डॉ.कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री जी ,जय प्रकाश जी एवं ललित शर्मा |
आरम्भ से पढ़ें रात को ही केवल ने चेता दिया था की आज सुबह जल्दी तैयार होना है. उनके स्टडी सेंटर में हिंदी विभाग, पत्रकारिता विभाग एवं अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में "हिंदी भाषा एवं न्यू मीडिया: चुनौती और संभावनाएं" विषय पर सेमिनार रखा गया है. सुबह हम जल्दी तैयार हो गए थे ११ बजे हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय के क्षेत्रिय स्टडी सेंटर धर्मशाला में पहुँच गए. यहाँ हमारी मुलाकात पत्रकारिता विभाग के जय प्रकाश जी से हुयी. बनारस के रहने वाले अच्छे व्यक्ति है. इनकी पत्रकारिता जैसे विषय पर गहरी पकड़ है. इन्होने मुझसे बस्तर की घटनाओं के विषय में चर्चा की. इसके पश्चात् केंद्र के निदेशक डॉ.कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री जी से भेंट हुयी.
अंग्रेजों के ज़माने का कालेज |
बिलासपुर जिले के बिल्हा अग्रसेन महाविद्यालय के समाजशास्त्र के सेमिनार में व्याख्यान के पश्चात काफी दिनों बाद कालेज के विद्यार्थियों से रूबरू होने का मौका मिला था. यहाँ पहुच कर मुझे भी अपने कालेज के बीते दिन याद आ गए. कालेज के दिनों की यादें किताब में दबे हुए किसी फूल की खुशबु जैसी ही थी. इस कालेज की स्थापना अंग्रेजों के समय में १९२६ में हुयी थी और २००० में यह अपनी प्लेटिनम जुबली मना चूका है. वैसे अध्ययन की दृष्टि से अच्छी जगह है और मौसम भी अच्छा है. कालेज कैम्पस भी बहुत सुन्दर है. अभी भी अंग्रेजो की बनायीं हुयी ईमारत में ही लगा रहा है. जिसमे ठण्ड में गर्मी के लिए बुखारी लगी हैं, जिसकी चिमनियाँ ईमारत की छत से नजर आती हैं. कालेज कैम्पस हरा-भरा है. तरह-तरह के फुल खिले हैं. तितलियाँ और भंवरे भी पुष्प रज का आनंद ले रहे हैं. इस कार्यक्रम की पूरी रिपोर्ट यहाँ और यहाँ भी पढ़ सकते हैं.
केवल राम जी- राम राम जी |
कार्यक्रम के पश्चात केवल राम जी विद्यार्थियों के लिए कालेज केंटिन में स्वल्पाहार की थी. एक बात तो कहनी पड़ेगी, केवल अपने विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय हैं. उन्हें अपने विषय की अच्छी समझ है. विद्यार्थी भी उनका प्रेमादर करते हैं. जब कैंटीन में पंहुचा तो ऐसा लगा के हमारे ज़माने की कैंटीन और आज की कैंटीन में कोई खास फर्क नहीं है. थोडा सा तो बदलाव हुआ है. अब लड़के और लड़कियां बेझिझक साथ बैठते हैं और २५ साल पहले थोड़ी दूरी थी. यहाँ मेरा एक नए शब्द से परिचय हुआ "संघी चबूतरे". अच्छा शब्द है और अपनी व्याख्या स्वयं ही कर देता है. कैंटीन में संघ के प्रचारक संजीव से भी मुलाकात हुयी. हमें भी वो दिन आये जब आपात काल के समय शाखा लगाया करते थे और दक्ष होकर "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।" गाया करते थे. बाद में हमारा संघ लिंक टूट गया था.
IPL- क्रिकेट स्टेडियम |
अपरान्ह हम पैदल-पैदल घुमने निकले. पुलिस लाइन होते हुए क्रिकेट स्टेडियम तक गए. जहाँ IPL के मैच होने थे.स्टेडियम सुन्दर चटक रंगों से सजाया गया है. इस स्टेडियम का मैदान उलटी रकाबी की तरह है. ३० गज के दायरे के बाहर बाल निकलने के बाद पकड़ में नहीं आने वाली, चौका पक्का मानकर चलो. पुलिस ग्राउंड में फुटबाल का मैच चल रहा था. आर्मी का बैंड बज रहा था. अफसर भी मौज लेने के सारे तरीके लगा ही लेते हैं. धर्मशाला में पैदल चलना याने चढ़ाई और उतराई ही है. चढ़ते समय घुटनों पर जोर पड़ता है और उतारते समय एडियों की मरम्मत हो जाती है. तिब्बती लामा घूमते हुए मिल रहे थे. एक हाथ में माला लिए जप चल रहा था."काम करते रहो, नाम लेते रहो. प्रभु के प्रति समर्पित रहो."
ग्राउंड प्लेन -- शहीद स्मारक |
वैसे धर्मशाला कांगड़ा जिले का जिला मुख्यालय है. धौलाधार की घाटियों के बीच बसा सुन्दर नगर है. जगह-जगह पानी की टंकियां लगी हैं जहाँ से यात्री जल ले सकते हैं. ठंडा पानी चश्मे से आता है. चश्मे का पाने निर्मल होता है. जिसमे खजिन यौगिक भी होते हैं. हमने देखा कि एक जगह कालेज का नया ओडोटोरियम बन रहा है. डिज़ाइन तो अच्छा था. पैदल चलते-चलते हम शहीद स्मारक आ गए. जहाँ शहीदों की याद में स्मारक बना कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. शहीद स्मारक के सामने एक फाईटर प्लेन खड़ा है. साथ ही टैंक और हस्तचालित तोपें, जो युद्ध में काम आ चुकी हैं यहाँ रखी है. आस-पास हरियाली है और इस मौसम में तो पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा जवान हो जाता है. यहाँ एक ओपन थियेटर भी बना हैं, जहाँ नाटक खेले जाते हैं. हमारे यहाँ भी है मुक्ताकाश.
