जिधर चले रास्ता |
गाड़ी आगे बढती है, शहर की अट्टालिकाओं को पीछे छोड़ती हुई, बलखाती सड़क खेतों को चीरते हुए चली जा रही। हम भी खिड़कियों से आस-पास की हरियाली देख रहे हैं। धान की फ़सल पक गयी है, किसान फ़सल की कटाई कर रहे हैं। सड़क के किनारे भराही गाड़ा लगे हुए हैं। एक पेड़ के नीचे किसान पैरा डोरी बना रहा है काटे हुए धान के गट्ठर को बांधने के लिए। उसने पेड़ की डाली से रेड़ियो टांग रखा है। सुनता भी जा रहा है और साथ ही हाथ भी चल रहे हैं, डोरी भी बनते जा रही है। शहर से गाँवों की ओर जाते हुए बहुत कुछ बदल जाता है। यहाँ ड्राईंग रुम में हाथ में रिमोट लिए लोग दिखाई नहीं देते। हमने भी गाड़ी में रेड़ियो चालु कर लिया और उससे आवाज आई, "305.81 मीटर अर्थात 981 किलो हर्ट्ज पर ये आकाशवाणी रायपुर है, 11 बजे हैं प्रस्तुत है कार्यक्रम फ़ोन इन फ़रमाईश। प्रस्तुत कर्ता हैं दीपक हटवार।" अब शुरु हो जाता है फ़ोन इन कार्यक्रम, श्रोताओं के फ़ोन से उनकी फ़रमाईश पर सुरीले गीतों का कार्यक्रम सुनने लगते हैं।
हरिभूमि समाचार - रेड़ियो श्रोता सम्मेलन |
आकाशवाणी रायपुर से दीपक हटवार की गंभीर आवाज हवा में तैरते हुए हम तक पहुंचती है और हम उनके साथ जुड़ जाते हैं रेड़ियो कार्यक्रम के माध्यम से। हमारे जैसे लाखों श्रोताओं के घर सुबह का चिंतन लेकर दीपक हटवार पहुंचते हैं। आकाशवाणी रायपुर में 1990 से उनकी आवाज गूंज रही है। चिंतन के माध्यम से उनसे लोग रुहानी तौर पर जुड़े हैं। आवाज तो उनकी लाखों लोगों ने सुनी है, मगर देखा कुछ सैकड़ों ने है।आकाशवाणी रायपुर से खेल गतिविधियां, आज का चिंतन, फ़ोन इन कार्यक्रम, रंग तरंग, हास्य झलकी, नाटक एवं रुपक दीपक हटवार की आवाज में प्रसारित होते हैं। रेड़ियो के माध्यम से किसी कार्यक्रम को सुनने का आनंद ही अलग है। रेड़ियो उद्घोषक का श्रोताओं से सीधा संबंध होता है, श्रोताओं के पत्र उस तक पहुंचते हैं, अधिकतर पत्र कार्यक्रम की तारीफ़ के होते होगें तो एकाध लानत-मलानत के भी, क्योंकि सभी को संतुष्ट कर पाना संभव नहीं। किसी के पत्र कार्यक्रम शामिल नहीं होते होगें तो उनकी नाराजगी तो झेलनी ही पड़ेगी।
दीपक हट्वार और लेखक |
फ़ोन इन कार्यक्रम सुनते हुए हम चले जा रहे हैं और मेरे साथ ही गाड़ी में रायपुर आकाशवाणी के उद्घोषक दीपक हटवार भी बैठे है। रेड़ियो के माध्यम से उनके कार्यक्रम को सुनना एवं उनके साथ साक्षात सफ़र पर जाना अच्छा लग रहा है। मैं जिज्ञासावश उनसे कुछ प्रश्न करता हूँ, क्योंकि मुझे फ़िल्मों की जानकारी नही के बराबर ही है। जीवन में बहुत कम फ़िल्मे ही देखी है। गाने भी पुराने सुनता हूँ। जो 1972 के पहले के होते हैं, जिन गानों में कुछ सार्थक संदेश होता है, जो रुहानी होते हैं, जिसके बोल जाग उठते हैं और मुझे अंतस की गहराईयों में सहज ही उतार कर उसमें डुबकी लगाने को मजबूर कर देते हैं। पर दीपक हटवार जी के पास नए-पुराने सभी गानों के रचनाकार, संगीतकार और फ़िल्म के नाम सहित अथाह जानकारियाँ भरी पड़ी है। चर्चा के दौरान मोहम्मद रफ़ी के गानों की जिक्र छेड़ बैठे। उन्होने बताया कि उनके आकाशवाणी के संग्रह में गांव की "गोरी फ़िल्म" का गाना "दिलदार की ऐसी की तैसी" नहीं है। जिसे मोहम्मद रफ़ी और जी एम दुर्रानी ने गाया था।
