असीमित परिकल्पनाओं के इस देश में सफलता का यही एक मूलमंत्र है कि…तू मेरी खुजा..मैं तेरी खुजाता हूँ…इस कार्य में खुजाने वाला भी और खजुवाने वाला ..दोनों ही खुश रहते हैं…एक के हाथों की खुजली मिट जाती है और दूसरे के बदन की खुजाल… ऐसा आज से नहीं पुरातन काल से होता चला आया है..राजा के दरबार में मंत्री से लेकर संतरी तक सभी राजा की खुजाते थे और राजा अपने मतलब के चलते पटरानियों की..समय के साथ-साथ सत्ता परिवर्तन हुए लेकिन ये खुजाने और खजुवाने की परंपरा तब से लेकर अब तक बिना किसी अवरोध के निरंतर चलती रही| अभी तक कायम है।
ये रोग है या फिर शौक?…इस बारे में प्राय: भिन्न-भिन्न प्रकार के मत हैं ..जिन्हें इसका शौक या शगल नहीं है..उनके हिसाब से ये एक लाइलाज बीमारी है और जो इसके जरिये फलीभूत हो रहे हैं या होने की संभावना देख रहे हैं… उनके लिए इससे बढकर कोई और नेमत नहीं ….. कुछ लोग गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले होते हैं
अपने वक्त और ज़रूरत के हिसाब से दूसरों की खुजाते तथा अपनी खजुवाने रहते हैं और कुछ को इसकी लत लग चुकी होती है…वो हर समय बिना खुजाए या खजुवाने नहीं रह सकते|। जैसे वहम का कोई इलाज नहीं है … कोई तोड़ नहीं है … ठीक वैसे ही इस बीमारी का भी कोई इलाज … कोई तोड़ नहीं है … जिसको खुजानी है वो तो हर हालत में … हर माहौल में खुजाएगा ही … या पत्थर पर घिस लेगा और जिसको अपनी खजुवानी है वो भी कोई ना कोई बकरा ढूंढ लेगा ही..
अपने वक्त और ज़रूरत के हिसाब से दूसरों की खुजाते तथा अपनी खजुवाने रहते हैं और कुछ को इसकी लत लग चुकी होती है…वो हर समय बिना खुजाए या खजुवाने नहीं रह सकते|। जैसे वहम का कोई इलाज नहीं है … कोई तोड़ नहीं है … ठीक वैसे ही इस बीमारी का भी कोई इलाज … कोई तोड़ नहीं है … जिसको खुजानी है वो तो हर हालत में … हर माहौल में खुजाएगा ही … या पत्थर पर घिस लेगा और जिसको अपनी खजुवानी है वो भी कोई ना कोई बकरा ढूंढ लेगा ही..
हमारे देश में खजुवाने वाली सत्ता का सबसे बड़ा केन्द्र दिल्ली है…यूँ समझिए कि ये खुजाने और खजुवाने वाले दोनों के लिए स्वर्ग है…यहाँ नेता….मंत्री की और मंत्री प्रधानमंत्री की खुजाते हैं और प्रधानमंत्री हाई कमान की खुजाने के लिए बिना किसी संकोच के अपनी दाढी खुजाते हुए दस जनपथ तक पहुँच जाते हैं…कुछ ऐसे भी निर्भाग लोग भी होते हैं इस दुनिया में जो अपनी खजुवाना तो चाहते हैं लेकिन चाहकर भी महज़ इसलिए नहीं खजुवा पाते हैं कि कोई इन्हें भाव ही नहीं देता…। ये इस आस में दिल्ली में लगे हैं कि….कभी तो खुजाने वाली सुबह आएगी…
लोकतंत्र में सत्ता के विकेन्द्रीकरण के कारण खुजली उपर से नीचे तक सभी को समान रुप से बंट जाती है…. प्रधानमंत्री से लेकर आम टटपूंजिए नेता तक..। वह इसे अपने मुंह लगे कार्यकर्ता तक पहुंचा ही देता है…. सब खुजाने में लगे हैं। आज तक किसी ने कभी कोई शिकायत नहीं की या आन्दोलन, प्रदर्शन नहीं किया कि…. खुजली उस तक नहीं पहुंची, और उसे खुजाने का सुख नहीं मिला। जिस तरह अमेरिका के गेंहूँ के साथ कांग्रेस (गाजर) घास स्वत: ही देश में वितरित हो गयी, उसी तरह बजट के साथ खुजली का भी वितरण स्वत: सुनिश्चित हो जाता है। इसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता।
खुजली छूत की बीमारी होने की वजह से पूर्णरूप से इसका खात्मा होना लगभग असंभव है लेकिन फिर भी कुछ नासमझ टाईप के अपवादस्वरूप लोग इस उम्मीद पे अपनी दुनिया को कायम रख बेवजह जीए चले जा रहे हैं … लेकिन इनके होने या ना होने से किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ज़्यादातर लोग सपनों की दुनिया में जीने के बजाय यथार्थ के धरातल पर खुद अपनी मेहनत और लगन से जुनून की हद तक सबकी खुजाते हुए अपने सपनों को हकीकत में बदलने का माद्दा रखते हैं…इसलिए आईए और तू मेरी खुजा…मैं तेरी खुजाऊँ की तर्ज़ पर सभी एक दूसरे की खुजाएँ…खुजाते चले जाएँ…. सितारे बुलंद अवश्य होगें .... अस्तु
खुजाते चलो!!!!!!!!खुजाते चलो!!!!!....
