सोमवार, 1 अगस्त 2011

शकुन्तला तरार की दो कविताएँ --- ललित शर्मा

नारी का संबंल पत्रिका की सम्पादक  शकुन्तला तरार जी की कविताएं प्रस्तुत हैं। परिचय जानने के लिए पेपर क्लिप पर क्लिक करें।

 (बस्तर अंचल जिसने छत्तीसगढ़ को अपनी कला, संस्कृति, साहित्य के माध्यम से विश्व में ख्याति दिलवाई है उसी बस्तर अंचल पर केन्द्रित मेरी यह कविता है।बस्तर पर मेरी कविता और मेरे गीत चलते रहेंगे निरन्तर निर्बाध पहाड़ी नदी की शीतल जलधारा की तरह। )


नई दुनिया में प्रकाशित परिचय
अभिव्यक्ति

पहाड़ों के बीच से निकलती है
इक नदी निश्छल, निर्मल
शीतल जलधारा लिये
अपनी मौज में वह बहती जाती है
तट पर आये लोगों को
अपनी शीतलता से ठंडक पहुंचाती
ठीक उसी तरह वह भी
जीवन की कुटिलताओं से परे
उन्मुक्त,निर्द्वन्द्व
निष्कपट भाव से निकलती है घर से तो
न जाने कितने लोगों की आंखों को
पहुंचाती है ठंडक
कुछ की आंखों में
उसकी खूबसूरती की प्रशंसा
कुछ की या ज्यादा की आंखें
वासनामयी
परन्तु उसे इन सबसे, कोई सरोकार नहीं
वह चलती जाती राह अपनी
वह जा रही है देखो
अरे भई कहां ?
महुआ बीनने,
नशा यहां तीन गुना हो गया है
मदमाता यौवन,
महुआ,
और वसन्त
तीनों ने जीवन को
नई अभिव्यक्ति दी है मानो।

   (2)
असभ्य कौन?

मैं आदिवासी हूँ
जंगलों में रहता हूँ
कंद-मूल-फल खाता हूँ
वनोपजों पर निर्भर हूँ
अशिक्षित हूँ/असभ्य हूँ
नंगे बदन रहता हूँ
नंगे पांव घूमता हूँ
काटता हूँ लकड़ी
बनाता हूँ झोंपड़ी
मालिक हूँ मैं
अपनी मर्जी का
किन्तु,
मैं आप जैसा नहीं बन सकता
क्योंकि मैं अशिक्षित हूँ
मैं गरीब हूँ
परन्तु मैं बुजदिल नहीं
सीधा-सादा सरल हूँ
आप जैसा छल-कपट
मुझे नहीं आता
मुझे नहीं भाता
जब घूरते हैं आप लोग
मेरी बहन, बेटियों को
मैं तो नहीं घूरता
आपकी बहन, बेटियों को
फिर मैं आप सबसे
अच्छा ही हुआ ना!
बताओ तो
असभ्य कौन?

        

शकुन्तला तरार ‘‘कवयित्री’’
प्रकाशक /संपादक- नारी का संबल
रायपुर (छत्तीसगढ़)

NH-30 सड़क गंगा की सैर

17 टिप्‍पणियां:

  1. शकुंतला तरार जी को शुभकामनाएँ और परिचय कराने के लिए आपका आभार
    way4host

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  2. समाज का कटु सत्य, बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है।

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  3. निश्छल मन की सुन्दर कविता ...
    परिचय के लिए आभार !

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  4. क्या बात कही है शानदार वे अनपढ़ है हमारी नजर मे पर उन्होने इस धरा से जितने मे जीवन सुखम्य कट जाये उससे उपर की चाह ही नही की उनको क्या जरूरत हमारी शिक्षा की । उनको जीवन जीने दो क्यों मजदूर बनाना चाहते हो ।

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  5. कटु सत्य को उजागर करती बेहद सशक्त अभिव्यक्ति।

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  6. असभ्य कौन ?
    बहुत ज्वलंत प्रश्न .
    सुन्दर कवितायेँ .

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  7. दोनों कवितायें में बहुत ही सुन्दरता से भाव अभिव्यक्त किये हैं शकुन्तला जी ने.... उन्हें बधाई....
    सादर....

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  8. शकुन्तला जी की दोनों कवितायें बहुत ही सुन्दर हैं परन्तु "असभ्य कौन ?" सोचने पर विवश करती है क्या ये शिक्षित और अशिक्षित का अंतर है?... आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाये ....
    सादर....

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  9. गहन अभिव्यक्ति लिए रचना ..
    सुन्दर कवितायेँ .

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  10. Lalit jee,namaskar.Shakuntala jee se unki rachanaon ke madhyam se milwane keliye dhanywad.Unki dono hi kavitaein bahut arthpurn aur sundar hain.

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  11. शकुन्तला जी की दोनों कवितायेँ बहुत ही सुंदर है ........!

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  12. सभी टिप्पणियों के लिए धन्यवाद, बहुत अच्छे-अच्छे कमेंट्स मिले हैं, ललित जी आभार l
    शकुंतला तरार

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  13. दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ... यहाँ पढवाने के लिए आभार

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  14. शकुंतला तरार जी का परिचय कराने के लिए आपका आभार
    गहन अभिव्यक्ति लिए रचना ..
    सुन्दर कवितायेँ .

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