गुरुवार, 17 नवंबर 2011

तपोभूमि से जन्मभूमि के दर्शन -- मथुरा की सैर -- ललित शर्मा

गायत्री तपोभूमि-मुख्यद्वार
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गायत्री तपोभूमि जहाँ श्रीराम शर्मा ने अखंड ज्योति जलाई थी, आज गायत्री परिजनों के लिए शक्ति का केन्द्र एवं तीर्थ स्थल बन चुका है। यहां ठहरने एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था है, भोजन एवं प्रात:राश समय पर उपलब्ध होता है। हम समय के दायरे के बाहर थे इसलिए भोजन एवं प्रात:राश से वंचित रहे। दिन ढल चुका था, हमारे साथी स्वव्यवस्थानुसार भ्रमण पर जा चुके थे। किंचित आराम करने के पश्चात हम लोग (मैं और गिलहरे गुरुजी) मथुरा भ्रमण को चल पड़े। तपोभूमि से कृष्ण जन्मभूमि जाने के लिए ऑटो की सवारी ली। रास्ते में पवन वर्मा भी पैदल आते दिख गए, उन्हे आवाज देकर ऑटो में साथ बैठा लिया। भूख लग रही थी, मन में कुछ चटर-पटर खाने की इच्छा थी। ऑटो वाले ने रेल्वे क्रासिंग पर छोड़ दिया। वहाँ चौक से 25 कदमों की दूरी पर जन्मभूमि है। जन्मभूमि सड़क पर यु पी पी ने सुरक्षा घेरा डाल रखा था। अगले दिन बकरीद थी, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था बढी हुई लगी।

हृदयलाल गुरुजी और इडली पाक
सड़क पर मद्रास रेस्टोरेंट का बोर्ड लगा देखा तो दक्षिण भारतीय नास्ता करने की इच्छा हुई। सामने ही पेड़े वाले की दुकान थी, मैने गुरुजी से एक पाव पेड़े लेने को कहा और रेस्टोरेंट में प्रवेश किया। रेस्टोरेंट साधारण दर्जे का ही था, उसका मालिक भी मथुरा का ही था। उससे खाने के विषय में पूछा तो उसने कहा कि 10 मिनट में सांभर बनने पर इडली खिला सकता हूँ। मैने उसे लस्सी का लाने कहा और तब तक पेड़े का स्वाद लेने लगे। लस्सी भी केशरयुक्त उम्दा किस्म की थी। हाँ थोड़ी मीठी अधिक थी। फ़िर सांभर इडली भी आ गयी। सांभर का स्वाद बहुत अच्छा था। मैने सांभर बनाने की विधि पूछी और मसाले के विषय में जानकारी ली। दक्षिण भारतीय मसाले की अपेक्षा यहां की सांभर में थोड़ी खटाई एवं मिर्च की मात्रा अधिक थी। होटल वाले ने अपना नाम सौरभ शर्मा बताया और कहा कि उसके बड़े भाई और भी बढिया सांभर बनाते हैं पर वे अभी हैं नहीं। सांभर इडली का नाश्ता करके हम बाहर निकले तो पानी के पताशों (गुपचुप) का ठेला लगा हुआ था। थोड़ा उसका भी जायका लिया। अच्छा रहा यह जायका भी।

पवन वर्मा  - गुरु्जी
अब मंदिर की तरफ़ आगे बढे तो दर्शनार्थियों का रेला लगा हुआ था। गेट पर पहले मैनुअली एवं मेटल डिक्टेटर लगा कर दर्शनार्थियों की जांच की जा रही थी। जेब में रुपए पैसों को छोड़कर कुछ भी भीतर नहीं ले जाने दिया जा रहा था। पान-गुटका, मोबाईल इत्यादि बाहर ही रखवाया जा रहा था।  पवन वर्मा ने के पास बंदुक थी, इसलिए वे भीतर न जा सके, हमने अपना सामान उन्हे ही थमाया और मंदिर के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश द्वार के समीप जूते-चप्पल इत्यादि रखने की जगह बनी थी। वहीं हमने अपनी पादुकाएं रखी, प्रसाद लेकर कृष्ण कन्हाई के दर्शन करने पहुंच गए। गुजरात और बंगाल से भी एक दल वहाँ आया हुआ था। दर्शन करके आने पर हमारे यात्री दल के लगभग लोग वहीं मिल गए। गुरुजी को सांभर का मसाला असर कर गया। वे मंदिर परिसर में व्यग्रता से जनसुविधा तलाश करने लगे। एक जवान से पूछने पर उसने जनसुविधा का रास्ता बताया। गुरुजी मुझे कोट थमा कर रफ़ुचक्कर हो गए। थोड़ी देर बाद आराम से पहुंचे, और बताया की गुपचुप का पानी असरदार था।

