तांगे की सवारी - बी एस ठाकुर एवं गिलहरे के साथ |
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बसंती तांगे वाली हमें पुल पर छोड़कर फ़रार हो गयी, पुल पर बहुत भीड़ थी बड़ी मुस्किल से नीचे उतरने के बाद हमने गौरीशंकर 1 का पता पूछा तो पता चला कि पुल के आखरी छोर से रास्ता बना है। मेरे पास वी आई पी पास था, वीआईपी व्यवस्था यज्ञशाला के पास ही की गयी थी। लेकिन वहाँ वीआईपी बनकर अकेले रहने की बजाय साथियों के दल में रहना ही उपयुक्त लगा। हम अपना सामान लाद कर गौरीशंकर 1 के लिए चल पड़े। सीढियों के पास से लगभग 3 किलोमीटर पैदल जाना पड़ा। रास्ते में एक जगह पुल पर लगी लोहे की सीढी से लोग उपर चढ रहे थे। यह बहुत ही खतरनाक कार्य था। महिलाएं भी सीढी पर उपर चढ रही थी। लोग पैदल चलने से बचने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे और लगभग आधा किलोमीटर लाईन में लग कर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। अगर पैदल चलते तो पहुंच जाते। इस सीढी से भी दुर्घटना हो सकती थी। मैने एक फ़ोटो ली और आगे बढ गया।
बसंती तांगे वाली हमें पुल पर छोड़कर फ़रार हो गयी, पुल पर बहुत भीड़ थी बड़ी मुस्किल से नीचे उतरने के बाद हमने गौरीशंकर 1 का पता पूछा तो पता चला कि पुल के आखरी छोर से रास्ता बना है। मेरे पास वी आई पी पास था, वीआईपी व्यवस्था यज्ञशाला के पास ही की गयी थी। लेकिन वहाँ वीआईपी बनकर अकेले रहने की बजाय साथियों के दल में रहना ही उपयुक्त लगा। हम अपना सामान लाद कर गौरीशंकर 1 के लिए चल पड़े। सीढियों के पास से लगभग 3 किलोमीटर पैदल जाना पड़ा। रास्ते में एक जगह पुल पर लगी लोहे की सीढी से लोग उपर चढ रहे थे। यह बहुत ही खतरनाक कार्य था। महिलाएं भी सीढी पर उपर चढ रही थी। लोग पैदल चलने से बचने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे और लगभग आधा किलोमीटर लाईन में लग कर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। अगर पैदल चलते तो पहुंच जाते। इस सीढी से भी दुर्घटना हो सकती थी। मैने एक फ़ोटो ली और आगे बढ गया।
बसाहट का नक्शा |
गौरी शंकर 1 के रिसेप्शन पर लोग आमद देकर अपना टेंट नम्बर ले रहे थे। हमें टेंट नम्बर छत्तीसगढ 220 मिला। यह लगभग 100 लोगों के रहने के लिए मुफ़ीद था। यहाँ से गंगा का किनारा भी समीप होने से रोज गंगा स्नान हो सकता था। सभी को प्रिंटेट परिचय पत्र दिए गए। तीन माह पहले से सभी शक्तिपीठों से आने वाले परिजनों की लिस्ट मंगा ली गयी थी और सभी के परिचय पत्र यहां बन कर तैयार थे। इतने बड़े आयोजन की सुरक्षा की दृष्टि से यह सही कदम था। टेंट के कई शहर बसाए गए थे। जिनमें छत्तीसगढ से आने वालों की संख्या अधिक थी। हमारे सीताराम गुरुजी दो महीने पहले से ही समय दान के लिए पहुंच गए थे। उनकी ड्युटी पंत द्वीप में थी और उन्होने मिलने की इच्छा भी जाहिर की थी। यहाँ कहीं भी जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ेगा, यह मैं जानता था। कोई सवारी और साधन उपलब्ध नहीं था।
