तनहाई में सोई हुई यादें फ़िर जाग उठी, तन मन सब भीगा था। रपटीली राह में मील के पत्थर भीग रहे थे, मैं उन्हे देख रहा था। कब से मेरे सफ़र के साथी बने हुए हैं। याद करके रोमांचित था ।कितना सफ़र तय कर लि्या, इतने कम समय में,
सोच रहा था, आज रपट जाएं तो हमें न उठईयो, हमें जो उठईयो तो खुद भी रपट ज़ईयो, ज़ाने कब से इंतजार है उनके रपटने का, लेकिन आज तक रपटे नहीँ और न ही हमें उठाया। हम युं ही गुनगुनाते रहे हैं।सावन के महीने में,एक आग सी सीने में, लगती है तो पी लेता हूँ, दो चार घड़ी जी लेता हूँ।
मौसम के साथ इश्क के फ़ूल भी खिलते और मुरझाते हैं। तितलियाँ भी अवसर देख कर आती है, फ़ूलों पर मंडराती हैं,भंवरे भी तभी गुनगुनाते हैं, जब मौसम आता है तितलियों का।
दो ही अवसर होते हैं जब जवान से लेकर बुढे भी दिन में सपने देखते हैं। आइना देख कर मुस्कुराते हैं, मुंह बनाते हैं। पुराने फ़कीरों के भी दिल के जख्म हरे हो जाते हैं, एक सावन में दुसरा फ़ागुन में। बाकी साल के 10 महीने कुछ नहीं होता। कहीं कोई शमा नहीं सुलगती, कहीं कोई परवाना नहीं जलता। कहीं तितली नहीं कहीं भंवरा नहीं, फ़ूल भी नहीं मुस्काते,कहीं कोई काव्य का निर्झर नहीं झरता,
कहीं कोई -"खिड़की से यार को बु्लाए रे" फ़ाग नहीं सुनाता। कहीं बादल नहीं गरजता,कहीं बादल नहीं बरसता, कहीं कालीदास के मेघदूत की चर्चा होती,यही दो मौसम हैं जो संयोग-वियोग के काव्य सौंदर्य को सरिता सी बहाते हैं।
दो ही अवसर होते हैं जब जवान से लेकर बुढे भी दिन में सपने देखते हैं। आइना देख कर मुस्कुराते हैं, मुंह बनाते हैं। पुराने फ़कीरों के भी दिल के जख्म हरे हो जाते हैं, एक सावन में दुसरा फ़ागुन में। बाकी साल के 10 महीने कुछ नहीं होता। कहीं कोई शमा नहीं सुलगती, कहीं कोई परवाना नहीं जलता। कहीं तितली नहीं कहीं भंवरा नहीं, फ़ूल भी नहीं मुस्काते,कहीं कोई काव्य का निर्झर नहीं झरता,
कहीं कोई -"खिड़की से यार को बु्लाए रे" फ़ाग नहीं सुनाता। कहीं बादल नहीं गरजता,कहीं बादल नहीं बरसता, कहीं कालीदास के मेघदूत की चर्चा होती,यही दो मौसम हैं जो संयोग-वियोग के काव्य सौंदर्य को सरिता सी बहाते हैं।
कभी इंतजार रहता था उनको भी हमारे आने का, हमें बेसब्री रहती थी उनसे मिलने की, लेकिन साल भर बरसात और फ़ागुन का मौसम नहीं रहता,
जब कोई गाता हुआ मिले दुवारी पर"घर आया मेरा परदेशी, प्यास बुझी मेरी अंखियन की, परदेशी भी कहती थी और मेरा भी कहती थी, जाने कब से उन्हे इंतजार था, और कब तक इंतजार करती, अंखियों की प्यास बुझने का,
बस शाम से छज्जे पर खड़ी हो जाती, अपनी आंखे सेंकते हुए। लाला जी नीचे गल्ले पर और बे्गम अटरिया पर लोटन कबुतर उड़ा रही होती थी। क्योंकि पतंगे सभी कट चुकी थी, आसमान खाली-खाली, जैसे कबुतर उड़ाते हुए मेरा मन। उड़ा चला जाता खोज में सात समंदर पार।
बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बरसात में, पुराने रेड़ियो पर यह नया गाना बज रहा है। हम खाट पर पड़े सोच रहे हैं कि कैसे मिले बरसात में? अंधियारी रात है, मुसलाधार बरसात है। रास्ता देखने लिए लालटेन भी काम नहीं आने वाली शीशा फ़ूट जाएगा और बुझ जाएगी।
बाहर पैर रखते ही साँप बिच्छु का डर अलग से है उनके बिल में पानी भरने से सब बाहर निकल आए होगें। सामने गली में बंशी के छप्पर के नीचे बूढा खाट डाले पड़ा होगा खांसते हुए,निगहबानी करते हुए।
फ़िर आगे नदिया पार करने का खतरा। अब सजन जाए तो जाए कैसे बरसात में? कोई तुलसीदास तो है नहीं, जो चला ही जाए। इतना पा्गल प्रेमी नहीं हूँ,
न आऊं तो समझ जाना, सजन नहीं आए बरसात में। तुम्हे बरसात में ही सजन की क्यों याद आती है, कोई दूसरा मौसम नही है?
