फ़ेसबुक पर कई लोग वीभत्स चित्र लगाते हैं। कई बार सुबह-सुबह फ़ेसबुक खोलते ही वे चित्र सामने आ जाते हैं। फ़िर दिन भर न खाया जाता न पीया जाता। पूरे दिन की खाट खड़ी हो जाती है। एक चित्र मैने देखा कि एक युवक की खोपड़ी दो भागों में बंटी हुई थी। खून बह रहा था और लोग उस चित्र को शेयर कर रहे थे। कल ही देखा कि बच्चों के 5 भ्रूण पड़े हैं जमीन पर उनकी फ़ोटो लगाई हुई है। मैने अपनी वाल से उसे हटाया तो किसी और ने वही चित्र लगा लिया। फ़िर उसे किसी तीसरे ने शेयर कर लिया। इस तरह वह चित्र मेरे वाल से हटा ही नहीं। पता नहीं ऐसे चित्र लगाने के पीछे कौन सी मानसिकता कार्य करती है?
इस संदेश के लिखे जाने के पश्चात कुछ मित्रों की टिप्पणियाँ आई और उससे एक सार्थक बहस शुरु हुई.........।थक हार कर मैने अपनी वाल पर लिखा"पता नहीं क्यों लोगों को फ़ेसबुक पर वीभत्स चित्र लगाने में मजा आता है। ऐसे घृणास्पद चित्र लगाते हैं कि वितृष्णा हो जाती है और चित्र लगाने वालों में शहीदी भाव नजर आता है, जैसे बहुत बड़े पुण्य का कार्य कर रहे हों। अब ऐसे चित्र लगाने वालों को ब्लॉक करने की ठान ली है। अपनी बात बिना चित्रों के भी कही जा सकती है।"
सुनीता शर्मा जी ने कहा कि - " सच फ़रमाया ललित जी, फ़ेसबुक की दुनिया में भयानक रस का कोई स्थान नहीं है, अपने बिजि लाईफ़ से कोई 2 पल निकालता है तो विभित्स चित्र देखने के लिए नहीं। ज्ञानवर्धक एवं आनंद प्रदान करने वाली पोस्ट का इंतजार सबको होता है।"
इसके पश्चात चर्चा आगे बढती है--
Lalit Sharma @Sunita Sharma -- सही कहा आपने, अपनी बात कहने के और भी अन्य माध्यम हैं। उनका प्रयोग किया जाए। जो गुड़ खिलाने से मरता हो उसे जहर देना कहां तक तर्क संगत है।
अरूणेश सी दवे--ऐसा कार्य वही कर सकता है जिसे मानवता से कोई लेना देना नही या चंदा मांगना हो। अब क्या कहे कि वीभत्स दृष्य सहानुभूती जगा लेते है पर इसका मतलब यह भी नही अकि आपके दोस्तो की सुबह सिर कटी लाश या अजन्मे बच्चो की लाश से हो।जीवन सभी दौरो से गुजरता है पर इसका मतलब यह भी नही कि सुबह से लेकर शाम तक लोगो को सतत निमनता से रूबरू कराया जाये। दोस्ती उन्नती के लिये होती है प्रेम के लिये होती है ना कि लाशे और गंदगी देखने के लिये।
Girish Mukul - अगर हम-आप सवाल उठाऎं तो लोग कहेंगें सच दिखा रहे हैं..
Sandhya Sharma - सही कहा आपने बिलकुल सहमत हूँ आपकी बात से. घृणास्पद वीभत्स चित्र लगाना विकृत मानसिकता का प्रदर्शन है, जो किसी भी दृष्टी से उचित नहीं है. देखकर मन घृणा से भर जाता है, इसपर अति तो तब होती है जब लोग उसे like करते हैं, आखिर क्या सोच कर ऐसा करते हैं, क्या ख़ुशी मिलती है उन्हें ये सब देखकर...
Lalit Sharma @ Sandhya Sharma -- सत्य कहा संध्या जी, लाईक करने वालों की तो मत पूछिए, वे किसी भी वाल को लाईक कर जाते हैं, चाहे मृत्यु एवं ब्लात्कार सुचना क्यों न हो।
Padm Singh - इसे दूसरी तरह से भी देखा जा सकता है... गौतम बुद्ध को ज्ञान होने से पहले इसी तरह के आघात लगे थे... कोई बीमार मिला, कोई मुर्दा मिला कोई वृद्ध मिला... इस लिए जब हमें इस तरह के मानसिक आघात लगते हैं तो हम अपनी रोज़मर्रा की तंद्रा से जागते हैं... इस लिए इसे हर जगह गलत ही नहीं ठहराया जा सकता.
Sanjay Bengani - चित्र लगाने मात्र से महान हुआ जा सकता है तो क्या बुराई है :) पर उपदेश कुशल बहु तेरे.. वाली बात है जी.
