शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

राजा नृसिंह देव का संकल्प : कोणार्क - कलिंग यात्रा

प्रारंभ से पढ़े … कहाँ से आए हो सर? वट वृक्ष की छाया में मेरे संग एक बड़ी शिला पर बैठते हुए विक्रम ने पूछा। मैने कहा - दक्षिण कोसल से। स्वागत है आपका, माता कौशल्या के देश से पधारे हैं आप, कुछ जल ग्रहण कीजिए। आज वातावरण में उमस कुछ अधिक है। विक्रम के माथे पर श्वेद कण झिलमिला रहे थे, जैसे मुक्तालड़ी धारण कर रखी हो, यह सुपारी का असर था, सुपारी खाते ही उसकी गर्म तासीर का अहसास हो जाता है। 
विक्रम और बेताल
विक्रम कहने लगा - आप सामने जो मंदिर देख रहे हैं न, उसमें अभी पूजा नहीं होती। इसे राजा नरसिंह देव ने बनवाया था अपनी माता के आदेश पर। माता की इच्छा पूर्ति करना प्रत्येक पुत्र का कर्तव्य होता है। राजा ने भी इसे पूर्ण करने के लिए सारे देश से कुशल कारीगरों को आमंत्रित किया और उनसे सलाह मशविरा कर मंदिर निर्माण के लिए इस स्थान का चयन किया। इस मंदिर का निर्माण 1200 कारीगरों ने 12 वर्ष में पूर्ण किया और मुझे सत्रह वर्ष हो गए इस स्थान पर सेवा देते हुए।
कोणार्क के सूर्य मंदिर का नाट्य मंडप एवं जगमोहन
इसके साथ ही विक्रम मंदिर से जुड़ी किवदन्तियाँ और मिथक भी सुनाने लगा। किसी स्थान के महिमा मंडन में किंवदन्तियां एवं मिथक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम कलिंग की उस भूमि पर थे जहाँ पहुंच कर अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया था। इतना कत्ले आम हुआ था कि धरा भी रक्त से नहा गई थी। विधवाओं एवं उनके बच्चों का विलाप देख कर अशोक का पाषाण हृदय पिघल गया। यह वह भूमि है जिसमें फ़ौलादों को भी पिघलाने की ताकत है। यह बिना संकल्प शक्ति के नहीं होता। कलिंग की दृढ़ संकल्प शक्ति के प्रमाण के रुप में समक्ष खड़ा हुआ स्मारक देख रहे थे। विकास बाबू फ़ोटो खींचने में लगे थे। 
बिकाश शर्मा कोणार्क परिसर में
कहानी आगे बढ़ रही थी। विक्रम कह रहा था कि पहले इस स्थान पर दल-दल था और इसमें जल भरा हुआ था। मंदिर बनाने के लिए शिल्पकार को पहले इस दल-दल को भरना था। बिसु महाराणा इस निर्माण कार्य का मुख्य शिल्पी था। कहते हैं कि तीन वर्ष तक लगातार इस स्थान को मिट्टी से भरने की कोशिश की गई। मिट्टी बहने के कारण श्रम एवं धन व्यर्थ जा रहा था। राजा एवं मंत्री सभी चिंतित हो गए। राजा ने मंत्री को बुला कर गड्ढे को भरने के लिए अन्य कोई उपाय सोचने कहा। एक दिन मंत्री जंगल के रास्ते जा रहा था, उसे प्यास लगी तो वह रास्ते में स्थित एक भगवती मंदिर में रुक गया। 
कोणार्क सूर्य मंदिर का प्रवेश द्वार
वहाँ एक बुढिया रहती थी। बुढ़िया से उसने खाना और पानी मांगा। बुढिया ने खीर बनाई थी, वह गर्म खीर उसने मंत्री को खाने को दी। मंत्री ने खीर की थाली के बीच में हाथ डाला तो उसकी अंगुलियाँ जल गई। बुढ़िया ने कहा कि मंदिर का गड़ढा भरने में भी तुम लोग यही गलती कर रहे हो। किनारे से खीर खाओगे तो ठंडी हो जाएगी और हाथ भी नहीं जलेगा। इसी तरह इस गड़ढे को किनारे से भरोगे तो गड़ढा भी भर जाएगा और मंदिर भी तय समय सीमा में बन जाएगा।
नाट्य मंडप
बुढ़िया से ज्ञान लेकर मंत्री कोणार्क आया और उसने बुढ़िया के द्वारा बताए उपाय का अनुशरण किया। इससे गडढा भर गया और मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया। इस मंदिर के निर्माण के लिए योजना बद्ध रुप से कार्य हुआ। पत्थर लाए गए और मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। हम चलते जा रहे थे और विक्रम कहते जा रहा था। 
स्वागत द्वार पर सिंह 
राजतंत्र में निर्णय लेने के सम्पूर्ण अधिकार राजा के हाथ में होते हैं और दंड विधान का पालन भी कड़ाई से किया जाता था। बारह सौ शिल्पी मंदिर निर्माण का कार्य कर रहे थे। राजा लांगुल नरसिंह देव मंदिर को मुर्त रुप लेते देख रहा था। उसने खजाने का मुंह खोल दिया। चाहे कितना भी धन लग जाए लेकिन मंदिर का निर्माण होकर रहेगा। हम मंदिर के नाट्य मंडप के समक्ष पहुंच गए, वहां प्रहरी के रुप में विशाल विकराल सिंह हमारा स्वागत कर रहे थे। जारी है आगे पढ़े………

2 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक अगली किश्त के लिए वेताल उतावला हो गया है वो बुढ़िया जिसने मंत्री को, बरास्ते खीर, युक्ति सुझाई थी, बड़ी पहुंची हुई रही होगी

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  2. मन्दिर में पूजा क्यों नहीं होती इस पर भी प्रकाश डाले

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