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प्राचीन बंदरगाह |
महर्षि
महेश योगी की जन्म भूमि पाण्डुका से आगे सिरकट्टी आश्रम से पहले मगरलोड़ और मेघा की ओर जाने वाले पुल के किनारे नदी में लेट्राईट को तोड़ कर बनाई गयी कुछ संरचनाएं दिखाई देती हैं। मैने कयास लगाया कि यह अवश्य ही बंदरगाह है। नदी में उतर कर बंदरगाह का निरीक्षण किया एवं कुछ चित्र लिए। बंदरगाह की गोदियों में घूमते हुए कई तरह के विचार आ रहे थे। कौन लोग यहाँ से व्यापार करते थे? यह बंदरगाह किस समय बना? किसने बनाया? आदि आदि। इन प्रश्नो के उत्तर बाद में ढूंढेगे, पहले सिरकट्टी आश्रम देख लें, नाम तो बहुत सुना था पर देखा नहीं था। पैरी नदी के तट पर कुटेना ग्राम का सिरकट्टी आश्रम स्थित है। आश्रम का नाम सिरकट्टी इसलिए पड़ा कि यहाँ मंदिर के अवशेष के रुप में सिर कटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई, जिन्हे बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया। तब से इसे सिरकट्टी आश्रम के नाम से जाना जाता है।
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सिर कट्टी आश्रम |
यहाँ बैरागी पुनीतराम शरण से चर्चा हुई। उन्होने बताया कि महाराज भुनेश्वरीशरण दास ने 16 वर्ष की आयु में सन्यास ले लिया था। उन्हे ग्राम कुटेना स्थित चंडी मां ने स्वप्न में इस स्थान की जानकारी दी। तो ग्राम वासियों के सहयोग के वे इस स्थान पर बैठ गए और यज्ञ करने लगे। आश्रम में स्थित सिरकटी मूर्तियाँ एक दीमक की बांबी से प्राप्त हुई थी। उन्होने बताया कि भुनेश्वरीशरण दास को कुछ द्रव्य के साथ दो शिवलिंग भी यहाँ प्राप्त हुए, जिसमें से पेड़ के नीचे एक स्थापित है, दूसरा मंदिर में स्थापित है। इस स्थान पर सुदूर प्रांतों से संत आते हैं, संतों का आगमन 1963 से हो रहा है, अब वे यहीं स्थायी रुप से बस कर आश्रम की सेवा कर रहे हैं। आश्रम में जाति समाज वालों ने अपने भवन बना रखे हैं। यहाँ लगभग सौ अधिक गाय भैस हैं एवं आश्रम के नाम से लगभग 40-50 एकड़ जमीन है। जो कुटेना, पाण्डुका, जटिया सोरा, पोंड, गाड़ा घाट एवं फ़िंगेश्वर आदि गांवों में है।
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प्राचीन बंदरगाह |
अब चर्चा करते हैं बंदरगाह की, मानव सभ्यता का उद्भव एवं विकास समुद्र तथा नदियों के किनारे हुआ। जलमार्ग ही आवागमन एवं परिवहन का प्रमुख साधन था। प्राचीन काल में थलमार्ग से परिवहन कम ही होता था। जितनी भी प्राचीन राजधानियाँ एवं शहर हैं, सभी नदियों के तट पर ही स्थित हैं। अन्य राष्ट्रों से व्यापार जल मार्ग से होता था तथा वर्तमान में भी हो रहा है। वास्कोडिगामा, कोलंबस इत्यादि यायावर भी जल मार्ग से ही भारत में प्रविष्ट हुए। जल परिवहन द्वारा व्यापार करना थल परिवहन से कम लागत में हो जाता है। नाव एवं बड़े जहाजों के माध्यम से माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1/25/7, 1/48/3, 1/56/2, 7/88/3-4 इत्यादि)। प्रथम मंडल (1-116-3) की एक कथा में 100 डाँड़ोंवाले जहाज द्वारा समुद्र में गिरे कुछ लोगों की प्राणरक्षा का वर्णन है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि ऋग्वेद काल, अर्थात् लगभग 2,000 - 1,500 वर्ष ईसा पूर्व, में यथेष्ट बड़े जहाज बनते थे और भारतवासी समुद्र द्वारा दूर देशों की यात्रा करते थे। इन जहाजों के द्वारा लाए गए माल को उतारने के लिए गोदी या बंदरगाहों का निर्माण किया जाता था। छत्तीसगढ की प्रमुख नदी चित्रोत्पला गंगा महानदी के जल मार्ग से व्यापार होता था। महानदी के तट पर स्थित प्राचीन नगर राजधानी सिरपुर के उत्खन में व्यापार से संबंधित वस्तुएं एवं प्रमाण प्राप्त हो रहे हैं।
