तीवरदेव विहार सिरपुर छत्तीसगढ़ की द्वार शाखा का शिल्पांकन नयनाभिराम है, इस पर इतने सारे रचना शिल्प अंकित किए गए हैं कि द्वार शाखा के शिल्प का बखान करते हुए ही एक किताब लिखी जा सकती है। जिसमें जातक कथाओं से लेकर पशुमैथुन तक को विषय बनाया गया है।
शिल्पकार शास्त्र विधान के अनुसार प्रतिमाओं का निर्माण करते थे। शिल्प को देखने के बाद यदि उसे शास्त्रों में ढूंढा जाए तो उसका मूल मिल जाएगा।
जैसे पहले पटकथा लिखी जाती है और उसके बाद उसका फ़िल्मांकन किया जाता है ठीक वैसे ही शास्त्रों से विषय लिए जाते थे फ़िर उनका शिल्पांकन किया जाता है।
शिल्पकार शास्त्र विधान के अनुसार प्रतिमाओं का निर्माण करते थे। शिल्प को देखने के बाद यदि उसे शास्त्रों में ढूंढा जाए तो उसका मूल मिल जाएगा।
जैसे पहले पटकथा लिखी जाती है और उसके बाद उसका फ़िल्मांकन किया जाता है ठीक वैसे ही शास्त्रों से विषय लिए जाते थे फ़िर उनका शिल्पांकन किया जाता है।
आलिंगन भेद - वृक्षाधिरूढकम |
उपरोक्त मिथुन चित्र में आलिंगनबद्ध चुम्बनरत नर-नारी दिखाई दे रहे हैं। यह आलिंगन भेद का एक प्रकार है। वात्स्यायन ने कुंवारे और विवाहित लोगों के आलिंगन भेद बताए हैं।
कहते हैं कि (तत्रासमागतयोः प्रीति लिंग द्योतनार्थमालिंगन चतुष्टयम्।स्पृष्टकम्, विद्धकम, उदधृष्टकम, प्रीडितकम्, इति।।) प्रेम को प्रकट करने के लिए स्पृष्टकम, विद्धकम, उदधृष्टकम, प्रीडितकम आदि चार तरह का आलिंगन होता है।
प्रदर्शित प्रतिमा शिल्प में आचार्य वाभ्रवीय द्वारा बताए गए आलिंगन के एक प्रकार "वृक्षाधिरुढ़कम" का प्रयोग किया गया है।
इस आलिंगन के प्रकार को विस्तार देते हुए कहते हैं - चरणेन चरणामाक्रम्य द्वितीयेनोरुदेशामाक्रमन्ती वेष्टयन्ती वातत्पृष्ठ सक्तैक बाहुद्विती येनां समवनमयन्ती ईषन्मन्द सीत्कृत कूजिता चुम्बनार्थ मेवाधिरोढुमिच्छेदिति वृक्षाधिरूढकम्।।
कहते हैं कि (तत्रासमागतयोः प्रीति लिंग द्योतनार्थमालिंगन चतुष्टयम्।स्पृष्टकम्, विद्धकम, उदधृष्टकम, प्रीडितकम्, इति।।) प्रेम को प्रकट करने के लिए स्पृष्टकम, विद्धकम, उदधृष्टकम, प्रीडितकम आदि चार तरह का आलिंगन होता है।
प्रदर्शित प्रतिमा शिल्प में आचार्य वाभ्रवीय द्वारा बताए गए आलिंगन के एक प्रकार "वृक्षाधिरुढ़कम" का प्रयोग किया गया है।
इस आलिंगन के प्रकार को विस्तार देते हुए कहते हैं - चरणेन चरणामाक्रम्य द्वितीयेनोरुदेशामाक्रमन्ती वेष्टयन्ती वातत्पृष्ठ सक्तैक बाहुद्विती येनां समवनमयन्ती ईषन्मन्द सीत्कृत कूजिता चुम्बनार्थ मेवाधिरोढुमिच्छेदिति वृक्षाधिरूढकम्।।
वृक्षाधिरूढकम - जिस तरह से पेड़ पर चढ़ते हैं उसी तरह वृक्षाधिरूढकम आलिंगन में स्त्री अपने एक पैर से पुरुष के पैर को दबाती हैं और अपने दूसरे पैर से पुरुष के दूसरे पैर को पूरी तरह से लपेट लेती हैं।
इसके साथ ही अपने एक हाथ को पुरुष की पीठ पर रखकर दूसरे हाथ से उसके कंधे तथा गर्दन को नीचे की तरफ झुकाती हैं और फिर धीरे-धीरे से पुरुष को चूमने लगती हैं और उस पर चढ़ने की कोशिश करती हैं।
इस आलिंगन को वृक्षाधिरूढकम आलिंगन कहा जाता है। इस तरह मंदिरों विहारों की भित्तियों पर अनेक शिल्पांकन प्राप्त होते हैं। काम कला की शिक्षा देने के उद्देश्य से इनका शिल्पांकन प्रमुख स्थान पर किया जाता था
वाह, हमारे पूर्वज भी कितना सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्तर तक संवेदित थे।
जवाब देंहटाएंहमारे पूर्वजों ने इन विषयों का गहन शोध किया था, किन्तु हम आज इससे वंचित है ।
जवाब देंहटाएं