|
छिन बाहरी (झाड़ू) |
झाड़ू को संस्कृत में सम्मार्जनी कहते हैं, यह आदिम काल से ही मानव की सहचरी बनी हुई है। भोर होते ही घर-भीतर से लेकर आंगन की साफ़-सफ़ाई करती है। मानव ने अग्नि के अविष्कार के पूर्व झाड़ू का अविष्कार कर लिया। उसे निस्तारी के लिए साफ़-सुथरी भूमि की आवश्यकता हुई तो घास की कुछ सीकों को एकत्र करके झाड़ू बनाई और नित्य सम्मार्जन का कार्य प्रारंभ किया। कहने का तात्पर्य है कि आदिम मानव ने झाड़ू का निर्माण कर इसे सहज ही अपना लिया। आदिम मानव से लेकर आज तक झाड़ू का सफ़र जारी है। झाड़ू निरंतर मानव सभ्यता को बचाने एवं संवारने में लगी है। जिसके घर या स्थान पर साफ़-सफ़ाई नहीं होती और कूड़ा-करकट पड़े रहता है उसे मानव समाज सभ्य नहीं मानता अर्थात मानव को सभ्य बनाने में झाड़ू का प्रथम एवं प्रमुख स्थान है। सम्मार्ज्जनश्च संशुद्धिः संशोधने विशोधने।
|
चंवर का प्रयोग-चंवर डुलाते हुए (गुगल से साभार) |
कहावत है कि कुत्ता भी कहीं बैठता है तो पूंछ से झाड़ कर बैठता है। संसार निर्माता ने पशुओं की शारीरिक संरचना में ही झाड़ू पूंछ के रुप में संलग्न कर दी। जिससे पशु अपनी पूंछ का उपयोग झाड़ू के रुप में करते हैं। मक्खी उड़ाने से लेकर बैठने के स्थान को झाड़ने का काम पूंछ ही करती है। डार्विन का कहना है कि वनपशु के क्रमिक विकास परिणाम वर्तमान मानव है। मानव द्वारा हाथों से काम लेने के कारण पूंछ की उपयोगिता खत्म हो गयी, इसलिए मानव शरीर से पूंछ रुपी झाड़ू विलुप्त हो गयी। जैसे-जैसे मानव सभ्य होता गया, झाड़ू सिर चढकर बोलने लगी। आंगन और घर बुहारते-बुहारते चँवर बनकर मक्खियाँ उड़ाने एवं हवा देने का काम करने लगी। राजा-महाराजा एवं देवी-देवताओं को चँवर (चँवरी भी कहते हैं) रुपी झाड़ू शोभायमान होने के साथ-साथ इनके सानिध्य में झाड़ू ने चँवर का रुप ग्रहण कर सम्मान पाया।
|
भित्ती चित्र- (गुगल से साभार) |
झाड़ू को कूंची, बुहारी, बहरी, बहारी, सोहती, बढनी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। जहाँ तक मानव सभ्यता का विकास एवं विस्तार हुआ वहाँ तक झाड़ू उसका साथ निभाया और साथ निभा रही है। इसने कूंची, ब्रश, दंताली, से लेकर वैक्युम क्लीनर तक एवं धरती से लेकर अंतरिक्ष तक का सफ़र तय किया। अमीर से लेकर गरीब तक, निर्बल से लेकर सबल तक, मुर्ख से लेकर विद्वान तक, चरित्रहीन से लेकर चरित्रवान तक सभी को झाड़ू समान भाव से अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है। इसने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। सफ़ाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य को करने वाली झाडू प्राचीन काल से ही उपेक्षा का शिकार हुई।मिश्र, हरक्वेलिनियम, पाम्पेई, हड़प्पाकालीन सभ्यता के प्रकाश में आने लेकर वर्तमान में हो रहे उत्खन्न में कहीं पर झाड़ू के चिन्ह प्राप्त नहीं होते। आदिम काल से झाड़ू की सेवाएं लेने वालों ने मुर्तियों, चित्रों एवं शैल चित्रों में इसे उल्लेखित नहीं किया। इसे हम कृत्घ्नता ही मानेगें।
|
ग़ड़ोरी जाति की महिला |
