नेपाल यात्रा प्रारंभ से पढें
हमारा वातानुकूलित चलयान आगे बढा। इस बीत सुनिता यादव जी ने सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं दी। इसी के साथ छोटा सा फ़ोटो सैशन भी चला। बनारस वाले भैया हमें काठमाण्डू शहर से परिचित करवा रहे थे। हमें बताया गया कि संग्रहालय जा रहे हैं। बस एक स्थान पर रुकी, बताया गया कि समीप ही टिकिट खिड़की है। संग्रहालय में प्रवेश करने के लिए यहीं पर टिकिट लेनी पड़ती है। टिकिट का मूल्य 150 नेपाली रुपए था। उसने गले में लटकाने के लिए प्रवेश पत्र दिया। जिससे पहचान रहे कि ये सभी नगद देकर इस इलाके में प्रवेश कर रहे हैं। राजीव शंकर मिश्रा जी ने सभी की टिकिट लेने में सहायता की।
हमारा वातानुकूलित चलयान आगे बढा। इस बीत सुनिता यादव जी ने सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं दी। इसी के साथ छोटा सा फ़ोटो सैशन भी चला। बनारस वाले भैया हमें काठमाण्डू शहर से परिचित करवा रहे थे। हमें बताया गया कि संग्रहालय जा रहे हैं। बस एक स्थान पर रुकी, बताया गया कि समीप ही टिकिट खिड़की है। संग्रहालय में प्रवेश करने के लिए यहीं पर टिकिट लेनी पड़ती है। टिकिट का मूल्य 150 नेपाली रुपए था। उसने गले में लटकाने के लिए प्रवेश पत्र दिया। जिससे पहचान रहे कि ये सभी नगद देकर इस इलाके में प्रवेश कर रहे हैं। राजीव शंकर मिश्रा जी ने सभी की टिकिट लेने में सहायता की।
पाटन दरबार चौक का रास्ता |
अब यहाँ से पैदल ही हम लोग आगे बढ चले। टिकिट घर से बाहर निकलने पर बाजों के बजने की आवाज आने लगी। एक मुखौटाधारी चटक रंगों के वस्त्र पहन आगे-आगे नृत्य कर रहा था और उसके पीछे छोटी-छोटी कन्याएं रक्तिम वस्त्रों में सज-घज कर चल रही थी। उनके साथ महिलाएं भी थी, जो उनकी माताएं लगी। मैने उनकी फ़ोटुएं ली। यह पता नहीं था कि पंक्तिबद्ध रैली की शक्ल में ये सब कहाँ जा रहे हैं। बाजार के बीच से हम आगे बढते रहे। कुछ प्राचीन मंदिर दिखाई दिए, जिन्हे प्रस्तर से बनाया गया था। उनका गर्भ गृह बंद था।
कुमारी पूजन को जाती बालिकाएं |
रास्ते के दोनो तरफ़ लकड़ी के बनाए हुए अलंकृत मकानों की झलक दिखाई देने लगी। इन घरों में लगी हुई लकड़ी पर सुंदर खुदाई की गई थी। ह्स्ताधारित शिल्प का अद्भुत प्रदर्शन यहाँ दिखाई दिया। इस इलाके के सभी घरों का निर्माण लकड़ी से ही हुआ है। छतों पर लगी लकड़ियों में फ़णीनाग के छत्र युक्त पुरुष की मूर्ति दिखाई दी तथा खिड़कियों के नीचे एक बाज एवं कबूतर निरंतरता से बने हुए दिखाई दिए। ये नेवाड़ी संस्कृति के पारम्परिक चिन्ह दिखाई दे रहे थे। एक बच्चा खिड़की से झांक कर मुस्कुराते हुए सड़क पर गुजरते पर्यटकों को देख कर हाथ हिला रहा था।
काष्ठालंकृत खिड़की से झांकता बच्चा-नेवाड़ी संस्कृति |
मुकेश सिन्हा जी ने मुझे घायल कर रखा था। मैं जब भी कोई चित्र लेने की कोशिश करता वो अपना कैमेरा धरे मेरे सामने आ जाते। जबकि उनके कैमरे में 22 एक्स का जूम है। लेकिन समीप से जाकर फ़ोटो लेने की आदत पड़ी हुई है। जब कैमरे में जूम है तो उसका भरपूर उपयोग करना चाहिए और मै करता भी हूँ। कई जगह इनकी करामात के कारण चित्र लेने में व्यवधान हुआ। कुछ भी हो लेकिन मुकेश जी चित्र बढिया लेते हैं।
पाटन दरबार चौक में स्थित मंदिर में मुकेश सिन्हा |
