बिलासपुर स्टेशन |
सीटी बजाती हुई गाड़ी आगे बढती जा रही है। मैं स्लीपर कोच में बैठा अपनी मंजिल तक पहुंचने का इंतजार कर रहा हूं। तभी उपर वाली बर्थ खाली होती है और मैं उस पर चढ कर सोने का मन बनाता हूं। चलती गाड़ी के हिचकोलों में नींद आना भी मुश्किल है,ट्रेन को बिलासपुर से आगे नहीं जाना है। इसलिए आगे निकलने का खतरा नहीं है। सोचता हूँ, बाबु साहब से वादा किया था, 9 तारीख को अकलतरा पहुंचने का। 9 तारीख की सुबह चैट पर बाबु साहब ने याद दिलाया कि आज अकलतरा पहुंचना है मुझे, वे इंतजार कर रहे हैं। मेरा मन नहीं था जाने को। दोपहर की धूप के विषय में सोच कर। गर्मी बहुत बढ गयी है। घर पर ही रहा जाए तो ठीक है, लेकिन बाबु साहब ने फ़िर फ़ोन पर चर्चा कि और कहा कि चांपा का टिकिट ले लेना, मै आपको चांपा में मिलुंगा। मैने कहा कि - शाम को शताब्दी से आऊंगा और रात को आराम करके सुबह चलेगें घुमने। तो वे उस पर भी राजी हो गए। इतना कहने के बाद मैं अचानक उठ कर तैयार हो गया और घर से निकलते हुए बाबु साहब को फ़ोन लगा कर इत्तिला दी कि छत्तीसगढ एक्सप्रेस से पहुंच रहा हूं, यह गाड़ी बिलासपुर तक ही है। इसके बाद उत्कल से चांपा तक यात्रा करनी है।
दो ब्लॉगर - ललित शर्मा और रमाकांत सिंह (बाबु साहब) |
स्टेशन पहुंचने पर बाबु साहब ने मुझे नैला उतरने कहा, फ़िर थोड़ी देर बाद अकलतरा पहुचने। इतनी देर में ही तीन बार कार्यक्रम बदल चुका था। बिलासपुर पहुंचने पर पता चला कि उत्कल तो कब की छूट चुकी है। अब अकलतरा के लिए गोंदिया-झारसुगड़ा पैसेंजर ट्रेन का ही सहारा है। इस बीच एक घंटा मुझे बिलासपुर स्टेशन पर ही बिताना पड़ेगा। अब अरविंद झा याद आए, उन्हे फ़ोन लगाया, तो आधे घंटे में पहुचने का कह रहे थे। भूख भी लगने लगी थी, कुछ हल्का फ़ुल्का चटर-पटर खाया। तब तक अरविंद झा भी पहुंच गए। पैसेंजर ट्रेन प्लेट फ़ार्म पर लग चुकी थी। अरविंद झा एकदम चकाचक दिख रहे थे, कुछ बदलाव नजर आया मुझे उनमें, फ़िर ध्यान दिया तो मुंछों का फ़र्क था, उनकी नयी मुछें कहर ढा रही थी। हमारी बिरादरी में मिलने की तैयारी लगी। अगले माह दरभंगा जाने का प्रोग्राम बन गया। फ़िर वहीं से जनकपुर इत्यादि। ट्रेन ने सीटी बजाई, गार्ड ने झंडी दिखाई और गाड़ी चल पड़ी। अरविंद स्टेशन पर छूट गए। वापसी में मिलने का वादा रहा। रात को मिल बैठेगें दीवाने तीन, मै, अरविंद और श्याम कोरी "उदय", फ़िर जम जाएगी महफ़िल।
जयराम नगर स्टेशन में संगमरमर का बोर्ड |
बिलासपुर से चलकर गतौरा स्टेशन में ट्रेन रुकी। ट्रेन की खिड़कियों में हुक लगा कर दूध के डिब्बे और सब्जियों की गठरियाँ भी टांग रखी थी। ट्रेन रुकते ही वे अपना सामान फ़टाफ़ट उतारने लगे। मेरी खिड़की पर भी यही हाल था। बड़ी बड़ी गठरियां लदी हुई थी। पैसेंजर ट्रेन है, आवश्यकता पड़ने पर बकरियाँ भी लाद ली जाती हैं बिना टिकिट। टिकिट बाबु को 10-20 देने से काम चल जाता है। हम तो सुपरफ़ास्ट की टिकिट लेकर पैसेंजर की सवारी कर रहे थे। अरपा नदी का पुल पार करने के बाद जयरामनगर स्टेशन आता है पहले इसे पाराघाट कहा जाता है। जयराम नगर एकमात्र स्टेशन है जहाँ संगमरमर का बोर्ड लगा है स्टेशन के नाम का। इसके बाद पैसेंजर हाल्ट कोटमी सोनार आता है। दाएं तरफ़ देखने से वाच टावर जैसी संरचना दिखाई देती है साथ ही तारों की बाड़ की घेरे बंदी भी। मै इस स्थान के बारे में कयास लगा रहा था तभी बाबु साहब का फ़ोन आता है और वे बताते हैं कि यही क्रोकोडायल पार्क है। इसे कहते हैं टेलीपैथी। मै ट्रेन में क्या सोच रहा हूं यह जानकारी बाबु साहब को हो जाती है और वे मुझे फ़ोन पर उस स्थान के बारे में बता देते हैं। सिद्ध पुरुषों के यही चमत्कार होते हैं।
