सोमवार, 21 मई 2012

हसदपुर ---- ललित शर्मा

स्वामी विकासानंद जी का कमरा
सुबह के 9 बजे हैं, हमारी कार गाँव की सड़क पर चल रही है। थोड़ी देर में तालाब के सामने एक बड़ा सा कम्पाऊंड दिखाई देता है, जहाँ कुछ निर्माण हो रहा है। एक लम्बा सा चूने से पुता परसार है जिसमें नीले रंग का दरवाजा लगा है। रोको-रोको, मुझे यहीं  जाना है।- ड्रायवर से कहता हूँ। कार से उतर कर दरवाजे से भीतर पहुंचा तो एक नौकर दिखाई दिया। फ़ड़नवीस सर हैं क्या? मै उससे पूछता हूँ। मंदिर गए हैं - वह कहता है। सामने परछी में एक आराम कुर्सी रखी है अंग्रेजों के जमाने की। जिस पर कांच के फ़ेम में जड़ी एक तश्वीर रखी है। साथ ही कुछ फ़ूल भी चढे हुए हैं। कुर्सी के बाजु से एक तखत रखा है और दोनो के बीच एक दरवाजा है, जो अभी बंद है। सामने तख्ती पर लिखा है "जूते उतार कर प्रवेश करें।" मै और डॉ सत्यजीत साहू जूते उतारते हैं और पिछवाड़े जाने वाले दरवाजे से मंदिर की ओर जाते हैं। सामने गोबर गैस का टैंक बना है, यह लगभग 4 एकड़ की बखरी (बाड़ी)  है। जिसमें तरह-तरह के फ़ूल खिले हैं। आम, जाम, जामुन, नीम, पीपल और भी तरह तरह के वृक्ष लगे हैं। वातावरण काफ़ी शांत और सुकून भरा है।

नाना से प्राप्त शिवाजी का आगरा-पूणे मार्ग
हम मंदिर के दरवाजे पर पहुंचते हैं तो भीतर से आवाज आती है - मोजे उतार कर भीतर आ जाओ। हम मोजे उतारकर भीतर प्रवेश करते है तो राम के विग्रह के समक्ष फ़ड़नवीस सर विनीत मुद्रा में खड़े होकर प्रार्थना कर रहे है। उसके बाद वह मुड़ कर हमारा परिचय पूछते है और आने का सबब। मै उन्हे डॉ सत्यजीत के साथ अपना परिचय देता हूँ और आने का कारण बताता हूँ। वे मुझे पहचान जाते हैं। फ़ड़नवीस सर का पूरा नाम गणपत शंकर राव फ़ड़नवीस है। ये अभनपुर तहसील रायपुर जिला के हसदा गाँव के निवासी हैं। हसदा गाँव अभनपुर से लगभग 8 किलो मीटर दूर राजिम मार्ग पर है। मुख्य मार्ग से 2 किलोमीटर भीतर और जाना पड़ता है। यहाँ इनकी पुरखौती जमीन जायदाद है। 80 वर्षीय फ़ड़नवीस सर हसदा के हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य पद से सेवानिवृत है। बेटे बाहर नौकरी करते है और ये गांव में रहकर खेती बाड़ी देखते है। वे बताते हैं कि - हसदा गांव का नाम प्राचीन नाम हसदपुर है। यहां उनके पुरखे आए थे। बाजी राव पेशवा के भाई चीमा जी अप्पा ने जब बंगाल पर आक्रमण किया तो उनके पूर्वज सेना के साथ आए थे। सेना के कूच के दौरान चीमा जी अप्पा को खबर मिली कि उनके भाई बाजी राव पेशवा बीमार हैं तो वे अपनी सेना लेकर लौट गए और उनके पूर्वज यहीं रह गए।

