भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध |
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तीवरदेव महाविहार सिरपुर का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है, दक्षिण कोसल में उत्खनन से प्राप्त अब तक का बड़ा विहार है, इसका उत्खनन 2002-2003 में अरुण कुमार शर्मा ने किया था। उत्खनन के दौरान उपलब्ध प्रमाणों एवं उपलब्ध अभिलेखों से इस महाविहार को महाशिवगुप्त तीवरदेव के शासनकाल में छठी शताब्दी के मध्य में निर्मित माना जाता है। बौद्ध विहार में प्रवेश करने पर बहुत ही सुन्दर अलंकृत प्रवेश द्वार दिखाई देता है। प्रवेशद्वार का शिल्प अद्भुत है, शिल्पकार ने विभिन्न विषयों पर अपनी छेनी चलाई है। मगर और बन्दर की पंचतंत्र की कथा के साथ बिल से निकल कर सांप का मेंढक को पकड़ना, पुष्प पर बैठी हुई मधुमक्खी का अंकन, चाक पर बर्तन बनता हुआ कुम्हार, प्रेमासक्त चुम्बन आलिंगनरत युगल का अंकन आकर्षक है।
तीवरदेव महाविहार सिरपुर का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है, दक्षिण कोसल में उत्खनन से प्राप्त अब तक का बड़ा विहार है, इसका उत्खनन 2002-2003 में अरुण कुमार शर्मा ने किया था। उत्खनन के दौरान उपलब्ध प्रमाणों एवं उपलब्ध अभिलेखों से इस महाविहार को महाशिवगुप्त तीवरदेव के शासनकाल में छठी शताब्दी के मध्य में निर्मित माना जाता है। बौद्ध विहार में प्रवेश करने पर बहुत ही सुन्दर अलंकृत प्रवेश द्वार दिखाई देता है। प्रवेशद्वार का शिल्प अद्भुत है, शिल्पकार ने विभिन्न विषयों पर अपनी छेनी चलाई है। मगर और बन्दर की पंचतंत्र की कथा के साथ बिल से निकल कर सांप का मेंढक को पकड़ना, पुष्प पर बैठी हुई मधुमक्खी का अंकन, चाक पर बर्तन बनता हुआ कुम्हार, प्रेमासक्त चुम्बन आलिंगनरत युगल का अंकन आकर्षक है।
तीवरदेव विहार की प्रतिमा |
प्रवेशद्वार की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है। शिल्पांकन महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि यहाँ पशु मैथुन का दृश्य है, इसमें हाथियों को मैथुन मुद्रा में दिखाया गया है। विशिष्ट इसलिए भी है की बौद्ध विहारों में इस तरह के शिल्पांकन का अभाव रहता है। प्रणयरत युगल मूर्तियाँ विशेष आकर्षण का केंद्र है। भीतर प्रवेश करने पर 16 अलंकृत स्तम्भ दिखाई देते हैं, इन पर ध्यान मुद्रा में बुद्ध, सिंह, मोर, चक्र आदि का मनोहर शिल्पांकन है। गर्भ गृह के पश्चिम में भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। इसके अतिरिक्त रत्न संभव तथा पद्मपाणि की प्रतिमाएं भी प्राप्त हुयी हैं। जल निकासी के लिए भूमिगत नालियों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। इससे होता है कि जल निकासी की व्यवस्था वास्तुकारों ने उत्तम बनायीं थी।
विहार की ईंटों की दीवारें |
इस विहार के उत्त्खन्न के दौरान मेरा सिरपुर दौरा हुआ था। तब नहीं लगता था कि यह इतना विशाल होगा। यह भी आभास नहीं था कि कभी मुझे इस पर लिखना भी होगा। प्रस्तर के स्तम्भ देख रेख के आभाव में खंडित हो रहे है। बंदरों की उछल कूद के कारण एक स्तम्भ तो दो भागों में बंटा दिखाई दिया। भारतीय पुरातत्व संरक्षण के पास बड़ा अमला है, उन्हें इसका रासायनिक संरक्षण करना चाहिए। यह विहार 902 वर्ग मीटर के परिक्षेत्र में बना हुआ है। इस स्थान पर अन्य विहार के साथ बौद्ध भिक्षुणी विहार भी स्थित है। कहते हैं कि जब वज्रयान संप्रदाय का उद्भव हुआ तब से भिक्षुणियों को भी पृथक विहार बना कर विहार संकुल में उनके रहने की व्यवस्था की गयी। उत्खनन में वज्रयान का प्रतीक धातु का वज्र भी प्राप्त हुआ है।
विहार का विस्तार |
अरुण कुमार शर्मा कहते हैं कि इस विहार के कक्षों को कालांतर में पूजाकक्षों में परिवर्तित कर दिया गया लगता है. इस परिवर्तन के बाद इस विहार का दक्षिण दिशा में विस्तार किया गया है। अनेक नवीन कक्षों का निर्माण किया गया, पूर्व की अपेक्षा एक बड़े मंडप का भी निर्माण किया गया तभा चारों ओर 36 मी लम्बा और 1.5 मी चौड़ा गलियारा है। इस विहार में सीढियाँ भी मिली हैं, जिससे उत्खननकर्ता अनुमान लगते हैं की यह विहार दो मंजिला रहा होगा। मेरा अनुमान है की यह विहार बहुमंजिला भी हो सकता है, क्योंकि व्हेनसांग ने 10,000 बौद्ध भिक्षुओं के सिरपुर में निवास करने का जिक्र किया है। उनके रहने की व्यवस्था करने के लिए इस विहार को अन्य विहारों की अपेक्षा विशाल और प्रमुख बनाया गया होगा।
मुख्य द्वार पर कुम्हार की मूर्ति |
इतिहास भी क्या क्या रहस्य छुपाये रखता है.
जवाब देंहटाएंसिरपुर का आनंद इसी तरह पगुराते हुए ही लिया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी ..
जवाब देंहटाएंपुरातत्व का बढ़ता नया अध्याय..
जवाब देंहटाएंआपका पगुराना बहुजन हिताय ही होगा. :-)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस जानकारी के लिये्...आप छ.ग. के पर्यटन व पुरातत्व का कोना कोना छानकर सब तक पहुंचा रहे हैं इसके लिये जितना भी धन्यवाद दें कम ही होगा..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
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