“क्षमा वीरस्य भूषणम्।“ एक सुक्ति कही जाती है। क्षमा वीरों का आभूषण है। कहा गया है कि "क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमें गरल भरा हो।" कहने का तात्पर्य यह है कि जो नुकसान करने में सक्षम है अगर वह क्षमा करे तो शोभायमान होता है। जिसमें नुकसान करने की क्षमता नहीं है और वह कहे कि जाओ तुम्हे क्षमा करता हूँ तो स्थिति हास्यास्पद ही होगी। अगर कोई सींकिया आदमी पहलवान से कहे कि जा तुझे माफ़ किया तो लोग हंसेगे ही।
अगर हम किसी विवाद की जड़ में जाएं तो इसका प्रमुख कारण गर्व, घमंड ही होता है। किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करना और अपने को ऊँचा दिखाना भी लड़ाई को जन्म देता है। जब अहम टकराता है तो वह बड़ा नुकसान करवा देता है। लेकिन क्षमा एक बहुत बड़ा हथियार है शांति के लिए। इससे मन की शांति हो जाती है। मन की शांति इसलिए होती है कि क्षमा मांग लेने से गर्व का शमन हो जाता है।
लेकिन ध्यान यह भी रहे कि मूर्खों से क्षमा मांगना और उन्हे क्षमा करना भी बहुत बड़ी मूर्खता होती है। मूर्ख तो सिर्फ़ डंडे की भाषा समझता है। इसलिए उसे डंडे से ही क्षमा करना पड़ता है। जब भगवान राम समुद्र पार करना चाहते थे और वह उन्हे रास्ता नहीं दे रहा था तब लक्ष्मण ने कहा कि आप आज्ञा दें तो मैं इसे एक तीर से ही सुखा सकता हूँ। तब भगवान राम ने कहा था कि “ सबसे पहले प्रयत्न यह करना चाहिए कि विपत्ति आए ही नहीं। अगर कोई हठधर्मी पूर्वक विपत्ति लाना चाहता है तो सबसे पहले उससे बचने की कोशिश करो, उसके मार्ग से हट जाओ। अगर वह फ़िर भी ना माने और मार्ग छोड़ कर तुम्हारे उपर ही सवार होने लगे तब उसका डट कर मुकाबला करो और उस पर विजय पाओ।
यही होता है दुनिया में, अगर हम लड़ाई झगड़े से बचना चाह कर अपनी गलती न होते हुए भी विवाद खत्म करने के लिए क्षमा मांग लेते हैं तो वह मूर्ख अपने आपको बलशाली समझने लगता है और उसका विष वमन और बढ जाता है। तब उसके विष का शमन दंड से ही करना पड़ता है। क्योंकि वह उसी की भाषा समझता है। इसलिए कहा गया है कि शठे शाठ्यम समाचरेत। शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार करो तभी उसकी समझ मे आता है। उल्टे घड़े में पानी नहीं डाला जा सकता, इसलिए उसे सीधा करना ही पड़ता जिससे वह जल ग्रहण करने के योग्य बन जाए।
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरुकुलों में पढते थे तब उन्हे भिक्षा वृत्ति के जाना अनिवार्य था। वे अपना भोजन पास के गांव से भिक्षा मांग करते थे। वो भी उतना ही जितनी भूख है उससे अधिक भोजन रखने की अनुमति नही होती थी। फ़िर दूसरे दिन भोजन मांग कर लाना पड़ता था। इस तरह भिक्षा वृत्ति करने से विद्यार्थी का घंमड और गर्व चूर होता था। क्योंकि गुरुकुलों में राजा महाराजाओं के राजकुमार भी पढते थे। राजकुमारों को ही राजगद्दी मिलती थी और वही राज काज चलाते थे। अगर इनमें घमंड रह जाता तो प्रजा का सत्यानाश कर डालते। इसलिए गुरुकुल में भिक्षा वृत्ति की परम्परा थी।
जिस व्यक्ति के घमंड और गर्व का शमन हो जाता है वह प्राणि मात्र को स्नेह की दृष्टि से देखता है उसके मन में करुणा का भाव उत्पन्न हो जाता है। चराचर जगत से प्यार करने लग जाता है। जब चराचर जगत से प्यार हो जाता है तो यही प्यार उसके मन में क्षमा का भाव उत्पन्न करता है। फ़िर यही क्षमा का भाव मन में शांति और धैर्य की स्थापना करता है। जिससे क्रोध एवं सभी ऐषणाओं पर विजय प्राप्त हो जाती है। जीवन सुंदर हो जाता है। इसलिए क्षमा का भाव भी आवश्यक है, लेकिन उसके लिए जो क्षमा का महत्व समझता है। कभी भूल से भी भूल कर कभी कोई मनसा वाचा कर्मणा भूल हुई हो तो क्षमा कर देना कथन जैन दर्शन का आधार है। जब इसे अमल किया जाए तब। अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु।