अब जहां हम पहुचे उसे दरबार स्क्वेयर कहते हैं। इस चौक पर कई मंदिर बने हुए हैं तथा राजमहल को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। इस स्थल पर प्राचीन इमारते हैं, राजमहल को हनुमान ध्योखा कहते हैं। हनुमान ध्योखा नेपाल के शाही परिवार का प्राचीन निवास है, इसका निर्माण 16 बीं शताब्दी में हुआ था। इस ईमारत के पूर्वी द्वार को हनुमान द्वार कहा जाता है। समीप ही नरसिंह भगवान की सुंदर प्रतिमा बनी हुई है। ऐतिहासिक शाही ईमारत परिसर में पंचमुखी हनुमान एवं त्रिभुवन संग्रहालय बने हुए हैं। काफ़ी संख्या में गोरी चमड़ी वाले विदेशी संग्रहालय की इमारत में दिखाई दिए। संग्रहालय देखने के लिए 150 नेपाली रुपए की टिकिट लेनी पड़ती है तथा इस दरबार स्क्वेयर में प्रवेश करने के लिए 150 नेपाली रुपए शुल्क लिया जाता है।
राजमहल में नरसिंह |
समीप ही एक ईमारत में शौचालय का निर्माण किया गया है, जिसके द्वार पर हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं लगी हुई हैं। द्वार के शीर्ष पर महिषासुर मर्दनी प्रतिमा है। हिन्दू राष्ट्र में देवी देवताओं की प्रतिमाओं का शौचालय के प्रवेश द्वार पर लगे होना मुझे आश्चर्य चकित कर गया। यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति नहीं दिखाई दिया जिससे पूछा जा सकता। कुछ लोग शौचालय के कलात्मक द्वार पर खड़े होकर चित्र खिंचवा रहे थे जिससे शौच को जाने-वालों को व्यवधान उत्पन्न हो रहा था। चलते चलते मैने भी एक चित्र लिया। कम से कम याद तो रहेगा कि शौचालय में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का प्रयोग हो रहा है। हो सकता है यह बदलाव माओवादी सरकार आने के बाद हुआ हो।
शौचालय के द्वार पर महिषासुर मर्दनी एवं अन्य अनुषांगी देवता |
दरबार स्क्वेयर में काफ़ी गहमा गहमी थी यहाँ कुमारी पूजा उत्सव का आयोजन हो रहा था। इस दृष्टि से नेवाड़ी समुदाय काफ़ी परम्परावादी लगा। जो अपनी प्राचीन संस्कृति को वर्तमान में भी बनाए रखने में कामयाब है। नहीं तो पश्चिम की बयार में संस्कृतियों में विकृति पैदा हो रही है। सामाजिक ताने बाने बिखरने के साथ वर्जनाएं एवं परम्पराएं भी टूट रही हैं। परम्परागत चटक रंगों के परिधानों एवं आभूषणों से सजधज कर युवतियाँ आयोजन में सम्मिलित थी। हम उनके इस आयोजन को देख रहे थे और चित्र ले रहे थे।
नेपाल का इकलौता प्राचीन शिखर युक्त कृष्ण मंदिर |
काठमाण्डू का यह हिस्सा पाटन कहलाता है। यह प्राचीन शहर है जो काठमांडू (कांतिपुर) से जुड़ा हुआ है। प्राचीन अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पाटन का इतिहास लिच्छवी काल सन 570 से प्रारंभ होता है तथा इसका निर्माण भारबी द्वारा होना बताया जाता है जो मनदेव के पोते थे। राजमहल परिसर का निर्माण प्रथम मल्ल साम्राज्य के राजा सिद्धी नरसिंह मल्ल द्वारा सन 1618 से 1681 के मध्य कराया गया है। इन्होने सुंदरी चौक, तालेजु मंदिर, तथा भद्रखल नामक तालाब का निर्माण किया। इन्होने 1684 में कृष्ण मंदिर का निर्माण कराया। यह नेपाल का प्रथम शिखर युक्त मंदिर है। श्रीनिवास मल्ल ने अपने पिता द्वारा अधूरे छोड़े गए मल्ल चौक को पूर्ण कराया। योग्रेन्द्र मल्ल द्वारा 1684 से 1705 ईस्वीं के बीच मंदिर का मणिमंडप एवं स्वयं की प्रतिमा का निर्माण कराया गया।
