जीवन में रंग-बिरंगे पल आते-जाते हैं। सुख दु:ख के बादल उमड़ते घुमड़ते हैं। मन के कोने छिपी यादें चलचित्र की घूमती हैं। एकांत होते ही यादों के साए में ढिबरी के धूंए से बनती हुई आकृतियाँ अपने रुप बदलती हैं। तभी पीछे से आवाज आती है "कब से रखी है चाय, ठंडी भी हो गयी। पता नहीं कहाँ खो जाते हो?" उनकी घुड़की के साथ बाहर शोर गुल की आवाजें आने लगी। यादों के सिलसिले रुक गए, बिना मध्यातंर के ही मध्यांतर हो गया। चाय का कप लिए हुए बाहर निकला तो आदित्य, उदय, योग में फ़ायटिंग शुरु थी। मुझे देखते ही तीनों अपने अपने लोकपाल का मसौदा ले आते हैं, लगते है सुनाने।
उदय और योगु पारम्परिक "बिल्लस" (ठेकरी) खेलते हैं। आदि हार जाता है उनसे। इसका आदि ने नया तोड़ निकाला। पारम्परिक भारतीय बिल्लस के बजाए अंग्रेजी ढंग से लाईन खींच कर इन्हे खिलाना शुरु किया। अब इस खेल में आदि बार-बार जीत जाता था और सीढियों पर बैठ कर मुस्काता रहता। उदय और योगु हार जाते तो उन्हे खिजाता। इनका खेल वैसे सुबह से ही शुरु हो जाता है। अब योगु और आदि का झगड़ा हो गया। मैने समझा बुझा कर दुबारा खेल शुरु करवाया। आदि दिमाग से काम लेता है और ये दोनो दिल से। झंगड़ोपरांत खेल चलने लगा।आदि अपने जीतने की जुगत लगातार लगाता रहता है। चाहे हेराफ़ेरी क्यों न करनी पड़े पर। बस उसे जीत चाहिए खेल में
पहले आदि ने 1 से 8 तक घर बना रखे थे। अब उसने 10 घर तक और बढा दिया उसे। फ़िर खेल शुरु हुआ। इस खेल के नियम आदि ही बनाता है। जब चाहे जिसे भी कोई कानूनी हवाला देकर आऊट कर देता है और अपनी पारी फ़िर शुरु कर देता है। जब योगु या उदय बिल्लस फ़ेंकता है और बिल्लस लाईन के करीब रहती है तो झुक कर देखता है कि बिल्लस में लाईन का करेंट तो नही आ रहा है। जब उसे सही लगता है तो मान्य कर उपकृत करता है। अब खेल में उदय आगे बढ गया आदि से। आदि बार बार अपनी बिल्लस फ़ेंकता है। लेकिन वह नियत घर तक नहीं पहुंचती। जितनी बार बिल्लस खाने से बाहर जाती है उतनी बार वह खीजता है। योगु और उदय हँसते हैं तो उसे काटने दौड़ता है।
आदि अपनी अगली बारी आने पर फ़िर प्रयास करता है। लेकिन वही ढाक के तीन पात निकलते हैं। उदय और योगु उससे आगे बढ जाते हैं। वह सीढियों पर बैठकर कुछ बड़बड़ाता है जैसे कुछ मंत्र जप रहा हो। समीप जाने पर सुनाई दिया "उदय हार जाए, उदय हार जाए।" अब उदय जीत के करीब है। आदि अपनी बारी आने पर बिल्लस (ठेकरी) को माथे और छाती से लगा कर बड़बड़ाता है फ़िर कहता है - "अब इधर से सो कर बिल्लस फ़ेकूंगा" फ़िर वह लाईन से आगे हाथ निकाल कर लेट कर बिल्लस फ़ेंकता है। इस बार भी नाकाम हो जाता है। खीज कर फ़िर झगड़े पर उतर आता है और घर में घुस जाता है। "नहीं खेलना मुझे।"
खिड़की से देखता है कि खेल कितना हो चुका है, जैसे ही उसकी पारी आती है फ़िर बाहर आ जाता है। "मैं सेकंड हूँ, मेरी बारी है" अब वह फ़िर जुगत लगाता है। उदय से कहता है -"भाई थोड़ा नजदीक से बिल्लस फ़ेंकने दे।" उदय तैयार हो जाता है, अब आदि के समर्थन में दादी भी आ जाती है। वह एक बार फ़िर बिल्लस फ़ेंकता है। अब कामयाबी मिलती है। कूद कर घर पार लेता है। फ़िर चिल्लाता है -मैं जीत गया, मेरा घर बन गया। सबसे सामने वाले खाने में घर बनाता है और उस पर अपना नाम लिखता है। आदि को खेल में हारना पसंद नहीं। चाहे रोकर क्यों न जीतना पड़े। पर जीतना जरुरी है।
आदि |
अब उदय भी अपनी पारी जीत लेता है वह भी एक खाने पर कब्जा करके अपना घर बनाकर नाम लिख लेता है। अब योगु तीसरे नम्बर पर फ़ंस जाता है। आदि के नियम कानून का शिकार भी हो जाता है। दो घर इन्होने ब्लॉक कर दिए। वह कूदते फ़ांदते हुए तीसरे नम्बर पर आता है। उसकी बाजी भी पूरी हो जाती है, दादी भी खुश हो जाती है। आदि फ़िर नयी बिसात बिछाता है। सबको एक बार फ़िर हार जीत के जाल में फ़ंसाता है। कूद फ़ांद के साथ सांप सीढी का खेल शुरु होता है। आपस में एक बार फ़िर मेल शुरु होता है। इनका खेल अनवरत जारी है। बारी बारी सारे खिलाड़ियों की पारी है।आदि के चक्रव्यूह में सारे खिलाड़ी फ़ंसे हैं। सभी अनाड़ी हैं और आदि खिलाड़ी है।
लाला |