Lalit Sharma @ Padm Singh -- भैया फ़ेसबुक कोई बुद्ध बनाने का कारखाना नहीं है, कि कोई घृणास्पद चीजों को देखे और बुद्ध हो जाए। सांसारिक जीवन में कुछ वर्जनाएं भी होती है।
Sunita Sharma-KUCH LONGO KO JAHAR PAROSANE KI AADAT HO JATI HAI WO HI AISI CHIJO KO FACE BOOK ME LAGAYA KARTE HAI LALIT JI..
Sandhya Sharma - क्या हम fb पर मानसिक आघात सहने आते हैं? नहीं ना, आते हैं कुछ देर अपने विचार, कुछ जानकारियां आपस में शेयर करें तो क्यों इस तरह से अपना अच्छा खासा मन ख़राब करें...
Girish Mukul - हिंदी कहानी कविता लेखन में अश्लील गालियों का प्रयोग करने वालो से मेरी मां ने एक सवाल किया था कि .. इसे स्वीकार्य क्यों करें हम...? काशीनाथ सिंह का तर्क था-"हम जीवन का सच दिखातें हैं.. साहित्य समाज का दर्पण जो होता है.." उसके बाद लगातार उस पट्टी वाले लेखकों कवियों से मेरा सवाल होता है-"टायलेट भी एक जीवन का सच है ड्राईंग रूम में बना के दिखाएं..!!" मुझे आज़ तक ज़वाब नहीं मिला......आपको भी वीभस्तता फ़ैलाने वाले कुं न बताएंगे..
Sandhya Sharma - हो दर्द के मारे तो दूसरों के गम में तड़पकर दिखाओ ये सब दिखाने से क्या होगा...सच कहा ना..
Janmjay Sinha - हर अच्छा काम मैने कीया है,और हर बुरा काम आपने कीया है... यही मानसिकता होती है लोगों की .... भ्रुण हत्या का ईतनीर विभत्स तस्वीरें कोई विभतस व्यक्ति ही लगा सकता है ... और कन्या बचाओ की अपील कर सकता है मै भी इनको ब्लॉक कर देने की बात से सहमत हूं ...........
Sandhya Sharma @janmjay sinhaji- सहमत हूँ आपकी बात से जरुरी नहीं की उस वीभत्स रूप को दिखाकर ही अपनी बात कही जाये...
Padm Singh- मुझे नहीं लगता सच को छुपा देने से वह झूठ हो जाने वाला है... रही बात वीभत्स चित्रों की तो अगर वह किसी धनात्मक और स्कारात्मक परिवर्तन के लिए हैं तो अनुचित क्यों... हाँ ऐसे चित्रों को देखकर जुगुप्सा अवश्य होती है... परन्तु केवल समाज की अच्छी तस्वीरों की अफीम खा कर ऊँघते रहना कहाँ तक उचित है
Lalit Sharma@ Padm Singh - मित्र यह तो अपनी जांघ उघाड़ कर दिखाने वाली बात हो गयी। जब बिना उघाड़े ही इलाज हो सकता है तो फ़िर दिखाने की आवश्यकता क्यों है? मेरा यह कहना है कि " जब बिना विभित्स चित्र दिखाए शब्दों से कार्य चल सकता है तो दिखाने क्या आवश्यक हैं?
Padm Singh - आपकी तरह सब लोग संवेदन शील हों यह ज़रूरी नहीं... अगर ऐसा होता तो बड़ा अच्छा होता
नीलकमल वैष्णव अनिश @ Janmjay Sinha जी मैं यहाँ पर आपकी बातो से सहमत नहीं हूँ,कोई जरुरी नहीं है कि जिसने यह पोस्ट कि है, वो भी वीभत्स हो क्योंकि वह समाज को दिखाना चाहता है कि इस तरह के वीभत्स और घृणित कार्य करने वाले पापी इंसान आज भी है.