मोहम्मद रफ़ी साहब |
मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो रफ़ी साहब का पागलपन की हद तक दीवाना है, उसके पास यह गाना अवश्य मिल जाएगा। मैने तुरंत राजेश नायक को फ़ोन लगाया और उन्होने कहा कि यह गाना उनके संग्रह में है। जान बड़ी खुशी हुई कि दीपक हटवार जो गाना ढूंढ रहे थे वह मिल गया। उन्होने बताया कि जो भी फ़िल्मी गाना रेड़ियो पर बजाया जाता है उसके कापी राईट होल्डर रायल्टी देनी पड़ती है। रेड़ियो स्टेशन की लॉगबुक में उस गाने के बजाए जाने की तारीख और समय दर्ज होता है। मुफ़्त में नहीं बजा सकते। हम तो अपने टेप पर मुफ़्त में ही बजाते रहे हैं, यही सोचते थे कि रेड़ियो वाले भी मुफ़्त में बजाते होगें।:) रेड़ियो पर उद्घोषक को अपने श्रोताओं को टी वी एंकर जैसे उंगली दिखा कर धमकी नहीं देनी पड़ती। एक टीवी चैनल पर एकंर कहता है कि "कहीं जाईएगा नहीं, हम लौटकर आते हैं एक ब्रेक के बाद।" टीवी चैनल वालों को डर रहता है कि दर्शक टीवी के सामने से उठ कर न चला जाए, जबकि श्रोता के साथ रेड़ियो स्वयं ही चला जाता है।
मनोहर महाजन, अशोक बजाज, ललित शर्मा |
गत वर्ष रायपुर में आयोजित रेड़ियो श्रोता सम्मेलन में रेड़ियो सीलोन के उद्घोषक मनोहर महाजन, रिपुसुदन एलाबादी एवं विजयलक्ष्मी डिसेरम रायपुर पहुंचे थे। इनसे मिलने मुंबई तक के श्रोता रायपुर पहुंचे थे। मुंबई से आए दो वयोवृद्ध श्रोता बंधु मनोहर महाजन से मिलने के लिए मंच तक पहुंचे तो उनसे मिल कर उनकी आँखों में आँसु आ गए। स्नेह मिलन उन्हे द्ववित कर गया। मनोहर महाजन भी भावुक हो गए। उन वयोवृद्ध श्रोताओं ने मनोहर महाजन के समक्ष कहा कि -" उनकी अंतिम इच्छा है कि जब उनकी अर्थी उठे उसकी रनिंग कमेंट्री आप करें।" ऐसी अंतिम इच्छा उन्ही की हो सकती है जो रेड़ियो के माध्यम से उद्घोषकों से आत्मीय तौर पड़ जुड़े जाते है। इस दृश्य का साक्षी वहां उपस्थित श्रोताओं के साथ मैं भी था। मुन्ना भाई फ़िल्म की तर्ज पर श्रोता रेड़ियो उद्घोषक का काल्पनिक चित्र अपने जेहन में उसकी आवाज सुनकर बना लेते हैं। जबकि वास्तविकता अलग होती है।
दीपक हटवार - आवाज का जादू |