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महानदी उद्गम स्थान - भीतररास |
चित्रोत्पला गंगा महानदी का उद्गम
सिहावा नगरी के भीतररास ग्राम से हुआ है। भीतररास में महानदी दक्षिण की ओर प्रवाहित होती प्रतीत हुई। महानदी के उद्गम स्थान पर मेरा दो बार जाना हुआ। महानदी धमतरी जिले के सिहावा नगरी स्थित भीतररास ग्राम से निकल कर 965 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती है। इसकी सहायक नदियाँ हसदो, जोंक, शिवनाथ, पैरी एवं सोंढूर नदियाँ है। पैरी, सोंढूर एवं महानदी का त्रिवेणी संगम पद्मक्षेत्र राजिम मे होता है। इस संगम पर कुलेश्वर (उत्पलेश्वर) महादेव का मंदिर है। जहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को मेला भरता है, जिसे अब
राजिम कुंभ का नाम दिया गया है। पैरी नदी का उद्गम मैनपुर से लगे हुए ग्राम भाटीगढ से हुआ है। पहाड़ी पर स्थित पैरी उद्गम स्थल से जल निरंतर रिसता है। अब इस स्थान पर छोटा सा मंदिर भी बना दिया गया है। पैरी और सोंढूर नदी का मिलन रायपुर-गरियाबंद मार्ग पर स्थित मालगाँव के समीप मुहैरा ग्राम के समीप हुआ है। यहाँ से चल कर दोनो नदियाँ महानदी से जुड़ जाती है। राजिम पद्मक्षेत्र पैरी नदी के तट पर स्थित है।
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डॉ विष्णु सिंह ठाकुर एवं यायावर |
पैरी नदी के तट पर कुटेना में स्थित यह बंदरगाह (गोदी) पाण्डुका ग्राम से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। अवलोकन करने प्रतीत होता है कि इस गोदी का निर्माण कुशल शिल्पियों ने किया है। इसकी संरचना में 90 अंश के कई कोण बने हैं। कठोर लेट्राईट को काटकर बनाई गयी गोदियाँ तीन भागों में निर्मित हैं, जो 5 मीटर से 6.60 मीटर चौड़ी तथा 5-6 मीटर गहरी हैं। साथ ही इन्हें समतल बनाया गया, जिससे नाव द्वारा लाया गया सामान रखा जा सके। वर्तमान में ये गोदियाँ नदी की रेत में पट चुकी हैं। रेत हटाने परगोदियाँ दिखाई देने लगी। प्रख्यात इतिहासकार एवं पुरात्वविद डॉ विष्णु सिंह ठाकुर से इस विषय मेरी चर्चा हुई। उन्होने इसे चौथी शताब्दी ईसा पूर्व माना। बताया कि इस स्थान पर महाभारत कालीन मृदा भांड के टुकटे भी मिलते हैं। नदी से "कोसला वज्र" (हीरा) प्राप्त होता था तथा जल परिवहन द्वारा आयात-निर्यात होता था।
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गरियाबंद मार्ग पर मालगाँव |
