बुधवार, 23 नवंबर 2011

चाहिए हमदर्द का टॉनिक सिंकारा --- ललित शर्मा

मथुरा जंक्शन में हमारे साथी
प्रारंभ से पढें
में हरिद्वार के लिए मसूरी एक्सप्रेस से जाना था, मसुरी एक्सप्रेस सरायरोहिल्ला से बन कर पुरानी दिल्ली से चलती है। अब समस्या यह थी कि मथुरा से कोई सीधी ट्रेन हो जो हम सबको पुरानी दिल्ली पहुंचाए। हम मथुरा से पुरानी दिल्ली तक की गाड़ी पकड़ने में असमर्थ रहे। पवन शर्मा जी ने जो लोकल बताई थी वह मथुरा से सुबह 10 बजे ही चल पड़ती है। इतनी जल्दी कोई भी स्टेशन नहीं पहुंच पाता। आखिर तय किया गया कि समता एक्सप्रेस से ही निजामुद्दीन पहुंचा जाए। पवन शर्मा जी ने हमें उसके बाद बुलंद शहर वाली लोकल बताई जो पुरानी दिल्ली जाती है निजामुद्दीन से ही बन कर। इसका चलने का समय 6 बजे हैं उन्होने हमारी सहायता की। हम मथुरा से ढाई बजे दोपहर में चल कर शाम को साढे पांच बजे निजामुद्दीन पहुंचे। प्लेट फ़ार्म नम्बर 3 पर बुलंदशहर वाली पैसेजंर खड़ी थी। सब उसमें सवार हो गए। सवा सौ सवारियों को सामान के साथ चढना उतरना भी महाभारत ही है। कोई एकाध नहीं उतर पाया या चढ नहीं पाया तो समस्या ही है।

ट्रेन का इंतजार
पुरानी दिल्ली पहुंच कर देखा तो कईयों की टिकिट कन्फ़र्म नहीं थी। मोबाईल से पी एन आर देखा तो गलत बता रहा था। इसलिए हमने सदा नेट पर रहने वाले ब्लॉगरों की तलाश की। जिसमें संगीता पुरी जी ही ऑनलाईन मिली। राजीव भाई तो अपनी ससुराल में थे, साली का जन्मदिन मना रहे थे। जी के अवधिया जी, पी के अवधिया हो गए थे। अब मजाल है कोई उनसे बात कर सके। इसलिए मैने संगीता जी से फ़ोन पर पी एन आर कन्फ़र्म किए। हमारे साथ बी एस ठाकुर सर थे, इन्होने मुझे मिडिल स्कूल में गणित विषय पढाया था। जिसकी वजह से गणित में सम्मानजनक अंक मिल गए थे, बाकी तो राम जाने कैसे पास हो गए। इन्होने मुझसे गुरु दक्षिणा स्वरुप मेट्रो में घुमाने का संकल्प लिया।

अपुन है भाई
गुरु का आदेश सिर माथे पर लिया और सवा सौ सवारियों में उन्हे चुपके से लेकर मैट्रो की सैर कराने ले गया। पुरानी दिल्ली मैट्रो स्टेशन में टिकिट ले रहा था तभी पीछे से आवाज आई "पकड़ लिया अंकल आपको" अरे! छोड़ो यह पकड़ा पकड़ी मत करो। कुछ नौजवानों ने मुझे स्टेशन के बाहर निकलते देख लिया था। वे भी पीछे पीछे पहुंच गए। अब उन्होने ने भी राजीव चौक की टिकिट ली। मुझे छोड़ कर मैट्रो देखने का सभी का पहला अनुभव था। सभी मुंह फ़ाड़े मैट्रो स्टेशन को ही देख रहे थे। एक कह रहा था कि ऐसा लगता है कि हम सिंगापुर में पहुच गए। अरे भाई दिल्ली सिंगापुर से कम नहीं है।

रात में दिन
बस जेब में माल होना चाहिए फ़िर सिंगापुर ही दिल्ली आ जाएगा। सारी मौज मस्ती सिंगापुर वाली ही मिल जाएगी। मुझे तो तब हँसी आई जब जो पहली बार दिल्ली पहुंचा है वही इसकी तुलना सिंगापुर से कर रहा था। मतलब हमारे देहात के लोग टीवी और फ़िल्मों के माध्यम से सिंगापुर पहले पहुंचते हैं और दिल्ली बाद में। पुरानी दिल्ली से हम राजीव चौक पहुंचे। गेट नम्बर 5 पर निकल कर बाहर आए। अब इन्हे पालिका बाजार दिखाया। पालिका बाजार का एक चक्कर लगाकर हम वापस उसी रास्ते से मैट्रो में बैठकर पुरानी दिल्ली पहुंच गए। एक घंटे में मैट्रो की सैर हो गई और हम भी गुरु ॠण से उॠण हो गए। अच्छा हुआ गुरुजी ने मैट्रो की सैर के लिए कहा, वरना यहाँ तो अंगुठा मांगने की परम्परा है। गुरु से चतुर चेले हो गए, अंगुठा देते नही वरन दिखा जरुर देते हैं।