अगर हम किसी विवाद की जड़ में जाएं तो इसका प्रमुख कारण गर्व, घमंड ही होता है। किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करना और अपने को ऊँचा दिखाना भी लड़ाई को जन्म देता है। जब अहम टकराता है तो वह बड़ा नुकसान करवा देता है। लेकिन क्षमा एक बहुत बड़ा हथियार है शांति के लिए। इससे मन की शांति हो जाती है। मन की शांति इसलिए होती है कि क्षमा मांग लेने से गर्व का शमन हो जाता है।
लेकिन ध्यान यह भी रहे कि मूर्खों से क्षमा मांगना और उन्हे क्षमा करना भी बहुत बड़ी मूर्खता होती है। मूर्ख तो सिर्फ़ डंडे की भाषा समझता है। इसलिए उसे डंडे से ही क्षमा करना पड़ता है। जब भगवान राम समुद्र पार करना चाहते थे और वह उन्हे रास्ता नहीं दे रहा था तब लक्ष्मण ने कहा कि आप आज्ञा दें तो मैं इसे एक तीर से ही सुखा सकता हूँ। तब भगवान राम ने कहा था कि “ सबसे पहले प्रयत्न यह करना चाहिए कि विपत्ति आए ही नहीं। अगर कोई हठधर्मी पूर्वक विपत्ति लाना चाहता है तो सबसे पहले उससे बचने की कोशिश करो, उसके मार्ग से हट जाओ। अगर वह फ़िर भी ना माने और मार्ग छोड़ कर तुम्हारे उपर ही सवार होने लगे तब उसका डट कर मुकाबला करो और उस पर विजय पाओ।
यही होता है दुनिया में, अगर हम लड़ाई झगड़े से बचना चाह कर अपनी गलती न होते हुए भी विवाद खत्म करने के लिए क्षमा मांग लेते हैं तो वह मूर्ख अपने आपको बलशाली समझने लगता है और उसका विष वमन और बढ जाता है। तब उसके विष का शमन दंड से ही करना पड़ता है। क्योंकि वह उसी की भाषा समझता है। इसलिए कहा गया है कि शठे शाठ्यम समाचरेत। शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार करो तभी उसकी समझ मे आता है। उल्टे घड़े में पानी नहीं डाला जा सकता, इसलिए उसे सीधा करना ही पड़ता जिससे वह जल ग्रहण करने के योग्य बन जाए।
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरुकुलों में पढते थे तब उन्हे भिक्षा वृत्ति के जाना अनिवार्य था। वे अपना भोजन पास के गांव से भिक्षा मांग करते थे। वो भी उतना ही जितनी भूख है उससे अधिक भोजन रखने की अनुमति नही होती थी। फ़िर दूसरे दिन भोजन मांग कर लाना पड़ता था। इस तरह भिक्षा वृत्ति करने से विद्यार्थी का घंमड और गर्व चूर होता था। क्योंकि गुरुकुलों में राजा महाराजाओं के राजकुमार भी पढते थे। राजकुमारों को ही राजगद्दी मिलती थी और वही राज काज चलाते थे। अगर इनमें घमंड रह जाता तो प्रजा का सत्यानाश कर डालते। इसलिए गुरुकुल में भिक्षा वृत्ति की परम्परा थी।
जिस व्यक्ति के घमंड और गर्व का शमन हो जाता है वह प्राणि मात्र को स्नेह की दृष्टि से देखता है उसके मन में करुणा का भाव उत्पन्न हो जाता है। चराचर जगत से प्यार करने लग जाता है। जब चराचर जगत से प्यार हो जाता है तो यही प्यार उसके मन में क्षमा का भाव उत्पन्न करता है। फ़िर यही क्षमा का भाव मन में शांति और धैर्य की स्थापना करता है। जिससे क्रोध एवं सभी ऐषणाओं पर विजय प्राप्त हो जाती है। जीवन सुंदर हो जाता है। इसलिए क्षमा का भाव भी आवश्यक है, लेकिन उसके लिए जो क्षमा का महत्व समझता है। कभी भूल से भी भूल कर कभी कोई मनसा वाचा कर्मणा भूल हुई हो तो क्षमा कर देना कथन जैन दर्शन का आधार है। जब इसे अमल किया जाए तब। अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु।
'अगर हम लड़ाई झगड़े से बचना चाह कर अपनी गलती न होते हुए भी विवाद खत्म करने के लिए क्षमा मांग लेते हैं तो वह मूर्ख अपने आपको बलशाली समझने लगता है और उसका विष वमन और बढ जाता है।'
जवाब देंहटाएंसटीक बात और फिर ज्यादातर मामले में ऐसा ही तो होता है
प्रवचन बहुत बढ़िया लगा महाराज |
जवाब देंहटाएंक्षमा का भाव मन में शांति और धैर्य की स्थापना करता है। जिससे क्रोध एवं सभी ऐषणाओं पर विजय प्राप्त हो जाती है।
जवाब देंहटाएंयही सही है सत्य भी ..!