अपना सामान लेकर टेंट की ओर जाते सहयात्री |
गायत्री परिवार के इस आयोजन की तैयारी तीन साल पहले से हो रही थी। कुंभ से भी विशाल आयोजन और इंतजाम था। जिसमें प्रशासन की कहीं पर भी भागीदारी नहीं थी। समय दानी वालिएन्टर्स अपना योगदान दे रहे थे। मुस्तैदी से अपनी ड्युटी पर लगे थे। जिस दिन हम पहुंचे बताते हैं कि उस दिन लगभग 50 लाख गायत्री परिजन हरिद्वार पहुंच चुके थे। उनके रहने, खाने एवं निस्तारी की उत्तम व्यवस्था थी। कुंभ में अरबों रुपए खर्च करके भी शासन इतनी सुंदर व्यवस्था नहीं कर पाता। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को उसका परिचय पत्र बना हुआ तैयार मिल रहा था और रहने के लिए तुरंत छोलदारियों का आबंटन कर दिया गया। खानी की व्यवस्था सुबह से प्रारंभ हो जाती थी। लोग स्वयं जाकर भोजनालय में अपनी सेवाएं दे रहे थे। सेवा भाव से भोजन करवा रहे थे। भोजन के लिए अनुशासित कतारबद्ध लोग खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। हम अपने टेंट की ओर चल पड़े।
सीढी पर चढते लोग |
टेंट में सामान रख कर साथी लोग गंगा स्नान के लिंए चले गए और हम सामान की चौकीदारी करते रहे। छोलदारी में रात गुजारने का अपना ही आनंद है। वीआइपी लोगों के लिए स्विस कॉटेज का इंतजाम था। जिसमें पलंग, लैट्रिन बाथरुम, पंखा था। छोलदारी में लाईट और दरी बस थी। इस पर ही रात गुजारनी थी। साथियों के आने के बाद हम स्नानादि से निवृत्त हुए। हमारा कार्यक्रम मसूरी जाने का था। इसलिए बस स्टैंड के लिए जल्दी निकलना चाहते थे। बस स्टैंड जाने के लिए फ़िर उसी पुल पर चढना था। हम 4किलोमीटर चलते हुए सीढी के पास पहुंचे तो वहाँ पुलिस लग चुकी थी और सिर्फ़ लोगों को उतरने दिया जा रहा था। चढने नहीं दिया गया। हमारी योजना खटाई में पड़ चुकी थी। वापस पुल पर आने के लिए 5 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता और 12 बज रहे थे। मसूरी जाकर वापस आना संभव नहीं था।
भोजन की लाईन |
जब मैं गौरीशंकर से पुल की तरफ़ आ रहा था, लगभग 11 बजे होगें, तब घर से श्रीमती जी का फ़ोन आया कि हरिद्वार में भगदड़ मच गयी है। कई लोग मारे गए हैं, फ़िर एक मित्र का फ़ोन आया कि हरिद्वार में यज्ञ स्थल पर दंगा हो गया है। ऐसा मुझे कहीं नजर नहीं आया। टेंट में दिन में बिजली न होने से हमारा मोबाईल चार्ज नहीं हो पाया था। इसलिए बंद हो गया। अब किसी से सम्पर्क नहीं हो सकता था। यह भी एक समस्या हो गयी। जितने भी इष्ट मित्र परिजन थे इस अवधि में आशंकाओं से दो चार होते रहे। वे फ़ोन से जानकारी लेना चाहते थे लेकिन मोबाईल बंद होने से उन्हे सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी। जैसा अफ़रा तफ़री एवं भगदड का माहौल बताया जा रहा था वैसा तो मुझे वहाँ नहीं लगा। हम लोग सीढी के पास से वापस आते हुए थक चुके थे। अब कहीं बैठने की जगह देख रहे थे। जहाँ खड़े होने के लिए जगह नहीं थी वहाँ बैठने के लिए जगह तलाश करना बड़ी बात है।
छोलदारियों का विहंगम दृश्य |
