राजीव तनेजा से साभार |
बाबा पिट गए, अन्ना लिपट गए, भीड़ पीछे चल पड़ी, साथ-साथ हम भी चल पड़े हैं टोपी लगाकर। नहीं जाएगें तो लोग समझेगें कि हम भ्रष्ट्राचार का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए "जैसी बहे बयार,पुनि पीठ तैसी कीजै"। राम लीला मैदान में ऐतिहासिक लीला जारी है। लोग अपनी उपस्थिति देने पहुच रहे हैं..गाँव-गाँव तक मीडिया ने अन्ना की आवाज पहुंचा दी और भ्रष्ट्राचार से त्रस्त आम जनता सड़कों पर आ गयी। मीडिया ने मुद्दा लपक लिया, अन्ना के बहाने टी आर पी लेने के लिए। भ्रष्ट्राचार से त्रस्त लोगों का एक जन सैलाब उमड़ा, बरसाती नदी की तरह, जनता की भावनाएं उठान पर हैं,सरकार ने अनशन की अनुमति दे दी। हम भी घर बैठे समर्थन दे रहे हैं एक दिनी उपवास रख कर। वैसे भी हमारे समर्थन की कोई कीमत नहीं. कीमत उनके समर्थन की है जो नामी गिरामी हैं, जो हमेशा लाईम लाईट में रहना जानते हैं। मीडिया, ब्लॉग, फेसबुक पर बस यही मुद्दा छा रहा है. भ्रष्ट्राचार का खत्म करने के आन्दोलन का आगाज हो चुका है। अब जनमानस में सिर्फ एक यही बात है कि क्या लोकपाल बिल के पास होने से भ्रष्ट्राचार ख़त्म हो जायेगा?
आज अन्ना के इर्द-गिर्द एनजीओ के लोग दिखाई दे रहे हैं। एनजीओ के काम को देश की जनता जानती है। विदेशों से प्राप्त सहायता से लेकर सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं से धन प्राप्त कर अपना एनजीओ चला रहे हैं। फ़टा पुराना कुरता पहने अंग्रजी बोल कर गरीबों को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले ये लोग गरीबी मिटाने की बात कर अपनी अमीरी बढाते हैं और हवाई जहाज से कम यात्रा नहीं करते। क्या इन्होने कभी भ्रष्ट्राचार नहीं किया? सभी जानते हैं कि एक प्रोजेक्ट पास कराने के लिए कितनी राशि की बंदरबांट करनी पड़ती है तब कहीं जाकर कोई काम मिलता है। जब कोई भ्रष्ट्राचार में लिप्त व्यक्ति ईमानदारी का परचम उठाए तो उसे जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति को नीयत पर संदेह होता जाता है। अनजाने में ही अन्ना इनकी ढाल बने हुए हैं।
इस आन्दोलन से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि देश की जनता भ्रष्ट्राचार से आजिज आ चुकी है। भ्रष्ट्राचार सभी हदें पार कर चुका है। ऐसा नहीं है कि सभी लोग भ्रष्ट हैं, कुछ अपना कार्य ईमानदारी से करना चाहते हैं पर वर्तमान हालात यह हैं कि यदि कोई ईमानदारी से काम करना चाहता है तो उसे प्रताड़ित कर किनारे लगा दिया जाता है। उसकी हत्या कर दी जाती है। भ्रष्ट्राचार कैंसर की भांति देश की रग रग में समा गया है। यही प्रमुख कारण है कि अन्ना के भ्रष्ट्राचार विरोधी आन्दोलन को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है और लोग सड़कों पर उतर कर समर्थन दे रहे हैं। अन्ना ही खुद कह रहे हैं कि भ्रष्ट्राचार का 100% निवारण नही तो 65% ही सही, कुछ तो कम होगा। नहीं मामा से काना मामा ठीक है। आज जरुरत है व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की।
इस समय मुझे श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास रागदरबारी के एक पात्र लंगड़दीन की याद आती है. जो तहसील के बाबु को २ रुपये नहीं देता है और उसकी अर्जी हर बार ख़ारिज हो जाती है. उपन्यास के अंत तक लंगड़दीन के जमीन के सीमांकन की अर्जी स्वीकृत नहीं हो पाती। सवाल सिर्फ दो रुपये का है. पता नहीं इस व्यवस्था ने कितने ही लोगों को लंगड़दीन बना रखा है. इस तरह के लंगड़दीन तहसील, थाना, कोर्ट कचहरी, में मिलते ही रहते हैं. ये सच है कि बिना सेवा शुल्क दिए कोई भी काम किसी भी दफ्तर में संभव नहीं है. अब तो लोगों की मानसिकता यह बन गयी है कि बिना कहे ही नजराना पेश कर देते हैं. डर है कि अगर नहीं दिए-लिए तो काम नहीं होगा.