बिल्कुल सही कहा ललित जी .और युगों से आजमाई हुई बात है ये
जवाब देंहटाएंक्षमा शोभता उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
जवाब देंहटाएंउसका क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।
का होगे, कुछू समझ म नई आवत हे.
मेरे प्रिय कवि रामधारी सिंह “दिनकर” की कविता 'शक्ति और क्षमा' इस पोस्ट के सार को कहती है जिसके प्रसिद्ध अंश है यह
जवाब देंहटाएंक्षमा शोभता उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसका क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।
जय हो, जय हो, जय हो, दामाखेड़ा वाले र्निविकार सर्वाकार महराज की जय हो.
ललित भाई सबसे पहले तो क्षमावणी पर्व पर सभी से क्षमा याचना। आपने बहुत बढिया विषय चुना। हम ब्लोगर भी किसी न किसी बात पर एक दूसरे से उलझते ही रहते हैं। तो जैन समाज के इस पर्व पर अपने मन के सारे ही मैल आज तिरोहित कर डाले।
जवाब देंहटाएंजय जिनेन्द्र
जवाब देंहटाएंदया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
जवाब देंहटाएंतुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण॥
* * *
जहां क्रोध तहं काल है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां दया तहं धर्म है, जहां क्षमा तहं आप॥
* * *
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल हो .
* * *
"क्षमा बडन को चाहिए, छोटन को उत्पात."
आपने क्षमा जैसे गुण पर अच्छा लेख प्रस्तुत किया है । क्षमा करना बलवान का ही भूषण है । तो आज हम भी सबसे क्षमा प्रार्थी हैं जानी अनजानी सब भूलों के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी समसामयिक पोस्ट लिखी है आपने ....सुन्दर विचार
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंएकदम सत्य वचन कहे है सर जी आपने जिस इंसान में जितनी अधिक मैं की भावना आती हे। वह उतना ही निचा गिरता चला जाता है। और उसका परिणाम भी बुरा ही होता है।
जवाब देंहटाएंजय हो !!
जवाब देंहटाएंमैंने महंगाई और बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार लोगों को आप सब की ओर से क्षमा कर दिया. क्योंकि ब्लागर महाराज ने ध्यान दिलाया है कि क्षमा वीरों का आभूषण है .
जवाब देंहटाएं@स्वराज्य करुण जी
जवाब देंहटाएंदुष्टों को दंड देना भी हमारी परम्परा रही है.
बेरोजगारी और मंहगाई के विरुद्ध राष्ट्र की प्रजा के मन्यु जागृत होना अत्यावश्यक है.......
व्यक्तिगत अपराधों को ही व्यक्ति क्षमा कर सकता है..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के माध्यम से आपने क्षमा के महत्व को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है ..............बधाई स्वीकार करें एवं हमसे हुई जाने अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा करें.....!!
जवाब देंहटाएं... kaun hai bhaai !!!
जवाब देंहटाएंइसी बात पर हमें भी क्षमा कर ही दीजिये। हमेशा आपको नाराज ही पाया। ऐसी भी क्या खता हुई हमसे , जो नाकाबिले माफ़ी हो गयी ?
जवाब देंहटाएंजिस व्यक्ति के घमंड और गर्व का शमन हो जाता है वह प्राणि मात्र को स्नेह की दृष्टि से देखता है उसके मन में करुणा का भाव उत्पन्न हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक बात ...जैन समाज इसको त्योहार के रूप में मनाता है ...इस अवसर पर मैं भी जाने अनजाने में अपने द्वारा की गयी त्रुटियों की अपने ब्लोगर्स साथियों से क्षमा चाहती हूँ ...