झाड़ू के फ़ुलकांसबहारी, छिनबहारी, खरहेराबहारी (बांस से निर्मित), बरियारी,बलियारी बहारी (बलियारी आयुर्वैदिक औषधि है,इसकी जड़ का प्रयोग पौरुष शक्ति बढाने में एवं पत्र एवं पुष्प भी औषधि रुप में प्रयुक्त होते हैं) , मोरपंखीबहारी (तांत्रिक उपयोग हेतु) आदि कई प्रकार हैं। छत्तीसगढ में झाड़ू का निर्माण गड़ोरी नामक जाति करती है। इनका मुख्य पेशा झाड़ू बनाना एवं शिकार करना ही है। विशेष कर ग़ड़ोरी लोग छिन की बहारी ही बनाते हैं। छिन की झाड़ू भारत से लेकर अफ़्रीका तक में बनती है। बांस की बहारी कंडरा जाति के लोग बनाते हैं। झाड़ू से झाड़ना शब्द बनता है।झाड़ू लगाना या सफ़ाई करना मेहतर या झाड़ूबरदार जाति विशेष का कार्य है। कभी-कभी वर्ष में राजा-महाराजा भी एक बार झाड़ू लगा लिया करते हैं, जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा के मार्ग को राजा सोने की झाड़ू से बुहारता है तब रथ यात्रा प्रारंभ होती है। बस्तर के प्रसिद्ध दशहरे के रथ भ्रमण का प्रारंभ राजवंशियों के झाड़ू से मार्ग बुहारने के पश्चात होता है। ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद स्वयं को जमीन नेता बनाने के लिए सड़क पर अक्सर झाड़ू लगाते हैं तथा सफ़ाई कर्मियों की बैठक में हिस्सा लेते हैं।
|
झाड़ू पर सवार गोरी चुड़ैल (गुगल से साभार) |
बैगा-गुनिया,तांत्रिक मोर पंखी झाड़ू का उपयोग भूतप्रेत झाड़ने में करते हैं। मेरे नाना जी के पास भी मोर पंखी झाड़ू थी, जिससे वे झाड़-फ़ूंक करते थे। गोरी (अंग्रेज) चुड़ैलों का वाहन झाड़ू ही है। गोरी चुड़ैलों की कहानी में इन्हे झाड़ू पर सवार दिखाया जाता है, विदेशी कहानियों में इसका जिक्र आता है। भोपाल के मेलादपुर में मंदिर का पुजारी झाड़ू से पीट कर भूत उतारता है। यहाँ इतनी भीड़ होती है कि इसे भूतों का मेला कहा जाने लगा है। मनौती मानने के लिए लोग कई जगह झाड़ू की भेंट चढाते हैं। मुरादाबाद के बहजोई में बने मंदिर में शिव की झाड़ू से पूजा की जाती है,महादेव का आशीर्वाद झाड़ू चढ़ाकर मांगा जाता है, कहते हैं कि झाड़ू चढाने से भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं।
उत्तरप्रदेश के जनपद मुज़फ्फरनगर के गाँव सोरम में साग्रीबपीर बाबा की मजार पर(जिसे लोग सोरम साग्रीब पीर और झाड़ू वाले पीर बाबा के नाम से भी जानते है) प्रसाद के रूप में झाड़ू चढ़ाई जाती है देश के कोने कोने से सभी धर्मो के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन्नत मांगने आते है | मान्यता है की किसी भी मनुष्य को कोर्ट कचहरी से बचना हो या फिर पारिवारिक विवाद ,या घरो में खटमल हो गए हो ,और या फिर किसी के शरीर पर मस्से हो गए हो तो यहाँ झाड़ू चढाकर मन्नत मांगने से इच्छा पूरी हो जाती है।चीन के जिलिन राज्य के चांगचुन शहर के निवासी जू मिंग ने गोल्डन रिट्रीवर प्रजाति के अपने कुत्ते को झाड़ू लगाना सिखाया। यह अपने मालिक के साथ सड़क पर टहलते हुए झाड़ू लगाता है। यह कुत्ता टहलते हुए हमेशा अपने मुंह में पकड़े हुए छोटे से झाड़ू से झाड़ता है।
|
फ़ुलकांस बहारी |