इसी संबंध में दीपक हटवार ने अपने कुछ संस्मरण सुनाए। उन्होने बताया कि एक बार रेड़ियो स्टेशन में उनसे मिलने के लिए वृद्ध पति-पत्नी आए। उन्होने आकर मेरे विषय में पूछा, जब मैं सामने आया तो उन्होने मुझे साष्टांग प्रणाम किया। जिससे मैं भौंचक रह गया और असहज महसूस करने लगा। उन्हे उठाया और आने का कारण पूछा तो उन्होने मेरे से मिलने आने की बात कही। फ़िर उन्होने पूछा कि नहाने के लिए कहीं तालाब है क्या? शहर में तालाब तो दूर हैं, तो मैने उनके नहाने की व्यवस्था रेड़ियो स्टेशन के बाथरुम में की। उन्होने नहाने के बाद नए कपड़े पहने और मुझे फ़ल-फ़ूल और मिठाई भेंट किए तथा झोले से निकाल कर 50,000 की राशि देने लगे। मैने मना किया, लेकिन वे मान नहीं रहे थे। उनका कहना था कि यह सब हम आपको भेंट करने के लिए लाए हैं और वापस नहीं ले जाएगें। हम आपका चिंतन प्रतिदिन सुनते हैं, इससे हमारे मन में आपके लिए कुछ भेंट देने की इच्छा है। तो स्टेशन के सभी लोगों ने समझाया। तब उन्होने राशि तो वापस ली लेकिन फ़ल-फ़ूल और मिठाई देकर ही गए।
दिल का खिलौना हाय टूट गया |
दुसरे सस्मरण में दीवानगी हद बताते हुए दीपक हटवार कहते हैं कि -"एक बार रेड़ियो स्टेशन में एक महिला मिलने के लिए आई। उसने आते ही मेरे बारे में पूछा। तो उसे मेरे पास भेज दिया गया। वह आकर कुर्सी पर बैठ गयी और पूछा कि -" आपकी शादी हो गयी है?" मेरे हाँ कहने पर उसका चेहरा कुछ मुरझा गया। फ़िर उसने कहा कि चलेगा, कोई बात नहीं, आपका घर कहाँ है? मैने पूछा क्यों? तो उसका कहना था वह मेरा घर देखना चाहती है। मैने कहा कि - अभी ड्युटी पर हूँ इसलिए घर नहीं दिखा सकता। लेकिन आप घर क्यों देखना चाहती हैं? तो उसका कहना था कि- मैं अपने तीन बच्चों और पति को हमेशा के लिए छोड़ कर आ गयी हूँ और आपके साथ ही रहना चाहती हूँ। आप मना करेगें तो वापस कहाँ जाऊंगी, जब घर-द्वार छोड़ दिया है।" सुनकर मैं भी चक्कर में पड़ गया, अपने साथियों को बताया तो सबने मिल कर उसे समझाया और उसे घर भेजा। तब जाकर बड़ी मुस्किल से मेरा पीछा छूटा।
रेड़ियो श्रोता सम्मेलन में ब्लॉगर का सम्मान |
उद्घोषक को श्रोता पागलपन की हद तक अपना स्नेह और प्यार देते हैं, जिसकी कोई सीमा नहीं है। ऐसा भी कुछ घटता है जीवन में जो हमेशा के लिए एक याद बनकर रह जाता है। कुछ कार्यक्रम ऐसे हैं जो श्रोताओं के सर चढ कर बोलते हैं। मेरे एक मित्र नामदेव जी हैं, जिनका रेड़ियो कभी बंद ही नहीं होता। रेडियो स्टेशन बंद होता है तब रेड़ियो चुप होता है और रेड़ियो से प्रसारण प्रारंभ होने से प्रारंभ होता है। अब रेड़ियो का जमाना फ़िर लौट कर आ रहा है। अब तो एफ़ एम वाले भी पुराने गाने बजाने लगे हैं। श्रोता नए गाने सुन-सुनकर थक चुके हैं और पुराने गाने श्रोताओं की थकान उतार कर उन्हे तरोताजा कर कर रहें है। दीपक हटवार से मेरी मुलाकात रेड़ियो श्रोता संघ के कार्यक्रम में 20 नवम्बर को कवर्धा जाते समय हुई थी। हमारी यह मुलाकात एक यादगार रही और इस भेंट के सुत्रधार "नशा हे खराब, झन पीहू शराब" नारे के जन्मदाता बने। एक बात तो है कि "आवाज का जादू सर चढ कर बोलता है", इसमें कोई दो मत नहीं है।
रेडिओ आज भी एक ज़रूरत है हमारे यहाँ तो हर काम प्रोग्राम के हिसाब से होता हैं पुरानी यादें सुहानी यादें ......
