मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ। नदियों को मानव
ने जीवनोपयोगी साधन जुटाने के साथ आवागमन का माध्यम बनाया। नीलनदी घाटी की सभ्यता, सिंधु
घाटी की सभ्यता से लेकर अद्यतन मानव जीवन नदियों पर ही आधारित है। परिवहन का माध्यम
नदियाँ नहीं रही परन्तु कृषि कार्य एवं मानव निस्तारी के लिए जल नदियों से ही प्राप्त
होता है। हमारी संस्कृति में नदियों को माँ का स्थान दिया गया है। जननी अपनी संतान
की भली भांति देखभाल करके उसका पोषण करती है उसी तरह नदियाँ भी मानव का पोषण करती हैं।
ऐसा कोई भी प्राचीन शास्त्र नहीं है जिसमें नदियों की महत्ता
को स्वीकार नहीं किया गया हो। शास्त्रों ने नदियों का सदैव गुणगान किया है। हमारे भारत
में कई बड़ी नदियाँ है जो हिमालय से निकल कर हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करते हुए समुद्र
तक पहुंचती हैं। हमारे जीवन में नदियों का स्थान महत्वपूर्ण होने के कारण समस्त तीर्थ
नदियों के किनारे पर ही विकसित हुए।
पद्म पुराण माता एवं गंगा को समान स्थान देते हुए कहता है - सर्वतीर्थमयी
गंगा तथा माता न संशय: ( गंगा एवं माता सर्वमयी मानी गई है, इसमें
कोई संदेह नहीं है। नदियों का महिमा गान करते हुए शास्त्र कहते हैं कि सरस्वती का जल
तीन सप्ताह तक स्नान करने से, यमुना का जल एक सप्ताह तक गोता लगाने से और गंगा जी का जल स्पर्श
करने मात्र से ही पवित्र करता है, किंतु नर्मदा का जल दर्शन
मात्र से ही पवित्र कर देता है।
पद्म पुराण में गंगा की महिमा का बखान करते हुए महादेव जी कहते
हैं - गंगा गंगेति यो ब्रुयाद योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो
विष्णुलोकं स गच्छति। (गंगा के नाम श्रवण मात्र से तत्काल पापों का नाश हो जाता है। मनुष्य सैकड़ों योजन दूर से भी गंगा-गंगा
शब्द का उच्चारण करता है तो वह सब पापों से मुक्त होकर अंत में विष्णु लोक को जाता
है। देव लोक में उच्च स्थान को प्राप्त तारणहारी गंगा आज अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
गंगा प्रदुषित होने के कारण उसमें जीव मात्र का प्राण हरण करने
वाले तत्वों की मात्रा बढ़ गई है। जिससे जलचरों के साथ मानव भी संकट में है। जबकि पुरखो
ने पूर्व में ही चेतावनी देते हुए गंगा के समीप शौच, गंगा
जी में आचमन (कुल्ला करना) बाल झाड़ना, निर्माल्य
झाड़ना, मैल छुड़ाना, शरीर मलना, हँसी
मजाक करना, दान लेना, रतिक्रिया करना, दूसरे
तीर्थ के प्रति अनुराग, दूसरे तीर्थ का महिमागान, जल पीटना
और तैरना आदि चौदह कर्म वर्जित कर रखे हैं।
आधुनिकता के युग में पुरखों की चेतावनियों को मनुष्य ने विस्मृत
कर दिया। जिसके परिणाम स्वरुप गंगा एवं अन्य नदियों का जा पावन जल प्रदुषित हो रहा
है। कई नदियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। कई नदियाँ मर चुकी हैं और कई नदियाँ शनै: शनै: मृत्यू
की ओर बढ़ रही हैं। नद: रक्षति रक्षित:, नद्य हन्ति हन्त:। अर्थात
नदी की रक्षा होगी तो वह भी रक्षा करेगी। नदी का जल स्वच्छ होगा और वह सतत प्रवाहित
होगी तो प्राणदायिनी बनकर प्रकृति के समस्त चराचर जीवों का पोषण एवं पालन करेगी। अगर
नदी मर गई तो चराचर जगत भी मृत्यू को प्राप्त हो जाएगा और संसार में मानव सभ्यता नष्ट
हो जाएगी।
भारत की सभी नदियाँ कमोबेस प्रदूषण का शिकार हैं, कल कारखानों
के अवशिष्ट से लेकर शहरों की गंदगी एवं मल-मूत्र बेखटके नदियों में
प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे नदियाँ मर रही हैं, नदियों
में जल नहीं होने के कारण आस-पास का भूजल भी धरातल से रसातल में जा रहा है। छत्तीसगढ़ में
महानदी में वर्षा ॠतु में ही जल दिखाई देता है, शिवनाथ, खारुन, इंद्रावती
इत्यादि नदियाँ भी प्रदूषित हो रही हैं। बिलासपुर स्थित अरपा नदी तो मर ही चुकी है।
भारत की अन्य नदियों का भी यही हाल है। इन नदियों के संरक्षण के साथ जल का शुद्धिकरण
एवं भूजल को भी रिचार्ज करना आवश्यक हो गया है।
नदियों के संरक्षण से मानव सभ्यता का संरक्षण होगा। इसके लिए
सरकार के साथ आम नागरिकों एवं मीडिया को भी पहल करनी होगी। नदियों को प्रदूषण से बचाने
के लिए सरकार को भी अपनी भूमिका तय करनी होगी। मीडिया द्वारा जन जागरण कालांतर में
अवश्य ही मानव के विचारों में परिवर्तन लाकर उन्हें नदियों के प्रदूषण के प्रति जागरुक
बनाएगा। इस जन जागरण अभियान में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। आज मीडिया को इस
विषय पर मंथन करना चाहिए। जब प्रिंट मीडिया स्पेस की कमी से जूझ रहा है तब न्यू मीडिया
को कारगर जिम्मेदारी निभानी होगी। तभी इस भगीरथ कार्य में सफ़लता मिल सकती है। आओ हम
सब संकल्प लें और एकजुट होकर नदियों को बचाएँ।
सार्थक पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंनदियों के संरक्षण से मानव सभ्यता का संरक्षण होगा। इसके लिए सरकार के साथ आम नागरिकों एवं मीडिया को भी पहल करनी होगी।.....जन भागीदारी जरुरी है ... सबको अपना अपना योगदान देने के जरूरत है .....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक और जागरूक प्रस्तुति .
पुरखों की बातों पर अमल किया होता तो आज किसी भी नदी की यह दुर्दशा न हुई होती।
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाली सार्थक पोस्ट।