मान्यता है कि झाड़ू लक्ष्मी का रुप है, यह घर की दरिद्रता को बाहर कर धन-समृद्धि लाती है। जिस घर में साफ़-सफ़ाई रहती है, वहाँ लक्ष्मी का वास रहता है, दरिद्रता दूर होती है। जिस घर में झाड़ू नहीं लगती वहाँ भूत-प्रेतों का वास होने के कारण हमेशा आर्थिक विपन्नता रहती है। झाड़ू लगाने के नियम और कायदे भी हैं। झाड़ू को पैर नहीं लगाते, पैर लगने से इसे छूकर माफ़ी मांगी जाती है। इसे घर में दरवाजे के पीछे छुपा कर रख जाता है। कहते हैं कि अगर झाड़ू बाहर दिखाई देती है तो घर में कलह होता है। इसे बिस्तर पर एवं पूजा स्थान पर रखने एवं शाम एवं रात्रि के समय झाड़ू लगाने की मनाही है। धन-संपत्ति लाभ हेतू टोटका बताया जाता है कि रविवार या सोमवार को तीन झाड़ू खरीदकर उसे किसी मंदिर में रख देना चाहिए,ध्यान रहे कि झाड़ू ले जाते हुए एवं मंदिर में रखते हुए कोई देखे नहीं, इससे अर्थ जनित समस्याएं दूर हो जाती है। झाड़ू दरिद्रता दूर करने के टोटके के भी रुप में काम आती है। सपने में झाड़ू देखना हानिकारक बताया गया है।
|
बेबी हालदार (गुगल से साभार) |
झाड़ू ने लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया, एक झाड़ू के सहारे परिवार चलता है। गरीबी एवं विपत्ति के समय अनपढ या कम पढी-लिखी महिलाओं का झाड़ू-पोंछा जीवन यापन का सहारा बनता है। झाड़ू पोंछा करने वाली बेबी हालदार आज एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के रुप में स्थापित है। "आलो आँधारि" लिख कर उनकी कीर्ति पुरी दुनिया में जगमगा रही है। विश्व के कई देशों में भ्रमण कर चुकी बेबी हालदार को हांगकांग जाते समय दिल्ली एयरपोर्ट पर रोक दिया गया। उसे सिक्योरिटी वाले लेखिका बेबी हालदार मानने को तैयार नहीं थे। लेखिका होने के साथ दिखना भी जरुरी है। बेबी साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेकर हांगकांग, पेरिस से होकर आ चुकी है और आज वह देश के भी कई शहरों में वायुयान से आती-जाती हैं, जो उनकी संघर्ष का नतीजा है। न्यूयार्क टाइम्स, बीबीसी, सीएनएन-आइबीएन आदि पर उसका इंटरव्यू आ चुका है।
|
छिन (खजुर के जैसा वृक्ष) झाड़ू |
बेलन के पश्चात झाड़ू ही एक ऐसा शस्त्र है, जो गृहणी को सदा सुलभ रहता है, कई जगह इस मारक शस्त्र का प्रयोग होते भी देखा जाता है। गृहणी को क्रोध आने पर झाड़ू युद्ध एवं उसकी मूठ से कुटाई होने की आशंका बनी रहती है। लंदन के एक घर में दो हथियारबंद लुटेरे चोरी की नीयत से घुस गए। 90 एवं 49 वर्षीय दो व्यक्तियों को बांधकर उनसे 50 डालर छीन लिए। जब वे सीढियाँ चढ कर उपर जाने लगे तो एक 43 वर्षीय महिला से सामना हो गया जो झाड़ू लेकर उनका इंतजार कर रही थी। उसका रौद्ररुप एवं हाथ में झाड़ू देखकर चोरों के होश उड़ गए और वे भाग खड़े हुए। इस तरह झाड़ू ने एक घर को लुटने से बचा लिया। झाड़ू कारगर हथियार है, अगर समय पर उपलब्ध हो जाए तो।
|
बलियारी का पौधा |
