यात्रा के लिए बहुत सारी तैयारियां करनी पड़ती है. गर्मी के मौसम में सबसे पहले तो टिकिट की व्यवस्था करनी पड़ती है. इसकी व्यवस्था हो जाये तो फिर अन्य व्यवस्थाएं. टिकिट तो अल्पना जी ने पहले ही करवा ली थी. मुझे हिमाचल की और जाना था तो गर्म कपडे एवं पिट्ठू बैग भी रखना पड़ा. सुबह श्रीमती जी ने ३ बजे उठ कर खूब सारा खाना बना दिया, अतिरिक्त कपडे भी बैग में डाल दिए.हमारी ट्रेन रायपुर सुबह ७.४० पर थी. मैंने सुबह ६.३० को ही अल्पना जी को फोन लगा दिया, और रायपुर के लिए चल पड़ा, मेरा सोचना रहा है कि ट्रेन भले ही लेट हो जाये, पर सवारी को लेट नहीं होना चाहिए. हमारे साथी भी तैयार थे जाने के लिए. रायपुर से मुझे अल्पना जी एवं जी.के.अवधिया जी को गोंडवाना एक्सप्रेस की सवारी करनी थी. दुर्ग से बी.एस.पाबला एवं संजीव तिवारी जी को इसी ट्रेन में चढ़ना था.
मैं स्टेशन में गेट के सामने बैठ कर दिल्ली जाने वाली सवारियों का इंतिजार करने लगा. सबसे पहले अल्पना जी पहुची. मैंने उन्हें देख लिया था, लेकिन वे भी थोडा ढूंढे इसलिए चुप बैठ कर मजा लेने लगा. तभी वे चिंतित दिखाई दी तो मुझे सामने आना ही पड़ा. ट्रेन आ चुकी थी, मेरी निगाहें अवधिया जी को ढूंढ़ रही थी. उनकी भी सीट हमारी ही बोगी में थी. बोगी में पहुचने पर देखा तो अवधिया जी अपनी सीट संभाल चुके थे. सुबह घर से नास्ता करके नहीं चले थे. इसलिए रायपुर और भिलाई के बीच में नास्ता किया. तभी पाबला जी का फोन आ गया. मैंने बताया कि ट्रेन रायपुर से रवाना हो चुकी है.अब वे भी स्टेशन की और चल पड़ें. संजीव तिवारी जी से फोनिक चर्चा हुयी. उनकी ए.सी बोगी की टिकिट थी. उन्होंने बताया की पाबला जी की टिकिट कन्फर्म नहीं हुयी है. तो हमने अपनी सीटों पर स्थान बना दिया. दुर्ग स्टेशन पहुचने पर दिखाई नहीं दिए. ट्रेन चलने पर मैं फिर अपनी बोगी में वापस आ गया.
वादे के अनुसार राजनादगांव आने पर संजीव तिवारी जी इडली का नाश्ता लेकर आ गए. मैंने अवधिया जी को बुलाया और सबने इडली का नाश्ता किया. संजीव भाई ने कुछ फोटुएं ली. रायपुर से ३ बन्दर भी हमारे साथ थे. वे हर वे तिलमिला रहे थे.जब से ट्रेन में सिगरेट पीना बंद हुआ है.तब से ऐसे दृश्य अक्सर देखने मिल जाते हैं. वे बार-बार टॉयलेट की तरफ भाग रहे थे. पूछने पर पता चला की ट्रिपल आई (तीसरी आंख) का एक्जाम देने दिल्ली जा रहे हैं. उन्होंने एक बार भी पढाई के विषय में चर्चा नहीं की. कुल मिला कर माँ बाप की आँखों में धूल झोंक कर अपना भविष्य बर्बाद करने की राह पर थे. रात का जागरण होने के कारण मुझे नींद आ रही थी. मैंने दोपहर में एक झपकी ली और थोड़ी देर बाद नागपुर पहुँच गए. पर पाबला जी के दर्शनों का लाभ अभी तक नहीं मिल पाया था.