राजा गोपीचंद की तप स्थली 800-1000 वर्ष पुराना पीपल का वृक्ष, 
हसदपुर गाँव की मालगुजारी उनके पिता शंकर राव फ़ड़नवीस की मौसी जानकी बाई की थी। शंकरराव धमतरी से उनकी मालगुजारी की देख रेख करने बुलाए गए थे। मालगुजारी में इनका एक आने का हिस्सा था। तब से हसदा गांव में ही निवासरत है। मेरा प्रथम बार हसदा आना सन 1978 में हुआ था। अभनपुर से नैरो गेज की राजिम जाने वाली ट्रेन में बैठ कर हम सब दोस्त मानिकचौरी पहुंचे थे और वहां से खेतों की मेड़ पर पैदल चलते हुए हसदा पहुंचे। फ़ड़नवीस सर की बखरी में हमने दिन भर पिकनिक मनाई और शाम की गाड़ी से वापस अभनपुर आए। उस समय की कुछ धुंधली सी यादें चेतना में हैं। तब फ़ड़नवीस सर ने बताया था कि इस स्थान पर बंगाल के राजा गोपीचंद ने तपस्या की थी। आज पुन: यादें ताजा करने के लिए हसदा पहुंच गया। राम मंदिर के पीछे पीपल का एक बड़ा पेड़ है। इसके नीचे सांप की बांबी बनी हुई है। साथ ही इनके कुल देवता हनुमान जी भी विराजमान है। फ़ड़नवीस सर अपने साथ टोकरी  में लिए फ़ूल चढाते हैं और बताते हैं कि उनके कुल गुरु स्वामी विकासानंद महाराज ने बताया था कि इस पीपल के नीचे नौ नाथों में जालंधरनाथ के शिष्य बंगाल के राजा गोपीचंद ने संन्यास ग्रहण करने के बाद तपस्या की थी। (एक कथा के अनुसार गोपीचंद बंग देश के राजा थे। उनकी माता का नाम मुक्ता था। रानी मुक्ता को पता चलता है कि अट्ठारहवे वर्ष में गोपीचंद की मृत्यु हो जायेगी। इसलिए वह गोपीचन्द को सन्यास के लिए प्रेरित करती हैं। कहते हैं कि रानी मुक्तावती राजा भृतहरि की बहन थी जिसे मैनावती भी कहा जाता है ) यह पीपल का पेड़ लगभग 800-1000 वर्ष पुराना है। इसकी बांबी में बड़े-बड़े नाग सर्प हैं जो अक्सर दिखाई देते हैं।

हसदपुर की महामाया देवी
हसदपुर गांव के चारों तरफ़ खाई बनी हुई थी। संभवत: यहाँ कोई किले जैसी संरचना थी और किसी राजा का निवास स्थान भी था। लेकिन किसका था यह पता नहीं है। इनकी बखरी के बगल की जमीन में कुछ ढाल दिखाई दे रही है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कभी यहाँ खाई रही होगी। गाँव के इर्द गिर्द सात तालाब बने हुए हैं। इतने तालाब एक ही स्थान पर तभी मिल सकते हैं जब कोई बड़ी आबादी यहाँ रहती होगी। यह पुरातात्विक शोध का विषय है। गाँव के लोग खाई के आस-पास के खेतों को अभी भी "खईया" कहते हैं। इस गाँव में हमेशा आते रहा हूँ पर कुछ खोजने की दृष्टि से कभी नहीं देखा। लगता है इस गाँव का संबंध अवश्य इतिहास से रहा है। इस पर शोध किया जाना चाहिए और पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वे भी किया जाना चाहिए। पहले जब इस गाँव में आया था तो यहाँ के तालाबों का पानी साफ़ था और उसमें कमल-कुमुदिनी खिले हुए थे। मैं यहीं पहली बार कुमुदनी से परिचित हुआ था। राम मंदिर के दक्षिण दिशा में एक टीले पर महामाया का मंदिर है। बताते हैं कि यह मंदिर प्राचीन है। मंदिर में एक तरफ़ महामाया और दूसरी तरफ़ भैंरव विराजमान हैं। हम एक नौकर के साथ महामाया मंदिर के दर्शन करने जाते हैं। मंदिर में ताला बंद था, इसलिए नौकर चाबी साथ लेकर आया था।