शाम होते ही टीवी पर सारी चंडाल चौकड़ी जम जाती है। आदि बताता है सबको कि आज सैंटा आएगा। योगु पूछता है- सैंटा कौन है? आदि बताता है कि बाबाजी जैसा होता है। मेरा फ़्रेंड बताता कि सैंटा बच्चों के लिए मुंहमांगी चीज लेकर आता है। रात को तकिए के नीचे सैंटा के नाम चिट्ठी में अपनी विश लिख कर रखनी पड़ती है। रात को जब सब सोए रहते हैं तब सैंटा आता है और सबको गिफ़्ट देकर जाता है। लेकिन किसी को बताना नहीं क्या लिखा है चिट्ठी में। अब कापियों से कागज फ़ाड़ कर लिखने का दौर शुरु होता है। आपस से छुप कर अपनी विश लिखते हैं। आदि सबसे विश पूछता है, उदय ने बता दिया उसने कार मांगी है और योगु ने रिमोट वाला हेलीकाफ़्टर और रिमोट वाली कार।
आदि दोनो के पूछने पर आदि अपनी विश नहीं बताता और कहता है कि तुम लोगों ने अपनी विश बता दी इसलिए पूरी नहीं होगी। सब अपने अपने तकिए के नीचे सैंटा के नाम चिट्ठी लिख कर सो जाते हैं। रात को एक दो बार उठकर तकिए के नीचे आदित्य को झांकते देखता हूँ। सुबह सब उठकर अपनी-अपनी थैली खोलते हैं तो सबको चाकलेट मिलती है। मुंहमागी चीज नहीं मिलती। सभी का चेहरा मुरझा जाता है। आदि अपनी बात संभाल कर कहता है कि सैंटा से उसने चाकलेट ही मांगी थी। तुम दोनो ने बता दिया इसलिए तुम्हे भी चाकलेट मिली। अब बताना नहीं कि सैंटा से तुमने क्या मांगा है? दिन निकलते ही आदि, उदय, योगु, लाला सब अपने खेल में फ़िर से मगन हो जाते हैं और मैं चाय का मग लिए अपने पीसी पर आ जाता हूँ।
''मैं चाय का मग लिए अपने पीसी पर आ जाता हूँ'' और निकल आती है, यह आंखों देखी, एकदम ताजी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंहमने तो यही माँगा था ...
जवाब देंहटाएंदिल बहलाने को ये खयाल जिंदगी आसान बना देते हैं ...बच्चे खेल खेल में कितना सीखते हैं , सिखाते हैं !
:))))))) बढ़िया... मजा आगे... आदि उदय योगु अउ सांटा... वाह...
जवाब देंहटाएंअउ सुरता आगे के एक झन डोकरा हर घलोच भोरहा म अपन तकिया तरी 'लोकपाल' लिख के सुते रिहिस... सांटा ह ओखर पर्ची ल ले के भाग गे... :)))
बच्चों की दुनिया !
जवाब देंहटाएंदुनिया में बच्चे
जवाब देंहटाएंसबसे हैं सच्चे।
आपने तो बचपन याद दिला दिया, बहुत खेले हैं यह खेल...
जवाब देंहटाएंटी. व्ही. कार्टून शो और वीडियो -गेम से कहीं लाख दर्जा अच्छे हैं हमारे ये सहज-सरल देशी खेल, जिनमें सामूहिकता की भावना को भी बल मिलता है. आपके बच्चों को इसमें मगन देख कर वाकई बेहद खुशी हुई. याद आ गया अपना भी बचपन .आपको सपरिवार नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर होती है इन मासूम बच्चों की दुनिया, छोटे-छोटे सपने छोटी - छोटी ख्वाहिशें... इन्हें देखकर हम भी जी लेते हैं अपना बचपन... सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंअगली ब्लॉग मीट में ये खेल पक्का रखा जाएगा...
जवाब देंहटाएंआखिर हर ब्लॉगर का दिल भी तो बच्चा है जी...
जय हिंद...
एक बच्चो के खेल को किसी तरह शब्दों का चोला ओढाया है अपने ,आनंद आ गया
जवाब देंहटाएंअभी भूले नहीं हैं हम .....एक - एक करके सब दृश्य और हमसफ़र खिलाडी याद आये ...!
जवाब देंहटाएंbehad sundar..
जवाब देंहटाएंbachchon ke khel aur senta ke bahane bachpan ki galiyon me ghoom liye...
जवाब देंहटाएंअल्हड बचपन , ललित जी, नए साल की हार्दिक शुभकामनाये, आपको नया साल बहुत-बहुत मुबारक !
जवाब देंहटाएं:) अपना बच्चपन क्यों न याद आये.
जवाब देंहटाएंबच्चे मन के सच्चे ..वैसे खेलों से ,खेल भावना से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं"हमने तो यही माँगा था"
जवाब देंहटाएंएक गीत याद आ गया, "जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया"
शानदार पोस्ट।
आपकी पोस्ट पढ़ कर अपना बचपन याद आ गया | जिवंत पोस्ट है आपकी | मेरे ब्लॉग पर भी आयें \
जवाब देंहटाएंआने वाले नये साल की बहुत बहुत बधाई, ललित भाई! लइकई के सुरता बने करवाये हस। इहां अभी दिखे नही बिल्लस, भौंरा, गिल्ली डंडा……दिखथे खाली कुर्सी के फेंकम फेंकी, जूता चप्पल के वार। अब लोकपाल बदल गे शोक पाल मां।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति....नववर्ष आगमन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ...
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