संजीव तिवारी जी |
आरम्भ से पढ़ें
रूम में पहुचने पर अवधिया जी स्नान में लगे थे और संजीव भाई फोन पर.... सुनीता जी का फोन आ रहा था कि "आप लोग तैयार रहिये.मैं लेने आ रही हूँ". पवन जी भी फोन पर संपर्क में बने हुए थे. गिरीश दादा एयर पोर्ट पर इंतजार कर रहे थे कि कोई लेने आएगा... मैंने उन्हें कहा कि टेक्सी पकडिये और चले आइये. उन्होंने कहा कि महफूज अली ने कहा है कि वे सीधे एयर पोर्ट आयेगे. इधर महफूज ने फोन पर बताया कि उनकी गाड़ी लेट चल रही है. अभी आनंद बिहार में खड़ी है. मैंने गिरीश बुलेरो जी को कहा कि किसी का इंतजार न करें और सीधे चले आयें. नहीं तो एअरपोर्ट पर ही रह जायेंगे.
रूम में पहुचने पर अवधिया जी स्नान में लगे थे और संजीव भाई फोन पर.... सुनीता जी का फोन आ रहा था कि "आप लोग तैयार रहिये.मैं लेने आ रही हूँ". पवन जी भी फोन पर संपर्क में बने हुए थे. गिरीश दादा एयर पोर्ट पर इंतजार कर रहे थे कि कोई लेने आएगा... मैंने उन्हें कहा कि टेक्सी पकडिये और चले आइये. उन्होंने कहा कि महफूज अली ने कहा है कि वे सीधे एयर पोर्ट आयेगे. इधर महफूज ने फोन पर बताया कि उनकी गाड़ी लेट चल रही है. अभी आनंद बिहार में खड़ी है. मैंने गिरीश बुलेरो जी को कहा कि किसी का इंतजार न करें और सीधे चले आयें. नहीं तो एअरपोर्ट पर ही रह जायेंगे.
गर्म हवा |
इधर कमरे में लगा ए.सी. काम नहीं कर रहा था. पंखे से भी गर्म हवा आ रही थी. पाबला एवं मेडम के भी कमरे का यही हाल था. शिकायत करने पर होटल का एक कर्मचारी आया और उसने ए.सी में पानी डाला. अवधिया जी को उसने कहा-"अब ठंडा हो जायेगा सर. थोडा इंतजार करें और कमरे का दरवाजा बंद कर लें. थोड़ी देर ठंडी हवा आई और फिर ए.सी बंद हो गया. वो तो हमने एक मित्र को वचन दे दिया था कि अन्दर का ए.सी. नहीं चलाएंगे, वर्ना ८००/- देने की बजे १००/- में ही सब ठंडा हो जाता कूल-कूल, फिर चाहे पीपल के नीचे ही सो जाओ. ताजगी का अहसास ही रहता. आखिर हमने कमरा बदल दिया. लेकिन हाल वही रहा.
दोनों -पाण्डे |
इधर खुशदीप भाई और सतीश जी का फोन आ गया, वे हमारा लोकेशन ले रहे थे. दिनेश राय दिवेदी जी, खुशदीप भाई, सतीश सक्सेना जी, और शाहनवाज़ जी हमारे होटल पहुच गए. पाबला जी से हाथ मिलाना मतलब अपना हाथ जान बूझ कर शिकंजे में देना है और जो एक बार हाथ मिला लेता है. फिर दूर से ही राम राम कर लेता है. हम ठहरे अनाड़ी भुलक्कड बार-बार शिकंजे में हाथ दे देते है. मेरे दिमाग में यही था कि वे जान बुझ कर हाथ हो कस के दबाते हैं. तो क्या सभी के साथ यही करते हैं? जरा आजमा लिया जाये. सुनीता जी पहुची तो मैंने चुपचाप उन्हें पाबला जी से हाथ मिलाने कहा. जब उन्होंने पाबला जी कि ओर हाथ बढाया तो पाबला जी ने हाथ गीला है कह कर उल्टा कर दिया. मेरी परिक्षण करने की योजना धरी-धरी रह गयी.