बाबा साहेब याने गिलहरे गुरुजी
यात्रा आयोजक ने सबसे कह दिया था कि दिल्ली घूमने के लिए आपके पास पूरा समय है, लोग उत्साहित थे, लेकिन इन्हे दिल्ली घुमने के नाम पर मात्र 3 घंटे ही मिले। इतने कम समय में कहाँ जाए और कहाँ न जाएं। हमारी मेट्रो से वापसी तक कुछ लोग चांदनी चौक और लालकिले तक हो आए थे। गिलहरे गुरुजी मुझे पुल पर मिले और गुस्से बोले "आई नेवर टॉक टू यू"। मेरा माथा भी ठनक गया। इतनी गरिष्ठ अंग्रेजी मुझे हजम नहीं हुई। मैने भी कह दिया "जैसे तोर मर्जी, मोरो मन नइ हे तोर ले गोठियाए के' और आगे बढ गया। मैने किसी का ठेका ले रखा है क्या? जो कोई भी मेरे साथ लद ले। थोड़ी देर बाद गुरुजी को लगा होगा कि गलत कह दिया। वे आए और साफ़-सफ़ाई देने लगे। मसूरी एक्सप्रेस प्लेटफ़ार्म पर लग चुकी थी। स्लीपर कोच के बीच एसी बोगी लगा रखी थी। हमारी सवारियां दो हिस्सों में बंट गयी। तीन कोच में सवारियाँ थी और टी टी भी तीन थे। पहले एस 2 के टी टी को टिकट चेक कराई।

जप ले  हरि का नाम बंदे - बंछोर जी
एस 4 का टीटी हमारे यात्रियों को टिकिट चेक होने के बाद भी परेशान कर रहा था। इस बोगी में वेटिंग की 5 सवारियाँ थी, उन्हे जनरल में भेजने की धमकी दे रहा था। वे सवारियाँ मेरे पास दौड़ कर आई। मैं जब टी टी ई के पास गया तो मुझे कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद सवारियों को फ़िर धमका दिया। बाद में पता चला कि वह प्रति सवारी 100 रुपए चाहता था। फ़िर मैने उसे हिन्दी में समझाया, तब उसे समझ आया। गजरौला स्टेशन में गाड़ी आधे घंटे रुकी, तब तक लगभग 12 बज गए थे। यह वही गजरौला है जहाँ से गजरौला टाईम्स निकलता है और एक कालम में चिट्ठाकारों की पोस्टें छपती हैं। मेरी भी कई पोस्टें गजरौला टाईम्स में प्रकाशित हो चुकी हैं। सभी सवारियों को व्यवस्थित करने के बाद मैने भी अपनी सीट पर सोने का इरादा बनाया तो वहाँ ठाकुर गुरुजी सोए थे। सोचा कि नीचे ही हिन्दुस्तान टाईम्स बिछाया जाए और लेट मारी जाए। लेकिन गुरुजी ने जबरन सीट खाली कर दी। उनका आग्रह न टाल सका और सीट पर सो गया।

मौनी बाबा - नम्बर 1
रात को किसी के अकेले ही बड़बड़ाने की आवाज नींद में खलल डाल रही थी। उठकर देखा तो एक माता जी अपने से बातें कर रही थी। मैने उन्हे हाथ जोड़ कर निवेदन किया, "माता जी आपकी कृपा हो तो मैं सो जाऊं, अगर आप चुप रहें। तीन दिनों से सोया नहीं हूँ।" माता जी ने कृपा की और चुप हो गयी। थोड़ी देर बाद फ़िर वही बड़बड़ाने की आवाज आई। माता जी पुन: शुरु हो चुकी थी। मैं भी उनके साथ चर्चा में शामिल हो गया। अल सुबह अमृतवाणी श्रवण कर पूण्य लाभ प्राप्त कर रहा था। पौ फ़टने को थी, मौनी बाबा (चौरसिया जी) भी उठ चुके थे। ये सुबह उठने के बाद से आठ बजे तक नित्य मौन रहते हैं। इशारों से ही बातें करते हैं। माता जी इनके पीत वस्त्रों से प्रभावित होकर 21 रुपए की दक्षिणा से स्वागत किया। मौनी बाबा इशारे मना कर रहे थे पर वो मानने वाली कहाँ थी, 21 रुपए थमा कर ही मानी। यहाँ से मौनी बाबा के वानप्रस्थ की शुरुवात हो चुकी। हम भी मजे ले रहे थे। हरिद्वार स्टेशन आ गया। सभी प्लेट फ़ार्म पर रोलकॉल के उपस्थित हुए। एक महिला यात्री कम निकली। उसे एक घंटे तक ढूंढा गया, पता चला कि वह पहले ही वेटिंग रुम में जा चुकी थी।