स्वामी विकासानंद जी
 दर्शन करने के बाद डॉ सत्यजित ग्राम भ्रमण पर चले जाते है और मै नाना फ़ड़नवीस से चर्चा करता हूँ। वे स्वामी विकासानंद जी (लाम्बे महाराज) विषय में बताते हैं। उनका मुख्याश्रम नागपुर में स्थित है। गुरुजी अब तो शांत हो गए हैं, जब कभी वे राजनांदगांव तक आते थे तो हसदा जरुर आते थे। उनका ध्यान और पूजा करने का कमरा आज भी यथावत है। उनका सारा सामान करीने से सजा हुआ है। वहाँ कोई  नहीं जाता सिर्फ़ नाना फ़ड़नवीस सुबह शाम पूजा करने जाते हैं। हमे गुरुजी का वो कमरा दिखाया जाता है जहां पलंग पर गद्दा और चादर बिछी हुई  है और उस पर गुरुजी की एक फ़ोटो रखी हुई है। गुरुजी यहीं साधना करते थे तथा कभी-कभी सु्क्ष्म रुप में कमरे से आते-जाते दिखाई देते हैं। उनकी आत्मा यहीं लगी रहती है और किसी को कोई नुकसान नहीं करती। स्वामी विकासानंद के लगभग 20-22 आश्रम बताए जाते हैं। जबलपुर में ग्रुरु पूर्णिमा के आयोजन के लिए यहां से चावल भेजे जा रहे हैं। नाना फ़ड़नवीस एच एम टी चावल भरी बोरियाँ दिखाते हैं और कहते हैं कि- इसे ट्रांसपोर्ट से भेजा जाएगा।


नाना फ़ड़नवीस ( गणपत शंकर राव फ़ड़नवीस)
परछी के म्यार में एक लकडी का झूला लटका है। नाना उस पर आकर बैठ जाते हैं, कहते हैं कि उन्हे एक बार अटैक आ गया है और ओपन हार्ट सर्जरी भी हो चुकी है। वैसे 80 वर्ष की अवस्था में वे स्वस्थ हैं। नौकर से चाय बनाने के लिए कहते हैं तो मै मना कर देता हूँ। नाना बालक भगवान (पुरन सोनी) के विषय में बताते हुए कहते हैं कि एक बार उन्होने गुरुजी से कहा कि नौरात्रि में हसदा में पीपल के नीचे बैठ कर नौ दिन का उपवास करना चाहते हैं। गुरुजी ने हसदा खबर भेज कर उनकी व्यवस्था करने कहा। हमने व्यवस्था कर दी, बालक भगवान नौदिन का संकल्प करके दो दिन वहाँ बैठे और तीसरे दिन कहने लगे कि मैं यहाँ नहीं बैठ सकता। मुझे राजिम में माता जी बुला रही हैं। लाख मना करने पर भी नही माने और चले गए। मैने गुरुजी को नागपुर खबर भेज दी कि बालक भगवान चले गए हैं। मुझे लगा कि कुछ तो घटित हुआ है जिसके कारण बालक भगवान को जाना पड़ा। कुछ दिनों के बाद वे फ़िर आए तो पूछने पर उन्होने बताया कि जब वे पीपल के नीचे ध्यान मग्न थे तो एक बहुत बड़ा नाग सांप वहाँ आकर कुंडली मार कर बैठ गया। जब मेरी आँख खुली तो वह मेरी आँखों में झांक रहा था। न खुद हिल रहा था न मुझे हिलने दे रहा था। ऐसी अवस्था में दोनो को बैठे तीन घंटे हो गए थे। इसलिए मैं डर के मारे भाग गया था।

नाना फ़ड़नवीस से प्राप्त दस्तावेज की प्रति
नाना एक रहस्योद्घाटन भी करते हैं। वे कहते हैं कि जब शिवाजी महाराज औरंगजेब की कैद से आगरा से भागे तो रायपुर होते हुए हसदपुर भी आए थे। मैने इसका प्रमाण मांगा तो उन्होने किसी के शोध की कुछ प्रतियाँ नक्शे सहित उपलब्ध कराई। गांव में फ़ोटो स्टेट मशीन नही थी इसलिए डॉ सत्यजीत ने उन दस्तावेजों के चित्र लिए। वे कहते हैं कि शिवाजी महाराज महामाया देवी के भक्त थे। जब वे आगरा से चले तो महामाया माता के मंदिरों के दर्शन करते हुए चले। जहाँ भी रास्ते में महामाया मंदिर मिला वहीं रुके। वे रतनपुर महामाया के दर्शन करके रायपुर होते हुए हसदा पहुंचे और यहीं से चंद्रपुर में महामाया दर्शन करके पूना की ओर गए। संभवत: 1666 के सितम्बर माह में वे हसदा आए थे। चंद्रपुर के इतिहासकार दत्तात्रेय नानरकर और अशोक ठाकुर के अनुसार आगरा से छूटने के पश्चात शिवाजी महाराज गुप्त रुप से नागपुर इसी रास्ते से आए होगें। उनका ऐसा अनुमान है।मेरा यही मानना है कि हसदा के इतिहास के विषय में खोज होनी चाहिए जिससे किंवदंतियों एवं दंतकथाओं की पु्ष्टि हो सके। नाना फ़ड़नवीस विस्तृत चर्चा के उपरांत हमने उनसे विदा ली और उन्होने पुन: आने का निमंत्रण दिया और हम आगे की यात्रा पूरी करने के लिए चल पड़े।

