आरम्भ से पढ़ें हमारे गाँव में एक अखाड़ा था, नाग पंचमी को कुश्ती की प्रतियोगिता हुआ करती थी. चार आने से लेकर १० रुपये तक के इनाम हुआ करते थे. बच्चों को चार आने, आठ आने से १ रूपये तक के इनाम मिला करते थे. जब किसी को पछाड़ कर कुश्ती जीत जाते थे, तो चार आने का इनाम पाने की ख़ुशी का बयान करना मुश्किल हो जाता था. परिकल्पना सम्मान समारोह की तो बात ही कुछ और थी. गाँव से दिल्ली तक का सफ़र और साथ में सम्मान पुरस्कार भी, मित्रों से मिलने की ख़ुशी आनन्द ही कुछ और है. २९ अप्रेल को रायपुर प्रेस क्लब में सृजन गाथा सम्मान का आयोजन था. जिसमे दो ब्लोगर्स मुझे और राजकुमार सोनी को यह सम्मान लेना था. लेकिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की वजह से मैं इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सका. मैंने जय प्रकाश मानस जी को फोन पर उपस्थित न होने के कारन खेद व्यक्त किया.
हिंदी भवन में सम्मान समारोह प्रारंभ हो चूका था. प्रारंभ निर्मला कपिला जी से हुआ. लेकिन उन्हें प्रमाण पत्र काजल कुमार जी का दे दिया गया था. वे उसके बाद थोड़ी चिंतित दिखाई दी. उनका प्रमाण पत्र फिर मिल गया.मंच पर सम्मान ग्रहण करते नए-पुराने चेहरों ने ऐसी शमा बांधी कि आन्नद ही आ गया. खटीमा वाले परम मित्र शास्त्री जी ने मुझे बधाई दी, अच्छा लगा उनसे रूबरू होना. ब्लॉगर मित्रों से मिलन जारी रहा. आडोटोरियम के प्रवेश द्वार पर हिंदी निकेतन का स्टाल लगा हुआ था. जहाँ से ब्लॉगर्स को पुस्तकें दी जा रही थी और वहीँ पर पुस्तकों के लिए राशी भी जमा हो रही थी. मैंने और संगीता जी ने अपनी पुस्तकों की बुकिंग राशी जमा करायी और हाल के अन्दर आ गए.
काजल कुमार जी कब आये और कब गए पता ही चला, दुसरे दिन उनका व्यंग्य चित्र देख कर समझ आया कि वे भी मौजूद थे. पहले तो सिर्फ एक जाट ही मिला करता था, नीरज जाट जी, इब तो एक जाट देवता (संदीप पवार) और मिला. नीरज ने खोपड़ी सफाचट करवा रखी थी.कहने लगा कि इस पे सोलर प्लेट लगवानी है. पहाड़ों पर बिजली की समस्या होती है. मोबाइल और कैमरे की बैटरी चार्ज नहीं होती तो बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. सोलर प्लेट लगाने से बैटरी लगातार रिचार्ज होती रहेगी तो घुमने का आन्नद ही कुछ और होगा. यह पर्वतारोहियों और घुमतु लोगों के लिए एक बड़ी खोज है. जरुरत पड़ने पर इसकी एनर्जी से मेट्रो को भी चलाया जा सकता है. इस आइडिये को नीरज जाट को तुरंत पेटेंट करना चाहिए.अन्यथा अमेरिका पेटेंट करा सकता है. नहीं तो नूंए टापता रह ज्यागा.
भीतर हम चर्चा कर रहे थे, तभी खुशदीप भाई आये और मुझे बताया कि पुण्य प्रसून जी आ चुके हैं और बाहर गेट के पास हैं, चलिए उन्हें ले आते है.मैं,खुशदीप भाई, शाहनवाज सिद्धकी और संजीव तिवारी बाहर गेट पर आये. मैंने संजीव भाई से इस मौके की तश्वीर लेने कहा. पुण्य प्रसून जी दो नवोदित पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे. दोनों पत्रकार उनसे मिल कर बहुत ही उत्साहित थे. उन्होंने खुशदीप भाई को कहा कि समय का ध्यान नहीं रखा जा रहा है और मंच पर नेता जी को बैठा रखा है. खुशदीप भाई ने उन्हें भीतर आने का निवेदन किया. लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. संजीव भाई तश्वीर लेने की बजाय आस-पास कहीं चले गए. तभी रणधीर सिंह सुमन जी आ गए. उनसे चर्चा हुयी और हम लोग चौक तक चाय पीने चले गए. उसके पश्चात वहां पर क्या घटा मुझे पता नहीं.