अकलतरा का स्कूल |
छुक छुक गाड़ी अकलतरा स्टेशन पर पहुंचती है। इस स्टेशन से कई बार होकर गुजरा लेकिन यहां उतरा एक बार भी नहीं। डिब्बे से बाहर आता हूँ तो लू की लपट लगती है, टेम्परेचर 42 के पार लगता है। 22N01 82E26 अक्षांश देशांश पर अकलतरा स्थित है, डिब्बे से बाहर आते ही बाबु साहब नजर आते हैं, राम राम होने के बाद हम उनके घर चल पड़ते हैं। 2 बज रहे हैं, मंझनियाँ का समय और सूरज अपने पराक्रम पर। घर पहुंच कर सबसे पहले हस्त-मुख प्रक्षालन होता है। बाबु साहब कहते हैं - भोजन करके थोड़ा आराम कर लेते हैं फ़िर घुमने चलेगें। उन्होने कई जगह जाने का कार्यक्रम पहले से ही बना रखा है। उनकी माता जी एवं बहने बढिया खाना खिलाती हैं, बड़ी बिजौरी के साथ परम्परागत भोजन का आनंद ही कुछ और है। अंत में एक कटोरी गोरस भोजन पचाने के लिए काफ़ी होता है। थोड़ा आराम करने के बाद हम अकलतरा के कोट गढ के मड फ़ोर्ट को देखने निकलते है तो बाबु साहब कहते हैं, तनि स्कूल और बैंक देखते हुए चलते हैं। इस स्कूल के सांस्कृतिक मंच की गरिमा है कि इस पर देश की नामी हस्तियों ने अपनी बात कही है।
सहकारी भवन |
हम स्कूल की ओर चलते हैं। बाबू साहब मुझे स्कूल और सहकारी बैंक दिखाना चाहते हैं। सहकारी बैंक की पुरानी बिल्डिंग खंडहर हो चुकी है। उसमें जड़े तालों में जंग लग चुकी है। सहकारी बैंक की स्थापना डॉ इंद्रजीत सिंह (अकलतरा के मालगुजार और राहुल भैया के दादा जी) ने की थी, वे सहकारी आंदोलन से जुड़े थे और भूमि दान की थी बैंक की स्थापना के लिए, वे ट्रस्टीशिप और सहकारिता के प्रबल पक्षधर थे। उन्हीं की प्रेरणा मानी जा सकती है कि अकलतरा का उ मा शाला का संचालन आज भी सफलता और कुशलतापूर्वक निजी संस्था द्वारा किया जा रहा है। स्कूल, अस्पताल, थाना, सहकारी बैंक एवं अन्य संस्थानों के लिए डॉ इंद्रजीत सिंह ने मुक्त हस्त से भूमि दान की। हम सहकारी बैंक में लगे उद्धाटन शिला की फ़ोटो लेना चाहते थे। परन्तु तालों में जंग लगने के कारण वे खुले नहीं। बाबु साहब ने बहुत कोशिश की।
सहकारी बैंक के बड़े बकायादार |
आखरी इलाज इन्हे तोड़कर ही खोलने का था, जो हमने स्थगित कर दिया। सहकारी बैंक नए भवन में चला गया है, पुराना भवन खंडहर होकर ढह रहा है। इस भवन में कालातीत ॠणियों (बकायादारों) की सूची लगी है। कुछ लोगों के लिए खुशी की बात होती थी कि बैंक के ॠणियों की सूची में नाम होना। अगर जिसका नाम सूची में नहीं है उसकी इज्जत ही क्या है। बैंक का चुनाव भी लड़ने की पात्रता उसे ही है जो बैंक का कर्जदार होता है। इसलिए सहकारी बैंक से कर्ज लेना अनिवार्य मजबूरी है समझिए। एक ऐसी ही लिस्ट मुझे यहाँ देखने मिली। स्कूल के सामने ग्राऊंड में बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं और साथ ही चुस्की वाले का ठेला भी लगा है। गर्मी में ठंडक का अहसास लेना है तो चुस्की का आनंद लेना ही पड़ेगा। अब चुस्की का आनंद लेते हुए हम चल पड़ते हैं कोट गढ की ओर… … …… आगे पढें
मजेदार रहा आज का सफ़र ..! १०-२० में आजकल दूध भी नहीं आता ..? यह बिजौरी क्या हैं ? और यह गोरस ??? समझ नहीं आया ......
