांसफर का दो जरा ...कुछ तो वजन कम होगा ..
जवाब देंहटाएंगहरी बात, पर गहराई में जाता जौन है
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर की टिपण्णी और facebook पर मेरी मित्रता स्वीकार करने हेतु आपका धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबोझ से दबा एटलस
चलता है अनवरत
भूख मिटाने के लिए
कल पर्चे बंटे
बाजार मे
भूख मिटाने वाला
साल्युशन बनकर
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस
अति सुन्दर. बधाई !
आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत खूब्।
जवाब देंहटाएंक्या बात है...एक इधर भी भेजिए.काफी गहराई में उतर गए आज तो.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम
भूख मिटाने के लिए
जवाब देंहटाएंकल पर्चे बंटे
बाजार मे
भूख मिटाने वाला
साल्युशन बनकर
तैयार...
बहुत अच्छी रचना... बहुत गहराई है इन शब्दों में...
आज क्या अरविन्द जी और आपने कोई साठ गांठ की है । :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया दांव लगाया है भाई कविता में ।
आपने पेटेंट कराया है या यूं ही सरकार की तरह सबको बहकाया है।
जवाब देंहटाएंहम भी तलाश में थे और अब भी हैं. अमरकंटक से इम्पोर्टेड तो नहीं?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसच? ऐसा है क्या ?
जवाब देंहटाएंपर्चे ही तो बंटे हैं
जवाब देंहटाएंबोझा उतारने को इतना बहुत है
बड बेरा हो गे आज.... छुट्टी म ब्लॉग मन ला पढ़त पढ़त...
जवाब देंहटाएंतोर पोस्ट ल पढ़ के भूख लागे लागिस.... कुछु खाना परही अब...
फेर बने लिखे हवस... दूध के मशीन सुरता आगे...
सादर...
बढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंगहरी रचना के लिये बधाई ।
काश ऐसा कोई उपाय होता... तो दुनिया में पनप रही मानवीय बुराईयों का अंत हो जाता............
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.....
बहुत उम्दा रचा है...
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