नागपुर में हमारे मयारू दाऊ जी एक्साईज सुपरिटेंडेंट सूर्यकांत गुप्ता जी पहुच चुके थे. नागपुर में ट्रेन का इंजन एवं मार्ग बदली होता है. इसका हमने भरपूर फायदा उठाया. दाऊ जी से काफी दिनों के बाद मुलाकात हुयी. पाबला जी ने मुलाकात के दृश्यों का वेब कास्ट किया. मोबाईल से बढ़िया चित्र आये. नागपुर में पानी लिया. मेडम ने अपनी पानी की बोतल घर से भर रखी थी और हम स्टेशन की पानी की बोतल से काम चला रहे थे. नागपुर से ट्रेन चलने पर हमने भोजन किया और मैंने फिर सोने की ठान ली. मेडम बंदरों का खेल देखती रही.बंदरों की उछल कूद जारी थी.
इटारसी पहुचने पर अंसारी साहब का फोन आया. वे खाना लाने को कह रहे थे. लेकिन हमारे पास खाना इतना सारा था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. शाम के नास्ते में बची हुयी इडलियों पर हाथ साफ़ किया. अवधिया जी की पूरी सब्जी एवं मेडम का थेपला ज्यों की त्यों रखा था. रात को भोजन में थेपला ही लिया.ए.सी. सवारियां अपने ठिकाने पर थी. भोपाल शहर का पानी मटमैला है. इसलिए पीने की इच्छा नहीं होती. पहले जब हमारी राजधानी भोपाल थी. तब यहाँ आना-जाना लगा रहता था. लोग पान के साथ चूना अधिक खाते हैं. यहाँ के पानी में कैल्सियम की कमी बताई जाती है. भोपाल शहर के साथ बहुत सी पुरानी यादें जुडी हैं. यहाँ से बीना तक हमने भोजन किया और बीना स्टेशन पर पहुचने पर मित्रों ने आतिशबाजी शुरू कर दी. उनका यह अंदाज पसंद आया. यहाँ प्लेटफार्म पर कूछ देर पैदल मार्च भी किया. यहीं पर मैंने कादम्बनी का वह अंक ख़रीदा जिसमे पियूष पांडे ने एक लेख में वेब कास्टिंग का जिक्र किया है. अब रात के ११ बज रहे थे. सोने का समय था.बन्दर अभी तक उछल कूद में ही लगे थे.
सुबह मथुरा के आस-पास आँख खुली. ७.१० पे अलवर जाने वाली पेसेंजर खड़ी थी. एक बार तो मन में आया कि यही से उतर कर गोविन्दगढ़, अलवर,खैरथल, जिन्दोली ओर चला जाये. जाना हमें दिल्ली था. कार्यक्रम के पश्चात् तो कहीं की भी यात्रा बन सकती है. बन्दर गांजे की सिगरेट के चक्कर में लगे हुए थे. मेडम उनींदी थी, बंदरों की उछल-कूद ने उन्हें सोने नहीं दिया. सुबह सोने का यत्न करने लगी. अब दिल्ली पहुचने का समय हो गया था. एक बन्दर ने अलग-अलग रंग की चप्पले पहन रखी थी. शायद के चप्पल खलमाडी को भेंट चढ़ा आया था और खालिस्थान की पूर्ति मंदिर से कर ली थी. अंतत: ट्रेन निजामुद्दीन ८ बजे पहुच गयी. पाबला जी से मुलाकात यही हुयी.स्टेशन पहुचने पर अविनाश जी को फ़ोन लगाया गया. उन्होंने रुकने के स्थान का पता दिया. पाबला जी ने पूछा कि वहां ए.सी है कि नहीं? अविनाश जी ने अनभिज्ञता जाहिर की. संजीव तिवारी जी ने बताया कि सुनीता शानू जी का फोन आया था ओर उन्होंने अपने घर रुकने का इंतजाम कर रखा है. फिर हमने तय किया कि पहाड़ गंज के होटल में आश्रय लिया जाये. वहीँ से स्नानादि करके आगे का कार्यक्रम बनाया जाये.