हम चलते हुए आगे बढे तो एक स्थान पर चायवाले की 5-6 कुर्सियाँ खाली दिखी। बस हमने उन्हे हथिया लिया और चाय का आर्डर दिया। सभी ने आराम किया। उसने चाय एकदम घटिया बनाई। हमें चाय से कोई मतलब नहीं था, हमारा मुख्य उद्देश्य कुछ देर आराम करना था। यहां 1बज गए थे, पंकज और मैने कुछ फ़ोटुएं ली। अब विचार बनाया कि मसूरी की बजाए ॠषिकेश चला जाए। जब पहले मैं आया था तब हरिद्वार से ॠषिकेश जाने के 5 रुपए लगते थे। मैने सोचा कि अब अधिक से अधिक 20 रुपए लगेंगे। लेकिन जब पुल के नीचे जाकर ऑटोवालों से पूछा तो उन्होने आठ सवारी के 1600 रुपए बताए, ॠषिकेश से घुमाकर वापस लाने के। मै तो भौंचक रह गया। एक बार तो मन में आया कि बजाऊं उसके कान के नीचे। साले अनाप-शनाप किराया बता रहे हैं। दो चार ऑटो वालों से पूछा तो उन्होने भी यही किराया बताया।
जय बाबा की - वानप्रस्थ की ओर अग्रसर :) |
ॠषिकेश दो बार मेरा पहले भी देखा हुआ था, लेकिन जो नए लोग मेरे साथ आए थे वे देखना चाहते थे। आखिर 1500 रुपए में एक ऑटो तैयार हुआ। वह हमें मुख्यमार्ग की बजाय राजा जी पार्क के भीतर से नहर के किनारे-किनारे ॠषिकेश लेकर गया। उसने बताया कि ॠषिकेश पहुंचकर आपको 1500 रुपए युनियन में जमा करने होगें। फ़िर वहां से आपको रसीद और टाईम दिया जाएगा। उस टाईम पर आपको वापस आना है। युनियन वालों ने भी फ़र्जीवाड़ा खोल रखा है। पैसे की रसीद काटने के 10रुपए लेते हैं सवारियों से। खुले आम डकैती का शिकार हो रहे हैं पर्यटक। घुमकर आने के बाद रसीद दिखाने पर वह आपके रुपए वापस करेगा। ऑटो वाले कहा कि जब आपको वापस छोड़ देगें तभी आप किराया देना। ऑटो वाला गाजीपुर का था, कुछ अधिक ही चलता पुर्जा नजर आ रहा था। सोच रहा था कि मुफ़्त में ही 1500 हजम कर ले। लेकिन उसका पाला तो मोगेम्बो से पड़ा था। अभी उसने मेरा चमत्कार नहीं देखा था। जारी है.....आगे पढें।
मोगेम्बो का चमत्कार जरुर देखना है ताकि और किसी के काम आये। लूट की बात जब नेता देश लूट रहे है तो ये जनता को छोडेगे क्यों
जवाब देंहटाएंधरम कमाना आसान नहीं रे बावरे मन.
जवाब देंहटाएं5 रूपये की जगह 1600 ?
जवाब देंहटाएंहम्म देश वाक़ई वि कास शील से वि सित हो गया लगता है. अगर 5 डालर को 5 रूपये ग़लती से सुन लिया हो तो भी भले आदमी 250 रूपये ही बने... अच्छा है. डकैतों की नगरी जाना ही क्यों.
वानप्रस्थ की ओर - औरों के लिये संकेत..
जवाब देंहटाएंविविध दृश्य .....!
जवाब देंहटाएंसजीव विवरण... विहंगम दृश्य
जवाब देंहटाएंइस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
मोगेम्बो के चमत्कार का इंतजार रहेगा ...
जवाब देंहटाएंबस यही ठगी में कुछ कमी हो जाये तो भारत से बढ़कर कोई भी दर्शनीय स्थल नहीं हो सकता.पर हमें यकीन है मोगेम्बो लुट कर नहीं आये होंगे.:)
जवाब देंहटाएंकोन जनि का होवैया हवे....
जवाब देंहटाएंवईसे उत्तराखंड म यातायात हर लूट के बढ़िया माध्यम अवय....
बहुतेच तपथें दोखहा मन....
बजाई दे कान के तरी म... फेर देख दाख के भई...
mogembo...khush huaa ...
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