Sandhya Sharma - सबसे बड़ी बात तो यह है की दूसरों से क्या कहना सब अपने - अपने जीवन में उन विचारो को अपना लें जो उपदेश जैसे बाँटना चाहते हैं , इन चित्रों को दिखाकर. "उपदेश बांटने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी.... "
Padm Singh - संध्या जी... अगर सब अपने जीवन मे अच्छे विचारों को अपना लें तो चित्र दिखाना तो क्या कुछ कहने सुनने की ज़रूरत भी नहीं है। लेकिन बात फिर वही "अगर ऐसा हो जाय तो"
Raj Bhatia - बातो से लोग मान जाये तो बात ही क्या, जब तक लोगो को आईना ना दिखाया जाये लोगो की समझ मे नही आता... चित्र एक आईना हे जिसे देख कर गंदे कर्म करने वाला एक क्षण ठिठक कर देखता हे ओर शमिंदा होता हे, अगर उसे बातो से अकल आ जाये तो चित्र आयेगा ही कहां से? इस कारण चित्र जरुरी हे,
Lalit Sharma @ Raj Bhatia -- आपसे कदापि सहमत नहीं हूं।
Sandhya Sharma - यही तो कहा है खुद से शुरुआत करनी है, हर घर से हर परिवार से आखिर हम भी हिस्सा है इसी समाज का..ऐसा होगा कैसे नहीं होगा जरुर होगा
Padm Singh - मैंने कहा न ये आप जैसे लोगों के लिए नहीं है... उनके लिए है जो आत्म मुग्धि की तंद्रा मे हैं और जिन्हें जगाने के लिए झिंझोड्ने की जरूतत पड़ती है... अगर आपके कहे अनुसार होता तो करोड़ों साल मे ये शुरुआत हो चुकी होती और सब कुछ ठीक हो गया होता।
Sandhya Sharma - अगर यही बात है कि चित्र दिखाने से अगर समाज में सुधार आता है तो किसी ब्लात्कार के पीड़ीत का सर-ए-आम चित्र लगाने से समाज में ब्लात्कार जैसा घृणित कृत्य रुक जाएगा???????????
Lalit Sharma @ Sandhya Sharma -- आपने जवाब देने के साथ बहुत गंभीर प्रश्न उठाया है।
Padm Singh - नहीं लेकिन एक बलात्कारी को सरे आम फाँसी पर लटकाने का चित्र ऐसे घृणित कार्य के प्रति भय अवश्य पैदा करेगा... अगर ऐसा न होता तो कानून मे जेल और फाँसी की व्यवस्था क्यों होती ...
Padm Singh - मैंने ऊपर लिखा है कि चित्र का चयन रचनात्मक और धनात्मक सुधार के लिए किया जाय तभी स्वीकार्य है... और बलात्कार पीड़िता को दिखाना इसमे नहीं आता
Sandhya Sharma - यही बात भूर्ण हत्या के लिए भी लागू होती है, सजा देते दिखाइए...
Lalit Sharma @ Padm Singh - फ़ांसी की सजा देने के बाद भी, ब्लात्कार या हत्याएं रुक नहीं गयी। आंकड़े उठा कर देखिए कि प्रति वर्ष इस तरह के अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। सिर्फ़ भ्रुण के विभित्स चित्र दिखाने से क्या भ्रुण हत्या बंद हो जाएगी?
Girish Mukul - वैसे अपन अन्ना टाइप के गांधी वाद से असहमत है कि मारो मारो मारो.. अरे सबसे पहले घर सुधारो बच्चों के लिये नज़रिया बदलो, बेटियों को बहादुर बनाओ न दहेज के लिये लार न टपकाओ महंगी शादी करने वालों को लताडो फ़िर आगे की बात करो
Sunita Sharma - sahi wishay par bahut hi prasangik bahas raha aaj ka
के. सुधीर - kise kya achha lag jaye ....lekin dyan rakha jaye ki bura na lage
बात आगे और बढती पर रात गहराते जा रही थी और चर्चा पर विराम लग गया। सोशियल नेटवर्किंग साईटों पर हमें क्या प्रकाशित करना है और क्या नहीं? यह स्वानुशासन का विषय है। जिसे जो अच्छा लगेगा वह देखेगा और पढेगा। अगर हमें अच्छा नहीं लग रहा तो पढने और देखने की आवश्यकता नहीं, पर हद तो तब हो जाती, जब जबरिया दिखाया और पढाया जाए।
आपकी बातों से सहमत ललित भाई....
जवाब देंहटाएंबिना चित्र के भी अपनी बात कही जा सकती है.....
और किसी दूसरे के वाल बे कोई भी चीज शेयर करते समय हमें उनकी संवेदनाओं का जरूर ख्याल रखना चाहिए...
मेरी समझ से चित्र से बढ़िया है कि वहाँ अगर संभव हो तो लिंक दे दिया जाए ... जिसे देखना हो देखे ... नहीं तो कोई बात नहीं !
जवाब देंहटाएंदुरुपयोग का संधिविच्छेद हमारे हिन्दुस्तानी मित्रगण दूर+तक+उपयोग के रूप में करते है :)
जवाब देंहटाएंबहुत गम्भीर विषय उठाया है आपने, विभत्स चित्रों से परहेज ही रखना चाहिए। चाहे सन्देश कितना भी उत्तम हो पर विभत्स चित्रों से हमारी सम्वेदना ही मृत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंउद्देश्य भले अनैतिकता से खेद पैदा करने का हो पर अनवरत ऐसे विभत्स चित्रों से जगुप्सा कम से कमतर होती चली जाती है। अन्ततः सम्वेदनाएं नासूर ही हो गई तो कैसे जगा पाएंगे?