इसके पश्चात् चाय का समय हो गया. जहाँ चाय का इंतजाम था वहां बहुत भीड़ हो गयी. हम इंतजार में खड़े रहे. जब भीड़ कम हुयी तो नाश्ता ख़त्म हो चूका था. संजय भास्कर ने एक चाय लाकर मुझे दी. गुरुदेव कहने लगे "बेरा होगे हे महाराज, इंहे-कहीं दू दू ठीक मार लेथन, फेर टैम नई मिलय." मैं मुस्कुरा कर रह गया. अब नाटक शुरू होने वाला था. सब आडोटोरियम में पहुँच चुके थे. नाटक शुरू हुआ, एक-एक दृश्य पर ब्लॉगर्स के कमेन्ट आ रहे थे. "बेहतरीन, उम्दा, आपके अभिनय हम कायल है, सुन्दर प्रस्तुति, वाह वाह, कमाल कर दिया." और हम सुन-सुन कर हँसे जा रहे थे. ब्लॉगर्स हैं वहां टिप्पणियों की कमी नहीं रहेगी. भरपूर मिलेगी. नाटक के कलाकारों को भी भरपूर टिप्पणी मिली और साधुवाद. नाटक बढ़िया था. मनोरंजन हुआ.
नाटक समाप्ति के बाद भोजन के लिए चल पड़े. वहां भी लाइन लगी थी. लाइन में लग कर भोजन करना बहुत ही तकलीफदेह हो जाता है मेरे लिए, इसलिए हम अन्दर ही बात करते रहे. संगीता जी, गिरीश दादा, पवन चन्दन जी, केवल राम चर्चाएँ चलती रही. गिरीश दादा संगीता जी से मिल कर अभिभूत हो गए और ताई आशीर्वाद दीजिये कह कर साष्टांग प्रणाम किया.हमने इस अवसर को कैमरे में कैद कर लिया. यहीं पर दिवेदी जी और संगीता जी की ज्योतिष चर्चा हुयी. फिर नीचे भोजन के लिए आ गए. लाइन कम हो गयी थी. हमें भी होटल तक जाना था. रात हो रही. ११ बजे के बाद ऑटो मिलने की भी संभावना नहीं थी. गिरीश दादा भी हमारे होटल में ही जाना चाहते थे.इसलिए उन्हें मिलाकर हम ६ हो गए.
चलते चलते एक फोटो और ली गयी. भोजन करके होटल चलने के लिए वहां साधन देखते रहे, तभी खबर मिली की पद्म सिंग हमें होटल तक हमें छोड़ने जा रहे हैं, संगीता जी भी भाई के साथ कार से आई थी. हमने उन्हें भी रोक लिया.सवारी अधिक थी इसलिए दो गाड़ियों की जरुरत थी. कनाट प्लेस के बाद बसंत रोड वाले चक्कर पर हम लोग घूम गए..पद्म सिंह एक तरफ निकल गए और हम एक तरफ मैट्रो के साथ हो लिए. रास्ते में संगीता जी ने बताया की भाई साहब ने नयी कार ली है और एक महीने पहले ही चलाना सीखा है. मान गए उनके हौसले को, दिल्ली की सड़कों पर गाड़ी चलाने के. पदम् सिंह भी इन्हें होटल पंहुचा आये थे. संगीता जी से विदा लेकर रात १२ बजे हम होटल पहुचे. सम्मान पत्र के साथ ५-५ किलो पुस्तकों का भी वजन था और उसे भी हमें ही उठाना था.
रात जब रूम में पहुचे तो गुरुदेव मुस्कुराये.२-२ हो गया था, चहरे पर मुस्कान कायम थी, आँखों की रौशनी बढ़ चुकी थी, अँधेरे में भी चंद्रकांता पढ़ रहे थे. कमाल की चीज है, सब मर्जों की एक दवाई...जहाँ दवा दुआ काम नहीं आई, वहां ये काम आई. इस तरह परिकल्पना उत्सव, हिंदी निकेतन, नुक्कड़ डोट कॉम की तरफ से हुए आयोजन के मूक दर्शक बने. मूक दर्शक इसलिए की परिकल्पना उत्सव के सहयोगियों का भी परिचय मंच से होना चाहिए था. कार्यक्रम गरिमामय रहा. ब्लॉग जगत के इतिहास में अभी तक तो कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं हुआ है.आडोटोरियम खचाखच भरा हुआ था. इसके लिए परिकल्पना ब्लॉग उत्सव, हिंदी निकेतन, नुक्कड़ डोट कॉम साधुवाद के पात्र है.ब्लोगोत्सव के पश्चात धडाधड प्रतिक्रियाने आने लगी, उत्तरी ध्रुव -दक्षिणी ध्रुव एक हो गए. अलबेला भाई की पोस्ट आ गयी. विरोध के स्वर भी मंडराने लगे.