घर के मुखिया की फौत के बाद उत्तराधिकारी को नामांतरण करना पड़ता है. जमीन जायदाद उनकी है लेकिन नामातरण के लिए के भेंट पटवारी, बाबु तहसीलदार तक पहचानी ही पड़ेगी. एक मित्र ने मुझे मजाक में ही कहा था " फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल तक २० बरस घुमती हैं, उसके साथ अर्जी दाता भी घूमता है फिर फाइल गायब हो जाती है" यही सच है. अगर फाइल पर वजन न हो तो एक जीवन पूरा लग जाता है दीवानगी में. देर-सबेर नित्य ही लोगों को इससे सामना करना ही पड़ता है. ट्रेन में बर्थ के लिए टी.टी. खुले आम घुस लेता है. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचा हो जिसने इनको बिना कुछ दिए सीट या बर्थ पाई हो. बड़े बड़े तुर्रम खां को भी इनके आगे गिडगिडाना पड़ता है. सारी भ्रष्ट्राचार विरोधी भावना एवं नैतिकता धरी की धरी रह जाती है.
भ्रष्ट्राचार वह उल्टा वृक्ष है, जिसकी जड़ें आसमान में है, और हम जमीन खड़े होकर उसकी डालियों एवं शाखाओं को ही काटने की कोशिश करते है. जिसका परिणाम यह होता है कि वह और भी तेजी से बढती है. इसे ख़त्म करना है तो जड़ में ही मठा डालना पड़ेगा। वक्त आ गया है देश के मतदाता को जागना होगा। अपने मतदान से बिना किसी प्रलोभन के ईमानदार सद्चरित्र व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुनें। अगर हम रिश्वत नहीं देगें तो लेना वाला कहाँ से लेगा, काम तो देर सबेर होगा ही। हमें भी प्रण करना चाहिए कि भ्रष्ट्राचरण को बढावा नहीं देगें। किसी पर दोष मढने की बजाए स्वयं को सुधारना आवश्यक है। कहते हैं कि भूत प्राण नहीं लेता पर हलाकान करता है और जब हम भूत के पीछे लठ लेकर पड़ जाते हैं तो वह भाग खड़ा होता है।
पता नहीं कितने लोगों ने आज तक भ्रष्ट्राचार पर लिख कर कलम घिसी होगी. कितने ही लोगों ने भ्रष्ट्राचारियों की शिकायत की होगी. आकंठ तक भ्रष्ट्राचार में डूबे हुए लोगों के कानो पर जूं नहीं रेंगती.नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है? व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, एवं लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाने वाला मिडिया भी इससे अछूता नहीं है, नीरा राडिया और बरखा दत्त प्रकरण जग जाहिर है। भ्रष्ट्राचार का बोलबाला और सच्चे का मुंह काला.
देश के युवाओं के उठ खड़े होने से कु्छ हालात बदलने की आहट सुनाई देती है, किसी ने कहा है कि एक व्यक्ति को कुछ दिनों तक बेवकूफ़ बना सकते हैं, कुछ सौ लोगों को कु्छ हफ़्ते महीनों तक, लेकिन सभी लोगों को हमेशा बेवकूफ़ नहीं बनाया जा सकता। आजादी से लेकर आज तक बेवकूफ़ बनने वाले लोग उठ खड़े हुए हैं इसी आशा में कि कुशासन, सुशासन में बदलेगा। देश को लूटने वाले भ्रष्ट्राचारियों का मुंह काला होगा, उनको सजा मिलेगी। कभी तो नया सबेरा आएगा। मै भी अन्ना, तू भी अन्ना, सारा देश है अन्ना।
समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं .....शुरुआत तो हो.... बाकि तो समय ही बताएगा
जवाब देंहटाएंहर जगह अन्ना ही अन्ना है, आपने तो लोगों की दुखती रग पर हाथ रख दिया है।
जवाब देंहटाएंशुरुआत होनी चाहिए... अंजाम भी सामने आएगा
जवाब देंहटाएंअन्ना बनने की तमन्ना है आपको .