कृष्ण जन्मभूमी और शाही मस्जिद (गुगल से साभार)
मंदिर परिसर में अन्य तीर्थ स्थलों जैसे मनको-मूर्तियों की दुकाने लगी थी। नए ग्राहक फ़ंस रहे थे जाल में और मुड़ा रहे थे मुड़। मंदिर के आंगन में खड़े होने पर जन्मभूमि की जड़ में बनी हुई मस्जिद भी दिखाई दे रही थी। ऐसा सभी जगहों पर दिखाई देता है, जब मुगलों का शासन रहा तब उन्होने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए हिन्दुओं के तमाम तीर्थ स्थानों पर एक मस्जिद या मजार जरुर बनवा दिया। चाहे अयोध्या हो या काशी विश्वनाथ। काशी विश्वनाथ में तो सिर्फ़ मंदिर की छत को तोड़ कर उसे मस्जिद का रुप दे दिया गया। नीवं और स्तम्भ मंदिर के ही है। चाहे हम कितने भी साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिशाल बनने की कोशिश करें पर ऐसे हालात देख कर थोड़ा अटपटा तो लगता है। मंदिर परिसर में कैमरे नहीं ले जाने दिए जाते, अन्यथा आपको चित्र दिखाए जाते। काशी विश्वनाथ मंदिर में भी कैमरे और मोबाईलफ़ोन ले जाने की मनाही है। मंदिर परिसर में ही एक कृत्रिम गुफ़ा बनाई गयी है, इसके दर्शन करने लिए 3 रुपए की टिकिट लेनी पड़ती है।

कृष्ण जन्मभूमि मुख्यद्वार
मंदिर परिसर के रेस्ट हाऊस के समीप ही एक रेस्टोरेंट है, जहां कम कीमत पर अच्छा भोजन मिल जाता है। हमारी चावल खाने की इच्छा थी। क्योंकि मंदिर परिसर में मिले सहयात्रियों ने बताया था कि तपोभूमि में शाम को ही एक घंटे भोजन मिलता है। इसलिए हमने भी बाजार से भोजन करके जाने की सोच ली। गुरुजी एवं पवन वर्मा ने भोजन की अनिच्छा जताई। फ़िर मुझे भी भोजन का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। उसकी जगह 10 रुपए के पानी के पताशे उदरस्थ किए। बकरीद और देवउठनी की भीड़ बाजार में स्पष्ट दिख रही थी। ऑटो सब भरे हुए जा रहे थे। थोड़ी देर बाद हमें भी तपोभूमी के लिए ऑटो मिल गया। तपोभूमि पहुंच कर जल्दी सोना चाहता था। जिससे कुछ सोनागार में वृद्धि हो जाए। दो रात एवं दो दिनों से पूरी नींद नहीं ले पाया था। शरीर थक कर चूर हो गया था और साथ नहीं दे रहा था। तपोभूमि पहुंचने पर पता चला कि नंदकुमार (हमारा दूधवाला) और उसके साथी अभनपुर से सूमो में हरिद्वार जा रहे हैं और पड़ाव के रुप में अभी तपोभूमि पहुंचे हैं। इन्होने भी कमाल किया, 13 लोग सूमों 1400 किलोमीटर का सफ़र किस तरह करके आए होगें? यह समस्या इन पर ही छोड़ी और बिस्तर संभाल कर सोने लगा। 

वृंदा राक्षसी से भय से ग्रसित
निंदिया रानी धीरे-धीरे आगोश में ले रही थी, रात के 12 बज रहे थे।तभी मुझे दीनबंधू मिश्रा ने आवाज दी।"ललित महाराज सुत गेस का?" मुझे जवाब देना पड़ा उठकर। "काय होगे गा?" तो उन्होने कहा कि सांस नहीं आ रही है और छटपटाहट हो रही है और बोले कि "आपके पास ही सो रहा हूँ, कुछ समस्या होगी तो बताऊंगा, कह कर मेरे गद्दे पर ही लेट गए, पंखे के नीचे चित्त। मैने उनसे पूछ कि ठंडा पसीना भी आ रहा है क्या? तो उन्होने मना किया। मुझे थोड़ी तसल्ली हुई। वे लेट गए, लेकिन मेरी नींद का धनिया बो दिया। अब मै करवट बदलता सोच रहा था कि अगर इसे अटैक आ गया तो क्या व्यवस्था करनी पड़ेगी? कौन से अस्पताल पास है, जहाँ जीवन रक्षक सुविधाएं उपलब्ध हैं। वहाँ सीपीआर देते हुए पहुंचा जा सकता है कि नहीं? मै लेटे-लेटे आगे की कार्यवाही करने लगा। नीचे उतर कर आफ़िस में जाकर उन्हे अवगत कराया कि कुछ आकस्मिक दुर्घटना घटने पर कितनी देर में वहाँ सहायता उपलब्ध हो सकती है। संतुष्ट होने पर वापस आकर लेटा। दीनबंधु भैया अपने स्थान पर सोते दिखाई दिए। सहयात्रियों की जिम्मेदारी ने फ़िर नहीं सोने दिया। जैसे तैसे करके सुबह हुई और हमने वृंदा राक्षसी से मिलने जाने का उद्यम किया। आगे पढें