गरियाबंद 15 किलोमीटर पर पैरी नदी के तट पर स्थित एक ग्राम का नाम मालगाँव है। यहाँ नावों द्वारा लाया गया सामान (माल) रखा जाता था। इसलिए इस गांव का नाम मालगाँव पड़ा। मालगाँव में पैरी नदी के तट पर आज से लगभग 10-15 वर्ष पूर्व तक एक रपटा (छोटा पुल) था जो नदी में पानी आने के कारण वर्षाकाल में बंद हो जाता था। जिससे गरियाबंद से लेकर देवभोग एवं उड़ीसा तक जाने वाले यात्री प्रभावित होते थे। नाव द्वारा नदी पार कराई जाती थी और उस पार बस गाड़ी इत्यादि के साधन से लोग यात्रा करते थे। वर्तमान में इस नदी पर पुल बनने के कारण बरसात में भी मार्ग खुला रहता है। वर्षाकाल में रायपुर से देवभोग जाने वाले यात्री मालगाँव से भली भांति परिचित होते थे, क्योंकि यहीं से पैरी नदी को नाव द्वारा पार करना पड़ता था। यहाँ से महानदी के जल-मार्ग के माध्यम द्वारा कलकत्ता तथा अन्य स्थानों से वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। पू्र्वी समुद्र तट पर ‘कोसल बंदरगाह’ नामक एक विख्यात बन्दरगाह भी था। जहाँ से जल परिवहन के माध्यम से व्यापार होता था। इससे ज्ञात होता है कि वन एवं खनिज संपदा से भरपूर छत्तीसगढ प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। नदियाँ इसे धन धान्य से समृद्ध करते रही हैं।
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प्राचीन बंदरगाह |
अच्छा लगा पढ़ जान कर
जवाब देंहटाएंविस्तृत एवं सुदृढ़ विश्लेषण सहित लिखा यह आलेख पुरातात्विक विषय पर है ; आलेख बहुत पसंद आया ;
जवाब देंहटाएंसुन्दर। कुछ पुरानी यादें ताज़ी हो गयीं। 90 के दशक में पंदुका के बगल से पैरी नदी तक जाना हुआ। वहां नदी किनारे ऐसी ही संरचना दिखी थी। हमने भी नावों से माल उतारने के लिए किया गया प्रयोजन ही माना था। उन दिनों केमेरा में फिल्म हुआ करती थी। सो उनके प्रिंट्स ही हैं। आपकी तस्वीरों में एक पुल दिख रहा है। क्या यह कोई दूसरी जगह है?
जवाब देंहटाएं@P.N. Subramanian
जवाब देंहटाएंजगह वही है, अब यहाँ पुल बन गया है .
छत्तीसगढ प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। नदियाँ इसे धन धान्य से समृद्ध करते रही हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी उपलब्ध कराता आपका यह आलेख
आभार
हर बार की तरह ...आपकी दी गई जानकारी हमारे लिए नई होती है ....
जवाब देंहटाएंअन्यथा कभी परिचय न हो पाता। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही नदी मार्ग व्यापार का सशक्त माध्यम रहा होगा, यह बंदरगाह उत्कृष्ट योजना का प्रमाण है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया विश्लेषण ... पुरातात्विक जानकारियों से परिपूर्ण आलेख ... आभार
जवाब देंहटाएंइन सब के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। चित्रों ने विवरण में चार चांद लगा दिए हैं।
जवाब देंहटाएंशानदार जानकारी चित्रों ने चार चाँद लगा दिए
जवाब देंहटाएंउपयोगी व संग्रहणीय जानकारियाँ प्रदान करने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंउपयोगी व संग्रहणीय जानकारियाँ प्रदान करने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंदेर से पढ़ पाया
जवाब देंहटाएंSir
जवाब देंहटाएंMai sirkatti k bagal k gao me rhta hu
Aap jo bol rahe ho
Hamare purwaj waisa nhi batate..
आपके पूर्वज क्या कहते थे वो बताईए।
हटाएंMuje jhan kar bahut hi achhq laga sir thankyou
जवाब देंहटाएंBahut hi achhi jankari mili
जवाब देंहटाएंBahut hi achhi jankari mili
जवाब देंहटाएंBahut hi achhi jankari mili
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी आदरणीय
जवाब देंहटाएंआपका कॉन्टेक्ट नम्बर चाहिए आदरणीय
जवाब देंहटाएं