जवाब देंहटाएं"वक्त आ गया है देश के मतदाता को जागना होगा। अपने मतदान से बिना किसी प्रलोभन के ईमानदार सद्चरित्र व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुनें। अगर हम रिश्वत नहीं देगें तो लेना वाला कहाँ से लेगा, काम तो देर सबेर होगा ही।"
जवाब देंहटाएंइन पंक्तियों पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है ..और अगर समय रहते इन पर विचार किया होता तो आज यह हालात पैदा नहीं होते ....!
समाज जागृत हो रहा है, उसे भ्रष्टाचार का मर्म समझ आएगा। कानून पुख्ता हों और जनता यह सोच ले कि हम स्वयं रिश्वत ना देंगे और ना लेंगे तो बहुत सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं।
जवाब देंहटाएंबात तो पते की हैं ..कल अन्ना ने कहा की ' बहने जागरूक हो और अपने घर में आई हुई एक भी एक्स्ट्रा काली कमाई को स्वीकार न करे ' मेरा भी यही मत हैं ? कुछ तो भ्रष्टाचार कम होगा !
जवाब देंहटाएंलेंन -देंन प्रक्रिया जब तक बंद नही होगी ..भ्रष्टाचार उन्मूलन होना संभव ही नही हें ...
समस्या पुरानी है , जिम्मेदार हम सब सुविधाभोगी , मगर जब जागो तभी सवेरा !
जवाब देंहटाएंखुद को सुधारने के साथ दूसरो को भी सुधारना जरुरी है अब तक तो सो रहे थे इसलिए अब काम दुगना और दो तरफ़ा भी हमें ही करना होगा |
जवाब देंहटाएंतु भी अन्ना ..
जवाब देंहटाएंमैं अन्ना..
मोहल्ला अन्ना..
गाँव अन्ना..
जिला अन्ना..
राज्य अन्ना...
अब देश अन्ना..
सरकार सोच सोच परेशान.
क्या करें अब - यूँ तनहा..
बहुत सही लिखा है आपने...
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार से मिली पीड़ा आज व्यक्त हो रही है।
जवाब देंहटाएंमैं भी अन्ना, तु भी है, अन्ना सारा देश.
जवाब देंहटाएंरह पाए ना एक भी, भ्रष्टाचारी शेष.
आपके विचार बहुत अच्छे हैं अब देखते हैं क्या होता है, कहाँ तक और कौन कम करता है इस भ्रष्टाचार को...
जवाब देंहटाएंलोगों की दबी हुई भावनाएं उजागर हो रही है आज -कल....शुरुआत तो हो कहीं से ...
जवाब देंहटाएंताकि सनद रहे वक़्त पर काम आये ।
जवाब देंहटाएंबेहतरी की उम्मीद.
जवाब देंहटाएंजब तक सांस तब तक आस । आशा पर तो दुनिया टिकी है ।
जवाब देंहटाएंक्या आप खुद को ढूँढ पाये हैं आज की नई पुरानी हलचल में:)
जवाब देंहटाएंरामलीला मैदान में ये नारे लगते भी देखे जा सकते हैं...
जवाब देंहटाएंज़ोर से बोलो...आगे वाले भी बोलें...पीछे वाले भी बोलें...अरे सारे बोलें...
जय अन्ना की...
जय हिंद...
भ्रष्टाचार के प्रति मन में दबा आक्रोश लावा बन का फूट रहा है ...कुछ तो परिणाम सकारात्मक हो .
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार मिटाना है तो शुरुआत खुद से करनी पड़ेगी ।
जवाब देंहटाएंसोचना चाहिए कि क्या हमें अन्ना कहलाने का अधिकार है ।
इस वक़्त पूरी दिल्ली के साथ साथ ... समस्त भारत अन्ना मय हो गया है .....छा गए है अन्ना जी
जवाब देंहटाएं