खुशदीप भाई ने भी गुस्सिया कर एक पोस्ट लिख मारी. हम सोच में पड़ गए, ये क्या हो रहा है भाई, इतना शोर शराबा काहे मचा है? क्या करते हम, धीरज धर कर बैठे रहे. तुलसी आज्ञा से -"धीरज धर्म मीत अरु नारी, आपात काल बिचारिये चारी." छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड,महाराष्ट्र, से ब्लॉगर्स पहुचे थे. परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के माध्यम से हमें सभी ब्लॉगर्स से मिलने का मौका मिला और ऐसा कोई भी रसायन नहीं है जो सभी को संतुष्ट कर सके. हल्ले-गुल्ले से जाहिर होता है कि दिल्ली का ब्लॉग उत्सव सफल रहा. दिल्ली ब्लॉग उत्सव की सफलता पर चीयर्स करते हैं और मिलते हैं अगले ब्लॉगर मिलन में.. आपस में प्रेम करो, मेरे ब्लॉग प्रेमियों.... चीयर्स…। आगे पढें
दिल्ली ब्लॉग उत्सव की सफलता पर चीयर्स करते हैं और मिलते हैं अगले ब्लॉगर मिलन में.. आपस में प्रेम करो, मेरे ब्लॉग प्रेमियों.... चीयर्स
जवाब देंहटाएंआमीन .............
vaah lalit bhaai jivant chitran kar hm vnchit logogn ko is karykrm ki ser kra di shukriyaa or bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंललित भाई... इस ब्लोगर मीटिंग के हम भी हिस्सा थे
जवाब देंहटाएंअनजान थे ..परेशान थे ..और दूर सबसे खड़े
किसी कि नज़र गई ..क्यूकि हम तो किसी को जानते नहीं थे
बस रश्मि दीदी के आसरे गए थे ....पर आप सबको लोगो को देखा
हमने वहां .....
आभासी दुनिया के मित्रों को एक-साथ एक मंच पर लाना और आपस में विचारों का आदान-प्रदान ही इस उत्सव का लक्ष्य था, जिसमें हम सफल रहे यह कम संतोष की बात नहीं है मित्र !
जवाब देंहटाएंआपने तो अपनी प्रस्तुति से इसे जीवंत बना दिया, आभार !
यह जब हुआ पता नही, कका के पुरूस्कार मिल गए एहु पता नीं, बडा गडबड मामला हे लेकिन शुभकामना, बढिया वृतांत
जवाब देंहटाएंये ऐसा पहला मिलन था जहाँ काफ़ी संख्या मे ब्लोगर इकट्ठे हुये थे और एक दूसरे से रु0-ब-रु हुये थे …………ऐसे आयोजन होते रहने चाहिये ………यही आने वाले नये ब्लोगर के लिये एक पहचान बनेंगे और हमारी ब्लोग संस्कृति से उन्हे परिचित करायेंगे…………आपने अच्छी रिपोर्ट लगाई।
जवाब देंहटाएंहम तो वहां थे नहीं पर आपने अपनी प्रस्तुति से इसे जीवंत बना दिया..... बड़ा अच्छा लग रहा है सब पढ़कर और चित्रों के माध्यम से देखकर .... आभार
जवाब देंहटाएंललितजी धन्यवाद, आपने सचित्र सबकुछ कह दिया. उम्मीद है अगले आयोजन की जानकारी हमें भी उपलब्ध रहेंगी और हम भी उपस्थित हों सकेंगे !!!
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत और बेहतरीन वर्णन किया है ललित भाई ! आनंद आ गया ! हार्दिक शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंविस्तृत और रोचक रिपोर्ट ...
जवाब देंहटाएं"बेरा होगे हे महाराज, इंहे-कहीं दू दू ठीक मार लेथन, फेर टैम नई मिलय."