बाहर पैर रखते ही साँप बिच्छु का डर अलग से है उनके बिल में पानी भरने से सब बाहर निकल आए होगें। सामने गली में बंशी के छप्पर के नीचे बूढा खाट डाले पड़ा होगा खांसते हुए,निगहबानी करते हुए।
फ़िर आगे नदिया पार करने का खतरा। अब सजन जाए तो जाए कैसे बरसात में? कोई तुलसीदास तो है नहीं, जो चला ही जाए। इतना पा्गल प्रेमी नहीं हूँ,
न आऊं तो समझ जाना, सजन नहीं आए बरसात में। तुम्हे बरसात में ही सजन की क्यों याद आती है, कोई दूसरा मौसम नही है?
इतना न मुझसे प्यार बढा मैं हूँ बादल आवारा, कैसे किसी का सहारा बनुं। इतना तो झल्ला नहीं हूँ कि नदी पार करने का खतरा उठाऊं। कभी-कभी मेरे दिल में एक ख्याल आता है, ख्याल ही क्यों, बहुत बुरे-बुरे डरावने सपने आते हैं।
उस बरसात में भीगना मुझे अभी तक डरा जाता है। सोचकर सारा रोमांस काफ़ूर हो जाता है जब हमें डाकू छलिया मिल गया था और तुमसे पू्छा था किसकी बेटी हो?
तुमने तुरंत सफ़ाई से झूठ बोल दिया था कि सुदामा मल्लाह की बेटी हो और उसने हमें छोड़ दिया था। अगर तुम अपने असली बाप या असली पति लाला जी का नाम बता दिया होता तो तुम्हे उठाकर ही ले जाता।
आज के जमाने में कितना जरुरी हो गया है,दो-दो बाप होना, दो-दो पतिनुमा प्राणी होना, सुरक्षा की खातिर। फ़िर भी तुम्हे सबक नहीं मिला, कहती हो सजन नहीं आए बरसात में।
उस बरसात में भीगना मुझे अभी तक डरा जाता है। सोचकर सारा रोमांस काफ़ूर हो जाता है जब हमें डाकू छलिया मिल गया था और तुमसे पू्छा था किसकी बेटी हो?
तुमने तुरंत सफ़ाई से झूठ बोल दिया था कि सुदामा मल्लाह की बेटी हो और उसने हमें छोड़ दिया था। अगर तुम अपने असली बाप या असली पति लाला जी का नाम बता दिया होता तो तुम्हे उठाकर ही ले जाता।
आज के जमाने में कितना जरुरी हो गया है,दो-दो बाप होना, दो-दो पतिनुमा प्राणी होना, सुरक्षा की खातिर। फ़िर भी तुम्हे सबक नहीं मिला, कहती हो सजन नहीं आए बरसात में।
जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात, कैसे भूल सकता हूँ? जब बादल गरजता था तो तुम डरकर सिमट जाती थी मेरे पहलु में।
कल्पना करता हूँ, बिजली की चमक में वह दृश्य किसी श्वेत श्याम चित्रपट के पोस्टर की तरह दिख रहा होगा। शिव मंदिर के खंडहर में हमें सिर छुपाने की जगह मिली थी, पूरी तरह हम भीग चुके थे।
पानी से भीगा हुआ जब तुम पल्लु निचोड़ रही थी तो उससे फ़ूलझड़ी की तरह चिंगारियाँ निकल रही थी। कितना जोश और गर्मी होती है जवानी में। बस क्या कहूँ, उस दिन की बात-वो थी हमारे जीवन की आखरी रात।
तुम्हारे से मिलने आना मुश्किल है क्योंकि बरसात वैसी ही है,लेकिन प्यार में वो जु्म्बिश नहीं रही। लाला ने मुस्टण्डे पाल लिए हैं, दुगना खतरा बढ गया है।
ये इश्क नहीं आसां, जानम तुम समझा करो। बस इतनी ही अर्ज है-" बचपन की मुहब्बत को, दिल से न जुदा करना। जब याद मेरी आए, मिलने की दुआ करना, मिलने की दुआ करना.......!
कल्पना करता हूँ, बिजली की चमक में वह दृश्य किसी श्वेत श्याम चित्रपट के पोस्टर की तरह दिख रहा होगा। शिव मंदिर के खंडहर में हमें सिर छुपाने की जगह मिली थी, पूरी तरह हम भीग चुके थे।
पानी से भीगा हुआ जब तुम पल्लु निचोड़ रही थी तो उससे फ़ूलझड़ी की तरह चिंगारियाँ निकल रही थी। कितना जोश और गर्मी होती है जवानी में। बस क्या कहूँ, उस दिन की बात-वो थी हमारे जीवन की आखरी रात।
तुम्हारे से मिलने आना मुश्किल है क्योंकि बरसात वैसी ही है,लेकिन प्यार में वो जु्म्बिश नहीं रही। लाला ने मुस्टण्डे पाल लिए हैं, दुगना खतरा बढ गया है।
ये इश्क नहीं आसां, जानम तुम समझा करो। बस इतनी ही अर्ज है-" बचपन की मुहब्बत को, दिल से न जुदा करना। जब याद मेरी आए, मिलने की दुआ करना, मिलने की दुआ करना.......!