कृष्ण मंदिर परिसर में जमावड़ा |
कृष्ण मंदिर का शिल्प नयनाभिराम है, इसका प्रवेश द्वार छोटा है तथा लिखा हुआ है कि सिर्फ़ हिन्दू ही मंदिर में प्रवेश करें। कृष्ण मंदिर के सामने विशाल प्रस्तर स्तंभ पर पीतल के गरुड़ विराजमान हैं। इस मंदिर के समीप सभी ब्लॉगर एकत्रित हो गए और यहीं पर चित्र सत्र प्रारंभ हो गया। नमिता राकेश, गिरीश पंकज, सम्पत मोररका, सुनीता यादव, रविन्द्र प्रभात, मनोज पांडे, मुकेश तिवारी, सुशीला पुरी, मुकेश सिन्हा, ब्लॉगर दम्पत्ति कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, पाखी, विनय प्रजापति इत्यादि सभी इस सुंदर स्थान को अपनी स्मृति में संजो लेना चाहते थे। कैमरों के बटन फ़टाफ़ट दब रहे थे, जिनके पास कैमरे नहीं थे वे मोबाईल से चित्र ले रहे थे। इस स्थान पर हम लोगों ने काफ़ी समय बिताया। अगर जाने की याद नहीं दिलाई जाती तो चित्र लेते हुए रात हो जाती। इस स्थान पर दुबारा आना चाहूंगा तथा जम कर फ़ोटोग्राफ़ी करनी है।
नेवाड़ी युवतियाँ परम्परागत परिधान में |
कुमारी पूजा उत्सव प्रारंभ था। सुंदर परिधानों में छोटे-छोटे बच्चे अपने परिजनों के साथ मौजूद थे। उनकी चेहरे से लग रहा था कि इस उबाऊ संस्कार से वे परेशान हैरान हैं। उनके माता पिता तसल्ली दिलाने के लिए खाने पीने की चीजें दे रहे थे जिससे बच्चों का मन विचलित न हो और कर्मकांड में संलग्न रहें। कुछ बच्चे रोना-गाना मचा रखे थे। आयोजन स्थल पर अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई थी। पर्यटकों के लिए यह अजूबा था वे कैमरे के प्रयोग में लगे हुए थे। यहां से पैदल-पैदल हम अपने बस के ठिकाने पर पहुंचे। भूख जोरों की लग रही थी। अगले पड़ाव पर लघु भोजन का इंतजाम था।
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जो पाबला जी के पैर दर्द के कारण रह गया था वो यहां देख लिया....
जवाब देंहटाएंलाइव टेलीकास्ट से कम नहीं लग रहा था पढ़ते पढ़ते ....पता नहीं नेपाल जाने का अवसर प्राप्त होता है अथवा नहीं, पोस्ट पूरा पढ़ने के बाद लगा हमारा नेपाल भ्रमण हो गया ....और प्रस्तुतिकरण की शिल्पकारी का कहना ही क्या .....बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअद्भुत विवरण और वर्णन
जवाब देंहटाएंचलिए एक बार फिर चलते हैं, बाईक पर :-)
टिप्पणीकर्ता बी एस पाबला ने हाल ही में लिखा है सुबह सुबह तोड़-फोड़, माओवादियों से टकराव, जलते टायरों की बदबू और मौत से सामना
सुंदर लेखन में चित्रों का गुंथन, रचना सुंदर बन गई ..
जवाब देंहटाएंरंगबिरंगे सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया जानकारी … वो काष्ठालंकृत खिड़की से झांकता छोटा सा मुस्कुराता बच्चा और काष्ठ शिल्प बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसुन्दर झांकिया .
जवाब देंहटाएंशानदार यात्रा विवरण
जवाब देंहटाएंअख़बारों के नाम पर गोरखधन्धा
कभी काठमांडू जाने का मौका नहीं मिला, वैसे सौनोली, रक्सौल बार्डर से 2,3 बार एंट्री मारी है। सुंदर जानकारी ललित जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर स्थापत्य..रोचक विवरण..
जवाब देंहटाएंजय हो
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