होटल पहुचने पर कमरे बुक कराये गए. आज कल होटलों में एड्रेस प्रूफ देना पड़ता है. दिल्ली में आतंकी घटनाओं के बाद पुलिस ने अनिवार्य कर दिया है. जब मैंने अपने एड्रेस प्रूफ के लिए बैग की तलाशी ली तो मेरा एटीएम्, ड्राइविंग लायसेंस, आई कार्ड कुछ भी नहीं मिला. यहीं से खोपड़ी ख़राब हो गयी. यह सब बैग बदलने के चक्कर में घर पर ही भूल आया था. वैसे विजिटिंग कार्ड पड़े थे. होटल वाले ने उसी से काम चला लिया. लेकिन मेरी आगे हिमाचल में मोटर सायकिल से यात्रा करने के मंसूबों का खून होते नजर आ रहा था. मेरी मेल में उनकी स्केन कापी पड़ी थी. लेकिन उसे प्रिंट करके हुबहू बनाने वाला भी चाहिए था. लेकिन कोई उचित माध्यम नहीं मिल पा रहा था इस काम के लिए, मैंने पहले तो स्केन कापी ढूँढना चाहा. मेल बॉक्स भरा पड़ा था. सर्च करके देखने पर भी वह मेल पकड़ में नहीं आ रही थी. सब अपने-अपने रूम में पहुच चुके थे ओर मै मेल बाक्स से माथा-फ़ोड़ी कर रहा था........ आगे पढ़ें
रोचक !
जवाब देंहटाएंयात्रा में बंदर, वो भी तीन-तीन साथ हों तो सरकस का मजा मुफ्त में. अनूठी मुरकियों वाली शानदार यात्रा.
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतांत चल रहा है...पता ही नहीं चला कि पाबला जी आखिर मिले कब???
जवाब देंहटाएंआगे जारी रहिये.
रोचक यात्रा वृतांत और ये यात्रा शायद दिल्ली के हिंदी भवन के ब्लोगर सम्मलेन में भाग लेने के वक्त की है...
जवाब देंहटाएंधमाकेदार शुरुआत बंदरों के साथ ....!
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंबंदरो को फ़ोटो भी होते तो सजीव चित्रण हो जाता
जवाब देंहटाएं@Arunesh c dave
जवाब देंहटाएंMitra bandaron kii foto lagi hai. jo insano ko dikhai nahi deti :)
इतनी तीव्रगति से जीवन चल रहा हो तो और आनन्द क्यों ढूढ़ा जाये।
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंyatra vrittaant ati sundar. baaki photo rah gaya kya andar?
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा वृतान्त !
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक...आगे से बैग बदले तो कागजात,कार्ड वगैरह जरूर देख लें....
जवाब देंहटाएंrochak yatra snsmaran..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंआपका भी जबाब नहीं .रोचक वृतांत.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही ट्रेन की बंदर गाथा
जवाब देंहटाएंलेकिन मेल बॉक्स में था आपका माथा
अब क्यों बताएँ कि आगे कैसे हुई गुरूजी से ठा-ठा
रायपुर वाले दिल्ली में छा गए । सुन्दर यात्रा वर्णन ।
जवाब देंहटाएंगर्मी के मौसम में सबसे पहले तो टिकिट की व्यवस्था करनी पड़ती है??? तो क्या अन्य मोसम मे टिकट के बिना ही सफ़र करते हे? या मुफ़त मे मिलती हे:)
जवाब देंहटाएंबाकी यात्रा विवरण बहुत सुंदर लगा, धन्यवाद
रोचक यात्रा वृतांत.....
जवाब देंहटाएंखूब घूमते हो ललित भाई , जलन होती है यार ....
जवाब देंहटाएंमज़े करो ....शुभकामनायें !
क्या बात है शर्माजी आखिरी बार ममता जी कि रेल का आनंद ले लीजिये आगे कि कौन जनता है| जबरदस्त यात्रा वृतांत ....
जवाब देंहटाएंरोचक सफ़र में...उछल कूद मचाते बन्दर...घर का पका भोजन.. रेल का मज़ेदार सफ़र... पता नहीं कब हमें ऐसा सफ़र करने का मौका मिलेगा...
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