तख्ते ताउस पर सीनियर ब्लॉगर |
जब रायपुर से चले थे तो अल्पना जी ने दिल्ली के एक-दो काम बताये थे. उन्हें चावडी बाजार कुछ खरीदना था. मैंने सोचा कि रविवार को दिन भर का समय है. खरीद लेगे. आज ब्लॉगर्स से ही मिल भेंट लिया जाये. सभी दूर-दूर से आये हैं. सुनीता जी के साथ उनके रथ में चल पड़े घर की ओर हमारे साथ दिल्ली वाले साथी भी थे. घर पहुच कर सभी से मिले. नाश्ते का उम्दा इंतजाम था और मेजबान भी मेहमानों की खातिरदारी में मुस्तैद. समोसे, कचौरी, मिठाइयाँ, और ढोकले भी थे. ये तो शाहनवाज जी की पोस्ट देखने से पता चलेगा. प्लेट की फोटो उन्होंने ही ली थी. अल्पना जी ने सुनीता जी से अपने सामान के बारे में बताया तो पता चला कि चावडी बाजार रविवार को बंद रहेगा. ब्लॉगर धमा-चौकड़ी में ३ बज चुके थे. हिंदी भवन का कार्यक्रम ३बजे शुरू होना था.इसलिए मज़बूरीवश काम कल पर टाल दिया और सभी चल दिए हिंदी भवन की ओर....
चर्चा जारी है |
रस्ते में गाड़ी का ड्राईवर रविन्द्र भवन की ओर चला गया. इधर गाड़ी में ड्राईवर एक था और नेविगेटर दो थे. पाबला जी सामने की सीट पर बैठ कर मोबाइल पर रास्ता ढूंढ़ रहे थे और इधर संजीव तिवारी भी मोबाइल पर रास्ता बता रहे थे. दोनों के कॉम्पटीशन में ड्राईवर चकरा गया. इधर-उधर चक्कर काटते-काटते . सुनीता जी कह रही थी अल्पना जी को "आप भी पाण्डे और मैं भी पाण्डे, इस लिहाज से दोनों बहन ही हुयी. हम बैक सीटर बने हुए पण्डे की तरह दोनों जजमानो का मुंह ताक रहे थे. काफी रस्सा कसी के बाद आखिर हम हिंदी भवन पहुच ही गए. सुनीता जी की दार्जलिंग की चाय का असर कुछ कम होने लगा था. हिंदी भवन के बाहर बेनर लगा हुआ था. अर्थात हम सही जगह पर थे. अन्दर पहुचने पर हाल भर चूका था. ई पंडित जी का प्रवचन चल रहा. बिना पंडित के प्रवचन के कोई भी शुभ काम नहीं होता हमारे देश में. अग्रे अग्रे ब्राह्मणा:
ओ तेरे क्या कहने - दूर दृष्टि |
हमने पांचवी छटवी पंक्ति की सीट संभाली, आगे सीटों पे आरक्षित का बोर्ड लगा था. फिर पहले आओ और पहले पाओ वाला सिस्टम सब जगह लागु है. संगीता स्वरूप जी एवं स्वरूप जी से राम-राम हुयी और हम भी उसी पंक्ति में जम गए केवल राम के साथ. तभी रतन सिंग जी भी आ गए. उनसे मैंने उबंटू की सीडी मंगाई थी और वे वादे के अनुसार लाये भी थे. स्टेज पर रविन्द्र जी झमाझम शेरवानी जैसे कुरते पैजामे में बारात के दुल्हे की तरह जाँच रहे थे. अविनाश जी काम के बोझ के तले दबे थे. कार्यक्रम बड़ा था, बोझ तो होना ही था और इतने सारे ब्लॉगर इकट्ठे कर लेना और उनके आगामी वारों को झेलने के लिए तैयार रहना कोई मामूली बात नहीं है. राजीव तनेजा जी तो बाहर ही मिल गए थे. मुस्कुराता हुआ दमकता चेहरा कोई कैसे भूल सकता है. एम.एम. वर्मा जी से भी एक वर्ष में मुलाकात हुयी.पवन चन्दन जी आरक्षित सीट पर विराजमान थे.