और ललित जी इस पोस्ट के लिए आभार ..आपने मंच दिया जहाँ हम स्वयं का आंकलन कर सकते हैं ..
बहुत ही अच्छी बातें बताई आपने .हमारे ग्रंथों में व्यावहारिक जीवन का पूरा दर्शन है .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका.
आज की यह पोस्ट बहुत-बहुत ज्यादा अच्छी लगी जी।
जवाब देंहटाएंइस प्रेरक पोस्ट के लिये हार्दिक आभार
प्रणाम स्वीकार करें
बहुत ही बढियां प्रस्तुति | सदगुण विचारों से ओत-प्रोत एक शिक्षा प्रद लेख | आभार
जवाब देंहटाएंक्षमा का, दया का, संयम का बहुत बड़ा भंडार है हमारे पास जो कभी खत्म नहीं होगा....
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो कहते हैं, क्षमा बडन को चाहिए --।
जवाब देंहटाएंक्षमा करने वाला ही बड़ा होता है । लेकिन क्षमा करने लायक भी होना ही चाहिए ।
shaandaar post. "sath san vinay kutil san preeti. sahaj kripan san sundar neeti.mamta rat san gyaan kahaani. ati lobhi san birati bakhaani. krodhihi san kaamihi hari katha. oosar beej baye phal jatha." ye sab shaayad laxmanji kehe he. jab dekhis ke "binay n maanat jaladhi jad gaye teen din beeti.bole raam sakop tab bhay bin hoy n preeti" maja aage padh ke...... jay johaar.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अच्छी पोस्ट..मन को भाई..अच्छा लगा प्रवचनात्मक मोड.
जवाब देंहटाएंसुबह के भूले शाम को पधारे, हमने जो कहा वो कर ना सके आशा है हम से भी.....जाने अनजाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप में कथनी या करनी से मन, वाणी या वचन से हुई त्रुटि के लिये हम क्षमा प्रार्थी हैं।
जवाब देंहटाएंकभी कभी कुछ गलतिया ऐसी होती है की तुरंत ही उसके लिए दंड दे देना चाहिए भले ही संकेतात्मक क्योकि अक्सर पहली गलती पर क्षमा उसके दुबारा होने का कारण बन जाती है |
जवाब देंहटाएंसाला ...मेरे साथ चक्कर यही है कि... मैं हिंदी नहीं जानता... कई सारे शब्द तो मेरे लिए पहाड़ जैसे हो जाते हैं.... और दिक्कत यह है कि हिंदी डिक्शनरी दूसरे कमरे में है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक प्रवचन। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंजय हो
महाराज की जय हो
बहुत ही शानदार
आपकी पोस्ट पढ़कर मैंने तय कर लिया है कि अब मुझे भुजंग बनना है और बप्पी लहरी के समान आभूषण पहनकर भूषणम बनना है
जवाब देंहटाएंहा.... हा.... हा......
आपके प्रवचन सर आँखों पर गुरुदेव !
जवाब देंहटाएं@राजकुमार सोनी
जवाब देंहटाएंअरे,अभी कौन कम हो दादा
हा हा हा हा हा
हो हो हो हो हो
इस ज्ञानवार्ता हेतु आभार |
जवाब देंहटाएं" मूर्खों से क्षमा मांगना और उन्हे क्षमा करना भी बहुत बड़ी मूर्खता होती है। " वाकई ब्रह्म वाक्य है यह ! बहुत अच्छा लेख ...हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंइस प्रेरक पोस्ट के लिये हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंक्षमा करना - इसका अर्थ सिर्फ नुक्सान नहीं पहुँचना नहीं है, अपितु मन से उस नुक्सान पहुँचाने वाली भावना को ही जड़ से समाप्त कर देना है। इस भाव से देखा जाये तो निर्बल का सबल को क्षमा करने का भी महत्व है ।
जवाब देंहटाएंAll time best articles you have written. Thanks.
