सोमवार, 9 जून 2014

निर्माणाधीन जैन मंदिर अमरकंटक : अद्भुत कारीगरी


ल्याण आश्रम से उत्तर की तरफ़ ऊपर देखने पर जैन मंदिर दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण विगत कई वर्षों से हो रहा है। गत वर्ष भी मैं यहाँ आया था, उस समय मंदिर का कार्य प्रगति पर था। राजस्थान के कारीगरों की छेनी हथौड़ियाँ बज रही थी। छेनी हथौड़ियों की आवाजें मुझे मंदिर तक खींच ले गई। पहले नर्मदा कुंड के सामने से ही यहाँ पहुंचने का रास्ता था। अब इस रास्ते को खूंटे लगा कर बंद कर दिया गया है। हमें मंदिर तक पहुंचने के लिए उससे थोड़ा आगे चलकर विश्राम गृह का एक लम्बा चक्कर काटते हुए जाना पड़ा। सूर्यदेव ने हीटर का वाल्यूम थोड़ा और बढा दिया था। मंदिर निर्माण स्थल पर अब कई खिलौनों की दुकाने एवं होटल खुल चुके हैं। इससे जाहिर होता है कि मंदिर देखने बड़ी संख्या में पर्यटक निरंतर पहुंच रहे हैं।  
निर्माणाधीन जैन मंदिर एवं विशाल क्रेन
मंदिर के समक्ष वृक्ष के नीचे गाड़ी खड़ी कर दी, सामने मंदिर का विशाल गुम्बद दिखाई दे रहा था। कलचुरियों के बाद यदि किसी मंदिर का निर्माण हो रहा है तो यही तीर्थंकर आदिनाथ मंदिर है। धौलपुर के गुलाबी पाषाणों की कटाई-छटाई की आवाजें दूर तक आ रही थी। निर्माण योजना के अनुसार मंदिर ऊँचाई 151 फ़ुट,  चौड़ाई 125 फ़ुट तथा लम्बाई 490 फ़ुट है। इसके निर्माण में 25-30 टन वजन के पाषाणो का भी प्रयोग किया गया है। जब मंदिर निर्माण की योजना बनी थी तब इसकी लागत लगभग 60 करोड़ रुपए आँकी गई थी। बढ़ती हुई मंहगाई को देखते हुए लगता है कि यह लागत बढकर 1 अरब रुपए तक पहुंच जाएगी। 
द्वीस्तरीय मंडप एवं गर्भ गृह
गर्भगृह में भगवान आदिनाथ विराजित हैं, इसके साथ परम्परानुसार अष्टमंगल चिन्ह उत्कीर्ण किए गए हैं। प्रतिमा का आभामंडल विशाल है, दाँए-बाँए चंवरधारिणी तथा इनके ऊपर मंगल कलश स्थापित है। द्वार शाखाओं एवं सिरदल पर कमल पुष्पांकन है। मंदिर में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की 24 टन भारी अष्टधातु की प्रतिमा विराजित है। इसे आचार्य श्री विद्यासागरजी ने 6 नवम्बर 2006 को विधि-विधान से स्थापति किया। अष्टधातू से निर्मित यह प्रतिमा 28 टन के  अष्टधातू निर्मित कमल पुष्प पर विराजित है। प्रतिमा के वक्ष स्थल पर जैन प्रतिमा लांछन श्री वत्स बना हुआ है। बल्ब की रोशनी में धातू प्रतिमा प्रभाव उत्पन्न कर रही थी।
भगवान आदिनाथ
कारीगर छेनी हथौड़ी लिए प्रस्तर स्तंभों को अलंकृत कर रहे थे। शिल्पांकन की दृष्टि से धौलपुर का पत्थर उत्तम प्रतीत होता दिखाई देता है। छेनी की मार से पत्थर से से "चट" उखड़ती दिखाई नहीं दे रही थी। जिस तरह सागौन की लकड़ी को खरोंच कर प्रतिमाएं बना दी जाती हैं वैसा ही कुछ प्रतीत हो रहा था। पर यह पत्थर लकड़ी के इतना नरम नहीं है।  प्रस्तर पर अलंकरण करना श्रम साध्य कार्य है। मंदिर के वितान में सुंदर कमलाकृति का निर्मित की गई है। जिसकी पंखुड़ियाँ अलग दिखाई देते है। छत का निर्माण देखकर तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रत्थरों को गढ़कर स्थापित करने के दौरान कम्प्यूटर की गणना भी चूक जाएगी पर शिल्पकारों की गणना नहीं चूकने वाली।
अलंकृत भव्य वितान
मंदिर निर्माण में एक बड़ी क्रेन सहायक बनी है। बिना क्रेन के निर्माण संभव नहीं था। प्राचीन काल में माल परिवहन के साधन नहीं होने के कारण मंदिर निर्माण सामग्री जहाँ समीप में उपलब्ध होती है, वहीं मंदिरों का निर्माण कराया जाता था। जिसका उदाहरण हमें कर्ण मंदिर में देखने मिलता है। कल्पना करें कि हजार दो हजार साल बाद जब कोई नई सभ्यता होगी वह इन मंदिरों की विशालता को देखकर आश्चर्य चकित रह जाएगी तथा मंदिर में प्रयुक्त पत्थरों की खदान ढूंढना चाहेगी तो प्रमाण के लिए उन्हें धौलपुर की प्रस्तर खानों की भी खोज करनी होगी। वर्तमान में परिवहन की सुविधा होने के कारण सुदूर से भी कारीगर एवं निर्माण सामग्री मंगाई जा सकती है।
शिल्पकार और छेनी हथौड़ी
प्राचीन काल से निर्माणादि कार्यों में हिन्दू धर्म के मानने वाले शिल्पियों का बोलबाला था तथा इनका ही एकाधिकार था। कालांतर में शिल्पियों के वंशजों ने कार्य की कठिनाई एवं कम आमदनी को देखते हुए जीवन यापन के लिए अन्य व्यवसाय अपना लिए। शिल्पियों की कमी होने के कारण मुख्य शिल्पियों ने मुसलमान लड़कों को यह कार्य सिखाना प्रारंभ कर दिया। जिसके कारण अब मंदिर निर्माण में मुसलमान कारीगर दिखाई देने लगे। इस मंदिर का निर्माण शिल्प शास्त्रों के दिशा निर्देशानुसार राजस्थान के नागौर जिले से आए हुए मुसलमान शिल्पी कर रहे है। शिल्पांकन में अब पहले जैसी कठिनाईयाँ नहीं रह गई। पत्थर काटने से लेकर बेल-बूटे बनाने तक का कार्य मशीनों से होता है। सिर्फ़ अंतिम रुप प्रदान करने के लिए मानव श्रम का उपयोग होता है।

