भई अब तो लिखना ही पड़ेगा कि कार्यक्रम हो तो ऐसा! अनिल पुसदकर ने एक महीने पहले फ़ोन कर के बताया कि उनकी कृति "क्यों जाऊं बस्तर? मरने! का विमोचन 31 मार्च को होना है, साथ ही यह भी कहा कि "31 मार्च को कहीं दूसरी जगह का कार्यक्रम न बनाना और कार्यक्रम में उपस्थित होना है। मैं निमंत्रण पत्र भिजवा रहा हूँ। मैने कहा कि - निमंत्रण पत्र की आवश्यकता नहीं है, आपका फ़ोन ही काफ़ी है। मैं समय पर पहुंच जाऊंगा। उसके बाद अनिल भाई भी व्यस्त हो गए विमोचन के इंतजाम में और हम भी अपनी निठल्लाई में लग गए। अनिल भाई से लगाव तो सदा से ही रहा है। उनकी साफ़गोई पसंद आती है। मन भेद कभी रहा नहीं।
पुस्तक विमोचन का प्रचार कार्य जोरों पर चल रहा था। 31 मार्च 2012 का वह दिन भी आ गया। पुस्तक के प्रकाशक सुधीर शर्मा जी का भी मैसेज आया था कि यह उनके प्रकाशन की 300 वीं पुस्तक है जरुर आना है। हम दोपहर 12 बजे ही पंहुच गए, भई कार्यक्रम अपना ही था, इसलिए जल्दी भी पहुंचना जरुरी था। पुस्तक का विमोचन छत्तीसगढ के यशस्वी मुंख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के हाथों होना था। स्थान मेडिकल कॉलेज का सभागृह था। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम 4 बजे होना था। हम (राहुल सिंह, जी के अवधिया, राकेश तिवारी, अरुणेश दवे) भी मेडिकल कॉलेज 4 बजे ही पंहुच गए। पंहुचते ही अनिल भाई मिले और हमने उन्हे शुभकामनाएं दी। व्यस्तता के बीच उन्होने हमें समय दिया। हमने अपना स्थान ग्रहण किया।
थोड़ी ही देर मे सभागृह खचाखच भर चुका था। नेता, अभिनेता, अधिकारी, कर्मचारी, आम नागरिक, खास नागरिक, डॉक्टर्स, यार दोस्त सभी, याने छोटे बड़े हर तबके से लोग पहुंच चुके थे। जितने लोग भीतर बैठे थे उतने ही बाहर खड़े थे। ऐसा वृहद और गरिमामय पुस्तक विमोचन समारोह मैने पहली बार देखा। यह सब अनिल भाई के व्यक्तिगत संबंधों का प्रताप था। उपस्थित जनों को देखकर इनके सामाजिक संबंधों के दायरे का पता चलता है। सभी लोगों से सहज भाव से मिलना और उसे आत्मीयता का अहसास करा देना अनिल भाई की खूबी है। जिसका परिचय कार्यक्रम में उपस्थिति से पता चलता है।
अनिल भाई के बचपन एवं स्कूल-कॉलेज के मित्रों ने मोर्चा संभाल रखा था। कार्यक्रम के मुख्यातिथि छत्तीसगढ के यशस्वी मुंख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, मुख्य वक्ता राज्यसभा सदस्य तरुण विजय थे एवं विशेष अतिथि बस्तर के आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा थे। कार्यक्रम 2 घंटे विलंब से शुरु हुआ। उपस्थित महानुभावों के द्वारा पुस्तक का विमोचन किया गया तथा पुस्तक पर चर्चा हुई।
मुख्यमंत्री डॉ.रमनसिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस कार्यक्रम में आने के लिए कई लोगों ने मुझे मना किया। मुख्यमंत्री ने कहा यह कोई सरकारी आयोजन नहीं है। एक पत्रकार का आयोजन है इसलिये मैं यहां आया। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं ऐसे कार्यक्रम जगह-जगह आयोजित हो , स्वस्थ्य बहस हो और नक्सल समस्या का शीघ्र समाधान निकले। शीर्षक और मुद्दे पर कम चर्चा हुई, किन्तु अनुकंपा नियुक्ति के मामले पर उन्होंने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति कोई बडी़ बात नहीं है। सरकार ने नियम बना दिये हैं कि शहीद के परिजनों को तब तक पूरा वेतन दिया जायेगा, जब तक शहीद की उम्र रिटायर्ड तक पूरी नहीं हो जाती।
कार्यक्रम में महेन्द्र कर्मा ने कहा कि नक्सल समस्या अब अकेले कांग्रेस या भाजपा या फिर किसी एक पार्टी के बस की बात नहीं है। सबको मिलकर इसका समाधान खोजना होगा। सरकार को दांव पर भी लगाना पड़ सकता है। विशेष यह था कि अनिल भाई ने पुस्तक के कुछ अंश को पॉडकास्ट भी किया। गंभीर आवाज में पुस्तक का वाचन बहुत अच्छे ढंग से किया गया। अनिल भाई को मेरी तरफ़ से एक बार पुन: बधाई एवं शुभकामनाएं। ये सच है कि ऐसा पुस्तक विमोचन कार्यक्रम मैने कभी देखा नहीं।
वाह ..