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियां हमें अपनी पोस्टों पर मिला मिला करती हैं, यहां टिप्पणी देने के पहले सोच में पड़ गए कि क्या लिखें, लिखें कि आप अच्छा लिखते हैं...
जवाब देंहटाएंyeh khujaane kaa triqaa achchaa he lekin bhaia kongres srkar ki dukhti rg pr haath rkh diya or yeh kin kinki dukhti rg he men to smjh gyaa aao ko to pehle se hi ptaa he isliyen bhtrin kdve sch ki post pr bdhaai. akhtar an akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंना गाने में मजा आता है ना बजाने में मजा आता है
जवाब देंहटाएंखुजली नाम से अजीब लगता है पर खुजलाने मे मजा आता है ☺☺☺
आज के पोस्ट भेलवा उदल देहे लीम पाना काट नई करय गोबर पानी ह काट करही ☺☺☺
इक दूजे की खजुवाते चलो
जवाब देंहटाएंप्रेम की गंगा बहाते चलो
बढ़िया...दमदार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंदिलचस्प व्यंग्य . वास्तव में देश में आज सभी एक-दूजे को खुजाने में लगे हैं. देश में मंहगाई ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की आग लगी है लेकिन सबकी दिलचस्पी खुजाने में है, आग बुझाने में नहीं ! करें भी तो क्या , इस बेहतरीन व्यंग्य रचना के लिए आपको धन्यवाद देने के अलावा ?
जवाब देंहटाएंललित जी आपने तो मानव स्वभाव की पोल खोल कर रख दी।
जवाब देंहटाएंचलो हम भी खुजा, मेरा मतलब टिपिया देते हैं।
बधाई हो आपको।
सशक्त व्यंग।
जवाब देंहटाएं"ये खुजाने की आदत राजा से लेकर रंक तक..दुर्जन से लेकर सुजान तक…संसद से लेकर विधान तक….किसी को भी हो सकती है…और लेखक जाति के करोंदे टाईप लोग भी इसका अपवाद नहीं है…नाम के साथ-साथ दाम कमाने की चाह के चलते कुछ बजरबट्टू टाईप के लेखक अपनी रचनाओं को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में छपवाने के लिए प्रकाशकों इत्यादि की तन्मयतापूर्वक खुजाने में किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करते…"
जवाब देंहटाएं:) :) Kya Badhiyaa baat kahee aapne !!
खाज कर ले नहीं तो पीछे पछताएगा, पीछे पछताएगा खजुआ ना पाएगा, खाज कर ले................
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
जवाब देंहटाएंलोगों के खाजुआने की आदत पर आज आपने बेहतरीन जानकारी दी है...पढ़कर मजा आ गया !!
मुझ अकिंचन की बधाई स्वीकार करें |
सचमुच बेजोड़ हा हा हा खुजाते चलो !
जवाब देंहटाएंमेरे पास इस खुजली का आचूक इलाज हे !! जिसे हो जल्द बताये!!
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य है, एकदम मौलिक।
जवाब देंहटाएंखुजाते खुजाते खुजलाहट और बढ जायेगी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
खाज बांटते चलो, खाज बांटते चलो..
जवाब देंहटाएंखूब... बहुत ज़ोरदार ...
जवाब देंहटाएंखुजा खुजा के धोया जी .....
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त ...सटीक व्यंगात्मक लेख..... सच का आइना है यह पोस्ट
जवाब देंहटाएंमानव मन को बिलकुल सही पकडा है । बधाई ।
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