चोर मौका पाते ही झाड़ू लगा जाते हैं, सरकार भी झाड़ू लगाती है, क्रिकेटर भी झाड़ू लगाकर (स्वीप) रन बनाते हैं। झाड़ू आदिमकाल से मानव की सेवा में रत है। इसके बिना घर की स्वच्छता की कल्पना नहीं की जा सकती। किसी के पास मकान नहीं पर भी उसके पास एक अदद झाड़ू मिल ही जाएगी। कच्चे-पक्के घरों एवं आंगन को बुहारने के लिए पृथक-पृथक झाड़ूओं का प्रयोग होता है। छत्तीसगढ अंचल में धान पकने के पश्चात ब्यारा (खलिहान) का निर्माण किया जाता है। धान मींजने(निकालने) के लिए बेलन या ट्रेक्टर चलाने लायक भूमि की घास को छील कर उसे गोबर से लीपा जाता है। जिससे धान के दाने खराब न हों। लीपने के कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व ब्यारा में होम धूप देकर बलियारी की झाड़ू से ही लीपा जाता है। बलियारी बलवर्धक माना जाता है। इस तरह झाड़ू हमारे जीवन का एक अंग है। जिसके बिना हम दिन की शुरुवात करने की कल्पना ही नहीं कर सकते। सुरज भी कभी-कभी साथ छोड़ देता है, उगता नहीं या बादल ढक लेते हैं। परन्तु झाड़ू प्रत्येक काल परिस्थिति में मानव का साथ निभाते आई है। इसलिए वैदिक वांग्मय ने इसे सम्मार्जनी कह कर सम्मानित किया, मानव समाज के लिए झाड़ू वंदनीय है।
वाह ! झाड़ू पुराण पढकर तगड़ा ज्ञान वर्धन हुआ |
जवाब देंहटाएंजय हो झाड़ू पुराण की...अथ श्री प्रथम अध्यायम......सम्पातमः!!! जय हो स्वामी ललितानन्द महाराज की!!!
जवाब देंहटाएंशिवजी के मंदिर में झाड़ू चढ़ती है , सुना ही था , आपने कन्फर्म कर दिया !
जवाब देंहटाएंसफाई करने की प्रक्रिया में हर गन्दगी साफ़ कर देने वाली झाड़ू लक्ष्मी का रूप भी है , दादी कभी भी इसे पैर नहीं लगाने देती थी ...इसके साथ बेबी हालदार का जिक्र इसकी सार्थकता को बढ़ा गया , सफाई करने वाले हाथ जब लेखन करने लगते हैं तब भी कहाँ पीछे रहते हैं ...
वैक्यूम क्लीनर भी है मेरे पास मगर झाड़ू जैसी सफाई उससे कहाँ संभव है ! झाड़ू और बेलन दोनों हथियारों पर आपने रोचक जानकारी दी ... गृहिणियों की हौसला अफजाई के लिए आभार !
शिकायत है आपसे , आप जैसे विद्वान् भी झाड़ू और बेलन पर लिख देंगे तो हम गृहिणियां किस पर लिखेंगी :)
रोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
बेलन के पश्चात झाड़ू ही एक ऐसा शस्त्र है, जो गृहणी को सदा सुलभ रहता है
जवाब देंहटाएंha ha ha ah
अरे वाह ये सम्मार्जनी कथा तो बडी रोचक और ज्ञानवर्धक रही । हमारे माँ के घर में लक्ष्मी पूजन में देवी के चित्र के साथ नई झाडू की भी पूजा की जाती थी ।
जवाब देंहटाएं@ सब खैरियत तो है जनरल !
जवाब देंहटाएंभगवान से दुआ करता हूँ कि ललित भाई के साथ ऐसा वैसा न हुआ हो ...
भाभी जी को प्रणाम 1
आपको दिली शुभकामनायें !
इस झाडू पुराण ने तो हमारी बुद्धी का ही मार्जन कर दिया। तभी तो इसे सम्मार्जनी कहते हैं। बहुत मेहनत की है इस पोस्ट पर। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंझाड़ू से पिटते पतियों का जिक्र न कर आपने पत्नी पीशित संघ के समस्त सदस्यो का अपमान किया है 24 घंटे मे भूल सुधार न करने पर आपके खिलाफ़ धरना प्रदर्शन किया जायेगा ।
जवाब देंहटाएंरोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंइस झाडू पुराण ने तो हमारी बुद्धी का ही मार्जन कर दिया। तभी तो इसे सम्मार्जनी कहते हैं।
शुभकामनायें !