जवाब देंहटाएंकाश! ये पंक्तियां मैं अपने कानों से सुन पाता।
अब लगता है बहुत कुछ छूट गया वहां ना जा पाने से
सचमुच श्री अवधिया जी के दर्शनों से चूक जाना अब खल रहा है।
प्रणाम स्वीकार करें
जब ललित भाई घर बैठे सम्मेलन दिखा रहे है तो टिकट का पैसा कौन खर्चे
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना ब्लॉग उत्सव के माध्यम से हमें सभी ब्लॉगर्स से मिलने का मौका मिला और ऐसा कोई भी रसायन नहीं है जो सभी को संतुष्ट कर सके. हल्ले-गुल्ले से जाहिर होता है कि दिल्ली का ब्लॉग उत्सव सफल रहा. दिल्ली ब्लॉग उत्सव की सफलता पर चीयर्स करते हैं और मिलते हैं अगले ब्लॉगर मिलन में.. आपस में प्रेम करो, मेरे ब्लॉग प्रेमियों.... चीयर्स !!
जवाब देंहटाएंधांसू पोस्ट यानी हिन्दी ब्लॉगिंग के विरोधियों को घूंसा। आपने ऐसी उत्तम पोस्ट लिखी, सारे पुण्यकर्म आपके ही हिस्से आ गए हैं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन वर्णन किया है ललित जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया रोचक वर्णन है भईया.... जारी रहे.....
जवाब देंहटाएंसादर....
वक्त की पाबंदी पर नाज है हमें.
जवाब देंहटाएंबढिया वृतांत|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी, मिलते हैं अगले ब्लॉगर मिलन में
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन .....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंराम-राम ललित भाई,
जवाब देंहटाएंहर कोई चाहता है, आपस में मेल-मिलाप,
चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
करा लिया है पेटेण्ट।
जवाब देंहटाएंअब अमेरिकी भी गंजा होवेगा तो ग्यारह बार सोचेगा।
सोलर प्लेट का विचार पैटेन्ट करा लें।
जवाब देंहटाएंधांसू :)
जवाब देंहटाएंहमें भी साक्षी बना लिया आपने ,ब्लोगर मीट का .हम तो यहाँ केंटन (मिशगन )में बैठें हैं .जुलाई के अंत में दिल्ली आना होगा .सोलर प्लेट वाली बात बड़ी अच्छी लगी आपकी चुटकियाँ चुटकियों से ज्यादा थीं .
जवाब देंहटाएंयथार्थ यही है .
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहपूर्ण पोस्ट को पढते हुए यही कामना है सभी प्रेमपूर्वक रहें..
जवाब देंहटाएंमारे गए गुलफाम
जवाब देंहटाएंकहीं भी नहीं है
किसी भी
ब्लॉगर के साथ
चित्र हमारा।
चवन्नी छाप पहलवानी का ज़िक्र बढ़िया लगा...
जवाब देंहटाएंललित भाई मैंने गुस्सिया कर कोई पोस्ट नहीं लिख मारी थी सिर्फ भड़ास वाले यशवंत जी की पोस्ट का लिंक दिया था....
जय हिंद...
chai pani ke hisab kitab ke sath imandari se vivran diya hai aapne....chalchitra sa aankhon ke aage ghoom gaya....sadhuvad.
जवाब देंहटाएंपहुंचना तो हमें भी था … अब हमारा पुरस्कार/सम्मान-सामान और घोषित 'कुछ राशि' हमें डाक/ कुरीयर से मिलेंगे या …
नेट पर अनियमित होने से बहुत सारी तत्संबंधी पोस्ट्स भी नहीं पढ़ पाया हूं … :(
बहरहाल रोचक पोस्ट के लिए बधाई !
ललित जी आपके मोबाइल पर कॉल भी की थी , किसी और के पास है अब वे नंबर । बड़ी मेहरबानी , अपने नये नंबर बताएं
मेरे मोबाइल नं. हैं 09314682626
सम्मानित-पुरस्कृत होने परहार्दिक बधाई-शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ताऊ के साथ चियर्स ,क्या बात है ?
जवाब देंहटाएंमुझे ये समझ नही आता कि इतना घूम फिर लेने के बाद भी आप इतना लिख कैसे लेते हैं। एक एक चीज़ को इतनी तफ्सील से लिखा है। वहाँ सम्मान मिलने की खुशी नही आप सब से मिलने की खुशी थी। अच्छा लगा हाँ काजल कुमार जी के सम्मान का मुझे मिलना कुछ अव्यवस्था सी लगी। शुभकामनायें\
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