19 टिप्‍पणियां:

  1. घूम लो भाई और जीवन में इसके अलावा रोमांच है ही कहाँ?
    नई-नई जानकारी भी मिलती रहती रहती है।

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  2. रोचक यात्रा विवरण| अगली कड़ी का इंतजार|

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  3. @ चटर पटर खाना ,
    देव भूमि / तपोभूमि में भी लालसायें बनी रहीं :)

    @ जनसुविधायें ,
    जनसुविधाओं को बलात न्योता देना कोई आपके मित्रों से सीखे ! अगर ये सुविधायें समय पर ना मिलतीं तो :)
    अब सहज ही समझा जा सकता है कि खाऊ पिऊ तीर्थयात्रियों के कारण ईश्वर को अपने ही आवास परिसर में किस कदर घुटन होने लग गई होगी :)

    @ बन्दूक ,
    पवन वर्मा जी क्या शिकार पे निकले थे :)

    @ मंदिर मस्जिद ,
    भूमि , भवन , ईंटों और पत्थरों पे आरोपित सांप्रदायिक सौहार्द्य अटपटा ही लगना चाहिए :)
    वैसे हमारा ख्याल है कि सौहार्द्य इंसानों के दिलों में रहता है फिर उसे कहां ढूंढ रहे थे आप :)

    @ तीर्थाटन ,
    इस तरह के यात्रा संस्मरण में खाने और सोने की चिंताओं के अलावा दैविक विशिष्टताओं ( मसलन संक्षिप्त इतिहास,पवित्रता ,बोध आदि आदि ) का उल्लेख भी अपेक्षित माना जाये :)

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  4. बहुत आभार पुनः घुमाने का। जय कन्हैया लाल की।

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  5. lalit bhaai kya andaaz hai mzaa aagyaa ...bhaijaan hm dhundhte hain aapko dil ki ghraaiyon se lekin aap hain ke mr indiya hue jaate hai aapki jankaari ke liyen btaa dun ke aapke aashirvaad se 5000 posten puri ho chuki hai ........akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. @ ali sa... यह सही है कि दिल मिलने चाहिए, इससे बड़ा सौहाद्र कुछ नहीं।

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  7. बढ़िया पोस्ट लगाए हवस ललित भईया... फोटो मन घलो मस्त हवे...
    फेर बिन चुन्दी के फोटो लगाए रहे तउन हा कब के हरे...
    तोर चुन्दी हर तो “आज तक” ले घलोक तेज हवे...
    सादर बधाई...

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  8. अच्‍छा रहा ललिताली (ललित-अली) दिल मिलन.

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  9. सुंदर यात्रा वृतांत ...... पावन स्थल के दर्शन हमें भी हो गए.....

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  10. दर्शन को दर्शन (मथुरा ) कब होगे पता नहीं ? --बधाई जी और आपकी चटर-पटर 'गुपचुप' तो दिल ले गई---मुंह का स्वाद ही बदल गया ----

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  11. मथुरा कई बार देखा है..आज आपकी नजर से देखा आभार.

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  12. भैया ... किसन जी से म्हारी राम राम कहना..

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  13. बहुत ही सूक्ष्म विवरणयुक्त यात्रा वृतांत है। अगला अंक जल्दी पोस्ट करेंगें इसी कामना के साथ धन्यवाद।

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  14. सुंदर यात्रा विवरण...हम तो वहां जा नहीं सके पर आपकी पोस्ट के साथ हमें भी इस पावन स्थल के दर्शन का लाभ मिल रहा है... आगे की पोस्ट का इंतजार है...

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  15. बहुत ही अद्भुत लेख! आपने इस विषय को गहराई से छू लिया है। मेरा यह लेख भी पढ़ें मथुरा में घूमने की जगह

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