अथ श्री सम्मार्जन कथा। बहुत कुछ जानने को मिला इस विषय में।
जवाब देंहटाएंशर्माजी, सम्मार्जनी की कथा न केवल रोचक अपितु ज्ञानवर्धक भी रही. बहारी की अहमियत पर एक अनोखा आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंyadi jhadu par kisi ko shodh patra likhni ho to aap ka yah aalekh bahut madadagar hoga .
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह झाड़ू मारने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअद्भुत, ब्लाग साहित्य भंडार की अनुपम निधि.
जवाब देंहटाएंएक झाड़ू, 'अकासबहरी' धूमकेतु पुच्छल तारा उगा करता था साठादि के दशक में.
मजेदार कि जिस सम्मार्जनी से मार्जन, मज्जन हो कर मंजन बनता है वह पेस्ट के लिए रूढ़ हुआ न कि ब्रश के लिए.
प्रूफ रीडिंग के काम को झाड़ू लगाने जैसा कहा जाता था, यानि कुछ न कुछ निकल ही आता है. आपके इस पोस्ट की वंदना करते हुए हमने भी एक बार फेरने की कोशिश कर ली.
सम्मार्जनी कथा बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत की .. घर घर में पाई जाने वाली झाड़ू पर विस्तृत जानकारी .. बेबी हालदार के विषय में आपकी ही पोस्ट से जानकारी मिली .. बहुत सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंजय हो झाड़ू पुराण की...आपका ज्ञान बहुत ही शानदार है .. कहाँ कहाँ से विषय ले आते है .
जवाब देंहटाएंरोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंwah re jhaaaru tere pe bhi vistar se charcha ho gayee....
जवाब देंहटाएंbehtareen:)
झाड़ू के विषय में बहुत अच्छी जानकारी!
जवाब देंहटाएंवैसे आपने यह नहीं बताया कि छत्तीसगढ़ में नाम भी 'झाड़ूराम' रखे जाते हैं।
badhiya likhe hain bhiya
जवाब देंहटाएं@जी.के. अवधिया
जवाब देंहटाएंझाड़ूराम का उल्लेख मैने जानबूझ कर नही किया। आपके कहने के लिए कुछ तो बचा कर रखना था… हा हा हा
झाड़ूराम पर एक पोस्ट ही लिखुंगा फ़ोटु सहित।
पंडित जी, आप तो पुरे एनसाईंकलोपीडिया सिद्ध हो रहे हो...... झाड़ू..... सम्मार्जनी - संस्कृत में कितना इज्ज़तदार नाम है - उसके पेशे की तरह......
जवाब देंहटाएंऔर हाँ.... जो झाडू फोटू में दिखा रखा है - यहाँ बहुत ढूंढने पर मिलता है ........ चलता ज्यादा है - इसलिए फेक्टरी में यही मंगवाता हूँ....
ek jhadu "JHADURAM DEWANGAN" bhi vandniy hai.
जवाब देंहटाएं@rakesh tiwari
जवाब देंहटाएंहौ भैया, ओखरे उपर एक ठीक पोस्ट बनाना हे। जतना भी झाड़ूराम हे जम्मो ला एके पोस्ट संगराहूँ।
जोहार ले।
सम्मार्जनी की कथा बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक है. इसके इतने सारे नाम और रूप... अद्भुत... आलेख... आभार...
