राजमहल का दृश्य |
प्राम्भ से पढ़ें
सिरपुर में उत्खनित सभी पुरा धरोहरों को एक गलियारा बना कर जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। इसके बाद कहीं से भी रास्ता पकड़ लीजिये, आप सिरपुर की धरोहरों का दर्शन किसी से रास्ता बिना पूछे कर सकते हैं। सिरपुर में आज हमारा अंतिम दिन था, दोपहर तक हमें यहाँ से रवानगी डालनी थी। इसलिए सुबह ही तैयार होकर राजमहल परिसर के अवलोकनार्थ चल पड़े। जब सिरपुर दक्षिण कोसल के पांडूवंशियों की राजधानी थी तो राजप्रसाद भी होना अत्यावश्यक है तभी राजधानी होने का दावा पुख्ता होता है। महानदी के तट पर पूर्वाभिमुख राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं। अरुण कुमार शर्मा के निर्देशन में 2000-2001 में यह विशाल परिसर प्राप्त हुआ। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर उन्होंने इसे राजप्रसाद घोषित किया।
सिरपुर में उत्खनित सभी पुरा धरोहरों को एक गलियारा बना कर जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। इसके बाद कहीं से भी रास्ता पकड़ लीजिये, आप सिरपुर की धरोहरों का दर्शन किसी से रास्ता बिना पूछे कर सकते हैं। सिरपुर में आज हमारा अंतिम दिन था, दोपहर तक हमें यहाँ से रवानगी डालनी थी। इसलिए सुबह ही तैयार होकर राजमहल परिसर के अवलोकनार्थ चल पड़े। जब सिरपुर दक्षिण कोसल के पांडूवंशियों की राजधानी थी तो राजप्रसाद भी होना अत्यावश्यक है तभी राजधानी होने का दावा पुख्ता होता है। महानदी के तट पर पूर्वाभिमुख राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं। अरुण कुमार शर्मा के निर्देशन में 2000-2001 में यह विशाल परिसर प्राप्त हुआ। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर उन्होंने इसे राजप्रसाद घोषित किया।
राजसभा में राजीव एवं प्रभात सिंह |
यह राजप्रसाद सिरपुर के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के समीप है। जब हम यहाँ पहुचे तो इसके सामने हेलीपेड बना हुआ दिखाईदिया। इससे जाहिर होता है कि आगमन से पूर्व किसी विशिष्ट विभूति का आगमन हो चुका है। एक तरफ जहाँ वर्तमान सिरपुर गाँव को विस्थापित करने की चर्चा चल रही है दूसरी तरफ शासन नवीन अस्पताल का निर्माण कराया जा रहा है। राजप्रसाद की दीवारों को देखने से लगता है कि यह ईमारत बहुमंजिला रही होगी। पक्की ईंटो से निर्मित राज प्रसाद का प्रथम कक्ष प्रहरियों के लिए है, इसके पश्चात् स्वागत कक्ष, राजसभा, इसके चरों और गलियारा है, राजसभा में प्रवेश के लिए उत्तर की तरफ भी एक द्वार बना हुआ है। राज सभा में राजा का विश्राम कक्ष, सहयोगी कक्ष आस पास बने है। सभा गृह दो भागों में विभक्त है, पहले भाग में राजा के समीप मंत्री, महामंत्री एवं विशिष्ट सभासद स्थान पाते होंगे। उसके पश्चात् अन्य सभासदों के बैठने का स्थान है।
नागार्जुन निवास एवं स्तूप |
राजसभा के प्रथम खंड में लगभग 20 प्रस्तर स्तम्भ के अवशेष दिखाई देते हैं। राजसभा के गलियारे के बाद, मुख्य महिषी, पट्ट महिषी, अन्य परिचारिकाओं के कक्ष हैं, उत्तर दिशा में पाक शाला के अवशेष दिखाई देते हैं. वास्तु के अनुसार उत्तर- पश्चिम में पाकशाला होने का अनुमान जंचा नहीं। पाकशाला अवश्य ही आग्नेय कोण में होनी चाहिए। हो सकता है अगले किसी प्रयास में प्राप्त हो जाये। वर्तमान स्थिति को देखते हुए अनुमान होता है कि राजप्रसाद का क्षेत्र विस्तृत रहा होगा। पश्चिम का हिस्सा महानदी के चौड़े हुए पाट की भेंट चढ़ गया है। जब राजप्रसाद में राजा का निवास होगा तब महानदी के तट पर इस महल की रौनक देखते ही बनती होगी। महानदी से आते हुए पवन के ठण्डे झकोरे महल को शीतल रखते होंगे।