एक पंक्ति में तीन देवियाँ संजू भाभी, संगीता पुरी जी, बंदना जी, विराजमान थी. सभी से नमस्ते हुयी. मैंने एक चक्कर लगा कर सभी से मिलने की कोशिश की. थोड़ी देर में गोलियों के सौदागर लव बाय महफूज भी पहुच गए . महफूज मेरे पास ही आकर बैठ गए. सामने खुशदीप भाई, निर्मला जी विराजमान थे. पीछे पाबला जी और अजय झा जी. सामने कुछ धुरंधर ब्लॉगर भी थे. गिरीश दादा और पद्म सिंह बम बजर पर लगे हुए थे. इन सब ब्लॉगर्स को ही पहचानते थे. बाकि तो प्रायोजकों को तो हमने पहचाना नहीं था.मुख्यमंत्री के आने में कुछ विलम्ब था. इसलिए मंच से घोषणाएं चल रही थी. थोड़ी देर में सुगबुगाहट हुयी तो समझ गए की मुख्यमंत्री जी पहुच रहे है. उनके आते ही पावर पॉइंट प्रजेंटेशन शुरू हुआ. तब यही लगा कि कार्यक्रम ब्लॉगर्स का न होकर प्रकाशन का है. लेकिन थोड़ी ही देर में धुंध छंट गयी और कार्यक्रम ब्लॉगर्स के हाथ में पहुँच गया.सभी के साथ हमने भी तसल्ली की गहरी साँस ली.
आसंदी पर मुख्यमंत्री के साथ प्रख्यात कवि अशोक चक्रधर, श्री रामदरश मिश्र जी, श्री प्रभाकर श्रोत्रिय जी, गिरिराज शरण अग्रवाल जी एवं दो अन्य महानुभाव शोभायमान थे. कार्यक्रम दो घंटे विलम्ब से प्रारंभ हुआ. कुछ पुस्तकों का धडाधड विमोचन हुआ. इसके पश्चात सम्मान होने लगे. ब्लॉगर आपस में चर्चिया रहे थे. मिलन होने पर एक दुसरे से रु-ब-रु हो रहे थे. जय कुमार झा जी से पुन: भेंट हुयी. कुछ भी हो अपने मिशन के पक्के हैं. उनके जज्बे को सलाम है..
खुशदीप सहगल, मोहिंदर कुमार जी |
जब मैं पीछे की और गया तो डॉ.दराल भाई साहब नज़र आये. उनसे आशीर्वाद लिया. प्रसन्न मुदित मन से उन्होंने गले लगा लिया. एक चित्र भी राजीव भाई ने लिया. बलबीर पुंज हरियाणा वाले और ई पंडित जमुना नगर, दीपक बाबा, राजीव कुमार जी, अरुण राय जी से पहली बार मुलाकात हुयी. मेरे सामने खुशदीप भाई के साथ बैठे एक ब्लॉगर को पहचानने की कोशिश करता रहा, लेकिन नाम याद नहीं आया, वे मुड़ कर पीछे देखते थे, लेकिन हम दोनों में से किसी ने परिचय करने की जहमत नहीं उठाई. खुशदीप भाई ने भी परिचय नहीं कराया. घर आ कर याद आया की मोहिंदर कुमार जी थे :). इनसे मेरी कई बार बात भी हो चुकी थी. क्या करें? फ्लाईट की सवारियों का यही हाल होता है........... आगे पढें…
समझ में आ रहा है कि सब रस कहने में है.
जवाब देंहटाएंब्लॉगर सम्मलेन की एक अलग तरह की रिपोर्ट ..!
जवाब देंहटाएंवाह ललित भाई ये तो दुबारा आपने हिंदी भवन में ही पहुंचा दिया इस पोस्ट के जरिये ....रही हमारे मिशन की बात तो हम एक प्रयास कर रहें हैं ललित भाई और इसमें सफलता हर ब्लोगर के हार्दिक सहयोग और सहायता से ही मिलेगी ..मैं तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ की ब्लॉग मिडिया इन्भेसटीगेसन और सामाजिक जाँच का जरिया बनेगा और ब्लोगरों से भ्रष्ट DM ,SSP ,जज या अन्य सरकारी अधिकारी खौफ खायेंगे और भ्रष्टाचार छोड़ने पे मजबूर होंगे तथा ब्लोगरों के रिपोर्ट पर न्याय संगत व तर्कसंगत कार्यवाही हर हाल में करने को मजबूर होंगे...यही हमारा लक्ष्य है..देखिये इस विषय पर कई ब्लोगरों से चर्चा चल रही है दिल्ली में एक चौबीसों घंटे चलने वाले केंद्र की स्थापना के सम्बन्ध में....अब कामयाबी मिलेगी या नहीं ये तो समय बताएगा...