जवाब देंहटाएंक्षमा करने से पहले हमें यह देखना चाहिए कि हम क्षमा किसको कर रहे है। किसी से जाने अनजाने मे अपराध हो जावे तो एक बार वह इस नसीहत के साथ क्षमा प्राप्त करने का अधिकारी है कि उसके बाद वह दोबारा इस तरह का अपराध न करे किन्तु अपराध की पुनरावृत्ति होती हैं और दण्ड देने में समर्थ व्यक्ति दोबारा क्षमा करता है तो अपराधी स्वयं क्षमा करने वाला होता हैं। किसी भी एक अपराध के दोषी तीन व्यक्ति होते है पहला-अपराध करनेवाला,दूसरा कराने वाला,तीसरा-अनुमोदन करने वाला। जय हिंद जय भारत
हटाएंमैं शांति से बैठा अख़बार पढ़ रहा था, तभी कुछ मच्छरों ने आकर मेरा खून चूसना शुरू कर दिया। स्वाभाविक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और अख़बार से चटाक हो गया और दो-एक मच्छर ढेर हो गए.!!
जवाब देंहटाएंफिर क्या था उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि मैं असहिष्णु हो गया हूँ.!! मैंने कहा तुम खून चूसोगे तो मैं मारूंगा.!! इसमें असहिष्णुता की क्या बात है.??? वो कहने लगे खून चूसना उनकी आज़ादी है.!!
"आज़ादी" शब्द सुनते ही कई बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे.!! इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गई., "कितने मच्छर मारोगे हर घर से मच्छर निकलेगा".???
बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया.!!
उनका कहना था कि मच्छर देह पर मौज़ूद तो थे लेकिन खून चूस रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है.?? और अगर चूस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन 'देहद्रोह' की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि ये "बच्चे" बहुत ही प्रगतिशील रहे हैं., किसी की भी देह पर बैठ जाना इनका 'सरोकार' रहा है.!!
मैंने कहा मैं अपना खून नहीं चूसने दूंगा बस.!!!
तो कहने लगे ये "एक्सट्रीम देहप्रेम" है.! तुम कट्टरपंथी हो, डिबेट से भाग रहे हो.!!!
मैंने कहा तुम्हारा उदारवाद तुम्हें मेरा खून चूसने की इज़ाज़त नहीं दे सकता.!!!
इस पर उनका तर्क़ था कि भले ही यह गलत हो लेकिन फिर भी थोड़ा खून चूसने से तुम्हारी मौत तो नहीं हो जाती, लेकिन तुमने मासूम मच्छरों की ज़िन्दगी छीन ली.!! "फेयर ट्रायल" का मौका भी नहीं दिया.!!!
इतने में ही कुछ राजनेता भी आ गए और वो उन मच्छरों को अपने बगीचे की 'बहार' का बेटा बताने लगे.!!
हालात से हैरान और परेशान होकर मैंने कहा कि लेकिन ऐसे ही मच्छरों को खून चूसने देने से मलेरिया हो जाता है, और तुरंत न सही बाद में बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है.!! इस पर वो कहने लगे कि तुम्हारे पास तर्क़ नहीं हैं इसलिए तुम भविष्य की कल्पनाओं के आधार पर अपने 'फासीवादी' फैसले को ठीक ठहरा रहे हो..!!!
मैंने कहा ये साइंटिफिक तथ्य है कि मच्छरों के काटने से मलेरिया होता है., मुझे इससे पहले अतीत में भी ये झेलना पड़ा है.!! साइंटिफिक शब्द उन्हें समझ नहीं आया.!!
तथ्य के जवाब में वो कहने लगे कि मैं इतिहास को मच्छर समाज के प्रति अपनी घृणा का बहाना बना रहा हूँ., जबकि मुझे वर्तमान में जीना चाहिए..!!!
इतने हंगामें के बाद उन्होंने मेरे ही सर माहौल बिगाड़ने का आरोप भी मढ़ दिया.!!!
मेरे ख़िलाफ़ मेरे कान में घुसकर सारे मच्छर भिन्नाने लगे कि "लेके रहेंगे आज़ादी".!!!
मैं बहस और विवाद में पड़कर परेशान हो गया था., उससे ज़्यादा जितना कि खून चूसे जाने पर हुआ था.!!!
आख़िरकार मुझे तुलसी बाबा याद आये
"सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...."।
और फिर मैंने काला हिट उठाया और मंडली से मार्च तक, बगीचे से नाले तक उनके हर सॉफिस्टिकेटेड और सीक्रेट ठिकाने पर दे मारा.!!!
एक बार तेजी से भिन्न-भिन्न हुई और फिर सब शांत.!!
उसके बाद से न कोई बहस न कोई विवाद., न कोई आज़ादी न कोई बर्बादी., न कोई क्रांति न कोई सरोकार.!!!
अब सब कुछ ठीक है.!! यही दुनिया की रीत है !!!
शानदार
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