वाह ! आज तो यादों का भंडार ही उढ़ेल दिया :)
जवाब देंहटाएंपर शहरी जिन्दगी में तो सावन व फागुन भी बाकी दस महीनों की तरह ही हो लिए |
आपके पोस्ट को पढ़कर अपने स्कूल का जमाना याद आ गया जब हम आपके पोस्ट में वर्णित सुरीले गीतों से रची बसी फिल्मों को देखने जाया करते थे, वह भी स्कूल से भागकर!
जवाब देंहटाएंबारिश बहुतों को पगलवा देती है, और फ़िल्में भी। पगलाने के स्थायी भाव को फ़िल्मों का अवलम्बन और वर्षा का उद्दीपन मिल जाए तो यह आतुरता सहज-सम्भाव्य है।
जवाब देंहटाएंइस रोग से निदान के लिए योग्य, अनुभवी और कुशल चिकित्सक की सेवा लेना अनिवार्य है। अवस्था यदि कैशोर्य की हो तो पूज्य-पिताजी और गार्हस्थ्यजीवनरत योगियों के लिए पत्नी-देवी इस संबन्ध में स्वत:सेवाएँ सहर्ष और त्वरित-द्रुत गति से प्रस्तुत करते हैं।
शीघ्र निदान श्लाघनीय होगा। विलम्ब से मटुकनाथत्व के वायरस से संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है।
अस्तु, शेष आप स्वयं समझदार हैं…
भाई बरसात पे ही तो सारे पुराण लिखें गए है महाराज जी ....... बरसात के बारे में सबके नजरिये अपने अपने होते हैं .... बच्चों के लिए बारिश ,जवानों के लिए बारिश, युवा धड़कनों के लिए बारिश , प्रेमी और प्रेमिका के लिए .... कुल मिलाकर नजरिये अलग अलग होते हैं ....
जवाब देंहटाएंrochak, romanchak post...khas mausam kee khas pehkash! adbhud sanyojan
जवाब देंहटाएंवाह ..क्या संगीतमयी यादें हैं ..बहुत अच्छे अच्छे गीत याद दिया दिए.
जवाब देंहटाएं...बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएं...प्रसंशनीय ... बहुत बहुत बधाई!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!
जवाब देंहटाएं" सावन को अग्न लगाये ....................उसे कौन बुझाये ?? "
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ललित भाई !
वैसे यादो का भी अपना एक अलग ही लुत्फ़ होता है !
जय जोहार !
वाह ....बहुत अच्छे अच्छे गीत याद दिया दिए.
जवाब देंहटाएंलगता है बरसात में कुछ रोमांटिक मूड हो आया है ... एक से एक बढ़कर गाने के नाम ले लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया मजेदार प्रस्तुति के लिए बधाई ...
आज तो भई आपका जलवा ही कुछ और है...बहुत अच्छे अच्छे गाने याद दिला दिए...
जवाब देंहटाएंइस बरसात के मौसम मे ऐसी भिगोने वाली पोस्ट मत लिखा करो भाई ...अरे यह नई पीढ़ी क्या समझेगी इनके लिये तो दिल कमीना है हाहाहा..
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
जवाब देंहटाएं"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं
हमारीवाणी.कॉम
बहुत अच्छे अच्छे गीत याद दिया दिए.
जवाब देंहटाएंबढ़िया मजेदार प्रस्तुति के लिए बधाई ...
जवाब देंहटाएंआज की पोस्ट में तो मज़ा गया....
जवाब देंहटाएंये इश्क नहीं आसां जानम तुम समझा करो----शीर्षक बहुत सार्थक है...
सुन्दर गीतों का ताना बाना ...मधुर यादों के साथ ...!
जवाब देंहटाएंआप बरसात में मज़े कर रहे हैं , और यहाँ हम तरस रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंये कैसी मानसून की घडी है ,
अब तो बरसात भी हमसे किनारा करने लगी है ।
मज़ा आ गया ललित जी , आपके बरसाती गाने पढ़कर ।
वाह वाह जी बहुत सारी यादे इस मै हमारी भी है
जवाब देंहटाएंजय जय औघड बाबा !
जवाब देंहटाएंbahut khub, sab barish ka asar hai buddhe bhi chathiya gayen hain.........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट .. चाहे कोई भी विषय हो .. आप बहुत बढिया लिख लेते हैं !!
जवाब देंहटाएंएक उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
क्या बात है गुरू छा गए
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.
कल इसे देखा तो था लेकिन एक काम में ऐसा फंसा कि फिर पूछो मत.
आज आकर देख रहा हूं
धांसू
सारे बरसात के गीत ! बहुत खूबसूरत प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंजय हो गुरुदेव
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, सटीक, सारगर्भित आलेख है...@शर्मा जी
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