राजमहल सिरपुर |
राजमहल से चल कर थोड़ी दूर पर स्थित नागार्जुन के निवास स्थल पर पहुंच गए। कहते हैं कि प्रसिद्द रसायनज्ञ नागार्जुन सिरपुर आकर रहे थे। इस परिसर में तीन निवास स्थान दिखाई देते हैं। प्रमुख निवास के सामने स्तूप के अवशेष प्राप्त हुए हैं। स्तूप का शीर्ष इस संरचना से ही उत्खनन में प्राप्त हुआ है। नागार्जुन का सिरपुर आना बड़ी बात है। नागार्जुन सिरपुर आकर रहे होगें तो अवश्य ही यह बौद्ध धर्मावलम्बियों के निवास का प्रमुख केंद्र था। सिरपुर में प्राप्त विहारों से नागार्जुन के सिरपुर आगमन को प्रमाणिक बल मिलता है। भारत में बौद्ध धर्म से सम्बंधित पुरातात्विक स्थलों पर मनौती स्तूप प्राप्त होते रहे हैं। यह स्तूप प्रस्तर एवं धातुओं के होते हैं, श्रद्धालु अपनी श्रद्धानुसार प्रस्तर या धातु के मनौती स्तूपों का निर्माण करते थे।
मनौती स्तूप |
ऐसा ही एक प्रस्तर मनौती स्तूप बाजार क्षेत्र के श्रेष्ठी के निवास (इसे धातु मूर्ति शिल्प कार्यशाला नाम दिया गया है) से प्राप्त हुआ है तथा जहाँ से प्राप्त हुआ इसे उसी स्थान पर रख भी दिया है। मनौती मानने की परम्परा प्राचीन काल से लेकर आज तक चली आ रही है। लोग इष्ट स्थानों पर मनौती मानते थे और मनवांछित फल प्राप्त होने पर मनौती मने गए स्थान पर उन वस्तुओं का अर्पण थे। जैसे कुछ स्थानों पर वर्त्तमान में बकरा और भैंसा मनौती के रूप में कटे जाते हैं. उसी प्रकार बौद्ध धर्मावलम्बी मनौती पूर्ण होने पर मनौती स्तूपों का निर्माण कर स्थापित करवाते थे। जो उनके नाम से जाना जाता था। यहाँ से हम अब एक नयी पुरातात्विक साईट के सर्वेक्षण के लिए चल पड़े। ........... जारी है ........ आगे पढ़ें .........
शिकवा रहे गिला रहे हमसे,
जवाब देंहटाएंआरजु यही है एक सिलसिला रहे हमसे।
फ़ासलें हों,दुरियां हो,खता हो कोई,
दुआ है बस यही नजदीकियां रहें हमसे॥
चित्रों संग यायावरी और पुरातात्विक प्रेम की कड़ी के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंसिरपुर के राजसभा,राजमहल आदि ऐतिहासिक स्थलों को देखकर और उनकी बनावट तथा वहां के ऐतिहासिक सरंचना को जानकर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएंआपकी इस बार की यात्रा पूर्ण हुई लेकिन सिरपुर वर्णन अभी अधूरा है, शेष विवरण की प्रतीक्षा रहेगी, क्योंकि वहां के बारे में आपके ब्लॉग जैसी जानकारी अन्यत्र कहीं भी मिलना असंभव है, और उत्सुकता बहुत है जानने की...
जवाब देंहटाएंऐसे ही नई नई जगह से हम सबको अपने लेख के माध्यम से परिचित करवाते रहिए ......सादर
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंसिरपुर के खंडहर इतिहास के न जाने कितने अध्यायों को रखे बैठे हैं, उसे सबके सामने लाने के महत कार्य को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंबढिया घुमक्कडी बल्कि कहिये खोज
जवाब देंहटाएं"सिरपुर" सैर कराइ दियो, बतलाइ दियो इतिहास।
जवाब देंहटाएंप्राचीन धरोहरों का खजाना भरा है आपके पास।।
........ललित भाई! मै तो कहि सकत हौं अतके ...
आप जेखर मुड़ी ल सजाये हौ, उहू ब्लॉग ल झाँक
ले हौ भूले भटके ..........जय जोहार
सिरपुर के खंडहर इतिहास के न जाने कितने अध्यायों को रखे बैठे हैं, उसे सबके सामने लाने के महत कार्य को प्रणाम।
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