सोमवार, 28 अप्रैल 2014

मल्हार: आस्था का केन्द्र डिड़नेश्वरी माई



डिडनेश्वरी माई का प्रसिद्ध मंदिर मल्हार ग्राम की पुर्व दिशा में लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके दांए तरफ़ एक बड़ा तालाब है तथा मंदिर के सामने भी एक पक्का तालब है। जिसमें ग्रामीण निस्तारी करते हैं। मंदिर के द्वार पर पहुंचने पर एक सिपाही खड़ा दिखाई दिया। शायद इसे मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात किया गया है। मंदिर के गर्भ गृह को लोहे के दरवाजों से बंद किया गया है, दर्शनार्थी बाहर से ही दर्शन करके जा रहे थे। मंदिर में नवीन निर्माण कार्य प्रारंभ है। गर्भ गृह के सामने बड़े मंडप का निर्माण हो रहा है।
डिड़नेश्वरी मंदिर परिसर
मल्हार में सागर विश्वविद्यालय द्वारा उत्खनन कार्य करवाया गया। विद्वानों ने इस नगर को ईसा पूर्व 4 भी शताब्दी का माना है। यहाँ ईसा पूर्व 2 शताब्दी की विष्णु प्रतिमा प्राप्त हुई, जिससे आंकलन किया जा सकता है कि पूर्ववर्ती राजा वैष्णव धर्मानुयायी होगें। इसके पश्चात शैवों धर्म का प्रचलन हुआ होगा। मौर्यकाल से लेकर 13-14 वीं शताब्दी तक यह नगर उन्नत एवं विकसित रहा होगा। शैवों के साथ तंत्र उपासना भी प्रारंभ हुई। शाक्तों का भी मल्हार में प्रभाव रहा है। स्कंद माता, दूर्गा, पार्वती, महिषासुर मर्दनी, लक्ष्मी, गौरी, कंकाली, तारादेवी इत्यादि देवियों की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। परन्तु डिड़नेश्वरी देवी की काले ग्रेनाईट की अद्भुत प्रतिमा भी प्राप्त हुई है। 
निर्माणाधीन मंडप
डिड़नेश्वरी नाम के विषय में राहुल सिंह कहते हैं -  "डिड़िन दाई से तो जैसे पूरे मल्हार की धर्म-भावना अनुप्राणित हुई है। काले चमकदार पत्थर से बनी देवी। डिड़वा यानि अविवाहित वयस्क पुरुष और डिड़िन अर्थात्‌ कुंवारी लड़की। माना जाता है कि मल्हार के शैव क्षेत्र में डिडिनेश्वरी शक्ति अथवा पार्वती का रूप है, जब वे गौरी थीं, शिव-वर पाने को आराधनारत थीं। डिड़िन दाई का मंदिर पूरे मल्हार और आसपास के जन-जन की आस्था का केन्द्र है।" डिड़नेश्वरी देवी प्रतिमा को कई बार चोरी करने का प्रयास किया पर चोर एक बार कामयाब हो गए। इस दौरान अखबारों में इस प्रतिमा चोरी के समाचार छपने से यह प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध हो गई। फ़िर अचानक यह प्रतिमा बरामद भी हो गई। 
डिड़नेश्वरी माई
मान्यता है कि यह कलचुरियों की कुलदेवी है, देवार गीतों में इसे राजा वेणू की इष्ट देवी भी बताया गया है। डिड़नेश्वरी की प्रतिमा को कलचुरी काल ग्याहरवी सदी की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति माना गया है। काले ग्रेनाईट की यह प्रतिमा 4 फ़ुट ऊंची है। आभामंडल के साथ छत्र को महीनता से लघु घंटिकाओं द्वारा अलंकृत किया गया है। मुक्ताहार, भुजबंध, कर्णफ़ूल, कमरबंध, पायल इत्यादि अलंकरण प्रतिमा को गरिमा प्रदान करते हैं। प्रतिमा के फ़लक पर नौ देवियाँ उत्कीर्ण हैं, कहते हैं जब देव गण युद्ध में असुरों से हार गए तो वे पार्वती की शरण में आए। पार्वती ने पद्मासन में बैठ कर ध्यान किया जिससे नौ देवियों ने प्रकट होकर असुरों का संहार किया।
राजपुरुष: डिड़नेश्वरी मंदिर मल्हार
प्राचीन मंदिर के अधिष्ठान पर नवीन निर्माण किया गया है। मल्हार में मल्लाहों (निषाद) की अच्छी आबादी है। वे डिड़नेश्वरी को अपनी आराध्य देवी मानते हैं। डिड़नेश्वरी माई की कर बद्ध ध्यानावस्थित प्रतिमा मोहित करने वाली है। जिस शिल्पकार ने इसका निर्माण किया होगा उसे नमन है। ऐसे खुबसूरत प्रतिमा मैने आज तक देखी नहीं। गर्भगृह के द्वार के बांई तरफ़ एक राजपुरुष की प्रतिमा भी स्थापित है। अब यह प्रतिमा किस राजा की है यह बताना कठिन है। हमने मंदिर की एक परिक्रमा लगा कर पुजारी से प्रसाद ग्रहण किया और मल्हार नगरी भ्रमण करने आगे चल पड़े।


5 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई मूर्ति सुन्दर /अलंकारिक है !
    रोचक !

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  2. सचमुच अद्भुत शिल्प दिखाई दे रहा है डिड़नेश्वरी देवी की प्रतिमा में, हमे तो सिर्फ फोटो ही देखने मिला, साक्षात दर्शन कितना सुन्दर होगा। यदि ये हार फूल और चुनरी न होती तो शायद फोटो में प्रतिमा के अलंकरण भी दिखाई देते ... आभार ...

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  3. पूरा नक्शा ही बदला बदला लगता है.. डिड़िन दाई को कैसे पुनः प्राप्त किया गया इसकी भी कहानी है.

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  4. डिडिनेश्‍वरी प्रतिमा की सन 1981 में चोरी के बाद गांव में चूल्‍हा नहीं जला था.

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  5. mai didneshwari devi ke bare me bahut suna tha par aaj aapke madhyam se maine malhar ka yatra kar liya iske liye aapko dhanyawad.

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