जवाब देंहटाएंअनिल पुसदकर जी को बहुत बहुत बधाई !!
Badhayi ho....
जवाब देंहटाएंअनिल जी को बहुत बहुत बधाई और इस कार्यक्रम की जानकारी देने के लिए आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार|
जवाब देंहटाएंअनिल भाई तो बधाई के पात्र हैं हीं, आपका भी आभार कि आपने कार्यक्रम की गरिमा बधाई.
जवाब देंहटाएंअनिल जी को बहुत बहुत बधाई , सुन्दर आलेख के लिए आपका बहुत - बहुत आभार ...
जवाब देंहटाएंअनिल पुसदकर जी को पुस्तक के विमोचन पर बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवैसे कल फेसबूक पर इस आयोजन के बारे मे आपने लिखा था वो कौन सा था !?
अनिल जी को बहुत बहुत बधाई। आपको भी इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंpay lagi .sundar prastuti ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख के लिए आपका बहुत - बहुत आभार ...
aapko sunder aalekh aur anil ji ko pustak wimochan pr bahut bahut badhai.
जवाब देंहटाएंएक सामयिक और संवेदनशील पुस्तक के लिये बहुत बहुत बधाई अनिलजी को।
जवाब देंहटाएंअनिल जी को बधाई......
जवाब देंहटाएंआपके सुन्दर प्रस्तुतीकरण को भी (लाल) सलाम :-)
सादर
अनु
आप सभी को शुभकामनाएं, देहात की नारी का आगाज ब्लॉग जगत में
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंअनिल पुसदकर जी को बहुत बहुत बधाई !!और इस आयोजन की जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद.
सरकार ने नियम बना दिये हैं कि शहीद के परिजनों को तब तक पूरा वेतन दिया जायेगा, जब तक शहीद की उम्र रिटायर्ड तक पूरी नहीं हो जाती।
जवाब देंहटाएंयह बात मन को कहीं सुकून पहुंचाने वाली लगी .... बहुत अच्छी प्रस्तुति ....
अनिल जी को बधाई और शुभकामनायें
hm to kahenge ki blog lekhan ho to aisa.....sunder aur sarthak lekhan ki liye badhai lalit ji..
जवाब देंहटाएंसचमुच स्मरणीय आयोजन. पुसदकर जी की आवाज में पुस्तक का अंश, याद कर रोमांच होने लगता है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रस्तुति अनिल जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंस्थान : मरण स्थल से
जवाब देंहटाएंटिप्पणीकार : अली सैयद
पृष्ठभूमि : अनिल जी के ब्लॉग में एक दो माह पहले इस आशय का आलेख आया था ! हमने टिप्पणी दी तो वो जाने कहां बिला गई !
हमारी मांग : मरण स्थल के टिप्पणीकारों की टिप्पणी को किसी बिल में बिलाने के विरुद्ध शरण दी जाये ! हमारी ना सही हमारी टिप्पणियों की रक्षा की जाये !
फिलहाल उद्देश्य : आपकी पोस्ट पर आगमन का एकमात्र उद्देश्य आप सभी के लिए शुभकामनायें प्रस्तुत करना है :)
ललित जी आपकी फोटो देखकर यह ख्याल आया है ,ना कहूँगा तो बेईमानी होगी :)
जवाब देंहटाएंघने काले बाल और तगड़ी मूंछें रखने से कुछ नहीं होता ज़रा राहुल सिंह जैसी मुस्कराहट पैदा करके दिखाओ :)
अनिल पुसदकर जी को बहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंएक विमोचन समारोह इतने गौरवपूर्ण भद्र आयोजन के साथ वाकई स्तुत्य है।
जवाब देंहटाएंअनिल जी को ढ़ेरों बधाई!!
और हां, अली साहब का कमेंट देखकर मैने आलेख को दोबारा पढ़ा कि ललित जी नें मूंछों से क्या करने का प्रयास किया है। :)
लेकिन ललित जी आपकी मूंछे बिन कहे भी आग लगा देती है। :)
अनिल जी को पुस्तक विमोचन पर हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअनिल भाई को मुबारकबाद देते हुए इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए आपका आभार ललित जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया। पुसदकर जी को एक बार फिर से बधाई!
जवाब देंहटाएंरपट बता रही है कि कार्यक्रम कितना गरिमामय था।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आप सब को।
बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. ललित व आप सभी की शुभकामनाओं से वो कार्य्रक्रम सफल हो पाया.लिखना पढना तो मैने लगभग छोड दिया था,पर भला हो संजीत त्रिपाठी का और ब्लाग जगत का जिसने मुझे लिखने पढने से अलग नही होने दिया.आप सभी की बधाई व प्यार से मैं अभिभूत हूं.शब्द भी नही है मेरे पास,कर्ज़दार हूं मैं आप सब के प्यार का.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
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