जवाब देंहटाएंदीपक जी तो लाजवाब हैं ही, कभी मिर्जा साहब का नशा भी सिर चढ़ बोलता था और हां, अब विविधभारती पर छाए कमल शर्मा का सफर भी आकाशवाणी, रायपुर से शुरू हुआ था.
जवाब देंहटाएंमेरी कलम की कापी करा ली। इसकी और प्रतियां करो, करवाओ और खूब खुले दिल से बंटवाओ। कीबोर्ड का खटरागी नाम से फेसबुक पर एक समूह बनाया है। उसे तलाशो और बेझिझक उसे जुड़ जाओ। सबको जोड़ो और अच्छाईयों की तरफ सबका मुंह मोड़ो।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. यह भी नशा है, सर तो चढ़ेगा ही.
जवाब देंहटाएंएक सम्मान हमारा भी होना था
जवाब देंहटाएंहमने गीत गाना नहीं बोना था
बो दिया पर सम्मान देने वाला
जाने कहां चल दिया, खो दिया
बहुत सुंदर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंमनोहर महाजन जी के बारे में जानकारी थी ..
पर चित्र देखने का मौका पहली बार मिला ..
आवाज में तो जादू होता ही है !!
रेडियो एक बहुत बड़ा माध्यम है, अभी भी। आवाज का जादू है।
जवाब देंहटाएंसही लिखा है आपने रेडियो आज भी है हमारा सच्चा और सबसे अच्छा साथी...इसका अंदाज वयोवृद्ध श्रोताओं की अंतिम इच्छा से ही लगाया जा सकता है. बहुत सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंरेडियो का जमाना लद गया ..ऐसा सुनते थे ..पर FM ने दुबारा अमृत पिलाकर इसे अमर बना दिया ..
जवाब देंहटाएंक्या जमाना था जब हम सब इसके दीवाने थे ..मैं तो आज भी बहुत रेडियो सुनती हूँ ! उन दिनों मेरी दीवानगी को देखकर मेरे पापाजी सब से कहते थे की --'इसको दहेज़ में आप सब रेडियो ही देना ' हा हा हा हा --
यह सच हैं की टी वी हम बैठकर देखते हैं और रेडियो हमारे साथ चलता हैं ..हमारा अंग बन कर ...आज इतने बड़े आदमी से परिचय करवाकर आपने मुझ पर उपकार ही किया हैं ललितजी ...मनोहर महाजनजी को हमेशा से सुनती रही हूँ आज देख भी लिया धन्यवाद ! दीपक हटवाल जी का नाम तो सुना हैं पर ज्यादा परिचय नहीं हैं .. जब भी छत्तीसगड आउंगी तो जरुर मिलूंगी --- जब मेरी दीदी इंदौर आकाशवाणी में थी तब में बहुत छोटी थी ..उनके साथ काम करने वाले काफी लोगो को जानती थी अब नाम भी भूल गई हूँ सिर्फ स्वतंत्रकुमार ओझाजी याद हैं ..
इस पोस्ट से पुरानी यादे ताजा हो गई ..आपको बहुत -बहुत धन्यवाद !
दिलचस्प आलेख. वास्तव में रेडियो का महत्व कभी कम नहीं हो सकता . मुझे तो लगता है कि लोगों में अब टी.व्ही. देखने का रुझान पहले की तुलना में काफी कम होता जा रहा है.भले ही टेलीविजन चैनलों के प्रबंधक अपने तथाकथित टी. आर. पी . को लेकर कुछ भी दावा करते रहें , लेकिन जरा अपने आस-पास देखिये ,उनके दावों की पोल खुलती नज़र आएगी . अब टी. व्ही. के परदे के आगे टकटकी लगा कर देखने और बैठने वालों की तादाद उतनी नहीं रह गयी है ,जो आज से कुछ बरस पहले हुआ करती थी. क्रिकेट की टेलीविजन कमेंट्री भी लोग अब टकटकी लगाकर नहीं देखते.
जवाब देंहटाएंदो दिन पहले ही फ़ौजी भाईयों के लिये कार्यक्रम सुन रहा था, तो जिस तरह से शब्दों को आवाज के जादू में ढ़ाला गया था मैं सुनकर दंग था ।
जवाब देंहटाएंललित जी
जवाब देंहटाएंबिना रेडियो के जिंदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती है . हम तो आज भी हर रात को छायागीत सुनते है .
