सोमवार, 7 मार्च 2011

कम इनपुट में अधिक आउटपुट का अर्थ शास्त्र : व्यंग्य

हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही तकनीक सम्पन्न रहा है। हवाई जहाज से लेकर ब्रह्मास्त्र एवं पक्षेपास्त्र तक का निर्माण वैदिक काल में ही चुका था। पत्थर और ताम्र पत्र पर लिख कर इस ज्ञान को सहेजा गया था। जैसे-जैसे धरती की खुदाई होती है वैसे-वैसे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान सामने आकर चमत्कृत करते रहता है।

सरकार की अनुंसधान शाखा भी खुदाई करने का ही काम करती है। इसकी खुदाई भी पुरातत्व विभाग से कम नहीं होती।

सरकार के विरोधियों एवं निवृतमान सरकार के करीबी अधिकारियों की जड़ तक खुदाई करके सारे रिकार्ड जमा रखती है। जैसे ही सरकार का इशारा होता है, रिपोर्ट पेश हो जाती है। खुदाई के सारे रिकार्ड अखबारों तक पहुंच जाते हैं।

सभी सरकारें यही करते आई हैं। लेकिन कभी-कभी सरकारों को अपने ही लोगों की कारगुजारियों की जानकारी रखनी पड़ती है।

हमारे देश में एक नए अर्थशास्त्र का जन्म हुआ है। इस अर्थशास्त्र के सामने विश्व के सारे अर्थशास्त्रियों के बनाए नियम फ़ेल हो गए हैं। चाणक्य से लेकर अमर्त्य सेन तक अपनी खोपड़ी खुजा रहे हैं।

कम इनपुट से अत्यधिक आउटपुट लेने के अर्थ शास्त्र से पुरी दूनिया चकित है और भारत की इस उपलब्धि की तरफ़ मूँह फ़ाड़े देख रही है। हम भी यही कर रहे हैं।

बात यहाँ से शुरु होती है। हमारे मोहल्ले में मिश्रा जी का खटाल है, उन्होने दो भैंसे पाल रखी है। जिसमें एक दूध देती है दूसरी नहीं। मतलब क्रम से एक भैंस का दूध वर्ष भर मिलता है।

एक भैंस 10 किलो दूध देती है, लेकिन ये मोहल्ले भर में सुबह शाम 30 किलो एक नम्बर का खालिश दूध बेचते हैं। इस पर भी अगर कोई नया ग्राहक पहुंच जाता है एकाध किलो दूध लेने के लिए तो उसे वापस नहीं करते, उसके लिए भी कहीं से दूध का इंतजाम कर ही देते हैं।

उसके बाद पान चबाते हुए ठससे अपने पान की दुकान में बैठ कर कत्था-चूना लगाते रहते हैं।

ये तो रही मिश्रा जी चमत्कारिक कहानी, आगे चलते हैं, लाला जी का घी मावा सेंटर है। भैंस-गाय इनके पास एक भी नहीं है। दिन भर दुकान में लाईन लगे रहती है। कई क्विंटल शुद्ध मावा और देशी घी दिन भर में बेच लेते हैं।

गाँव के छोटे व्यापारियों से 10-20 किलो शुद्ध मावा और देशी घी खरीदते हैं बाकी शुद्ध माल सीधा फ़ैक्टरी से ही आता है पैक होकर। गाँव की सेहत बना रहे हैं, दम लगा कर और पहलवान इनकी डेयरी का घी खा रहे हैं और जोर लगाकर दम निकाल रहे हैं।

पता चला कि एक चपरासी विभाग की मास्टर चाबी है। उसकी स्वीकृति बिना किसी का जायज काम भी नहीं होता। नाजायज की बात तो छोड़िए।

हमारे पहुंचते ही सबसे पहले उनकी चपरासनिन से सामना हुआ। गोल-मटोल कम से कम आधा किलो तो सोना लाद रखा होगा, गाँव की मालगुजारिन जैसे।