चाहिए हमदर्द का टानिक सिंकारा
स्टेशन से बाहर निकलते ही ठंड का अहसास हुआ। मैने अपनी लोई डाल ली। स्टेशन के बाहर गायत्री परिवार का सहायता केन्द्र बना था। वहां सम्पर्क करने पर उन्होने हमें गौरीशंकर 1 का पता दिया। ऑटो वाले भी सवारियों को देख कर अनाप-शनाप किराया बता रहे थे। पुल तक ही पंहुचाने का 40 रुपए मांग रहे थे। जबकि वहां का किराया 5 रुपए से अधिक नहीं है। हमने एक तांगा 15 रुपए सवारी में तय किया। हरिद्वार में सुबह-सुबह गुलाबी ठंडे एवं हवा के बीच तांगे की सवारी करने का मजा लेना जो था। हमारा तांगा चल पड़ा। तांगे वाला भी डेढ होशियार था। उसने हमें पुल की गंगा जी में उतरने वाली सीढियों के पास उतार दिया। पुल से विशाल जन समुद्र का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था। नर-नारियों का रेला चारों तरफ़ से आ रहा था। पुल की सीढियों पर गंगा जी से चढने वालों की भीड़ थी। उतरने वालों को कोई जगह नहीं दे रहा था। हमें मालुम नहीं था गौरी शंकर 1 किधर है। इसलिए मैने किनारे से रास्ता बनाकर उतरना चाहा। यह कदम बड़ा खतरनाक रहा। दो बार पैर फ़िसलने के कारण गिरते गिरते बचा। जारी है.........आगे पढें।

24 टिप्‍पणियां:

  1. हरिद्वार यात्रा की अच्छी प्रस्तुति .

    जवाब देंहटाएं
  2. फोटू से गब्बर लग रहे हो :-))
    दिल्ली आकर मिलने का समय न हो तो भी कम से कम आगमन की सूचना तो दे दिया करो ....मेट्रो में हम भी घूम लेते !
    पी के अवधिया गुरु के क्या हाल हैं ...उन्हें प्रणाम !
    आपको शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  3. पा परथ महाराज. मजा आ गिस तोर संग हमन भी गायत्री परिवार के यात्रा कर दरबो लगते......

    जवाब देंहटाएं
  4. बढिया यात्रा वृतांत ..
    मैने पी एन आर कन्‍फर्म नहीं किए .. बस किए हुए देखे !!

    जवाब देंहटाएं
  5. रोचक यात्रा वृतांत ... उलटे रास्ते से न उतरा करें ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बड़बड़ाने वाली माताजी से पता किया, कहीं ब्लॉगर तो नहीं थी...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  7. हर नगर में ब्लॉगर मिलेंगे, आप हमारे नगर भी आयें।

    जवाब देंहटाएं
  8. काफ़िला चलता रहे .
    ज़बर्ज़स्त बीड़ा उठाया है आपने .
    शुभकामनायें .

    जवाब देंहटाएं
  9. बाप रे इतने लोगों को लेकर चलना बड़ी दिलेरी का काम है.उस पर गुरुओं की गुरु दक्षिणा का भी भार.
    जय हो आपकी.

    जवाब देंहटाएं
  10. बढिया यात्रा oh gk pee ke hamadard ka sinkara ... ha ha ha

    जवाब देंहटाएं
  11. पूरा दृश्य उभर आया यूँ लगा जैसे आपके साथ ही घूम रहा हूँ .....आपके कीबोर्ड और आपकी स्मरण शक्ति को सलाम .....!

    जवाब देंहटाएं
  12. बढिया फ़ोटो रहे, मजेदार वर्णन भी, आपसे फ़िर से मिलने का सोचा था लेकिन मिल नहीं पाये कोई बात नहीं फ़िर कभी मुलाकात होगी।

    जवाब देंहटाएं
  13. हरिद्वार के विहंगम द्रश्य भी दिखा देते तो कलेजे में अंदर तक ठंडक पहुँच जाती ...हर -हर महादेव .! साथ ही चल रहे हैं....

    जवाब देंहटाएं
  14. सुग्घर बखान हवे यात्रा के....
    फेर... जाडा अब्बड़ हे लागत हवे ओती बर....
    सादर बधइ...

    जवाब देंहटाएं
  15. बढिया फ़ोटो रहे, मजेदार वर्णन

    जवाब देंहटाएं
  16. एकदम रोचक तरीके से यात्रा वृतांत प्रस्तुत किया है आपने .....

    जवाब देंहटाएं
  17. हरिद्वार में अभी भी तांगे से सवारी की जा सकती है !!!
    रोचक वृतांत!

    जवाब देंहटाएं
  18. १ दिन दिल्ली आये और पूरा पुराण बांच दिया :) हमसे तो एक पोस्ट नहीं लिखी जाति... बाकि ललित जी एक ठो फुनवा हमें भी मिला देते.

    जवाब देंहटाएं
  19. रोचक वृतांत सारी यात्रा मेट्रो सवारी में लगा कि आपके साथ ही हैं । हरिद्वार वर्णन की प्रतीक्षा में ।

    जवाब देंहटाएं
  20. गुरूजी को मेट्रो में घुमाकर उरिण हो गए! सुन्दर. हमारी यात्रा भी जारी है...

    जवाब देंहटाएं