आपका ये आलेख पसंद आया .
बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
ललित जी , पहली बार आपके ब्लॉग आया हूँ , रेडियो का जिक्र कर पुरानी यादें ताज़ा करदी |
जवाब देंहटाएंमगर एक बात कहूँगा " मूछें हों तो ललित जी जैसी वरना ना हों"
हटवार भाई साहब के संस्मरण सुनकर हंसी आई और आश्चर्य भी हुआ...
जवाब देंहटाएंसच है कम्युनिकेसन के तमाम साधनों के बावजूद रेडियो रेडियो ही है...
बढ़िया प्रस्तुति...
सादर बधाई...
रेडिओ के प्रति रुझान पुनः बढ़ा है...हटवार जी के बारे में जानना सुखद रहा.
जवाब देंहटाएंआप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सिर्फ़ सरकार ही नहीं लतीफे हम भी सुनाते है - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसेलेब्रिटी बनकर कुछ तो झेलना भी पड़ता है । फिर वो रेडियो का कलाकार ही क्यों न हो ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण ।
दीपक हटवार जी को कभी सुना नहीं ...पर आपने इतनी तारीफ़ की है तो जरुर बेमिसाल होंगे.आभार उनसे मिलाने का.और मजेदार किस्से सुनाने का.
जवाब देंहटाएंएक टीवी चैनल पर एकंर कहता है कि "कहीं जाईएगा नहीं, हम लौटकर आते हैं एक ब्रेक के बाद।" टीवी चैनल वालों को डर रहता है कि दर्शक टीवी के सामने से उठ कर न चला जाए, जबकि श्रोता के साथ रेड़ियो स्वयं ही चला जाता है। बहुत खूब ललित जी....रेडियो से आपका जुड़ाव और लगाव आलेख में साफ़ नज़र आ रहा है...आज भी हर दिन हम उद्धोषक रेडियो श्रोताओं की दीवानगी के गवाह बनते हैं...
जवाब देंहटाएंदीपक जी का जवाब नही.................मुझे बहुत खला जब वो इस साल राज्योत्सव में नही आयें..खैर....बधाई...
जवाब देंहटाएं:) रोचक आलेख, खासकर उद्घोषक के लिये श्रोताओं का दीवानापन कमाल की बात है।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ जानकारी मिली ..रेडियो पर भी गाना बजने के लिए कॉपी राईट लेना पड़ता है ..यह पता नहीं था ... हटवार जी से परिचय अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya sajeev chitrmay aalekh padhna bahut achha laga..
जवाब देंहटाएंrochak aur sarthak prastuti hetu aabhar..
बहुत अच्छा लगा सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सही है, आवाज का जादू सर चढ़ कर बोलता है।
जवाब देंहटाएंदीपक हटवार को बधाई।
दीपक हटवार से इस मुलाकात का शुक्रिया. काश भारत से भी इंटरनेट रेडियो की कुछ सुविधा होती तो शायद हमें भी दूर बैठे बैठे भी उनकी आवाज़ सुनने को मिल जाती :)
जवाब देंहटाएंbhai ji...aapki post padh kar ....purane din yaad aa agey jab radio sune bina raat ko neend nahi aati thi
जवाब देंहटाएंpost padha ka maza aa gaya...aabhar
aapki kamyabi ka raaj
जवाब देंहटाएंpata chala hume aaj
jo banati hai aapko khas
wo hai aapki dilkash aawaz
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंlalit ji ....
जवाब देंहटाएंinternet k zariye hamari jagah aapne kai logo k dil me bana di , aawaz k zariye har taraf bhatkne wale YAYAWAR ko aapne apne dil me panah di, ye hamari khushnasibi hai.
"bade khush kismat hote hai ve insan ,
jinhe nasib hota hai aap jaise dosto ka imaan "....
shubh kamnao k sath ----
DEEPAK HATWAR
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हमात्र्4ए सर पे तो आपकी लेखनी का जादू ही सर चडःा कर बोलता है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंललित जी आपका ह्रदय से आभार
जवाब देंहटाएंललित जी आपका ह्रदय से आभार
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