24 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक और समृद्ध ऐतिहासिक सूचनाएं.

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  2. बहुत सुन्दर पोस्ट . वैभवशाली इतिहास का साक्षी संभावनाओं की बाट जोहता

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  3. गज़ब की खोजपरक जानकारियाँ

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  4. पुरातत्व विभाग को यहाँ पड़ताल करनी ही चाहिए ..
    रोचक जानकारी !

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  5. इतिहास के न जाने कितने अध्याय छिपे हैं हमारे अंचलों में..

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  6. अभनपुर से मात्र ८ किलोमीटर दूर हसदपुर , १९७८ के बाद २०१२ यानि कि ३२-३३ साल के बाद आप वहां पहुंचे !

    धार्मिक आध्यात्मिक अभिरुचियों वाले पाठकों , सूक्ष्म अशरीरी शक्तियों के आवागमन और पराजागतिक रहस्य रोमांच के दीवानों के लिए आपकी कलम खूब चली ! बालक भगवान का उपवास दृष्टांत सोने में सुहागा जैसा !

    सैन्य अभियानों के दौरान मराठों की छत्तीसगढ़ में उपस्थिति निर्विवाद है ! लालित्यपूर्ण प्रविष्टि !

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  7. इस ऐतिहासिक खोज के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  8. @ali-

    इन वर्षों में पचासों बार गया वहाँ, कॉलेज के समय तो प्रतिवर्ष व्हालीबॉल प्रतियोगिता में भाग लेने जाता था। पर इस पर ध्यान नहीं दिया। जिस दिन ध्यान दिया उस दिन लिख दिया। :)

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  9. @Vinod Saini - आपके यहाँ पधारे थे, लेकिन पता ही गलत है। सही पता दें तो फ़िर पधारें।

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  10. अभी भी न जाने क्या क्या छिपा है इतिहास के पन्नों में जो हमे मालुम नही है,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  11. विकास आश्रम हमारे घर से मात्र 1/2 किमी. की दूरी पर है, और जैसा आपने वर्णन किया है बिलकुल वैसा ही है. हमेशा जाना होता है. आज आपकी पोस्ट के माध्यम से इन सबका ऐतिहासिक महत्व पता चला... रोचक ऐतिहासिक जानकारियों से भरे विवरण के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

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  12. शिवाजी का महराज का आगमन... वाह!
    ऐतिहासिक ज्ञानवर्धक पोस्ट... सादर आभार....

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  13. इतना विस्तार से ऐतिहासिक व्यख्या ..मानना पड़ेगा ..तुस्सी ग्रेट ही जी !

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  14. छोटे से शीर्षक वाला यह पोस्‍ट धार्मिक , आध्‍यात्मिक , पौराणिक और ऐतिहासिक जानकारी से भरपूर है .. इस पोस्‍ट से हसदा के बारे में रोचक जानकारियां मिली !!

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  15. अब तो ललित भाई हमारा आपका नाता और गहरा गया

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  16. मेरी अगली पोस्ट से आप समझ जाएंगे कि मैने क्या कहा

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  17. अभनपुर ब्लाक के गावं हसदा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व ..................यहाँ का इतिहास माँ भगवती की आराधना ,शिवाजी का कौशल ,राजा की तपस्या और नवनाथ के आशीर्वाद से सरोबार है ...................सबको इससे परिचय करने के लिये आपका आभार .............

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  18. रोचक जानकारी ऐसी यात्राये करते रहे हमें घर बैठे जानकारियां उपलब्ध करने के लिए साधुवाद

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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