चर्चा का विषय महत्वपूर्ण है। ऐसे चित्र लगाने वाले कई लोगों की सदाशयता पर मुझे विश्वास है, मगर फिर भी - सामाजिक ज़िम्मेदारी एक आवश्यकता है और उसका पालन करते हुए ऐसी वीभत्सता को फैलाने से बचना ही सही है। आत्म-संयम ज़रूरी है। दुःख की बात यह है कि ऐसे चित्र बिखेरने वालों को अक्सर चित्र के वास्तविक इतिहास के बारे में न्यूनतम जानकारी भी नहीं होती। यह भी सोचना चाहिये कि किसी कोमल-हृदय के लिये ऐसी बात देख पाना कितना आघात करता है।
जवाब देंहटाएंसहमत
जवाब देंहटाएंसहमत.
जवाब देंहटाएंहर कोई आपकी बात से सहमत ही होगा सही भी है बहुत ही सही और अच्छा विषय उठाया है आपने आभार
जवाब देंहटाएंफेसबुक पर जाते ही क्यों हो !
जवाब देंहटाएंबात इस बात से ख़तम होनी चाहिए कि ये सब दिखाकर आखिर जो लोग यह वीभत्स सन्देश देना चाहते हैं कम से कम वही सब मिलकर अपनी सोच बदल दें तो सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है, परिवर्तन कि शुरुआत पहले हमारे घर फिर समाज और फिर देश तक होती है....
जवाब देंहटाएंआपका कथन सही है इन साईट्स पर विवेकपूर्ण रहकर उपयोग किया जाए तो बेहतर!
जवाब देंहटाएंएक गम्भीर और महत्वपूर्ण विषय पर सार्थक चर्चा हुई।
इसे व्यवहार में लाना सार्थक होगा।
सार्थक चर्चा... ऐसे सज्जनों को ब्लाक कर देने का आपका विचार अनुकरणीय है...
जवाब देंहटाएंसादर.
विकृतता यदि दिखाने से कम हो सारा जगत वैसे ही विकृत हो गया होता।
जवाब देंहटाएंक्या कहें ....कुछ हैं नहीं बोलने को ...
जवाब देंहटाएंitni sarthak charcha kewal aap ki wall pr ho sakti hai , lalit ji.. aap ka dhanywad .. aur badhai. is sundr aalekh ke liye
जवाब देंहटाएंवीभत्स चित्र का सुंदर चित्रण.
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ ....ऐसे चित्रों को दिखाने का अर्थ ही क्या बनता है....
जवाब देंहटाएंमैं तो कहता हूँ कि जहाँ सड़क दुर्घटनाएं अधिक होती हैं, वहाँ चित्र भी लगाएं और यह लिखें कि अगला नम्बर आपका तो नहीं. क्योंकि अगर सभी लोग संवेदनशील होते तो इतनी नौबत ही नहीं आती.
जवाब देंहटाएंबस एक बात अवश्य है कि चित्र लगाते समय थोड़ी सावधानी बरतें. क्योंकि आँख मूंदने से तो समस्या दूर नहीं होती...
मुझे तो फेसबुक में फोटो टैग करने के आप्शन से ही कोफ्त होती है। लोगों को न जाने इसमें क्या सुकून मिलता है। अरे भाई सीधे अपने वाल में पोस्ट कर दो, जिसे कमेंट करना है करेगा..... किसी के वाल में टैग करने से ही आपकी सक्रियता दिखेगी क्या.....?????
जवाब देंहटाएंइसी तरह की बेवजह की तकलीफों के चलते मैंने अपनी फेसबुक सेटिंग में फोटो टैग करने का आप्शन बंद कर रखा है....... अब मेरा वाल किसी के भी टैग से सुरक्षित है।
सार्थक एवं महत्वपूर्ण चर्चा...
जवाब देंहटाएंदादा आपको दाद देता हूं ग़ज़ब खोपड़ी चलाते हो
जवाब देंहटाएंफेसबुक पर यह एक गंभीर समस्या है लोग कैसी भी उटपटांग फोटो लगाकर टेग कर देते है या कोई ग्रुप बनाकर उसका आपको सदस्य बना देता है कई फेसबुक पर लम्बे अंतराल के बाद जाने पर नोटिफिकेशन इतने ज्यादा हो जाते है कि सभी को देखना मुश्किल होता है ऐसे में हम पता लगने तक उन ग्रुप्स के सदस्य बने रहते है जिनकी विचारधारा से हमें कोई लेना देना नहीं|
जवाब देंहटाएंसार्थक बहस ...विचारणीय प्रश्न .....सामाजिक सरोकार ....! सब कुछ शमिल है आपके कथन में ...!
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