भव्य निर्माण को अचंभित होकर देखती देवी
पत्थरों को जोड़ने के लिए सूर्खी चूना एवं गुड़ इत्यादि के प्राचीन मिश्रण का ही उपयोग हो रहा है। मंदिर में सीमेंट का कहीं उपयोग नहीं किया जा रहा। सीमेंट भले ही 53/56 ग्रेड की हो पर कुछ वर्षों के उपरांत अपनी पकड़ छोड़ देती है। सूर्खी, चून, गुड़, उड़द, बेल (बिल्व) गोंद इत्यादि के मिश्रण से बनाए गए मसाले का जोड़ हजारों वर्षों तक अपनी पकड़ नहीं छोड़ते। तभी प्राचीन संरचनाएँ एवं भवनों को आज भी हम देख पा रहे हैं। एक बार का वाकया याद आता है जब एक सभा के दौरान तत्कालीन पीडब्लूडी मंत्री प्राचीन भवनों की तारीफ़ करते हुए भावनाओं के उद्वेग में मानव निर्मित महापाषाणकालीन संरचना "स्टोनहेंज" तक पहुंच गए। तब एक दिलजले ने पूछ लिया कि " वर्तमान में जिन भवनों का निर्माण आपका विभाग करता है उनके 20 वर्षों तक के स्थायित्व की गारंटी लेते हैं क्या? इतना सुनने के बाद मंत्री जी को बगलें झांकना पड़ा।
गर्भ गृह के सामने वाला मंडप, अद्भुत कारीगरी की मिशाल
मंदिर में प्रतिमाओं का अभाव और पुष्प वल्लरियों, लघुघंटिकाओं, बेल-बूटों का अंकन सर्वत्र दिखाई देता है। इसका कारण समझ नहीं आया। बस गर्भगृह में मुख्य देव की प्रतिमा ही विराजमान  है। इनके अनुषांगी तीर्थकंर परिचारक तथा अन्य मान्य देवी देवताओं का अलंकरण मंदिर को और भी भव्यवता प्रदान करता। स्तंभों में प्रतिमाओं का स्थान रिक्त दिखाई देता है। भीतर द्वार के दांई ओर एक प्रतिमा का निर्माण दिखाई देता है परन्तु बांई ओर का स्थान खाली है। देखने के बाद प्रतीत हुआ कि इन पर प्रतिमाओं का अंकन बाद में किया जाएगा। पर इतना तो जाहिर है कि इस मंदिर जैसे भव्य संरचना निर्मित होना इस सदी के गौरव की बात है। ………  इति श्री रेवा खंडे स्थित अमरकंटक अचानकमार यात्रा सम्पन्नम्। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. स्‍थपति प्रभाकर ओ. सोमपुरा जी और उनके परिवार का कमाल.

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  2. आपके साथ मैंने दो बार यात्रा की ,,दूसरी यात्रा पढ़ते-पढ़ते .. हर-हर नर्मदे ,,

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  3. बढ़िया विवरण बहुत सुन्दर मंदिर रहेगा ..

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  4. मंदिर जब बनकर तैयार हो जाता है तो उसकी सुंदरता में शिल्पकार के शिल्प को कोई पारखी ही देख पाता है, आम लोग नहीं। . आपने कला को पहचान कर बहुत बढ़िया प्रस्तुति शेयर की है इसके लिए धन्यवाद!

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  5. bhavano ko dekhane ka samanya jan manas se alag najariya deta hua sundar lekh. aapke lekhan me bahut nikhar aa gaya hai. bahut sundar aur utkrastra lekh.

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  6. यकायक यात्रा सम्पन्नम् !?

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