जवाब देंहटाएं१.........बाबा की मजार पर(जिसे लोग सोरम साग्रीब पीर और झाड़ू वाले पीर बाबा के नाम से भी जानते है) प्रसाद के रूप में झाड़ू चढ़ाई जाती है
जवाब देंहटाएं२........मुरादाबाद के बहजोई में बने मंदिर में शिव की झाड़ू से पूजा की जाती है,महादेव का आशीर्वाद झाड़ू चढ़ाकर मांगा जाता है, कहते हैं कि झाड़ू चढाने से भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं।.....................आज तक इस जानकारी से महरूम थी ....धन्यवाद इस लेख को पढवाने के लिए
जय हो भाई जी .....धन्य हो आप ......कहाँ कहाँ से सोच कर आप विषय लेते हो
झाड़ू पर लिख दिया....और वो भी इतना रोचक ...की पढ़ का अच्छा भी लगा और मज़ा भी आया ..............आभार
--
anu
sundr bdhai
जवाब देंहटाएंरोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंअथ श्री झाड़ू पुराण !मजा आ गया इस उम्दा शोध परक लेख को पढकर |
जवाब देंहटाएंरोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबहुत सी नयी बातें मालूम हुईं , आभार
शर्मा जी आपको तो झाड़ू पर विस्तृत शोध पत्र प्रस्तुत करने के उपलक्ष्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिलनी चाहिए...........!
जवाब देंहटाएंआपने झाड़ू जैसे अत्यंत साधारण वस्तु का बखान करके झाड़ू का गौरव बढ़ाने के साथ ही झाड़ू को और भी वंदनीय बना दिया..........!
हमारे यहॉं भी विजयदशी एवं धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने की परम्परा रही है........!
सभी साथियों की टिप्पणियां मजेदार लगी.........!
झाड़ू से झड़ुआना। सुनने को अक्सर मिल जाता है बहुत घरों में। खासकर बच्चों को।
जवाब देंहटाएंअब दो बातें याद आईं झाड़ू पर।
पहली कि झाड़ू ज्ञान दान भी करती है। यह खुद गंदा होती है लेकिन दूसरों को साफ कर जाती है।
दूसरी यह कि बचपन स्कूल में सफाई मंत्री हुआ करता था और मैं एकमात्र मंत्री था जो अपना काम करता था। सफाई मंत्री का काम होता था हर दिन चार छात्रों द्वारा स्कूल में झाड़ू लगवाना। लेकिन खुशी थी कि प्रधानमंत्री की भी बारी आती थी और उससे भी झाड़ू लगवाता था।
अच्छा लगा आपका झाड़ू-वर्णन। नये विषय को छुआ आपने। धन्यवाद।
रोचक भी ज्ञानवर्धक भी...
जवाब देंहटाएंसम्मार्जनी मतलब झाड़ू हर एक पंक्ति में गहरा ज्ञान का भण्डार समाहित कर दिया आपने .....आपका आभार
जवाब देंहटाएंजानकारियों से भरी रोचक पोस्ट .......आभार
जवाब देंहटाएंbahut achchi jhadu lagayee aapne! tadpatra se vaccum cleener ke vikas yatra par bhi roshani daliye!!!!
जवाब देंहटाएंझाड़ू द्वारा सम्मान-अर्जन हुआ लगता है :-)
जवाब देंहटाएं(सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी से प्राप्त प्रेरणा)
bahut gahan adhyayan hai jhadoo par....cheez bhale tuchchh mani jaye par iska mahatv vakai bahut adhik hai...sarthak post..
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक जानकारी विस्तार से मिली । आभार ।
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
आपका ज्ञान और दृष्टि बेमिसाल है
जवाब देंहटाएंझाडू पर इतने सारे प्वाइंट्स .. कमाल का लेखन है .. बहुत जानकारी मिली !!
जवाब देंहटाएंरोचक, ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंइस झाडू पुराण ने तो हमारी बुद्धी का ही मार्जन कर दिया। तभी तो इसे सम्मार्जनी कहते हैं।
शुभकामनायें !
आनंद और ज्ञान दोनों मिला...आभार आपका..!
जवाब देंहटाएं@ललित भाई ज्ञानपरक आलेख आभार इस तस्वीर को लिंक कर दीजिए
जवाब देंहटाएंHello sir can u explain all this in english plss
जवाब देंहटाएंNo, you translate in English by Viget.
हटाएंअथ सम्माजर्नी कथा । अतिउत्तम सम्वेदनाओं और विचारों से युक्त लेखन अच्छा लगा । इतिहास, भूगोल , वर्तमान आदि का शुद्धता से उल्लेख किया । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजय हो प्रभु झाड़ू पुराण सुनाने के लिए
जवाब देंहटाएं