भूतपूर्व मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश शांता कुमार जी और मैं |
शहीद स्मारक का निर्माण तत्कालीन मुख्यमंत्री शांताकुमार जी ने कराया था. शांताकुमार जी से मेरा परिचय १९९८ में हुआ था. बड़े ही सज्जन व्यक्ति हैं. उनके यहाँ कोई अनजान भी समस्या लेकर चला जाये, उसे वही सम्मान मिलता है जो परिचित को मिलता है और उनका काम तत्काल होता है. इस स्मारक पर शहीद सैनिको के नाम खुदे हैं. मैंने भी ह्रदय से शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. यहाँ शाम के समय बहुत सारे सैलानी आते हैं. शहीद स्मारक में ५ रूपये की टिकिट लगती है. साथ ही एक रेस्टोरेंट भी है. जब हम पहुचे तो दो ही टेबलों पर लोग थे. एक टेबल पर दो तिब्बती लेपटोप पर कुछ देख रहे थे और दूसरी टेबल पर मोटी-मोटी कजरारी आँखों वाली दक्षिण भारतीय त्वंगी मोबाइल पर लगी हुयी थी. हमने भी वहीँ डेरा डाल लिया. एक-एक आइसक्रीम लेकर कुछ टाइम पास किया. इसके सामने ही रेडिओ स्टेशन है. मोबाइल पर एक गीत " आज पीने की दावत है यारों, चाँद पर बैठ कर हम पीयेंगे" हमने भी सुना.
बहुत स्पीड है हिमाचल में |
अब फिर ११ नंबर की सवारी से चल पड़े ठिकाने की ओर.... रास्ते में एक बोर्ड लगा देखा, मैंने उसका एक चित्र लिया. सोचा की कभी काम आ जायेगा. घर पहुचने पर खाना बनाया गया. केवल कुछ नानवेज बनाना चाहता था और मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. साग-भाजी से ही काम चलाया जाये वही ठीक है. लाल किले के सामने से निकले तो वही भीड़ लगी हुयी थी. यहाँ भीड़ कम ही नहीं होती. कुछ हमारे छत्तीसगढ़िया बंधू भी खड़े सोच रहे थे कि अब खरीद ही लिया जाय. आज तो इतना कमा ही लिए हैं. घर पहुच कर अगले दिन की प्लानिंग में जुट गए. कल जाना है मैक्लोडगंज याने दलाई लामा के घर उसके पश्चात एक हिमाचली धाम में जाना है. सोचा की इसी बहाने हिमाचली गाँव की सैर भी कर लेंगे. ग्रामीण जन-जीवन के विषय में कुछ जानेगे....... आगे पढें…
धर्मशाला के प्राकृतिक नजारों की तस्वीरें भी बनती थी ..
जवाब देंहटाएंहिमांचली गानों के रीति रिवाज़ देखने/पढने की उत्सुकता है!
चलिए, आगे बढि़ए, हमें गांवों की सैर की जल्दी पड़ी है.
जवाब देंहटाएंमस्त सैर...गाँव भी देखे जायेंगे अब आपके साथ...
जवाब देंहटाएंबोर्ड का स्लोगन बड़ा अच्छा लगा। लेकिन वास्तविक जिन्दगी में तो कहा जाता है कि डियर आई लाइक योर स्पीड। धर्मशाला में क्रिकेट का मैच देखा या नहीं? दलाईलामाजी से मिलिए, बड़ा ही अद्भुत व्यक्तित्व है। मैं एक बार उनसे मिल चुकी हूँ, बड़ा अच्छा लगा था।
जवाब देंहटाएंफोटो के साथ आपके यात्रा वृतांत जिवंत होते हैं ललित भाई ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंकृपया जिवंत को जीवंत पढ़ें....खेद सहित !
जवाब देंहटाएंहम भी चलेंगे साथ साथ अगली कड़ी मे
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृत्तांत
जवाब देंहटाएंकॉलेज के खुशनुमा दिन तो कभी भुलाए नहीं भूलते.
कदम दर कदम रिपोर्टिंग ..पाता नहीं ये टर्म ठीक है या नहीं .पर मुझे ऐसे ही लगी जैसे हम भी साथ साथ चल रहे हों.
जवाब देंहटाएंलगता है इस बार लम्बी यात्रा पर निकले हुए हो भाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विवरण ।
आपके बहाने हमने भी धर्मशाला के दर्शन कर लिये।
जवाब देंहटाएंदिलचस्प यात्रा-वृत्तांत....
जवाब देंहटाएंरिपोर्ट के साथ बहुत अच्छी जानकारी मिली ..
जवाब देंहटाएंमुझे आपके रिपोर्ताज बहुत अच्छे लगते हैं,लगता है जैसे मै भी आपके साथ ही घूम रहा हूँ.लाल किले का दबा छुपा इशारा भी आमंत्रित करता है ...
जवाब देंहटाएंमुझे आपके रिपोर्ताज बहुत अच्छे लगते हैं,लगता है जैसे मै भी आपके साथ ही घूम रहा हूँ.लाल किले का दबा छुपा इशारा भी आमंत्रित करता है ...
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