शानदार मार्बल के फ़र्श वाला तीन तले का मकान और उसमें 6 किराएदार। उन्होने मुझे किराए पर मकान लेने वाला समझ लिया और कहा कि-“ यह मकान देख लें, अगर पसंद आए तो ठीक नहीं, दूसरे मोहल्ले में दो मकान और हैं, वे आपको जरुर पसंद आएगें।

कुल मिला कर चपरासी ही दो-चार करोड़ की आसामी निकला। तनखा 5-10 हजार और महीने खर्च 50,000 रुपए। इसे कहते हैं अर्थशास्त्र का चमत्कार।

कुछ दिनों पहले एक उच्चाधिकारी के यहाँ छापा पड़ा। सरकारी तनखा तो उनकी 40 से 50 हजार होगी, छापे में सम्पत्ति 400 करोड़ रुपए मिलती है।

एक के अधिकारी ने गजब ही कर दिया, उसके यहाँ से छापे में डेढ क्विंटल सोना मिला। 1801.5 करोड़ रुपया नगद। इसकी पराकाष्ठा तो तब हो जाती है, जब एक मंत्री पर 1लाख 37 हजार करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगता है। जबकि इनको हर चीज में सरकार ने छूट दे रखी है,

1 रुपए में चाय से लेकर 20 रुपए में चिकन करी मिल जाता है। इन सब तकनीक के सामने आकर तो संसार के अर्थशास्त्र का गणित ही फ़ेल हो जाता है।

कुछ दिनों पहले भारत दौरे पर आए ओबामा आश्चर्य चकित रह गए, कम इनपुट में अधिक आउटपुट लेने की पद्धति को देख कर।

उन्होने पूछा भी कि आपके यहाँ यह चमत्कार कैसे हो जाता है? हमारे वित्त मंत्री ने कहा कि-“ये मत पूछिए कैसे होता है? लेकिन इतना बता देता हूँ कि हमारे देश में जुगाड़ से सब संभव है। अब ये भी मत पूछना कि जुगाड़ क्या होता है?

यह हमारे देश का कोका कोला की तरह का टॉप सीक्रेट फ़ार्मुला है, जो किसी को भी बताया या हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।“

16 टिप्‍पणियां:

  1. कहा जाये तो अर्थशास्त्र ही जुगाड़ का है अपने यहाँ....


    इन सब तकनीक के सामने आकर तो संसार के अर्थशास्त्र का गणित ही फ़ेल हो जाता है।


    -क्या सही बात कही आपने.

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  2. चपरासियों के ऐसे लक-दक मकान , बाबू तो क्या कई अफसरों के पास भी नहीं हो, हकीकत है ...
    जुगाड़ के जरिये सबकुछ संभव है ..कम इनपुट में ज्यादा आउटपुट का रोचक खेल है !

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  3. अच्छे इनपुट लिए पोस्ट..... सच में यहाँ जुगाड़ से सब हो जाता है.....

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  4. जो जेल में होना चाहिये वे लोगों को कानून सिखा रहे हैं, किया क्या जाये ऐसे में...

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  5. जुगाडों की दुनिया है आजकल। सुन्दर पोस्ट। बधाई।

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  6. बहुत अच्‍छा।
    हमारा भारत महान।

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  7. दमड़ी का ही राज
    दुनिया दमड़ी की मोहताज
    दमड़ी के सिर पर ताज दुनिया दमड़ी की
    लोकतंत्र में जुगाड़तंत्र.......... सुन्‍दर पोस्‍ट

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  8. सही है......जुगाड़ से क्या नहीं संभव

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  9. हमारा भी कोई जुगाड हो जाता तो हम भी कम इनपुट में अधिक आऊटपुट पा जाते।

    प्रणाम

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  10. हा हा हा ! सही कहा , जुगाड़ का कोई सानी नहीं ।

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  11. जो भी गोरा भारत घुम कर आता हे वो हमारे जेसो के कान खा जाता हे कि हमे भी जुगाड ला कर दो.... एक गोरे से मैने पुछा तुम जुगाड का क्या करोगे? तो बोला जब इतना बडा भारत जुगाड से चल सकता हे, तो मेरा घर क्यो नही चल सकता? बस मुझे जुगाड ला दो कितने भी € लग जाये

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