जवाब देंहटाएंवाह!! लग रहा है कि हम वहीं हैं...बहुत जिंदा वृतांत!!
जवाब देंहटाएंरोचक वृत्तांत..
जवाब देंहटाएंचलिये कम से कम आप पुरूस्कार न पाने वाले ब्लागरो को हाल तो बता रहें है
जवाब देंहटाएंपढ़ते-पढ़ते वहीँ होने का एहसास हो रहा था... एक-दुसरे से मिलकर सभी कितने खुश थे...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रिपोर्ट ललित भाई....
इन संस्मरणों का मज़ा कुछ ऐसा है-
जवाब देंहटाएंसरकती जाए है रुख से नकाब,
आहिस्ता, आहिस्ता...
जय हिंद...
अब पुरानी कड़ियाँ जोड़कर पूरा क्रम समझ में आ रहा है।
जवाब देंहटाएंएकदम से सजीव चित्रण .. पढते हुए एक बार फिर से वहीं पहुंच गए .. सचमुच सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा!!
जवाब देंहटाएंसही मायनों में बतरस का आनन्द यही है ।
जवाब देंहटाएंबडी देर की मेहरबाँ आते आते…………अगले साल तक भी आती तो कौन सा देर हो जाती।
जवाब देंहटाएंवाह ललित भैया !
जवाब देंहटाएंसब यादें ताज़ा करा दीं हार्दिक शुभकामनायें आपको !
हम ठहरे अनाड़ी भुलक्कड बार-बार शिकंजे में हाथ दे देते है.
जवाब देंहटाएंशिकंजे के बजाए शिकंजी में हाथ डालिए....
अब बात सीधी सब समझ में आई. बहुत देर से लिखी आपने पोस्ट.खैर कोई बात नहीं पर रिपोर्ट एकदम आँखों देखा हाल लगी. बहुत शुक्रिया हमें दिल्ली भवन की सैर कराने का.
जवाब देंहटाएंजी
जवाब देंहटाएंये बात है
बात की ही तो सब करामात है ललित भाई
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण । पाबला जी का हाथ --- हा हा हा ! शायद पांच किलो का है । लेकिन मिलाने में तो अच्छा ही लगा ।
जवाब देंहटाएंरोचक.... जमी रहे महफ़िल यारों की...
जवाब देंहटाएंसादर...
रोचक वृत्तांत|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंहर बात सिलसिलेवार होती है आपकी पोस्ट में ... आपसे मुलाकत अच्छी रही ... बहुत से लोगों से मिलना नहीं हो पाया इसका अफ़सोस रहेगा .. रोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रिपोर्ट जी, ओर सुंदर चित्रो के संग, मजा आ गया, बस दिल मे एक मलाल रह गया कि हम वहां नही थे, वैसे सम्मेलन का इतना मजा नही आता जितना आप सब से मिल कर आता.... कोई गल नही जिन्दगी रही तो मुलाकते तो होती रहेगी.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही जीवंत रिपोर्ट है । पढकर लगा हम भी भागीदारी कर रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंसम्मेलन की सैर कराने के लिये साधुवाद ।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ ब्लॉगर और वरिष्ठ खेल पत्रकार राजकुमार ग्वालानी जी भी अगर आप लोगों की टीम में होते तो हमको लगता है कि आपकी यात्रा का मज़ा दोगुना हो जाता। साथ ही पाठकों को भी ज़्यादा आनंद आता। आपने तो पोस्ट लिखने में इतना वक्त लगा दिया वो तो अब तक 50 पोस्ट लगा चुके होते। तो अगली बार पाठकों का भी ध्यान रखियेगा और राजकुमार ग्वालानी जी को साथ लेकर चलियेगा।
जवाब देंहटाएंसबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा!!
जवाब देंहटाएंललित जी आशा है भविष्य में मिलते ही हम एक दूसरे को पहचान जायेंगे. बढिया रिपोर्ट के लिये आभार
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