शनिवार, 26 सितंबर 2015

पूर्व की काशी भुवनेश्वर और छेना गाजा - कलिंग यात्रा

कोणार्क से बस द्वारा हम भुवनेश्वर के लिए चल पड़े। यहां से भुवनेश्वर की दूरी लगभग 64 किमी है। मिनी बस में हमें बैठने के लिए पीछे की सीट मिल गई। कोणार्क से चलकर बस गोप बस स्टैंण्ड पर रुकी और यहाँ दैनिक यात्रियों का इंतजार करके आधे घंटे बाद आगे बढ़ी। आगे चलकर निमपाड़ा कस्बे में रुकी और यहां से सवारी लेकर फ़िर आगे बढ़ी। रास्ते में दया और भार्गवी नामक दो नदियाँ मिलती हैं। ये नदियाँ महानदी की ही धाराएं हैं जो यहां अलग नाम से जानी जाती है। सिहावा पर्वत से निकल कर महानदी लगभग आठ सौ किमी का लम्बा सफ़र तय कर यहाँ पर आकर समुद्र में मिलती है। कटक से पहले नाराजमार्थापुर के पास आकर यह दो भागों में बंटती है, एक धारा महानदी ही रहती है और दूसरी धारा कथाजोदी नदी कहलाती है। यही कथाजोदी नदी आगे चलकर दो धाराओं में बंटकर दया एवं भार्गवी नदी कहलाती है। 

सांझ ढले हम अपने ठिकाने के पास सांतरापुर पहुंचते हैं। अब यहां पहुंच कर खाने का इंतजाम करना था। पहले गेस्ट हाऊस में जाकर थोड़ी थकान मिटाई और फ़िर भोजन की तलाश में निकल पड़े। भुवनेश्वर में दोनो तरह का अच्छा भोजन मिल जाता है। अब खाना आदमी की पसंद के हिसाब से होता है। सीफ़ुड भी अच्छा मिलता है, पर शाकाहारी के नाम दालमा भात पहले पसंद किया जाता है। हमको भी एक अच्छा ठिकाना मिल गया। जहाँ उड़ीसा के सभी पकवान मिलते थे। छेने की मिठाईयों की भरमार थी। भोजन के रुप में दालमा भात हाजिर था। बंगाल और उड़ीसा का खाना लगभग एक जैसा ही है। निरामिष भोजन में प्याज एवं लहसुन नहीं होता। हम शाकाहारी खाने में लहसुन एवं प्याज का इस्तेमाल कर लेते हैं पर यहां शुद्ध शाकाहारी भोजन ही मिलता है। दालमा में दालचीनी की खुश्बू और हल्का सा मिठास उसे अच्छा फ़्लेवर देता है।

पहले हल्का सा स्नेक लेने के बाद हमने भोजन किया। दालमा के साथ भात खाकर आनंद आ गया। दालमा का भोज भगवान जगन्नाथ जो लगता है और यहां दालमा भात महाप्रसाद के रुप में मिलता है। हमने महाप्रसाद ग्रहण करने शुरुवात यहीं से कर दी थी। बिकाश मिष्ठान के मजे ले रहा था और हमको भी आग्रह कर रहा था। जानते बुझते हुए कि हमें मिष्ठान वर्जित करार दिया गया है। छेना गाजा, छेना पोड़ा यहां की विशिष्ट मिठाई है। अभी कुछ दिनों पहले रसगुल्ले के अविष्कार को लेकर बंगाल एवं उड़ीसा के बीच विवाद की स्थिति बन गई है। दोनो ही राज्य इसे अपनी मिठाई एवं अविष्कार मानते हैं पर रसगुल्ले को लेकर उड़ीसा का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भगवान जगन्नाथ के छप्पन भोग में इसे प्रथम स्थान प्राप्त है। खैर अपना विवाद ये दोनो निपटेंगे। हम काहे अपना दिमाग लगाएं। 

भोजन के पश्चात थोड़ा बाजार का भी चक्कर लगाया जाए। हम सड़क मार्ग से चौराहे तक होकर आए। भोजन भी ठिकाने लग गया और थोड़ी बहुत जगह छेना गाजा के लिए बन गई। बिकाश बाबू को छेने की मिठाईयाँ इतनी पसंद है कि दिन भर उसके ही पीछे लगे रहे। हमने भी छेना गाजा का स्वाद लिया। कलाकंद को छोड़कर छेने की सभी मिठाईयाँ मुझे एक जैसी ही लगती है। सिर्फ़ उनका आकार एवं रंग बदल जाता है। मिठास तो चाशनी का ही रहता है। क्योंकि सभी को बनाने का तरीका एक जैसा ही है। रात होने लगी थी और हमारे गेस्ट हाऊस के चौकीदारों को तकलीफ़ न हो इसलिए हम समय पर गेस्ट हाऊस पहुंच गए। आगे का कार्यक्रम यह बना कि सुबह भुवनेश्वर के मन्दिरों का भ्रमण किया जाएगा। क्योंकि भुवनेश्वर वर्तमान राजधानी के साथ पूर्व की काशी भी कहलाती है। कहते हैं कि ग्यारहरवी के शताब्दी के बाद यहाँ लगभग सात हजार मंदिर थे। जिसमें से सात सौ मंदिर तो अभी भी विद्यमान हैं……॥ जारी है… आगे पढ़ें। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर वृत्तांत ....
    भ्रमण के पश्चात मनपसंद भोजन भी मिले तो आनंद कई गुना बढ़ जाता है....

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  2. सुंदर वृत्तांत ....
    भ्रमण के पश्चात मनपसंद भोजन भी मिले तो आनंद कई गुना बढ़ जाता है....

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  3. Bahut achha laga...hamlog jab bhi jate hain puri chhena ki har mithai ka aanand lete hain.

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