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक यात्रा विवरण... अगले अंक का इंतजार है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, अच्छी यात्रा रही आपकी हमें भी आनंद आया इस यात्रा के साथ चलने में..
जवाब देंहटाएंबिजइरी तिल दाल की नमकीन बडियां और गोरस दूध
जवाब देंहटाएंमजा आ गया ललित भाई.... बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ने मिला...
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब यात्रा की बधाई
जवाब देंहटाएंउल्फ़त का असर देखेंगे!
रोचक यात्रा विवरण...
जवाब देंहटाएंrochak yatra wiwaran ke liye badhai....
जवाब देंहटाएंइधर यात्रा शुरू भी नहीं हुई कि एपीसोड खत्म :)
जवाब देंहटाएंरमाकांत सिंह जी ने अपने प्रोफाइल में युवावस्था का फोटो लगा कर पुराने दिन संजो रखे थे और हमें भी इसकी आदत हो गई थी पर...आपकी फोटो बाजी की आदत का सत्यानाश हो ! सारी दुनिया तहस नहस कर दी ! सारी घड़ियों की सुइयां तोड़ डालीं :)
अगले एपीसोड में मड फोर्ट का फोटो हर एंगल से देखना चाहूंगा !
sundar yatra vrutant...
जवाब देंहटाएंअफसोस हम स्वागत न कर सके, लेकिन शुभकामनाएं हैं ही आपके साथ और हैं बाबू साहब, जिनके साथ रहने से हर यात्रा रोमांचक और सार्थक हो जाती है.
जवाब देंहटाएंचलिए कोटगढ़, हम भी साथ लग लेते हैं.
जवाब देंहटाएंजीवन भी एक यात्रा ही है ......बस चलते जाना है ....आप यूँ ही जानकारी हमें उपलब्ध करवाते रहें ....!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विवरण..
जवाब देंहटाएंबेसब्री से इंतजार है, विक्रमार्क वेताल के शव को कंधे पर लाद कर गतांक से आगे की शुरुआत करेगा ?
जवाब देंहटाएंट्रेन में बैठकर ट्रेन यात्रा के बारे में पढ़ना एक अलग ही अनुभव देता है।
जवाब देंहटाएंअकलतरा का नाम अकलतरा कैसे पड़ा ! इसका पड़ताल किए कि नही.....यात्र्ाा वर्णन रोचक.......................
जवाब देंहटाएंchhuk chhuk chhuk chhuk:))
जवाब देंहटाएंशानदार वृतांत
जवाब देंहटाएंबिजौरी की भी क्या खूब याद दिलाई आपने!
मुंह में पानी आ गया!!
यम्मी यम्मी :-)
आज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सुन्दर वृत्तांत. आपकी पोस्टों के माध्यम से हम अपनी यादें ताज़ी कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रिपोर्ट .... रमाकांत जी का ब्लॉग देखा था पहले भी पढ़ती रही हूँ ..... आभार यहाँ परिचय देने का
जवाब देंहटाएंवाह! मजा आ गे.... जयराम नगर ल देख के भभर गेंव ललित भईया... मोर 12 साल बीते हवे इंहा....
जवाब देंहटाएंसुन्दर वृत्तांत.
जवाब देंहटाएंआपका यात्रा वृत्तांत काफ़ी रोचक है। राहुल जी के माध्यम से अकलतारा के बारे में जानने सुनने को तो मिलता ही रहता है। आज तो और भी कई जानकारी मिली।
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